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| घटनाक्रम
| | #REDIRECT[[सदस्य:रविन्द्र प्रसाद]] |
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| वह रविवार का दिन था और आसपास के गांवों के अनेक किसान हिंदुओं तथा सिक्खों का उत्सव ‘बैसाखी’ बनाने अमृतसर आए थे । यह बाग़ चारों ओर से घिरा हुआ था। अंदर जाने का केवल एक ही रास्ता था। जनरल आर. ई. एच. डायर ने अपने सिपाहियों को बाग़ के एकमात्र तंग प्रवेशमार्ग पर तैनात किया था । बाग़ साथ- साथ सटी ईंटों की इमारतों के पिछवाड़े की दीवारों से तीन तरफ से घिरा था । डायर ने बिना किसी चेतावनी के 50 सैनिकों को गोलियां चलाने का आदेश दिया और चीख़ते, आतंकित भागते निहत्थे बच्चों, महिलाओं, बूढ़ों की भीड़ पर 10-15 मिनट में 1650 गोलियां दाग़ दी गई । जिनमें से कुछ लोग अपनी जान बचाने की कोशिश करने में लगे लोगों की भगदड़ में कुचल कर मर गए ।
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| शहीदों के आँकड़े
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| विषय सूची
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| [छिपाएँ] | |
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| * 1 जलियांवाला बाग़ में सभा
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| * 2 घटनाक्रम
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| * 3 शहीदों के आँकड़े
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| * 4 जनरल डायर का तर्क
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| * 5 जांच आयोग का गठन
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| * 6 रॉलेट एक्ट की प्रतिक्रिया
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| * 7 हड़ताल और ब्रिटिश शासन
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| * 8 गाँधी जी की गिरफ्तारी
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| * 9 जनसंहार की प्रतिक्रियाएं
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| * 10 स्मारक
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| * 11 बाहरी कड़ियाँ
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| * 12 सम्बंधित लिंक
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| सरकारी अनुमानों के अनुसार, लगभग 400 लोग मारे गए और 1200 के लगभग घायल हुए, जिन्हें कोई चिकित्सा सुविधा नहीं दी गई । अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है। जलियांवाला बाग़ में 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिश शासन के अभिलेख में इस घटना में 200 लोगों के घायल, 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार की गयी है जिसमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग किशोर लड़के और एक 6 सप्ताह का बच्चा भी था। अनाधिकारिक आँकड़ों में कहा जाता है कि 1000 से अधिक लोग मारे गए थे और लगभग 2000 से भी अधिक घायल हो गये थे।
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