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        '''[[वंदे मातरम्]]''' [[भारत]] का राष्ट्रीय गीत है जिसकी रचना [[बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय]] द्वारा की गई थी। इन्होंने [[7 नवम्बर]], [[1876]] ई. में [[अखण्डित बंगाल|बंगाल]] के कांतल पाडा नामक गाँव में इस गीत की रचना की थी। वंदे मातरम् गीत के प्रथम दो पद [[संस्कृत]] में तथा शेष पद [[बांग्ला भाषा]] में थे। [[राष्ट्रकवि]] [[रबीन्द्रनाथ ठाकुर|रवींद्रनाथ टैगोर]] ने इस गीत को स्वरबद्ध किया और पहली बार [[1896]] में [[भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस|कांग्रेस]] के [[कांग्रेस अधिवेशन कलकत्ता|कलकत्ता अधिवेशन]] में यह गीत गाया गया। [[अरबिंदो घोष]] ने इस गीत का [[अंग्रेज़ी]] में और आरिफ़ मोहम्मद ख़ान ने इसका [[उर्दू]] में अनुवाद किया। 'वंदे मातरम्' का स्‍थान राष्ट्रीय गान '[[राष्‍ट्रगान|जन गण मन]]' के बराबर है। यह गीत स्‍वतंत्रता की लड़ाई में लोगों के लिए प्ररेणा का स्रोत था। [[वंदे मातरम्|... और पढ़ें]]</poem>
        '''[[पृथ्वीराज रासो]]''' [[हिन्दी]] भाषा में लिखा गया एक [[महाकाव्य]] है, जिसमें [[पृथ्वीराज चौहान]] के जीवन-चरित्र का वर्णन किया गया है। यह महाकवि [[चंदबरदाई]] की रचना है, जो पृथ्वीराज के अभिन्न मित्र तथा राजकवि थे। इसमें दिल्लीश्वर पृथ्वीराज के जीवन की घटनाओं का विशद वर्णन है। यह तेरहवीं शती की रचना है। डॉ. माताप्रसाद गुप्त इसे 1400 विक्रमी संवत के लगभग की रचना मानते हैं। इसमें पृथ्वीराज व उनकी प्रेमिका [[संयोगिता]] के परिणय का सुन्दर वर्णन है। यह ग्रंथ ऐतिहासिक कम काल्पनिक अधिक है। [[रामचन्द्र शुक्ल|आचार्य रामचन्द्र शुक्ल]] ने 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' में लिखा है- 'पृथ्वीराज रासो ढाई हज़ार पृष्ठों का बहुत बड़ा ग्रंथ है जिसमें 69 समय (सर्ग या अध्याय) हैं। प्राचीन समय में प्रचलित प्राय: सभी छंदों का व्यवहार हुआ है। मुख्य छंद हैं कवित्त (छप्पय), दूहा, तोमर, त्रोटक, गाहा और आर्या। [[पृथ्वीराज रासो|...और पढ़ें]]</poem>
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| [[एक रचना|पिछले लेख]]
| [[रामचरितमानस]]  
| [[वंदे मातरम्]]  
| [[ पद्मावत]]  
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13:49, 22 मार्च 2016 के समय का अवतरण

एक रचना

         पृथ्वीराज रासो हिन्दी भाषा में लिखा गया एक महाकाव्य है, जिसमें पृथ्वीराज चौहान के जीवन-चरित्र का वर्णन किया गया है। यह महाकवि चंदबरदाई की रचना है, जो पृथ्वीराज के अभिन्न मित्र तथा राजकवि थे। इसमें दिल्लीश्वर पृथ्वीराज के जीवन की घटनाओं का विशद वर्णन है। यह तेरहवीं शती की रचना है। डॉ. माताप्रसाद गुप्त इसे 1400 विक्रमी संवत के लगभग की रचना मानते हैं। इसमें पृथ्वीराज व उनकी प्रेमिका संयोगिता के परिणय का सुन्दर वर्णन है। यह ग्रंथ ऐतिहासिक कम काल्पनिक अधिक है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' में लिखा है- 'पृथ्वीराज रासो ढाई हज़ार पृष्ठों का बहुत बड़ा ग्रंथ है जिसमें 69 समय (सर्ग या अध्याय) हैं। प्राचीन समय में प्रचलित प्राय: सभी छंदों का व्यवहार हुआ है। मुख्य छंद हैं कवित्त (छप्पय), दूहा, तोमर, त्रोटक, गाहा और आर्या। ...और पढ़ें

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