"कनाईलाल दत्त": अवतरणों में अंतर
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'''कनाईलाल दत्त''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kanailal Dutta''; जन्म- [[30 अगस्त]], [[1888]] ई. [[हुगली ज़िला|हुगली ज़िला]], [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]]; मृत्यु- [[10 नवम्बर]], [[1908]] ई., [[कोलकाता]]) [[भारत]] की आज़ादी के लिए फाँसी के फंदे पर झूलने वाले अमर शहीदों में से एक थे। उन्होंने [[1905]] में [[बंगाल विभाजन|बंगाल के विभाजन]] का पूर्ण विरोध किया था। अपनी स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण करके कनाईलाल [[कोलकाता]] आ गये थे और [[बारीन्द्र कुमार]] के दल में शामिल हो गए। [[1908]] में मुजफ़्फ़रपुर के [[अंग्रेज़]] अधिकारी किंग्सफ़ोर्ड पर हमला किया गया था। इस हमले में कनाईलाल दत्त, [[अरविन्द घोष]], बारीन्द्र कुमार आदि पकड़े गये। इनके दल का एक युवक नरेन गोस्वामी अंग्रेज़ों का सरकारी मुखबिर बन गया। क्रांतिकारियों ने इससे बदला लेने का निश्चय कर लिया था। अपना यह कार्य पूर्ण करने के बाद ही कनाईलाल पकड़े गए और उन्हें फाँसी दे दी गई। | |||
'''कनाईलाल दत्त''' ([[अंग्रेज़ी]]: Kanailal Dutta; जन्म- [[30 अगस्त]], [[1888]] ई. [[हुगली ज़िला|हुगली ज़िला]], [[बंगाल]]; मृत्यु- [[10 नवम्बर]], [[1908]] ई., [[कोलकाता]]) [[भारत]] की आज़ादी के लिए फाँसी के फंदे पर झूलने वाले अमर शहीदों में से एक थे। | |||
==जन्म तथा शिक्षा== | ==जन्म तथा शिक्षा== | ||
कनाईलाल दत्त का जन्म 30 अगस्त, 1888 ई. को ब्रिटिश कालीन बंगाल के हुगली ज़िले में [[चंद्रनगर]] में हुआ था। उनके [[पिता]] चुन्नीलाल दत्त ब्रिटिश [[भारत]] सरकार की सेवा में [[मुंबई]] में नियुक्त थे। पांच वर्ष की उम्र में कनाईलाल मुंबई आ गए और वहीं उनकी आरम्भिक शिक्षा हुई। बाद में वापस चंद्रनगर जाकर उन्होंने हुगली कॉलेज से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। लेकिन उनकी राजनीतिक गतिविधियों के कारण ब्रिटिश सरकार ने उनकी डिग्री रोक ली। | कनाईलाल दत्त का जन्म 30 अगस्त, 1888 ई. को ब्रिटिश कालीन बंगाल के हुगली ज़िले में [[चंद्रनगर]] में हुआ था। उनके [[पिता]] चुन्नीलाल दत्त ब्रिटिश [[भारत]] सरकार की सेवा में [[मुंबई]] में नियुक्त थे। पांच वर्ष की उम्र में कनाईलाल मुंबई आ गए और वहीं उनकी आरम्भिक शिक्षा हुई। बाद में वापस चंद्रनगर जाकर उन्होंने हुगली कॉलेज से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। लेकिन उनकी राजनीतिक गतिविधियों के कारण ब्रिटिश सरकार ने उनकी डिग्री रोक ली। | ||
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अपने विद्यार्थी जीवन में कनाईलाल दत्त प्रोफ़ेसर चारुचंद्र राय के प्रभाव में आए। प्रोफ़ेसर राय ने चंद्रनगर में 'युगांतर पार्टी' की स्थापना की थी। कुछ अन्य क्रान्तिकारियों से भी उनका सम्पर्क हुआ, जिनकी सहायता से उन्होंने गोली का निशाना साधना सीखा। [[1905]] ई. के '[[बंगाल विभाजन]]' विरोधी आन्दोलन में कनाईलाल ने आगे बढ़कर भाग लिया तथा वे इस आन्दोलन के नेता [[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]] के भी सम्पर्क में आये। | अपने विद्यार्थी जीवन में कनाईलाल दत्त प्रोफ़ेसर चारुचंद्र राय के प्रभाव में आए। प्रोफ़ेसर राय ने चंद्रनगर में 'युगांतर पार्टी' की स्थापना की थी। कुछ अन्य क्रान्तिकारियों से भी उनका सम्पर्क हुआ, जिनकी सहायता से उन्होंने गोली का निशाना साधना सीखा। [[1905]] ई. के '[[बंगाल विभाजन]]' विरोधी आन्दोलन में कनाईलाल ने आगे बढ़कर भाग लिया तथा वे इस आन्दोलन के नेता [[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]] के भी सम्पर्क में आये। | ||
==गिरफ़्तारी== | ==गिरफ़्तारी== | ||
बी.ए. की परीक्षा समाप्त होते ही कनाईलाल कोलकाता चले गए और प्रसिद्ध क्रान्तिकारी बारीन्द्र कुमार घोष के दल में सम्मिलित हो गए और यहाँ वे उसी मकान में रहते थे, जहाँ क्रान्तिकारियों के लिए [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र-शस्त्र]] और बम आदि रखे जाते थे। [[अप्रैल]], [[1908]] ई. में [[खुदीराम बोस]] और प्रफुल्ल चाकी ने मुजफ्फरपुर में किंग्सफ़ोर्ड पर आक्रमण किया। इसी सिलसिले में [[2 मई]], 1908 को कनाईलाल दत्त, अरविन्द घोष, बारीन्द्र कुमार आदि गिरफ्तार कर लिये गए। इस मुकदमें में नरेन गोस्वामी नाम का एक अभियुक्त सरकारी मुखबिर बन गया। | बी.ए. की परीक्षा समाप्त होते ही कनाईलाल [[कोलकाता]] चले गए और प्रसिद्ध क्रान्तिकारी [[बारीन्द्र कुमार घोष]] के दल में सम्मिलित हो गए और यहाँ वे उसी मकान में रहते थे, जहाँ क्रान्तिकारियों के लिए [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र-शस्त्र]] और बम आदि रखे जाते थे। [[अप्रैल]], [[1908]] ई. में [[खुदीराम बोस]] और प्रफुल्ल चाकी ने मुजफ्फरपुर में किंग्सफ़ोर्ड पर आक्रमण किया। इसी सिलसिले में [[2 मई]], [[1908]] को कनाईलाल दत्त, [[अरविन्द घोष]], [[बारीन्द्र कुमार]] आदि गिरफ्तार कर लिये गए। इस मुकदमें में नरेन गोस्वामी नाम का एक अभियुक्त सरकारी मुखबिर बन गया। | ||
क्रान्तिकारियों ने इस मुखबिर से बदला लेने के लिए मुलाकात के समय चुपचाप बाहर से रिवाल्वर मंगाए। कनाईलाल दत्त और सत्येन बोस ने नरेन गोस्वामी को जेल के अंदर ही अपनी गोलियों का निशाना बनाने का निश्चय किया। पहले सत्येन बीमार बनकर जेल के अस्पताल में भर्ती हुए, फिर कनाईलाल भी बीमार पड़ गये। सत्येन ने मुखबिर नरेन गोस्वामी के पास संदेश भेजा कि मैं जेल के जीवन से ऊब गया हूँ और तुम्हारी ही तरह सरकारी गवाह बनना चाहता हँ। मेरा एक और साथी हो गया, इस प्रसन्नता से वह सत्येन से मिलने जेल के अस्पताल जा पहुँचा। फिर क्या था, उसे देखते ही पहले सत्येन ने और फिर कनाईलाल दत्त ने उसे अपनी गोलियों से वहीं ढेर कर दिया। दोनों पकड़ लिये गए और दोनों को मृत्युदंड मिला। | क्रान्तिकारियों ने इस मुखबिर से बदला लेने के लिए मुलाकात के समय चुपचाप बाहर से रिवाल्वर मंगाए। कनाईलाल दत्त और सत्येन बोस ने नरेन गोस्वामी को जेल के अंदर ही अपनी गोलियों का निशाना बनाने का निश्चय किया। पहले सत्येन बीमार बनकर जेल के अस्पताल में भर्ती हुए, फिर कनाईलाल भी बीमार पड़ गये। सत्येन ने मुखबिर नरेन गोस्वामी के पास संदेश भेजा कि मैं जेल के जीवन से ऊब गया हूँ और तुम्हारी ही तरह सरकारी गवाह बनना चाहता हँ। मेरा एक और साथी हो गया, इस प्रसन्नता से वह सत्येन से मिलने जेल के अस्पताल जा पहुँचा। फिर क्या था, उसे देखते ही पहले सत्येन ने और फिर कनाईलाल दत्त ने उसे अपनी गोलियों से वहीं ढेर कर दिया। दोनों पकड़ लिये गए और दोनों को मृत्युदंड मिला। | ||
==शहादत== | ==शहादत== | ||
कनाईलाल के फैसले में लिखा गया कि इसे अपील करने की इजाजत नहीं होगी। [[10 नवम्बर]], [[1908]] को कनाईलाल कलकत्ता (वर्तमान [[कोलकाता]]) में | कनाईलाल के फैसले में लिखा गया कि इसे अपील करने की इजाजत नहीं होगी। [[10 नवम्बर]], [[1908]] को कनाईलाल कलकत्ता (वर्तमान [[कोलकाता]]) में फाँसी के फंदे पर लटकर शहीद हो गए। जेल में उनका वजन बढ़ गया था। फाँसी के दिन जब जेल के कर्मचारी उन्हें लेने के लिए उनकी कोठरी में पहुँचे, उस समय कनाईलाल दत्त गहरी नींद में सोये हुए थे। मात्र बीस वर्ष की आयु में ही शहीद हो जाने वाले कनाईलाल दत्त की शहादत को [[भारत]] में कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। | ||
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कनाईलाल दत्त
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पूरा नाम | कनाईलाल दत्त |
जन्म | 30 अगस्त, 1888 |
जन्म भूमि | हुगली ज़िला, बंगाल |
मृत्यु | 10 नवम्बर, 1908 |
मृत्यु स्थान | कोलकाता |
मृत्यु कारण | फाँसी |
अभिभावक | चुन्नीलाल दत्त |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी |
शिक्षा | स्नातक |
विद्यालय | हुगली कॉलेज |
विशेष योगदान | 1905 के 'बंगाल विभाजन' विरोधी आन्दोलन में कनाईलाल दत्त ने आगे बढ़कर भाग लिया। वे इस आन्दोलन के नेता सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के प्रमुख सहयोगी थे। |
संबंधित लेख | बंगाल विभाजन, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी |
अन्य जानकारी | कनाईलाल दत्त, अरविन्द घोष, बारीन्द्र कुमार आदि 1908 में गिरफ्तार कर लिये गए थे। कनाईलाल के फैसले में लिखा गया था कि इसे अपील करने की इजाजत नहीं होगी। |
कनाईलाल दत्त (अंग्रेज़ी: Kanailal Dutta; जन्म- 30 अगस्त, 1888 ई. हुगली ज़िला, बंगाल; मृत्यु- 10 नवम्बर, 1908 ई., कोलकाता) भारत की आज़ादी के लिए फाँसी के फंदे पर झूलने वाले अमर शहीदों में से एक थे। उन्होंने 1905 में बंगाल के विभाजन का पूर्ण विरोध किया था। अपनी स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण करके कनाईलाल कोलकाता आ गये थे और बारीन्द्र कुमार के दल में शामिल हो गए। 1908 में मुजफ़्फ़रपुर के अंग्रेज़ अधिकारी किंग्सफ़ोर्ड पर हमला किया गया था। इस हमले में कनाईलाल दत्त, अरविन्द घोष, बारीन्द्र कुमार आदि पकड़े गये। इनके दल का एक युवक नरेन गोस्वामी अंग्रेज़ों का सरकारी मुखबिर बन गया। क्रांतिकारियों ने इससे बदला लेने का निश्चय कर लिया था। अपना यह कार्य पूर्ण करने के बाद ही कनाईलाल पकड़े गए और उन्हें फाँसी दे दी गई।
जन्म तथा शिक्षा
कनाईलाल दत्त का जन्म 30 अगस्त, 1888 ई. को ब्रिटिश कालीन बंगाल के हुगली ज़िले में चंद्रनगर में हुआ था। उनके पिता चुन्नीलाल दत्त ब्रिटिश भारत सरकार की सेवा में मुंबई में नियुक्त थे। पांच वर्ष की उम्र में कनाईलाल मुंबई आ गए और वहीं उनकी आरम्भिक शिक्षा हुई। बाद में वापस चंद्रनगर जाकर उन्होंने हुगली कॉलेज से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। लेकिन उनकी राजनीतिक गतिविधियों के कारण ब्रिटिश सरकार ने उनकी डिग्री रोक ली।
क्रांतिकारी जीवन
अपने विद्यार्थी जीवन में कनाईलाल दत्त प्रोफ़ेसर चारुचंद्र राय के प्रभाव में आए। प्रोफ़ेसर राय ने चंद्रनगर में 'युगांतर पार्टी' की स्थापना की थी। कुछ अन्य क्रान्तिकारियों से भी उनका सम्पर्क हुआ, जिनकी सहायता से उन्होंने गोली का निशाना साधना सीखा। 1905 ई. के 'बंगाल विभाजन' विरोधी आन्दोलन में कनाईलाल ने आगे बढ़कर भाग लिया तथा वे इस आन्दोलन के नेता सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के भी सम्पर्क में आये।
गिरफ़्तारी
बी.ए. की परीक्षा समाप्त होते ही कनाईलाल कोलकाता चले गए और प्रसिद्ध क्रान्तिकारी बारीन्द्र कुमार घोष के दल में सम्मिलित हो गए और यहाँ वे उसी मकान में रहते थे, जहाँ क्रान्तिकारियों के लिए अस्त्र-शस्त्र और बम आदि रखे जाते थे। अप्रैल, 1908 ई. में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने मुजफ्फरपुर में किंग्सफ़ोर्ड पर आक्रमण किया। इसी सिलसिले में 2 मई, 1908 को कनाईलाल दत्त, अरविन्द घोष, बारीन्द्र कुमार आदि गिरफ्तार कर लिये गए। इस मुकदमें में नरेन गोस्वामी नाम का एक अभियुक्त सरकारी मुखबिर बन गया।
क्रान्तिकारियों ने इस मुखबिर से बदला लेने के लिए मुलाकात के समय चुपचाप बाहर से रिवाल्वर मंगाए। कनाईलाल दत्त और सत्येन बोस ने नरेन गोस्वामी को जेल के अंदर ही अपनी गोलियों का निशाना बनाने का निश्चय किया। पहले सत्येन बीमार बनकर जेल के अस्पताल में भर्ती हुए, फिर कनाईलाल भी बीमार पड़ गये। सत्येन ने मुखबिर नरेन गोस्वामी के पास संदेश भेजा कि मैं जेल के जीवन से ऊब गया हूँ और तुम्हारी ही तरह सरकारी गवाह बनना चाहता हँ। मेरा एक और साथी हो गया, इस प्रसन्नता से वह सत्येन से मिलने जेल के अस्पताल जा पहुँचा। फिर क्या था, उसे देखते ही पहले सत्येन ने और फिर कनाईलाल दत्त ने उसे अपनी गोलियों से वहीं ढेर कर दिया। दोनों पकड़ लिये गए और दोनों को मृत्युदंड मिला।
शहादत
कनाईलाल के फैसले में लिखा गया कि इसे अपील करने की इजाजत नहीं होगी। 10 नवम्बर, 1908 को कनाईलाल कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में फाँसी के फंदे पर लटकर शहीद हो गए। जेल में उनका वजन बढ़ गया था। फाँसी के दिन जब जेल के कर्मचारी उन्हें लेने के लिए उनकी कोठरी में पहुँचे, उस समय कनाईलाल दत्त गहरी नींद में सोये हुए थे। मात्र बीस वर्ष की आयु में ही शहीद हो जाने वाले कनाईलाल दत्त की शहादत को भारत में कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 128 |
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