"देवकीनन्दन पाण्डे": अवतरणों में अंतर

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'''देवकीनन्दन पाण्डे''' [[आकाशवाणी]] के प्रसिद्ध समाचार वक्ता थे। अपने जीवन काल में ही देवकीनन्दन पाण्डे समाचार वाचन की एक संस्था बन गए थे। उनके समाचार पढ़ने का अंदाज़, उच्चारण की शुद्धता, स्वर की गंभीरता और गुरुता और प्रसंग अनुरूप उतार-चढ़ाव श्रोता को एक रोमांच की स्थिति में ले आता था।  
{{सूचना बक्सा देवकीनंदन पांडे}}
==जीवन परिचय==
'''देवकीनन्दन पाण्डे''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Devkinandan Pandey'', मृत्यु- [[2001]]) [[आकाशवाणी]] के प्रसिद्ध समाचार वक्ता थे। अपने जीवन काल में ही देवकीनन्दन पाण्डे समाचार वाचन की एक संस्था बन गए थे। उनके समाचार पढ़ने का अंदाज़, उच्चारण की शुद्धता, स्वर की गंभीरता और गुरुता और प्रसंग अनुरूप उतार-चढ़ाव श्रोता को एक रोमांच की स्थिति में ले आता था।  
[[कानपुर]] में पैदा हुए देवकीनंदन के पिता शिवदत्त पाण्डे अपने क्षेत्र के जाने-माने डॉक्टर थे। बेहद रहम दिल और आधी रात को उठकर किसी भी मरीज़ के लिए मुफ़्त में इलाज करने को तत्पर। मूलरूप से पाण्डे परिवार [[कुमाऊँ]] का था। शायद यही वजह है कि पाण्डे के स्वर में एक पहाड़ी ख़नक सुनाई देती थी। देवकीनंदन पाण्डे अपने स्कूली दिनों में कभी भी मेधावी छात्र नहीं रहे लेकिन वे कभी भी अपनी कक्षा में फेल नहीं हुए। घूमने-फिरने, नाटक करने और खेलकूद में उनकी गहन दिलचस्पी थी। पाठ्य पुस्तके उन्हें कभी भी रास नहीं आईं किंतु [[नाटक]], [[उपन्यास]], [[कहानी|कहानियॉं]], जीवन चरित्र और [[इतिहास]] की पुस्तकें उन्हें हमेशा से आकर्षित करती थीं। उनकी आरंभिक शिक्षा [[अल्मोड़ा]] में हुई। देवकीनंदन पाण्डे के पिता पुस्तकों के अनन्य प्रेमी थे। इस वजह से घर में किताबों का अच्छा ख़ासा संकलन था जिससे देवकीनंदन को पठन-पाठन में दिलचस्पी होने लगी।  
==परिचय==
{{main|देवकीनन्दन पाण्डे का परिचय}}
[[कानपुर]] में पैदा हुए देवकीनंदन के पिता शिवदत्त पाण्डे अपने क्षेत्र के जाने-माने डॉक्टर थे। बेहद रहम दिल और आधी रात को उठकर किसी भी मरीज़ के लिए मुफ़्त में इलाज करने को तत्पर। मूलरूप से पाण्डे परिवार [[कुमाऊँ]] का था। शायद यही वजह है कि पाण्डे के स्वर में एक पहाड़ी ख़नक सुनाई देती थी। देवकीनंदन पाण्डे अपने स्कूली दिनों में कभी भी मेधावी छात्र नहीं रहे लेकिन वे कभी भी अपनी कक्षा में फेल नहीं हुए। घूमने-फिरने, नाटक करने और खेलकूद में उनकी गहन दिलचस्पी थी। पाठ्य पुस्तकें उन्हें कभी भी रास नहीं आईं किंतु [[नाटक]], [[उपन्यास]], [[कहानी|कहानियॉं]], जीवन चरित्र और [[इतिहास]] की पुस्तकें उन्हें हमेशा से आकर्षित करती थीं। उनकी आरंभिक शिक्षा [[अल्मोड़ा]] में हुई। देवकीनंदन पाण्डे के पिता पुस्तकों के अनन्य प्रेमी थे। इस वजह से घर में किताबों का अच्छा ख़ासा संकलन था जिससे देवकीनंदन को पठन-पाठन में दिलचस्पी होने लगी।  
==कार्यक्षेत्र==
==कार्यक्षेत्र==
{{main|देवकीनन्दन पाण्डे का कार्यक्षेत्र}}
कॉलेज के ज़माने में [[अंग्रेज़ी]] अध्यापक विशंभर दत्त भट्ट देवकीनंदन पाण्डे पर अगाध स्नेह रखते थे। उन्होंने पहले-पहल देवकीनंदन की आवाज़ की विशिष्टता को पहचाना और सराहा। उन्होंने अपने इस छात्र को उसकी प्रतिभा का आभास करवाया। भट्टजी देवकीनंदन को [[रंगमंच]] के लिये प्रोत्साहित करने लगे। अल्मोड़ा में देवकीनंदन ने कई दर्ज़न नाटकों में हिस्सा लिया इससे उनके आत्मविश्वास में मज़बूती आई।  
कॉलेज के ज़माने में [[अंग्रेज़ी]] अध्यापक विशंभर दत्त भट्ट देवकीनंदन पाण्डे पर अगाध स्नेह रखते थे। उन्होंने पहले-पहल देवकीनंदन की आवाज़ की विशिष्टता को पहचाना और सराहा। उन्होंने अपने इस छात्र को उसकी प्रतिभा का आभास करवाया। भट्टजी देवकीनंदन को [[रंगमंच]] के लिये प्रोत्साहित करने लगे। अल्मोड़ा में देवकीनंदन ने कई दर्ज़न नाटकों में हिस्सा लिया इससे उनके आत्मविश्वास में मज़बूती आई।  
40 के दशक में अल्मोड़ा जैसी छोटी जगह में केवल दो रेडियो थे। एक स्कूल के अध्यापक जोशीजी के घर और दूसरा एक व्यापारी शाहजी के घर। युवा देवकीनंदन पाण्डे को दूसरे महायुद्ध के समाचारों को सुनकर बहुत रोमांच होता। वे प्रतिदिन सारा काम छोड़कर समाचार सुनने जाते। उन दिनों जर्मनी रेडियो के दो प्रसारकों लॉर्ड हो हो और डॉ. फ़ारूक़ी का बड़ा नाम था। दोनों लाजवाब प्रसारणकर्ता थे। उनकी आवाज़ हमेशा देवकीनंदन पाण्डे के दिलो-दिमाग़ में छाई रही। सन् [[1941]] में बी.ए. करने के लिए देवकीनंदन [[इलाहाबाद]] चले आए जहाँ का [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] पूरे देश में विख्यात था। [[1943]] में देवकीनंदन ने [[लखनऊ]] में एक सरकारी नौकरी कर ली और केज्युअल आर्टिस्ट के रूप में एनाउंसर और ड्रामा आर्टिस्ट हेतु उनका चयन रेडियो लखनऊ पर हो गया। इस स्टेशन पर [[उर्दू]] प्रसारणकर्ताओं का बोलबाला था। देवकीनंदन पाण्डे हमेशा मानते रहे कि इस विशिष्ट भाषा के अध्ययन और सही उच्चारण की बारीकियों का अभ्यास उन्हें रेडियो लखनऊ से ही मिला।
40 के दशक में अल्मोड़ा जैसी छोटी जगह में केवल दो रेडियो थे। एक स्कूल के अध्यापक जोशीजी के घर और दूसरा एक व्यापारी शाहजी के घर। युवा देवकीनंदन पाण्डे को दूसरे महायुद्ध के समाचारों को सुनकर बहुत रोमांच होता। वे प्रतिदिन सारा काम छोड़कर समाचार सुनने जाते। उन दिनों जर्मनी रेडियो के दो प्रसारकों लॉर्ड हो हो और डॉ. फ़ारूक़ी का बड़ा नाम था। दोनों लाजवाब प्रसारणकर्ता थे। उनकी आवाज़ हमेशा देवकीनंदन पाण्डे के दिलो-दिमाग़ में छाई रही। सन् [[1941]] में बी.ए. करने के लिए देवकीनंदन [[इलाहाबाद]] चले आए जहाँ का [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] पूरे देश में विख्यात था।
====आकाशवाणी पर समाचार====
====आकाशवाणी पर समाचार====
[[भारत]] के आज़ाद होते ही आकाशवाणी पर समाचार बुलेटिनों का सिलसिला प्रारंभ हुआ। दिल्ली स्टेशन पर अच्छी आवाज़ें ढूंढ़ने की पहल हुई। देवकीनंदन पाण्डे ने डिस्क पर अपनी आवाज़ रेकार्ड करके भेजी। [[फ़रवरी]], [[1948]] में समाचार वाचकों का चयन किया गया। उम्मीदवारों की संख्या थी तीन हज़ार और बिना शक देवकीनंदन पाण्डे का नाम सबसे ऊपर था। आकाशवाणी लखनऊ पर मिले उर्दू के अनुभव ने उन्हें हमेशा स्पष्ट समाचार वाचन में लाभ दिया। देवकीनंदन पाण्डे मानते थे कि निश्चित रूप से देश की भाषा [[हिन्दी]] है लेकिन वाचिक परंपरा में उर्दू के शब्दों के परहेज़ नहीं किया जाना चाहिए। हिन्दी-उर्दू की चाशनी सुनने वालों के कान में निश्चित ही रस घोलती है। [[1948]] में आकाशवाणी में हिन्दी समाचार प्रभाग की स्थापना हुई। इसमें आले हसन (जो कालांतर में बीबीसी उर्दू सेवा के विश्व विख्यात प्रसारणकर्ता माने गए) सुरेश अवस्थी, बृजेन्द्र, सईदा बानो और चॉंद कृष्ण कौल। लाज़मी था कि उस समय के समाचार वाचकों को हिन्दी-उर्दू दोनों आना ज़रूरी था। आले हसन का हिन्दी वाचन अद्भुत था। वे बहुत क़ाबिल अनाउंसर और न्यूज़ रीडर थे। शुरू में मूल समाचार [[अंग्रेज़ी]] में लिखे जाते थे जिसका [[अनुवाद]] वाचक को करना होता था। अशोक वाजपेयी, विनोद कश्यप और [[रामानुज प्रताप सिंह]] को भी अनुवाद करने के लिये मजबूर किया गया लेकिन काफ़ी जद्दोजहद के बाद उन्हें इस परेशानी से मुक्ति मिली और हिन्दी समाचार हिन्दी में ही लिखे जाने लगे। यहाँ ये भी उल्लेखनीय है कि मेल्विन डिमेलो और चक्रपाणी जैसे धुरंधर अंग्रेज़ी प्रसारणकर्ताओं के सामने जिन लोगों ने हिन्दी प्रसारण का लोहा मनवाया उसमे देवकीनंदन पाण्डे की भूमिका को बिसराया नहीं जा सकता।
[[भारत]] के आज़ाद होते ही आकाशवाणी पर समाचार बुलेटिनों का सिलसिला प्रारंभ हुआ। दिल्ली स्टेशन पर अच्छी आवाज़ें ढूंढ़ने की पहल हुई। देवकीनंदन पाण्डे ने डिस्क पर अपनी आवाज़ रिकार्ड करके भेजी। [[फ़रवरी]], [[1948]] में समाचार वाचकों का चयन किया गया। उम्मीदवारों की संख्या थी तीन हज़ार और बिना शक देवकीनंदन पाण्डे का नाम सबसे ऊपर था। आकाशवाणी लखनऊ पर मिले [[उर्दू]] के अनुभव ने उन्हें हमेशा स्पष्ट समाचार वाचन में लाभ दिया। देवकीनंदन पाण्डे मानते थे कि निश्चित रूप से देश की भाषा [[हिन्दी]] है लेकिन वाचिक परंपरा में उर्दू के शब्दों के परहेज़ नहीं किया जाना चाहिए।
====समाचार पढ़ने का अंदाज़====
====समाचार पढ़ने का अंदाज़====
देवकीनंदन पाण्डे समाचार प्रसारण के समय घटनाक्रम से अपने आपको एकाकार कर लेते थे और यही वजह थी उनके पढ़ने का अंदाज़ करोड़ों श्रोताओं के दिल को छू जाता था। उनकी आवाज़ में एक जादुई स्पर्श था। कभी-कभी तो ऐसा लगता था कि पाण्डेजी के स्वर से रेडियो सेट थर्राने लगा है। आज जब टीवी चैनल्स की बाढ़ है और एफ़एम रेडियो स्टेशंस अपने अपने वाचाल प्रसारणों से जीवन को अतिक्रमित कर रहे हैं ऐसे में देवकीनंदन पाण्डे का स्मरण एक रूहानी एहसास से गुज़रना है। तकनीक के अभाव में सिर्फ़ आवाज़ के बूते पर अपने आपको पूरे देश में एक घरेलू नाम बन जाने का करिश्मा पाण्डेजी ने किया। [[सरदार पटेल]], लियाक़त अली ख़ान, [[मौलाना अबुल कलाम आज़ाद|मौलाना आज़ाद]], [[गोविन्द वल्लभ पंत]], [[जवाहरलाल नेहरू|पं. जवाहरलाल नेहरू]] और [[जयप्रकाश नारायण]] के निधन का समाचार देवकीनंदन पाण्डे के स्वर में ही पूरे देश में पहुँचा। [[संजय गाँधी]] के आकस्मिक निधन का समाचार वाचन करने के लिये सेवानिवृत्त हो चुके पाण्डेजी को विशेष रूप से आकाशवाणी के दिल्ली स्टेशन पर आमंत्रित किया गया।
देवकीनंदन पाण्डे समाचार प्रसारण के समय घटनाक्रम से अपने आपको एकाकार कर लेते थे और यही वजह थी, उनके पढ़ने का अंदाज़ करोड़ों श्रोताओं के दिल को छू जाता था। उनकी आवाज़ में एक जादुई स्पर्श था। कभी-कभी तो ऐसा लगता था कि पाण्डेजी के स्वर से रेडियो सेट थर्राने लगा है। आज जब टीवी चैनल्स की बाढ़ है और एफ़एम रेडियो स्टेशंस अपने अपने वाचाल प्रसारणों से जीवन को अतिक्रमित कर रहे हैं ऐसे में देवकीनंदन पाण्डे का स्मरण एक रूहानी एहसास से गुज़रना है।
==लोकप्रियता==
==लोकप्रियता==
देवकीनंदन पाण्डे को वॉइस ऑफ़ अमेरिका जैसी अंतरराष्ट्रीय प्रसारण संस्था से अपने यहाँ काम करने का ऑफ़र मिला लेकिन देश प्रेम ने उन्हें ऐसा करने से रोका। देवकीनंदन पाण्डे को अपनी शख़्सियत की लोकप्रियता का अंदाज़ उस दिन लगा जब श्रीमती [[इंदिरा गाँधी]] ने एक बार आकाशवाणी के स्टॉफ़ आर्टिस्टों को उनकी समस्या सुनने के लिये अपने निवास पर आमंत्रित किया। श्रीमती गाँधी से जब देवकीनंदन पाण्डे का परिचय करवाया गया तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि "अच्छा तो आप हैं हमारे देश की न्यूज़ वॉइस'। पूर्व सूचना प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल तो एक बार देवकीनंदन पाण्डे का नाम सुनकर उनसे गले लिपट गए थे।  
देवकीनंदन पाण्डे को वॉइस ऑफ़ अमेरिका जैसी अंतरराष्ट्रीय प्रसारण संस्था से अपने यहाँ काम करने का ऑफ़र मिला लेकिन देश प्रेम ने उन्हें ऐसा करने से रोका। देवकीनंदन पाण्डे को अपनी शख़्सियत की लोकप्रियता का अंदाज़ उस दिन लगा जब [[इंदिरा गाँधी|श्रीमती इंदिरा गाँधी]] ने एक बार आकाशवाणी के स्टॉफ़ आर्टिस्टों को उनकी समस्या सुनने के लिये अपने निवास पर आमंत्रित किया। श्रीमती गाँधी से जब देवकीनंदन पाण्डे का परिचय करवाया गया तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि "अच्छा तो आप हैं हमारे देश की न्यूज़ वॉइस'। पूर्व सूचना प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल तो एक बार देवकीनंदन पाण्डे का नाम सुनकर उनसे गले लिपट गए थे।  
नए समाचार वाचकों के बारे में पाण्डेजी का कहना था जो कुछ करो श्रद्धा, ईमानदारी और मेहनत से करो। हमेशा चाक-चौबन्द और समसामयिक घटनाक्रम की जानकारी रखो। जितना ज़्यादा सुनोगे और पढ़ोगे उतना अच्छा बोल सकोगे। किसी शैली की नकल कभी मत करो। कोई ग़लती बताए तो उसे सर झुकाकर स्वीकार करो और बताने वाले के प्रति अनुगृह का भाव रखो। निर्दोष और सोच समझकर पढ़ने की आदत डालो; आत्मविश्वास आता जाएगा और पहचान बनती जाएगी। <ref>{{cite web |url=http://radionamaa.blogspot.in/2008/07/blog-post_09.html |title=ये आकाशवाणी है ! अब आप देवकीनंदन पाण्डे से समाचार सुनिये  |accessmonthday=1 मार्च |accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=रेडियोनामा |language=हिंदी }}</ref>
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==निधन==
आकाशवाणी के प्रसिद्ध समाचार वक्ता देवकीनंदन पांडे का [[वर्ष]] [[2001]] में निधन हो गया था।




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==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://tooteehueebikhreehuee.blogspot.in/2007/08/blog-post_6137.html देवकीनंदन पाण्डे की आवाज़ सुनें]
*[http://tooteehueebikhreehuee.blogspot.in/2007/08/blog-post_6137.html देवकीनंदन पाण्डे की आवाज़ सुनें]
*[http://www.bbc.com/hindi/india/2016/08/160828_devki_nandan_pandey_vivechana_pk 'यह देवकीनंदन पांडे है. अब आप आकाशवाणी से...']
*[https://www.studyfry.com/devkinandan-pandey देवकीनंदन पांडे कुमाऊं के गाँधी]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
[[Category:रेडियो जॉकी]]
{{देवकीनंदन पांडे विषय सूची}}
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09:56, 25 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

देवकीनन्दन पाण्डे विषय सूची
देवकीनन्दन पाण्डे
देवकीनंदन पांडे
देवकीनंदन पांडे
जन्म भूमि कानपुर
मृत्यु 2001
अभिभावक पिता-शिवदत्त पाण्डे
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र आकाशवाणी
शिक्षा स्नातक
विद्यालय इलाहाबाद विश्वविद्यालय
प्रसिद्धि रेडियो जॉकी
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख आकाशवाणी लखनऊ
अन्य जानकारी देवकीनंदन पाण्डे को अपनी शख़्सियत की लोकप्रियता का अंदाज़ उस दिन लगा जब श्रीमती इंदिरा गाँधी ने एक बार आकाशवाणी के स्टॉफ़ आर्टिस्टों को उनकी समस्या सुनने के लिये अपने निवास पर आमंत्रित किया।

देवकीनन्दन पाण्डे (अंग्रेज़ी: Devkinandan Pandey, मृत्यु- 2001) आकाशवाणी के प्रसिद्ध समाचार वक्ता थे। अपने जीवन काल में ही देवकीनन्दन पाण्डे समाचार वाचन की एक संस्था बन गए थे। उनके समाचार पढ़ने का अंदाज़, उच्चारण की शुद्धता, स्वर की गंभीरता और गुरुता और प्रसंग अनुरूप उतार-चढ़ाव श्रोता को एक रोमांच की स्थिति में ले आता था।

परिचय

कानपुर में पैदा हुए देवकीनंदन के पिता शिवदत्त पाण्डे अपने क्षेत्र के जाने-माने डॉक्टर थे। बेहद रहम दिल और आधी रात को उठकर किसी भी मरीज़ के लिए मुफ़्त में इलाज करने को तत्पर। मूलरूप से पाण्डे परिवार कुमाऊँ का था। शायद यही वजह है कि पाण्डे के स्वर में एक पहाड़ी ख़नक सुनाई देती थी। देवकीनंदन पाण्डे अपने स्कूली दिनों में कभी भी मेधावी छात्र नहीं रहे लेकिन वे कभी भी अपनी कक्षा में फेल नहीं हुए। घूमने-फिरने, नाटक करने और खेलकूद में उनकी गहन दिलचस्पी थी। पाठ्य पुस्तकें उन्हें कभी भी रास नहीं आईं किंतु नाटक, उपन्यास, कहानियॉं, जीवन चरित्र और इतिहास की पुस्तकें उन्हें हमेशा से आकर्षित करती थीं। उनकी आरंभिक शिक्षा अल्मोड़ा में हुई। देवकीनंदन पाण्डे के पिता पुस्तकों के अनन्य प्रेमी थे। इस वजह से घर में किताबों का अच्छा ख़ासा संकलन था जिससे देवकीनंदन को पठन-पाठन में दिलचस्पी होने लगी।

कार्यक्षेत्र

कॉलेज के ज़माने में अंग्रेज़ी अध्यापक विशंभर दत्त भट्ट देवकीनंदन पाण्डे पर अगाध स्नेह रखते थे। उन्होंने पहले-पहल देवकीनंदन की आवाज़ की विशिष्टता को पहचाना और सराहा। उन्होंने अपने इस छात्र को उसकी प्रतिभा का आभास करवाया। भट्टजी देवकीनंदन को रंगमंच के लिये प्रोत्साहित करने लगे। अल्मोड़ा में देवकीनंदन ने कई दर्ज़न नाटकों में हिस्सा लिया इससे उनके आत्मविश्वास में मज़बूती आई। 40 के दशक में अल्मोड़ा जैसी छोटी जगह में केवल दो रेडियो थे। एक स्कूल के अध्यापक जोशीजी के घर और दूसरा एक व्यापारी शाहजी के घर। युवा देवकीनंदन पाण्डे को दूसरे महायुद्ध के समाचारों को सुनकर बहुत रोमांच होता। वे प्रतिदिन सारा काम छोड़कर समाचार सुनने जाते। उन दिनों जर्मनी रेडियो के दो प्रसारकों लॉर्ड हो हो और डॉ. फ़ारूक़ी का बड़ा नाम था। दोनों लाजवाब प्रसारणकर्ता थे। उनकी आवाज़ हमेशा देवकीनंदन पाण्डे के दिलो-दिमाग़ में छाई रही। सन् 1941 में बी.ए. करने के लिए देवकीनंदन इलाहाबाद चले आए जहाँ का इलाहाबाद विश्वविद्यालय पूरे देश में विख्यात था।

आकाशवाणी पर समाचार

भारत के आज़ाद होते ही आकाशवाणी पर समाचार बुलेटिनों का सिलसिला प्रारंभ हुआ। दिल्ली स्टेशन पर अच्छी आवाज़ें ढूंढ़ने की पहल हुई। देवकीनंदन पाण्डे ने डिस्क पर अपनी आवाज़ रिकार्ड करके भेजी। फ़रवरी, 1948 में समाचार वाचकों का चयन किया गया। उम्मीदवारों की संख्या थी तीन हज़ार और बिना शक देवकीनंदन पाण्डे का नाम सबसे ऊपर था। आकाशवाणी लखनऊ पर मिले उर्दू के अनुभव ने उन्हें हमेशा स्पष्ट समाचार वाचन में लाभ दिया। देवकीनंदन पाण्डे मानते थे कि निश्चित रूप से देश की भाषा हिन्दी है लेकिन वाचिक परंपरा में उर्दू के शब्दों के परहेज़ नहीं किया जाना चाहिए।

समाचार पढ़ने का अंदाज़

देवकीनंदन पाण्डे समाचार प्रसारण के समय घटनाक्रम से अपने आपको एकाकार कर लेते थे और यही वजह थी, उनके पढ़ने का अंदाज़ करोड़ों श्रोताओं के दिल को छू जाता था। उनकी आवाज़ में एक जादुई स्पर्श था। कभी-कभी तो ऐसा लगता था कि पाण्डेजी के स्वर से रेडियो सेट थर्राने लगा है। आज जब टीवी चैनल्स की बाढ़ है और एफ़एम रेडियो स्टेशंस अपने अपने वाचाल प्रसारणों से जीवन को अतिक्रमित कर रहे हैं ऐसे में देवकीनंदन पाण्डे का स्मरण एक रूहानी एहसास से गुज़रना है।

लोकप्रियता

देवकीनंदन पाण्डे को वॉइस ऑफ़ अमेरिका जैसी अंतरराष्ट्रीय प्रसारण संस्था से अपने यहाँ काम करने का ऑफ़र मिला लेकिन देश प्रेम ने उन्हें ऐसा करने से रोका। देवकीनंदन पाण्डे को अपनी शख़्सियत की लोकप्रियता का अंदाज़ उस दिन लगा जब श्रीमती इंदिरा गाँधी ने एक बार आकाशवाणी के स्टॉफ़ आर्टिस्टों को उनकी समस्या सुनने के लिये अपने निवास पर आमंत्रित किया। श्रीमती गाँधी से जब देवकीनंदन पाण्डे का परिचय करवाया गया तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि "अच्छा तो आप हैं हमारे देश की न्यूज़ वॉइस'। पूर्व सूचना प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल तो एक बार देवकीनंदन पाण्डे का नाम सुनकर उनसे गले लिपट गए थे। नए समाचार वाचकों के बारे में पाण्डेजी का कहना था जो कुछ करो श्रद्धा, ईमानदारी और मेहनत से करो। हमेशा चाक-चौबन्द और समसामयिक घटनाक्रम की जानकारी रखो। जितना ज़्यादा सुनोगे और पढ़ोगे उतना अच्छा बोल सकोगे। किसी शैली की नकल कभी मत करो। कोई ग़लती बताए तो उसे सर झुकाकर स्वीकार करो और बताने वाले के प्रति अनुगृह का भाव रखो। निर्दोष और सोच समझकर पढ़ने की आदत डालो; आत्मविश्वास आता जाएगा और पहचान बनती जाएगी। [1]

निधन

आकाशवाणी के प्रसिद्ध समाचार वक्ता देवकीनंदन पांडे का वर्ष 2001 में निधन हो गया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ये आकाशवाणी है ! अब आप देवकीनंदन पाण्डे से समाचार सुनिये (हिंदी) रेडियोनामा। अभिगमन तिथि: 1 मार्च, 2015।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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