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'''कुमारपाल''' [[चालुक्य वंश]] के राजा सिद्धराज का पुत्र था। उसने [[अन्हिलवाड़]] को राजधानी बनाकर 1143 ई. से 1172 ई. तक राज्य किया। वह पक्का [[जैन धर्म]] का मानने वाला तथा प्रसिद्ध जैन [[हेमचन्द्र|आचार्य हेमचन्द्र]] का संरक्षक था। अहिंसा का प्रचार करने के उद्देश्य से कुमारपाल ने राजाज्ञा की अवहेलना करके जीव-हिंसा करने वाले बहुत-से लोगों को सूली पर चढ़ा दिया। उसने अनेक जैन मंदिरों का निर्माण भी करवाया।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय इतिहास कोश |लेखक= सच्चिदानन्द भट्टाचार्य|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=96|url=}}</ref> | '''कुमारपाल''' [[चालुक्य वंश]] के राजा सिद्धराज का पुत्र था। उसने [[अन्हिलवाड़]] को राजधानी बनाकर 1143 ई. से 1172 ई. तक राज्य किया। वह पक्का [[जैन धर्म]] का मानने वाला तथा प्रसिद्ध जैन [[हेमचन्द्र|आचार्य हेमचन्द्र]] का संरक्षक था। अहिंसा का प्रचार करने के उद्देश्य से कुमारपाल ने राजाज्ञा की अवहेलना करके जीव-हिंसा करने वाले बहुत-से लोगों को सूली पर चढ़ा दिया। उसने अनेक जैन मंदिरों का निर्माण भी करवाया।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय इतिहास कोश |लेखक= सच्चिदानन्द भट्टाचार्य|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=96|url=}}</ref> | ||
*पाल वंश के राजा भारतीय संस्कृति, साहित्य और कला के विकास के लिए जाने जाते हैं। इस परंपरा का पालन करते हुए कुमारपाल ने भी शास्त्रों के | *पाल वंश के राजा भारतीय संस्कृति, साहित्य और कला के विकास के लिए जाने जाते हैं। इस परंपरा का पालन करते हुए कुमारपाल ने भी शास्त्रों के उद्धार के लिये अनेक पुस्तक भंडारों की स्थापना की, हजारों मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया और नये मंदिर बनवाकर भूमि को अलंकृत किया। | ||
*कुमारपाल को वीरावल के प्रसिद्ध 'सोमनाथ मंदिर' का जीर्णोद्धारकर्ता भी माना गया है। | *कुमारपाल को वीरावल के प्रसिद्ध 'सोमनाथ मंदिर' का जीर्णोद्धारकर्ता भी माना गया है। | ||
*हथकरघा तथा अन्य हस्तकलाओं का भी कुमारपाल ने बहुत सम्मान और विकास किया। उसके प्रयत्नों से ही [[पाटन|पाटण]] 'पटोला'<ref>रेशम से बुना हुआ विशेष कपड़ा तथा [[साड़ी|साड़ियाँ]]</ref> का सबसे बड़ा केन्द्र बना और यह कपड़ा विश्वभर में अपनी रंगीन सुंदरता के कारण जाना गया। | *हथकरघा तथा अन्य हस्तकलाओं का भी कुमारपाल ने बहुत सम्मान और विकास किया। उसके प्रयत्नों से ही [[पाटन|पाटण]] 'पटोला'<ref>रेशम से बुना हुआ विशेष कपड़ा तथा [[साड़ी|साड़ियाँ]]</ref> का सबसे बड़ा केन्द्र बना और यह कपड़ा विश्वभर में अपनी रंगीन सुंदरता के कारण जाना गया। |
14:12, 17 सितम्बर 2017 के समय का अवतरण
कुमारपाल चालुक्य वंश के राजा सिद्धराज का पुत्र था। उसने अन्हिलवाड़ को राजधानी बनाकर 1143 ई. से 1172 ई. तक राज्य किया। वह पक्का जैन धर्म का मानने वाला तथा प्रसिद्ध जैन आचार्य हेमचन्द्र का संरक्षक था। अहिंसा का प्रचार करने के उद्देश्य से कुमारपाल ने राजाज्ञा की अवहेलना करके जीव-हिंसा करने वाले बहुत-से लोगों को सूली पर चढ़ा दिया। उसने अनेक जैन मंदिरों का निर्माण भी करवाया।[1]
- पाल वंश के राजा भारतीय संस्कृति, साहित्य और कला के विकास के लिए जाने जाते हैं। इस परंपरा का पालन करते हुए कुमारपाल ने भी शास्त्रों के उद्धार के लिये अनेक पुस्तक भंडारों की स्थापना की, हजारों मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया और नये मंदिर बनवाकर भूमि को अलंकृत किया।
- कुमारपाल को वीरावल के प्रसिद्ध 'सोमनाथ मंदिर' का जीर्णोद्धारकर्ता भी माना गया है।
- हथकरघा तथा अन्य हस्तकलाओं का भी कुमारपाल ने बहुत सम्मान और विकास किया। उसके प्रयत्नों से ही पाटण 'पटोला'[2] का सबसे बड़ा केन्द्र बना और यह कपड़ा विश्वभर में अपनी रंगीन सुंदरता के कारण जाना गया।
- पशुवध इत्यादि बंद करवाकर कुमारपाल ने गुजरात को अहिंसक राज्य घोषित किया। उसकी धर्म परायणता की गाथाएँ आज भी अनेक जैन-मंदिरों की आरती और मंगलदीवों में आदर के साथ गाई जाती हैं।
- कुमारपाल की आज्ञा उत्तर में तुर्कस्थान, पूर्व में गंगा नदी, दक्षिण में विन्ध्यांचल और पर्श्विम में समुद्र पर्यंत के देशों तक थी। 'राजस्थान इतिहास' के लेखक कर्नल टॉड ने लिखा है कि "महाराजा की आज्ञा पृथ्वी के सब राजाओं ने अपने मस्तक पर चढाई।"[3]
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