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ग्रीक लोकगाथा के अनुसार ओरायन एक भारी शिकारी था। [[चंद्रमा]] की देवी 'डायना' इसे देखकर इसके प्रेम में पड़ गई। डायना के भाई अपोलों ने इस बात से क्रोधित होकर छल द्वारा ओरायन का वध करा दिया। दु:खीत डायना की प्रार्थना से मृत ओरायन को तारों में स्थान मिला। ओरायन के वध की अन्य कथाएँ भी हैं।<ref name="aa">{{cite web |url=http:// | ग्रीक लोकगाथा के अनुसार ओरायन एक भारी शिकारी था। [[चंद्रमा]] की देवी 'डायना' इसे देखकर इसके प्रेम में पड़ गई। डायना के भाई अपोलों ने इस बात से क्रोधित होकर छल द्वारा ओरायन का वध करा दिया। दु:खीत डायना की प्रार्थना से मृत ओरायन को तारों में स्थान मिला। ओरायन के वध की अन्य कथाएँ भी हैं।<ref name="aa">{{cite web |url=http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%B2|title=किरातमंडल|accessmonthday=19 मई|accessmonthday= 2014|accessyear= |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | ||
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05:40, 25 जुलाई 2018 के समय का अवतरण
किरातमंडल आकाश में एक तारामंडल है, जो सिंह और वृष राशियों के बीच से थोड़ा-सा नीचे है। अंग्रेज़ी में इसका नाम 'ओरायन'[1] है। इस मंडल के अधिकांश तारे काफ़ी चमकदार होते हैं। इसके चार प्रमुख तारे एक चौकोर सा बनाते हैं।
लोकगाथा
ग्रीक लोकगाथा के अनुसार ओरायन एक भारी शिकारी था। चंद्रमा की देवी 'डायना' इसे देखकर इसके प्रेम में पड़ गई। डायना के भाई अपोलों ने इस बात से क्रोधित होकर छल द्वारा ओरायन का वध करा दिया। दु:खीत डायना की प्रार्थना से मृत ओरायन को तारों में स्थान मिला। ओरायन के वध की अन्य कथाएँ भी हैं।[2]
तारे
किरातमंडल के अधिकतर तारे बहुत चमकदार हैं। इसके चार मुख्य तारे एक चौकोन-सा बनाते है। ऊपर के दो तारे किरात के कंधे पर माने जाते है और नीचे के दो तारे उसकी जंघा। इस चौकोर के बीच में तीन तारे, जो बेंड़े-बेड़े हैं, इसकी पेटी पर माने जाते हैं। पेटी के नीचे तीन तारे खड़ी रेखा में हैं, जो किरात की तलवार पर हैं। इनके अतिरिक्त दाहिनी ओर मंद प्रकाश वाले तारों की एक खड़ी कतार है जो सिंह की खाल मानी जाती है और बाईं ओर कंधे के ऊपर कुछ तारे हैं, जो किरात की गदा माने जाते हैं। तीन तारे इसके सिर पर हैं।
बीटेलजूज़
चौकोर के ऊपरी बाएँ कोने का तारा 'बीटेलजूज़'[3] है। यह प्रथम श्रेणी का ललंछौंह रंग का तारा है। पृथ्वी से यह लगभग 300 प्रकाश वर्ष दूर है। बीटेलजूज़ परिवर्तन तारा है, जिसका प्रकाश घटता बढ़ता रहता है।[4] यह प्रथम तारा है, जिसका व्यास सन 1920 में माउंट विलसन के 100 इंच के दूरदर्शी से माइकेलसन ध्वनिक व्यतिकरणमापी[5] के सिद्धांत द्वारा ज्ञात किया गया था। इसका व्यास 25 लाख मील से 40 लाख तक घटता बढ़ता रहता है। यह तारा इतना बड़ा है कि इसके केंद्र पर यदि सूर्य रखा जाए तो पृथ्वी और मंगल दोनों इस तारे के भीतर ही परिक्रमा करेंगे। किंतु इस तारे का द्रव्यमान बहुत अधिक नहीं है और इसका औसत घनत्व बहुत-ही कम है।[6]
बीटेलजूज़ से विपरीत कोने पर 'रीजेल' तारा है। यह सफ़ेद रंग का तारा बीटेलजूज़ से अधिक चमकदार है। इसका श्रेणी 0.3 है। इसके वर्णपट से पता चलता है कि यह युग्म तारा है। यह पृथ्वी से 540 प्रकाश वर्ष दूर है। चौकोर के शेष दोनों तारे 'बेलाट्रिक्स' और 'सफ़' द्वितीय श्रेणी के हैं। पेटी पर के तीनों तारे भी द्वितीय श्रेणी के हैं। इनमें से पश्चिमी सिरे का तारा युग्म हैं।[2]
नीहारिका
किरात की तलवार पर के तीन तारों में बीच कर तारा वस्तुत: तारा नहीं, बल्कि एक नीहारिका हैं। दूरदर्शी से देखने पर यह प्रज्वलित गैस के रूप में दिखाई पड़ती है। नीहारिका इतना बड़ा है कि साधारण दूरदर्शी से भी इसके प्रसार का अनुमान लग जाता हैं। यह नीहारिका गैस का बादल है, जो इसमें छिपे तारों के प्रकाश से प्रज्वलित हैं। ये तारे इतने ऊँचे ताप के है कि इस बादल के कण उद्रीप्त होकर स्वयं प्रकाश देने लगते हैं। इसके वर्णपट मे हाइड्रोजन, आयनाकृत ऑक्सीजन और हीलियम की रेखाएँ प्रमुख है। इस प्रज्वलित नीहारिका में कुछ ऐसे रिक्त स्थान भी है, जहां न तो कोई अपना प्रकाश है न किसी तारे का। ये काली नीहारिकाएँ हैं। ये भी गैस के बादल से बनी है, किंतु पास में कोई तारा न होने के कारण प्रज्वलित नहीं है। इसके विपरित दूर से आने वाले तारों के प्रकाश को भी ये रोक लेती हैं। किरातमंडल की नीहारिका पृथ्वी से लगभग 500 प्रकाश वर्ष दूर है।
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