"दादा धर्माधिकारी": अवतरणों में अंतर

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==जन्म तथा शिक्षा==
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====दलितों का उत्थान====
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दादा धर्माधिकारी ने अपने जीवन का लंबा समय दलितों और महिलाओं के उत्थान में लगाया। दादा वैचारिक क्रांति के पक्षधर थे। उनकी मान्यता थी कि समाज में परिवर्तन के लिए लोगों के विचारों में परिवर्तन आवश्यक है।
दादा धर्माधिकारी ने अपने जीवन का लंबा समय दलितों और महिलाओं के उत्थान में लगाया। दादा वैचारिक क्रांति के पक्षधर थे। उनकी मान्यता थी कि समाज में परिवर्तन के लिए लोगों के विचारों में परिवर्तन आवश्यक है।
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05:43, 1 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण

दादा धर्माधिकारी
दादा धर्माधिकारी
दादा धर्माधिकारी
पूरा नाम शंकर त्रिम्बक धर्माधिकारी
जन्म 18 जून, 1899
जन्म भूमि बैतूल ज़िला, मध्य प्रदेश
मृत्यु 1 दिसम्बर, 1985
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि स्वतन्त्रता सेनानी तथा लेखक
धर्म हिन्दू
जेल यात्रा 'भारत छोड़ो आन्दोलन' के दौरान इन्हें गिरफ़्तार किया गया था।
संबंधित लेख महात्मा गाँधी, असहयोग आन्दोलन, भारत छोड़ो आन्दोलन
विशेष दादा धर्माधिकारी को हिन्दी, संस्कृत, मराठी, बंगला, गुजराती और अंग्रेज़ी भाषाओं का अच्छा ज्ञान था।
कृतियाँ 'अहिंसक क्रांति की प्रक्रिया', 'क्रांतिशोधक', 'गांधीजी की दृष्टी अगला कदम', 'युवा और क्रांति', 'समग्र सर्वोदय दर्शन' आदि।
अन्य जानकारी दादा धर्माधिकारी 'गांधी सेवा संघ' के सक्रिय कार्यकर्ता थे। 'भारत छोड़ो आन्दोलन' की गिरफ्तारी से छूटने पर वे मध्य प्रदेश असेम्बली के सदस्य और संविधान परिषद के सदस्य चुने गए थे।

शंकर त्रिम्बक धर्माधिकारी (अंग्रेज़ी: Shankar Trimbak Dharmadhikari ; जन्म- 18 जून, 1899, बैतूल ज़िला, मध्य प्रदेश; मृत्यु- 1 दिसम्बर, 1985) भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, लेखक और गाँधीवादी चिंतक थे। ये 'गाँधी सेवा संघ' के सक्रिय कार्यकर्ताओं में से एक थे। आप 'दादा धर्माधिकारी' के नाम से अधिक जाने जाते थे। दादा धर्माधिकारी ने अपना अधिकांश समय दलितों और महिलाओं के उत्थान में लगाया। हिन्दी, संस्कृत, मराठी, बंगला, गुजराती और अंग्रेज़ी भाषाओं का इन्हें अच्छा ज्ञान था। एक लेखक के रूप में इनकी दो दर्जन से भी अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुई थीं।

जन्म तथा शिक्षा

दादा धर्माधिकारी का जन्म 18 जून, 1899 को मध्य प्रदेश के बैतूल ज़िले में हुआ था। जब वे नागपुर में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, उसी समय महात्मा गाँधी ने 'असहयोग आन्दोलन' प्रारम्भ कर दिया। इस समय दादा धर्माधिकारी ने शिक्षा छोड़ दी और विद्यालय त्याग दिया। उन्होंने औपचारिक शिक्षा की कोई डिग्री नहीं ली थी, किन्तु स्वाध्याय से ही अपने समय के विचारको में महत्वपूर्ण स्थान बना लिया था।

विभिन्न भाषाओं के ज्ञाता

दादा धर्माधिकारी हिन्दी, मराठी, गुजराती, बंगला, संस्कृत और अंग्रेज़ी भाषाओ के अच्छे ज्ञाता थे।

क्रांतिकारी गतिविधियाँ

दादा धर्माधिकारी ने 'तिलक विद्यालय', नागपुर में शिक्षक के रूप में कार्य आरंभ किया। वे स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय भाग लेते रहे। 1935 से वे वर्धा में जाकर रहने लगे। 'गांधी सेवा संघ' के वे सक्रिय कार्यकर्ता थे। दादा धर्माधिकारी का प्रमुख नेताओं से निकट का संपर्क था। 'भारत छोड़ो आन्दोलन' की गिरफ्तारी से छूटने पर वे मध्य प्रदेश असेम्बली के सदस्य और संविधान परिषद के सदस्य चुने गए थे। आचार्य विनोबा भावे के 'भूदान आन्दोलन' में भी उन्होंने आगे बढ़कर भाग लिया।

दलितों का उत्थान

दादा धर्माधिकारी ने अपने जीवन का लंबा समय दलितों और महिलाओं के उत्थान में लगाया। दादा वैचारिक क्रांति के पक्षधर थे। उनकी मान्यता थी कि समाज में परिवर्तन के लिए लोगों के विचारों में परिवर्तन आवश्यक है।

कृतियाँ

एक लेखक के रूप में भी दादा धर्माधिकारी ने अच्छा नाम कमाया था। हिन्दी, मराठी और गुजराती में उनकी दो दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुई थीं। उनकी कुछ कृतियाँ इस प्रकार हैं-

  1. अहिंसक क्रांति की प्रक्रिया (हिन्दी)
  2. आपल्या गणराज्याची घडण (मराठी)
  3. क्रांतिशोधक (हिन्दी)
  4. गांधीजी की दृष्टी (हिन्दी)
  5. गांधीजी की दृष्टी अगला कदम (हिन्दी, जर्मन)
  6. नये युग की नारी (हिन्दी)
  7. नागरिक विश्वविद्यालय - एक परिकल्पना (मराठी)
  8. प्रिय मुली (मराठी)
  9. मानवनिष्ठ भारतीयता (हिन्दी, मराठी)
  10. मैत्री (मराठी)
  11. युवा और क्रांति (मराठीत, क्रांतिवादी तरुणांनो)
  12. लोकतंत्र विकास और भविष्य (मराठीत, लोकशाही विकास आणि भविष्य)
  13. समग्र सर्वोदय दर्शन (मराठीत, सर्वोदय दर्शन)

निधन

दादा धर्माधिकारी का निधन 1 दिसम्बर, 1985 को हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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