"अंजान (गीतकार)": अवतरणों में अंतर
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'''अंजान''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Anjaan'' ; जन्म- [[28 अक्टूबर]], [[1930]], [[बनारस]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[13 सितम्बर]], [[1997]]) भारतीय [[हिन्दी]] फ़िल्मों के मशहूर गीतकार तथा अपने समय के ख्याति प्राप्त शायर थे। इनका वास्तविक नाम 'लालजी पाण्डेय' था। अंजान के लिखे हुए गीत आज भी लोगों की जुबां पर चढ़े हुए हैं। 'खइके पान बनारस वाला', 'ओ साथी रे तेरे बिना भी क्या जीना' और 'रोते हुए आते हैं सब' जैसे न जाने कितने ही सदाबहार गीत अंजान ने लिखे और प्रसिद्धि की ऊँचाईयों को छुआ। [[अमिताभ बच्चन]] पर फ़िल्माये गए उनके गीत काफ़ी लोकप्रियता हासिल करते थे। अंजान के पसंदीदा संगीतकार के तौर पर [[कल्याणजी-आनंदजी]] का नाम सबसे ऊपर आता है। इनके संगीत निर्देशन में अंजान के गीतों को नई पहचान मिली थी। अंजान साहब के पुत्र समीर भी पिता के समान ही प्रसिद्ध गीतकार हैं। | '''अंजान''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Anjaan'' ; जन्म- [[28 अक्टूबर]], [[1930]], [[बनारस]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[13 सितम्बर]], [[1997]]) भारतीय [[हिन्दी]] फ़िल्मों के मशहूर गीतकार तथा अपने समय के ख्याति प्राप्त शायर थे। इनका वास्तविक नाम 'लालजी पाण्डेय' था। अंजान के लिखे हुए गीत आज भी लोगों की जुबां पर चढ़े हुए हैं। 'खइके पान बनारस वाला', 'ओ साथी रे तेरे बिना भी क्या जीना' और 'रोते हुए आते हैं सब' जैसे न जाने कितने ही सदाबहार गीत अंजान ने लिखे और प्रसिद्धि की ऊँचाईयों को छुआ। [[अमिताभ बच्चन]] पर फ़िल्माये गए उनके गीत काफ़ी लोकप्रियता हासिल करते थे। अंजान के पसंदीदा संगीतकार के तौर पर [[कल्याणजी-आनंदजी]] का नाम सबसे ऊपर आता है। इनके संगीत निर्देशन में अंजान के गीतों को नई पहचान मिली थी। अंजान साहब के पुत्र समीर भी पिता के समान ही प्रसिद्ध गीतकार हैं। | ||
==जन्म== | ==जन्म== | ||
[[हिन्दी भाषा]] और [[साहित्य]] के करिश्माई व्यक्तित्व अंजान का जन्म 28 अक्टूबर, 1930 को [[उत्तर प्रदेश]] की धार्मिक नगरी [[बनारस]] में हुआ था। बचपन के दिनों से ही उन्हें शेरो-शायरी के प्रति गहरा लगाव था।<ref name="aa">{{cite web |url= http://www.hamaraforums.com/index.php?showtopic=43759|title=गीतकार अंजान, संगीत का सफर|accessmonthday= 19 जून|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= हमारा फोर्म्स.कॉम|language= हिन्दी}}</ref> | [[हिन्दी भाषा]] और [[साहित्य]] के करिश्माई व्यक्तित्व अंजान का जन्म 28 अक्टूबर, 1930 को [[उत्तर प्रदेश]] की धार्मिक नगरी [[बनारस]] में हुआ था। बचपन के दिनों से ही उन्हें शेरो-शायरी के प्रति गहरा लगाव था।<ref name="aa">{{cite web |url= http://www.hamaraforums.com/index.php?showtopic=43759|title=गीतकार अंजान, संगीत का सफर|accessmonthday= 19 जून|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= हमारा फोर्म्स.कॉम|language= हिन्दी}}</ref> | ||
====कवि सम्मेलन तथा मुशायरा==== | ====कवि सम्मेलन तथा मुशायरा==== | ||
शेरो-शायरी के अपने शौक को पूरा करने के लिए अंजान बनारस में आयोजित सभी कवि सम्मेलनों और मुशायरों में हिस्सा लिया करते थे। हालांकि मुशायरों में वह [[उर्दू]] का इस्तेमाल कम ही किया करते थे। जहां हिन्दी फ़िल्मों में उर्दू का इस्तेमाल एक पैशन की तरह किया जाता था, वही अंजान अपने रचित गीतों में हिन्दी पर ही अधिक जोर दिया करते थे। | शेरो-शायरी के अपने शौक को पूरा करने के लिए अंजान [[बनारस]] में आयोजित सभी कवि सम्मेलनों और मुशायरों में हिस्सा लिया करते थे। हालांकि मुशायरों में वह [[उर्दू]] का इस्तेमाल कम ही किया करते थे। जहां हिन्दी फ़िल्मों में उर्दू का इस्तेमाल एक पैशन की तरह किया जाता था, वही अंजान अपने रचित गीतों में [[हिन्दी]] पर ही अधिक जोर दिया करते थे। | ||
==फ़िल्मी शुरुआत== | ==फ़िल्मी शुरुआत== | ||
एक गीतकार के रूप में अंजान ने अपने | एक गीतकार के रूप में अंजान ने अपने कॅरियर की शुरूआत वर्ष [[1953]] में अभिनेता प्रेमनाथ की फ़िल्म 'गोलकुंडा का कैदी' से की। इस फ़िल्म के लिए सबसे पहले उन्होंने 'लहर ये डोले कोयल बोले...' और 'शहीदों अमर है तुम्हारी कहानी...' गीत लिखे थे, लेकिन इस फ़िल्म के जरिये वह कुछ ख़ास पहचान नहीं बना पाए। उन्होंने अपना संघर्ष जारी रखा। इस बीच उन्होंने कई छोटे बजट की फ़िल्में भी कीं, जिनसे उन्हें कुछ ख़ास फायदा नहीं हुआ। | ||
====सफलता==== | ====सफलता==== | ||
कुछ समय बाद अचानक ही उनकी मुलाकात जी. एस. कोहली से हुई, जिनके संगीत निर्देशन में उन्होंने फ़िल्म 'लंबे हाथ' के लिए 'मत पूछ मेरा है मेरा कौन...' गीत लिखा। इस गीत के जरिये वह काफ़ी हद तक अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। लगभग दस [[वर्ष]] तक मायानगरी [[मुंबई]] में संघर्ष करने के बाद वर्ष [[1963]] में [[पंडित रविशंकर]] के [[संगीत]] से सजी [[प्रेमचंद]] के [[गोदान उपन्यास|उपन्यास गोदान]] पर आधारित फ़िल्म 'गोदान' में उनके रचित गीत 'चली आज गोरी पिया की नगरिया...' की सफलता के बाद अंजान ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अंजान को इसके बाद कई अच्छी फ़िल्मों के प्रस्ताव मिलने शुरू हो गए, जिनमें 'बहारें फिर भी आएंगी', 'बंधन', 'कब क्यों और कहां', 'उमंग', 'रिवाज', 'एक नारी एक ब्रह्मचारी', 'हंगामा' जैसी कई फ़िल्में शामिल थीं। इसके बाद अंजान ने सफलता की नई बुलंदियों को छुआ और एक से बढ़कर एक गीत लिखे।<ref name="aa"/> | कुछ समय बाद अचानक ही उनकी मुलाकात जी. एस. कोहली से हुई, जिनके संगीत निर्देशन में उन्होंने फ़िल्म 'लंबे हाथ' के लिए 'मत पूछ मेरा है मेरा कौन...' गीत लिखा। इस गीत के जरिये वह काफ़ी हद तक अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। लगभग दस [[वर्ष]] तक मायानगरी [[मुंबई]] में संघर्ष करने के बाद वर्ष [[1963]] में [[पंडित रविशंकर]] के [[संगीत]] से सजी [[प्रेमचंद]] के [[गोदान उपन्यास|उपन्यास गोदान]] पर आधारित फ़िल्म 'गोदान' में उनके रचित गीत 'चली आज गोरी पिया की नगरिया...' की सफलता के बाद अंजान ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अंजान को इसके बाद कई अच्छी फ़िल्मों के प्रस्ताव मिलने शुरू हो गए, जिनमें 'बहारें फिर भी आएंगी', 'बंधन', 'कब क्यों और कहां', 'उमंग', 'रिवाज', 'एक नारी एक ब्रह्मचारी', 'हंगामा' जैसी कई फ़िल्में शामिल थीं। इसके बाद अंजान ने सफलता की नई बुलंदियों को छुआ और एक से बढ़कर एक गीत लिखे।<ref name="aa"/> | ||
अंजान के सिने | अंजान के सिने कॅरियर पर यदि नजर डाली जाए तो सुपरस्टार [[अमिताभ बच्चन]] पर फ़िल्माये गए उनके रचित गीत काफ़ी लोकप्रिय हुआ करते थे। वर्ष [[1976]] में प्रदर्शित फ़िल्म 'दो अंजाने' के 'लुक छिप लुक छिप जाओ ना...' गीत की कामयाबी के बाद अंजान ने अमिताभ बच्चन के लिए कई सफल गीत लिखे, जिनमें 'बरसों पुराना ये याराना...', 'खून पसीने की जो मिलेगी तो खाएंगे...', 'रोते हुए आते हैं सब...', 'ओ साथी रे तेरे बिना भी क्या जीना...' जैसे कई सदाबहार गीत शामिल हैं। | ||
==प्रमुख फ़िल्में== | ==प्रमुख फ़िल्में== | ||
अंजान के पसंदीदा संगीतकार के तौर पर [[कल्याणजी-आनंदजी]] का नाम सबसे ऊपर आता है। कल्याणजी-आनंदजी के संगीत निर्देशन में अंजान के गीतों को नई पहचान मिली। सबसे पहले इस जोड़ी का गीत वर्ष [[1969]] में प्रदर्शित फ़िल्म 'बंधन' में पसंद किया गया। इसके बाद अंजान द्वारा रचित फ़िल्मी गीतों में कल्याणजी-आनंदजी का ही [[संगीत]] हुआ करता था। इन दोनों की जोड़ी ने जिन फ़िल्मों के लिए अपना योगदान दिया, वे इस प्रकार थीं- | अंजान के पसंदीदा संगीतकार के तौर पर [[कल्याणजी-आनंदजी]] का नाम सबसे ऊपर आता है। कल्याणजी-आनंदजी के संगीत निर्देशन में अंजान के गीतों को नई पहचान मिली। सबसे पहले इस जोड़ी का गीत वर्ष [[1969]] में प्रदर्शित फ़िल्म 'बंधन' में पसंद किया गया। इसके बाद अंजान द्वारा रचित फ़िल्मी गीतों में कल्याणजी-आनंदजी का ही [[संगीत]] हुआ करता था। इन दोनों की जोड़ी ने जिन फ़िल्मों के लिए अपना योगदान दिया, वे इस प्रकार थीं- | ||
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वर्ष [[1989]] में सुल्तान अहमद की फ़िल्म 'दाता' में [[कल्याणजी-आनंदजी]] के संगीत निर्देशन में अंजान का रचित यह गीत 'बाबुल का ये घर बहना कुछ दिन का ठिकाना है', आज भी श्रोताओं की आंखों को नम कर देता है। कल्याणजी-आनंदजी के अलावा अंजान के पसंदीदा संगीतकारों में बप्पी लाहिरी, [[लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल]], [[ओ. पी. नैयर]], राजेश रोशन तथा [[आर. डी. बर्मन]] प्रमुख रहे। वहीं उनके गीतों को [[किशोर कुमार]], [[आशा भोंसले]], [[मोहम्मद रफ़ी]] तथा [[लता मंगेशकर]] जैसे चोटी के गायक कलाकारों ने अपने स्वर से सजाया।<ref name="aa"/> | वर्ष [[1989]] में सुल्तान अहमद की फ़िल्म 'दाता' में [[कल्याणजी-आनंदजी]] के संगीत निर्देशन में अंजान का रचित यह गीत 'बाबुल का ये घर बहना कुछ दिन का ठिकाना है', आज भी श्रोताओं की आंखों को नम कर देता है। कल्याणजी-आनंदजी के अलावा अंजान के पसंदीदा संगीतकारों में बप्पी लाहिरी, [[लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल]], [[ओ. पी. नैयर]], राजेश रोशन तथा [[आर. डी. बर्मन]] प्रमुख रहे। वहीं उनके गीतों को [[किशोर कुमार]], [[आशा भोंसले]], [[मोहम्मद रफ़ी]] तथा [[लता मंगेशकर]] जैसे चोटी के गायक कलाकारों ने अपने स्वर से सजाया।<ref name="aa"/> | ||
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अंजान ने अपने तीन दशक से भी ज्यादा लंबे सिने | अंजान ने अपने तीन दशक से भी ज्यादा लंबे सिने कॅरियर में लगभग 200 फ़िल्मों के लिए गीत लिखे। लगभग तीन दशकों तक [[हिन्दी सिनेमा]] को अपने गीतों से संवारने वाले अंजान का 67 वर्ष की आयु में [[13 सितम्बर]], [[1997]] को निधन हुआ। इनके निधन से फ़िल्मी दुनिया का एक बड़ा सितारा डूब गया। आज भी उनके लिखे गीत दिल को सकूँ देते हैं और हर कोई उन्हें गुनगुनाता है। | ||
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अंजान (गीतकार)
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पूरा नाम | लालजी पाण्डेय |
प्रसिद्ध नाम | अंजान |
जन्म | 28 अक्टूबर, 1930 |
जन्म भूमि | बनारस, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 13 सितम्बर, 1997 |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | शेरो-शायरी तथा गीत लेखन |
मुख्य फ़िल्में | 'मुकद्दर का सिकंदर', 'डॉन', 'खून पसीना', 'बहारें फिर भी आएँगी', 'लावारिस', 'याराना', 'हेराफेरी' आदि। |
प्रसिद्धि | गीतकार |
नागरिकता | भारतीय |
कॅरियर की शुरुआत | अंजान ने अपने कॅरियर की शुरूआत वर्ष 1953 में अभिनेता प्रेमनाथ की फ़िल्म 'गोलकुंडा का कैदी' से की थी। इस फ़िल्म के लिए सबसे पहले उन्होंने 'लहर ये डोले कोयल बोले...' और 'शहीदों अमर है तुम्हारी कहानी...' गीत लिखे थे। |
अन्य जानकारी | अंजान के पसंदीदा संगीतकार के तौर पर कल्याणजी-आनंदजी का नाम सबसे ऊपर आता है। कल्याणजी-आनंदजी के संगीत निर्देशन में अंजान के गीतों को नई पहचान मिली। |
अंजान (अंग्रेज़ी: Anjaan ; जन्म- 28 अक्टूबर, 1930, बनारस, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 13 सितम्बर, 1997) भारतीय हिन्दी फ़िल्मों के मशहूर गीतकार तथा अपने समय के ख्याति प्राप्त शायर थे। इनका वास्तविक नाम 'लालजी पाण्डेय' था। अंजान के लिखे हुए गीत आज भी लोगों की जुबां पर चढ़े हुए हैं। 'खइके पान बनारस वाला', 'ओ साथी रे तेरे बिना भी क्या जीना' और 'रोते हुए आते हैं सब' जैसे न जाने कितने ही सदाबहार गीत अंजान ने लिखे और प्रसिद्धि की ऊँचाईयों को छुआ। अमिताभ बच्चन पर फ़िल्माये गए उनके गीत काफ़ी लोकप्रियता हासिल करते थे। अंजान के पसंदीदा संगीतकार के तौर पर कल्याणजी-आनंदजी का नाम सबसे ऊपर आता है। इनके संगीत निर्देशन में अंजान के गीतों को नई पहचान मिली थी। अंजान साहब के पुत्र समीर भी पिता के समान ही प्रसिद्ध गीतकार हैं।
जन्म
हिन्दी भाषा और साहित्य के करिश्माई व्यक्तित्व अंजान का जन्म 28 अक्टूबर, 1930 को उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी बनारस में हुआ था। बचपन के दिनों से ही उन्हें शेरो-शायरी के प्रति गहरा लगाव था।[1]
कवि सम्मेलन तथा मुशायरा
शेरो-शायरी के अपने शौक को पूरा करने के लिए अंजान बनारस में आयोजित सभी कवि सम्मेलनों और मुशायरों में हिस्सा लिया करते थे। हालांकि मुशायरों में वह उर्दू का इस्तेमाल कम ही किया करते थे। जहां हिन्दी फ़िल्मों में उर्दू का इस्तेमाल एक पैशन की तरह किया जाता था, वही अंजान अपने रचित गीतों में हिन्दी पर ही अधिक जोर दिया करते थे।
फ़िल्मी शुरुआत
एक गीतकार के रूप में अंजान ने अपने कॅरियर की शुरूआत वर्ष 1953 में अभिनेता प्रेमनाथ की फ़िल्म 'गोलकुंडा का कैदी' से की। इस फ़िल्म के लिए सबसे पहले उन्होंने 'लहर ये डोले कोयल बोले...' और 'शहीदों अमर है तुम्हारी कहानी...' गीत लिखे थे, लेकिन इस फ़िल्म के जरिये वह कुछ ख़ास पहचान नहीं बना पाए। उन्होंने अपना संघर्ष जारी रखा। इस बीच उन्होंने कई छोटे बजट की फ़िल्में भी कीं, जिनसे उन्हें कुछ ख़ास फायदा नहीं हुआ।
सफलता
कुछ समय बाद अचानक ही उनकी मुलाकात जी. एस. कोहली से हुई, जिनके संगीत निर्देशन में उन्होंने फ़िल्म 'लंबे हाथ' के लिए 'मत पूछ मेरा है मेरा कौन...' गीत लिखा। इस गीत के जरिये वह काफ़ी हद तक अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। लगभग दस वर्ष तक मायानगरी मुंबई में संघर्ष करने के बाद वर्ष 1963 में पंडित रविशंकर के संगीत से सजी प्रेमचंद के उपन्यास गोदान पर आधारित फ़िल्म 'गोदान' में उनके रचित गीत 'चली आज गोरी पिया की नगरिया...' की सफलता के बाद अंजान ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अंजान को इसके बाद कई अच्छी फ़िल्मों के प्रस्ताव मिलने शुरू हो गए, जिनमें 'बहारें फिर भी आएंगी', 'बंधन', 'कब क्यों और कहां', 'उमंग', 'रिवाज', 'एक नारी एक ब्रह्मचारी', 'हंगामा' जैसी कई फ़िल्में शामिल थीं। इसके बाद अंजान ने सफलता की नई बुलंदियों को छुआ और एक से बढ़कर एक गीत लिखे।[1]
अंजान के सिने कॅरियर पर यदि नजर डाली जाए तो सुपरस्टार अमिताभ बच्चन पर फ़िल्माये गए उनके रचित गीत काफ़ी लोकप्रिय हुआ करते थे। वर्ष 1976 में प्रदर्शित फ़िल्म 'दो अंजाने' के 'लुक छिप लुक छिप जाओ ना...' गीत की कामयाबी के बाद अंजान ने अमिताभ बच्चन के लिए कई सफल गीत लिखे, जिनमें 'बरसों पुराना ये याराना...', 'खून पसीने की जो मिलेगी तो खाएंगे...', 'रोते हुए आते हैं सब...', 'ओ साथी रे तेरे बिना भी क्या जीना...' जैसे कई सदाबहार गीत शामिल हैं।
प्रमुख फ़िल्में
अंजान के पसंदीदा संगीतकार के तौर पर कल्याणजी-आनंदजी का नाम सबसे ऊपर आता है। कल्याणजी-आनंदजी के संगीत निर्देशन में अंजान के गीतों को नई पहचान मिली। सबसे पहले इस जोड़ी का गीत वर्ष 1969 में प्रदर्शित फ़िल्म 'बंधन' में पसंद किया गया। इसके बाद अंजान द्वारा रचित फ़िल्मी गीतों में कल्याणजी-आनंदजी का ही संगीत हुआ करता था। इन दोनों की जोड़ी ने जिन फ़िल्मों के लिए अपना योगदान दिया, वे इस प्रकार थीं-
- दो अनजाने - 1976
- हेराफेरी - 1976
- खून पसीना - 1977
- गंगा की सौगंध - 1978
- डॉन - 1978
- मुकद्दर का सिकंदर - 1978
- लावारिस - 1981
- याराना - 1981
- ईमानदार - 1987
- दाता - 1989
- जादूगर - 1989
- थानेदार - 1990
प्रसिद्ध गीत
गीतकार अंजान द्वारा लिखे गए कुछ प्रसिद्ध गीत निम्नलिखित हैं-
- आपके हसीं रुख पे - बहारें फिर भी आएँगी
- खइके पान बनारस वाला - डॉन
- दिल तो है दिल - मुकद्दर का सिकंदर
- रोते हुए आते हैं सब - मुकद्दर का सिकंदर
- ओ साथी रे तेरे बिना भी क्या जीना - मुकद्दर का सिकंदर
- प्यार जिंदगी है - मुकद्दर का सिकंदर
- मुझे नौलक्खा मंगा दे रे - शराबी
- खून पसीने की जो मिलेगी तो खाएंगे - ख़ून पसीना
- बरसों पुराना ये याराना
पंसदीदा संगीतकार तथा गायक
वर्ष 1989 में सुल्तान अहमद की फ़िल्म 'दाता' में कल्याणजी-आनंदजी के संगीत निर्देशन में अंजान का रचित यह गीत 'बाबुल का ये घर बहना कुछ दिन का ठिकाना है', आज भी श्रोताओं की आंखों को नम कर देता है। कल्याणजी-आनंदजी के अलावा अंजान के पसंदीदा संगीतकारों में बप्पी लाहिरी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, ओ. पी. नैयर, राजेश रोशन तथा आर. डी. बर्मन प्रमुख रहे। वहीं उनके गीतों को किशोर कुमार, आशा भोंसले, मोहम्मद रफ़ी तथा लता मंगेशकर जैसे चोटी के गायक कलाकारों ने अपने स्वर से सजाया।[1]
निधन
अंजान ने अपने तीन दशक से भी ज्यादा लंबे सिने कॅरियर में लगभग 200 फ़िल्मों के लिए गीत लिखे। लगभग तीन दशकों तक हिन्दी सिनेमा को अपने गीतों से संवारने वाले अंजान का 67 वर्ष की आयु में 13 सितम्बर, 1997 को निधन हुआ। इनके निधन से फ़िल्मी दुनिया का एक बड़ा सितारा डूब गया। आज भी उनके लिखे गीत दिल को सकूँ देते हैं और हर कोई उन्हें गुनगुनाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 गीतकार अंजान, संगीत का सफर (हिन्दी) हमारा फोर्म्स.कॉम। अभिगमन तिथि: 19 जून, 2014।