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जब मारीच ने दोनों प्रकार से अपना मरण देखा, तब उसने श्री रघुनाथजी की शरण तकी (अर्थात उनकी शरण जाने में ही कल्याण समझा)। (सोचा कि) उत्तर देते ही (नाहीं करते ही) यह अभागा मुझे मार डालेगा। फिर श्री रघुनाथजी के बाण लगने से ही क्यों न मरूँ॥3॥
जब मारीच ने दोनों प्रकार से अपना मरण देखा, तब उसने श्री रघुनाथजी की शरण तकी (अर्थात् उनकी शरण जाने में ही कल्याण समझा)। (सोचा कि) उत्तर देते ही (नाहीं करते ही) यह अभागा मुझे मार डालेगा। फिर श्री रघुनाथजी के बाण लगने से ही क्यों न मरूँ॥3॥





07:52, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

उभय भाँति देखा निज मरना
रामचरितमानस
रामचरितमानस
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड अरण्यकाण्ड
चौपाई

उभय भाँति देखा निज मरना। तब ताकिसि रघुनायक सरना॥
उतरु देत मोहि बधब अभागें। कस न मरौं रघुपति सर लागें॥3॥

भावार्थ

जब मारीच ने दोनों प्रकार से अपना मरण देखा, तब उसने श्री रघुनाथजी की शरण तकी (अर्थात् उनकी शरण जाने में ही कल्याण समझा)। (सोचा कि) उत्तर देते ही (नाहीं करते ही) यह अभागा मुझे मार डालेगा। फिर श्री रघुनाथजी के बाण लगने से ही क्यों न मरूँ॥3॥



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उभय भाँति देखा निज मरना
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चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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