"प्राकृत पैंगलम": अवतरणों में अंतर
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'''प्राकृत पैंगलम''' किसी एक काल की रचना नहीं है। [[सुनीति कुमार चटर्जी|डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी]] के मतानुसार इसमें संकलित पदों का रचनाकाल 900 ईस्वी से लेकर 1400 ईस्वी तक का है। इस कारण इसको [[अपभ्रंश]] तथा आधुनिक भारतीय भाषाओं के संक्रमण काल के भाषिक स्वरूप की प्रामाणिक सामग्री का आधार मानना उपयुक्त नहीं है। [[हिन्दी]] की उपभाषाओं पर कार्य करने वाले | '''प्राकृत पैंगलम''' किसी एक काल की रचना नहीं है। [[सुनीति कुमार चटर्जी|डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी]] के मतानुसार इसमें संकलित पदों का रचनाकाल 900 ईस्वी से लेकर 1400 ईस्वी तक का है। इस कारण इसको [[अपभ्रंश]] तथा आधुनिक भारतीय भाषाओं के संक्रमण काल के भाषिक स्वरूप की प्रामाणिक सामग्री का आधार मानना उपयुक्त नहीं है। [[हिन्दी]] की उपभाषाओं पर कार्य करने वाले विद्वान् भी इसकी भाषा के सम्बंध में एकमत नहीं हैं। [[ब्रजभाषा]] पर कार्य करने वाले विद्वानों ने इसे ब्रज भाषा का ग्रंथ माना है किन्तु डॉ. उदय नारायण तिवारी के अनुसार इसमें [[अवधी भाषा|अवधी]], [[भोजपुरी भाषा|भोजपुरी]], [[मैथिली भाषा|मैथिली]] और [[बंगला भाषा|बंगला]] के प्राचीनतम रूप भी मिलते हैं।<ref>डॉ. उदय नारायण तिवारी : हिन्दी भाषा का उद्गम और विकास, पृष्ठ 152</ref><ref>प्राकृत पैंगलम की शब्दावली और वर्तमान हिन्दी : सम्मेलन पत्रिका, वर्ष 47, अंक 3) </ref> | ||
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14:29, 6 जुलाई 2017 के समय का अवतरण
प्राकृत पैंगलम किसी एक काल की रचना नहीं है। डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी के मतानुसार इसमें संकलित पदों का रचनाकाल 900 ईस्वी से लेकर 1400 ईस्वी तक का है। इस कारण इसको अपभ्रंश तथा आधुनिक भारतीय भाषाओं के संक्रमण काल के भाषिक स्वरूप की प्रामाणिक सामग्री का आधार मानना उपयुक्त नहीं है। हिन्दी की उपभाषाओं पर कार्य करने वाले विद्वान् भी इसकी भाषा के सम्बंध में एकमत नहीं हैं। ब्रजभाषा पर कार्य करने वाले विद्वानों ने इसे ब्रज भाषा का ग्रंथ माना है किन्तु डॉ. उदय नारायण तिवारी के अनुसार इसमें अवधी, भोजपुरी, मैथिली और बंगला के प्राचीनतम रूप भी मिलते हैं।[1][2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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