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| '''आचार्य समन्तभद्र'''<br />
| | #REDIRECT[[समन्तभद्र]] |
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| *ये आचार्य कुन्दकुन्द के बाद दिगम्बर परम्परा में [[जैन]] दार्शनिकों में अग्रणी और प्रभावशाली तार्किक हुए हैं।
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| *उत्तरवर्ती आचार्यों ने इनका अपने ग्रन्थों में जो गुणगान किया है वह अभूतपूर्व है।
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| *इन्हें वीरशासन का प्रभावक और सम्प्रसारक कहा है।
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| *इनका अस्तित्व ईसा की 2सरी 3सरी शती माना जाता है।
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| *स्याद्वाददर्शन और स्याद्वादन्याय के ये आद्य प्रभावक हैं।
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| *जैन न्याय का सर्वप्रथम विकास इन्होंने अपनी कृतियों और शास्त्रार्थों द्वारा प्रस्तुत किया है। इनकी निम्न कृतियाँ प्रसिद्ध हैं-
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| #आप्तमीमांसा (देवागम),
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| #युक्त्यनुशासन,
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| #स्वयम्भू स्तोत्र,
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| #रत्नकरण्डकश्रावकाचार और
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| #जिनशतक।
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| *इनमें आरम्भ की तीन रचनाएँ दार्शनिक एवं तार्किक एवं तार्किक हैं, चौथी सैद्धान्तिक और पाँचवीं काव्य है।
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| *इनकी कुछ रचनाएँ अनुपलब्ध हैं, पर उनके उल्लेख और प्रसिद्धि है। उदाहरण के लिए इनका 'गन्धहस्ति-महाभाष्य' बहुचर्चित है।
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| *जीवसिद्धि प्रमाणपदार्थ, तत्त्वानुशासन और कर्मप्राभृत टीका इनके उल्लेख ग्रन्थान्तरों में मिलते हैं।
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| *पं॰ जुगलकिशोर मुख्तार ने इन ग्रन्थों का अपनी 'स्वामी समन्तभद्र' पुस्तक में उल्लेख करके शोधपूर्ण परिचय दिया है।
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| ==सम्बंधित लिंक==
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| {{जैन धर्म2}}
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| {{जैन धर्म}}
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| [[Category:दर्शन कोश]]
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| [[Category:जैन दर्शन]]
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