"दससीस बिनासन बीस भुजा": अवतरणों में अंतर
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दससीस बिनासन बीस भुजा। कृत दूरि महा महि भूरि रुजा॥ | दससीस बिनासन बीस भुजा। कृत दूरि महा महि भूरि रुजा॥ | ||
रजनीचर बृंद पतंग रहे। सर पावक तेज प्रचंड दहे॥2॥ | रजनीचर बृंद पतंग रहे। सर पावक तेज प्रचंड दहे॥2॥ |
06:54, 8 जून 2016 के समय का अवतरण
दससीस बिनासन बीस भुजा
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
दससीस बिनासन बीस भुजा। कृत दूरि महा महि भूरि रुजा॥ |
- भावार्थ
हे दस सिर और बीस भुजाओं वाले रावण का विनाश करके पृथ्वी के सब महान् रोगों (कष्टों) को दूर करने वाले श्री राम जी! राक्षस समूह रूपी जो पतंगे थे, वे सब आपके बाण रूपी अग्नि के प्रचण्ड तेज से भस्म हो गए॥2॥
दससीस बिनासन बीस भुजा |
छन्द- शब्द 'चद्' धातु से बना है जिसका अर्थ है 'आह्लादित करना', 'खुश करना'। यह आह्लाद वर्ण या मात्रा की नियमित संख्या के विन्याय से उत्पन्न होता है। इस प्रकार, छंद की परिभाषा होगी 'वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद पैदा हो, तो उसे छंद कहते हैं'। छंद का सर्वप्रथम उल्लेख 'ऋग्वेद' में मिलता है। जिस प्रकार गद्य का नियामक व्याकरण है, उसी प्रकार पद्य का छंद शास्त्र है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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