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==जन्म तथा शिक्षा==
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प्रतापनारायण श्रीवास्तव का जन्म 1904 ई. में [[उत्तर प्रदेश]] के [[कानपुर]] में हुआ था। आपने अपनी शिक्षा के क्रम में बी. ए. तथा एल-एल.बी. की उपाधियाँ प्राप्त की थीं।<ref name="aa">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी साहित्य कोश, भाग 2|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= डॉ. धीरेंद्र वर्मा|पृष्ठ संख्या=345|url=}}</ref>
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श्रीवास्तव जी का दूसरा [[उपन्यास]] 'विजय' उच्चवर्गीय समाज के विधवा-जीवन की समस्या को लेकर चला है। अपनी इस कृति में भी प्रतापनारायण श्रीवास्तव ने यथार्थवादिता का अवलम्बन ग्रहण किया है। इस दृष्टि से इनका ऐतिहासिक उपन्यास 'बेकसी का मजाक' उल्लेखनीय है। इसमें [[1857]] ई. के [[प्रथम स्वाधीनता संग्राम]] के सच्चे एवं सजीव चित्र प्रस्तुत करन में इन्हें बहुत सफलता मिली है।<ref name="aa"/>
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==विषय तथा भाषा-शैली==
==विषय तथा भाषा-शैली==
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05:01, 29 मई 2015 के समय का अवतरण

प्रतापनारायण श्रीवास्तव
प्रतापनारायण श्रीवास्तव
प्रतापनारायण श्रीवास्तव
पूरा नाम प्रतापनारायण श्रीवास्तव
जन्म 1904 ई.
जन्म भूमि कानपुर, उत्तर प्रदेश
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र उपन्यास लेखन
मुख्य रचनाएँ 'निकुंज', 'विदा', 'विजय', 'विसर्जन', 'बेकसी का मजार', 'वेदना', 'विश्वास की वेदी पर' आदि।
भाषा हिन्दी
शिक्षा बी. ए. तथा एल-एल.बी.
प्रसिद्धि उपन्यासकार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी प्रतापनारायण जी की प्रथम प्रसिद्ध औपन्यासिक रचना 'विदा' प्रेमचंद के 'गोदान' से कोई सात वर्ष पूर्व प्रकाशित हुई थी। इनकी इसी प्रारम्भिक कृति ने उन्हें हिन्दी उपन्यासकार की प्रतिष्ठा दी।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

प्रतापनारायण श्रीवास्तव (अंग्रेज़ी: Pratap Narayan Srivastava, जन्म- 1904 ई., कानपुर, उत्तर प्रदेश) भारत के प्रसिद्ध उपन्यासकार थे। वे उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की अपेक्षा कुछ बाद में आये, किंतु इन्हें 'प्रेमचन्द्र युग' के उपन्यास-लेखकों में ही मानना चाहिए।

जन्म तथा शिक्षा

प्रतापनारायण श्रीवास्तव का जन्म 1904 ई. में उत्तर प्रदेश के कानपुर में हुआ था। आपने अपनी शिक्षा के क्रम में बी. ए. तथा एल-एल.बी. की उपाधियाँ प्राप्त की थीं।[1]

प्रथम औपन्यासिक रचना

प्रतापनारायण श्रीवास्तव की प्रथम प्रसिद्ध औपन्यासिक रचना 'विदा' प्रेमचंद के 'गोदान' से कोई सात वर्ष पूर्व प्रकाशित हुई थी। इनकी इसी प्रारम्भिक कृति ने उन्हें हिन्दी उपन्यासकार की प्रतिष्ठा दी। अपनी इस कृति में प्रतापनारायण श्रीवास्तव नागरिक जीवन के अभिजात वर्ग के चित्रकार बनकर आये। उन्होंने यूरोपीय सभ्यता में रँगे हुए 'सिविल लाइंस' के बँगलों की जिन्दगी का अंकन किया। इस दृष्टिकोण के साथ कि उसके मूल में कहीं-न-कहीं भारतीय आत्मा सुरक्षित है। 'विदा' के सभी पात्र आदर्शवादिता के साँचे में ढले हुए जान पड़ते हैं। नागरिक जीवन की शोख और रंगीनी के बावजूद वे आदर्श चरित्रों के रूप में प्रस्तुत किये गये हैं।

श्रीवास्तव जी का दूसरा उपन्यास 'विजय' उच्चवर्गीय समाज के विधवा-जीवन की समस्या को लेकर चला है। अपनी इस कृति में भी प्रतापनारायण श्रीवास्तव ने यथार्थवादिता का अवलम्बन ग्रहण किया है। इस दृष्टि से इनका ऐतिहासिक उपन्यास 'बेकसी का मजाक' उल्लेखनीय है। इसमें 1857 ई. के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के सच्चे एवं सजीव चित्र प्रस्तुत करन में इन्हें बहुत सफलता मिली है।[1]

कृतियाँ

साहित्य में प्रतापनारायण श्रीवास्तव उपन्यासकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। आपकी औपन्यासिक कृतियाँ निम्नलिखित हैं[1]-

  1. 'निकुंज' (1922 ई.)
  2. 'विदा' (1928 ई.)
  3. 'विजय' (1937 ई.)
  4. 'विकास' (1939 ई.)
  5. 'बयालीस' (1948 ई.)
  6. 'विसर्जन' (1950 ई.)
  7. 'बेकसी का मजार' (1956 ई.)
  8. 'वेदना' (1960 ई.)
  9. 'विश्वास की वेदी पर' (1960 ई.)

विषय तथा भाषा-शैली

प्रतापनारायण श्रीवास्तव ने अपनी कृतियों से हिन्दी उपन्यास साहित्य की महत्त्वपूर्ण श्रीवृद्धि की है। उन्होंने सामाजिक, राजनीतिक एवं ऐतिहासिक विषयों एवं समस्याओं को अपने उपन्यासों में सफलतापूर्वक अंकित किया है। उनकी भाषा निखरी हुई और शैली प्रौढ़ है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 हिन्दी साहित्य कोश, भाग 2 |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |संपादन: डॉ. धीरेंद्र वर्मा |पृष्ठ संख्या: 345 |

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