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मातु सकल मोरे बिरहँ जेहिं न होहिं दुख दीन।
मातु सकल मोरे बिरहँ जेहिं न होहिं दु:ख दीन।
सोइ उपाउ तुम्ह करेहु सब पुर जन परम प्रबीन॥80॥</poem>
सोइ उपाउ तुम्ह करेहु सब पुर जन परम प्रबीन॥80॥</poem>
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14:08, 2 जून 2017 के समय का अवतरण

मातु सकल मोरे बिरहँवा
रामचरितमानस
रामचरितमानस
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड अयोध्या काण्ड
दोहा

मातु सकल मोरे बिरहँ जेहिं न होहिं दु:ख दीन।
सोइ उपाउ तुम्ह करेहु सब पुर जन परम प्रबीन॥80॥

भावार्थ

हे परम चतुर पुरवासी सज्जनों! आप लोग सब वही उपाए कीजिएगा, जिससे मेरी सब माताएँ मेरे विरह के दुःख से दुःखी न हों॥80॥


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मातु सकल मोरे बिरहँवा
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दोहा - मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।




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