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| ==अकबर के नवरत्न==
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| [[चित्र:Court-Of-Akbar-From-Akbarnama.jpg|thumb|250px|[[अकबरनामा]] के अनुसार, अकबर के दरबार का एक दृश्य]]
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| '''जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर''' [[भारत]] का महानतम मुग़ल शंहशाह बादशाह था। जिसने मुग़ल शक्ति का भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों में विस्तार किया। अकबर को अकबर-ऐ-आज़म, शहंशाह अकबर तथा महाबली शहंशाह के नाम से भी जाना जाता है।
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| अकबर के दरबार को सुशोभित करने वाले 9 रत्न थे-<br />
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| ==बीरबल==
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| {{मुख्य|बीरबल}}
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| नवरत्नों में सर्वाधिक प्रसिद्ध बीरबल का जन्म [[कालपी]] में 1528 ई. में [[ब्राह्मण]] वंश में हुआ था। बीरबल के बचपन का नाम 'महेशदास' था। यह अकबर के बहुत ही नज़दीक था। उसकी छवि अकबर के दरबार में एक कुशल वक्ता, कहानीकार एवं कवि की थी। अकबर ने उसकी योग्यता से प्रभावित होकर उसे (बीरबल) कविराज एवं राजा की उपाधि प्रदान की, साथ ही 2000 का [[मनसब]] भी प्रदान किया। बीरबल पहला एवं अन्तिम हिन्दू राजा था, जिसने दीन-ए-इलाही धर्म को स्वीकार किया था। अकबर ने [[बीरबल]] को [[नगरकोट]], [[कांगड़ा]] एवं [[कालिंजर]] में जागीरें प्रदान की थीं। 1583 ई. में बीरबल को न्याय विभाग का सर्वोच्च अधिकारी बनाया गया। 1586 ई. में युसुफ़जइयों के विद्रोह को दबाने के लिए गये बीरबल की हत्या कर दी गई।
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| [[अबुल फ़ज़ल]] एवं [[बदायूंनी]] के अनुसार-अकबर को सभी अमीरों से अधिक बीरबल की मृत्यु पर शोक पहुँचा था।
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| ==अबुल फ़ज़ल==
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| {{मुख्य|अबुल फ़ज़ल}}
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| सूफ़ी शेख़ मुबारक के पुत्र अबुल फ़ज़ल का जन्म 1550 ई. में हुआ था। उसने [[मुग़लकालीन शिक्षा एवं साहित्य]] में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। 20 सवारों के रूप में अपना जीवन आरम्भ करने वाले अबुल फ़ज़ल ने अपने चरमोत्कर्ष पर 5000 सवार का मनसब प्राप्त किया था। वह अकबर का मुख्य सलाहकार व सचिव था। उसे [[इतिहास]], [[दर्शन]] एवं [[साहित्य]] पर पर्याप्त जानकारी थी। अकबर के दीन-ए-इलाही धर्म का वह मुख्य पुरोहित था। उसने [[अकबरनामा]] एवं आइने अकबरी जैसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना की थी। 1602 ई. में सलीम ([[जहाँगीर]]) के निर्देश पर दक्षिण से [[आगरा]] की ओर आ रहे अबुल फ़ज़ल की रास्ते में [[बुन्देला]] सरदार ने हत्या कर दी।
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| ==टोडरमल==
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| {{मुख्य|टोडरमल}}
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| [[उत्तर प्रदेश]] के एक क्षत्रिय कुल में पैदा होने वाले टोडरमल ने अपने जीवन की शुरुआत [[शेरशाह सूरी]] के जहाँ नौकरी करके की थी। 1562 ई. में अकबर की सेवा में आने के बाद 1572 ई. में उसे [[गुजरात]] का [[दीवान]] बनाया गया तथा बाद में 1582 ई. में वह प्रधानमंत्री बन गया। दीवान-ए-अशरफ़ के पद पर कार्य करते हुए टोडरमल ने भूमि के सम्बन्ध में जो सुधार किए, वे नि:संदेह प्रशंसनीय हैं। टोडरमल ने एक सैनिक एवं सेना नायक के रूप में भी कार्य किया। 1589 ई. में टोडरमल की मृत्यु हो गई।
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| ==तानसेन==
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| {{मुख्य|तानसेन}}
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| [[संगीत]] सम्राट तानसेन का जन्म [[ग्वालियर]] में हुआ था। उसके संगीत का प्रशंसक होने के नाते अकबर ने उसे अपने नौ रत्नों में शामिल किया था। उसने कई रागों का निर्माण किया था। उनके समय में [[ध्रुपद]] गायन शैली का विकास हुआ। अकबर ने तानसेन को ‘कण्ठाभरणवाणीविलास’ की उपाधि से सम्मानित किया था। तानसेन की प्रमुख कृतियाँ थीं-मियां की टोड़ी, मियां की मल्हार, मियां की सारंग, दरबारी कान्हड़ा आदि। सम्भवत: उसने [[इस्लाम धर्म]] स्वीकार कर लिया था।
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| ==मानसिंह==
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| {{मुख्य|मानसिंह}}
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| [[आमेर]] के राजा भारमल के पौत्र मानसिंह ने अकबर के साम्राज्य विस्तार में बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मानसिंह से सम्बन्ध होने के बाद अकबर ने हिन्दुओं के साथ उदारता का व्यवहार करते हुए [[जज़िया कर]] को समाप्त कर दिया। [[काबुल]], [[बिहार]], [[बंगाल]] आदि प्रदेशों पर मानसिंह ने सफल सैनिक अभियान चलाया।
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| ==अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना==
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| {{मुख्य|रहीम}}
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| [[बैरम ख़ाँ]] का पुत्र अब्दुर्रहीम उच्च कोटि का विद्वान एवं कवि था। उसने तुर्की में लिखे [[बाबरनामा]] का [[फ़ारसी भाषा]] में अनुवाद किया था। जहाँगीर अब्दुर्रहीम के व्यक्तित्व से सर्वाधिक प्रभावित था, जो उसका गुरु भी था। रहीम को [[गुजरात]] प्रदेश को जीतने के बाद अकबर ने ख़ानख़ाना की उपाधि से सम्मानित किया था।
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| ==मुल्ला दो प्याज़ा==
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| [[अरब]] का रहने वाला प्याज़ा [[हुमायूँ]] के समय में [[भारत]] आया था। अकबर के नौ रत्नों में उसका भी स्थान था। भोजन में उसे दो प्याज़ अधिक पसन्द था। इसीलिए अकबर ने उसे दो प्याज़ा की उपाधि प्रदान की थी।
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| ==हक़ीम हुमाम==
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| {{मुख्य|हक़ीम हुमाम}}
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| यह अकबर के रसोई घर का प्रधान था।
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| ==फ़ैजी==
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| {{मुख्य|फ़ैज़ी}}
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| अबुल फ़ज़ल का बड़ा भाई फ़ैज़ी अकबर के दरबार में राज कवि के पद पर आसीन था। वह [[दीन-ए-इलाही]] धर्म का कट्टर समर्थक था। 1595 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
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| {{सूचना बक्सा ऐतिहासिक पात्र
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| |चित्र=Blankimage.png
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| |चित्र का नाम=महादजी शिन्दे
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| |पूरा नाम=महादजी शिन्दे
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| |अन्य नाम=
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| |जन्म=1727 ई.
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| |जन्म भूमि=
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| |मृत्यु तिथि=[[12 फरवरी]] 1794 ई.
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| |मृत्यु स्थान=
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| |पिता/माता=सरदार रानोजी राव शिंदे
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| |पति/पत्नी=
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| |संतान=
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| |उपाधि=
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| |शासन=
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| |धार्मिक मान्यता=
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| |राज्याभिषेक=
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| |युद्ध=तृतीय युद्ध- 1761 ई.
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| |प्रसिद्धि=
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| |निर्माण=
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| |सुधार-परिवर्तन=
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| |राजधानी=
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| |पूर्वाधिकारी=
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| |राजघराना=
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| |वंश=
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| |शासन काल=
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| |स्मारक=
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| |मक़बरा=
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| |संबंधित लेख=[[शिवाजी]], [[शाहजी भोंसले]], [[शम्भाजी|शम्भाजी पेशवा]], [[बालाजी विश्वनाथ]], [[बाजीराव प्रथम]], [[बाजीराव द्वितीय]], [[राजाराम शिवाजी]], [[ग्वालियर]], [[दौलतराव शिन्दे]], [[नाना फड़नवीस]], [[शाहू]], [[सालबाई की सन्धि]], [[मराठा साम्राज्य]]
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| |शीर्षक 1=
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| |पाठ 1=
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| |शीर्षक 2=
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| |पाठ 2=
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| |अन्य जानकारी=[[पेशवा बाजीराव प्रथम]] के शासन काल में महादजी शिन्दे छोटे से पद से पदोन्नति करते हुए उच्च पद तक पहुँच गया। 1761 ई. के तृतीय युद्ध में उसने भाग लिया और घाव लगने के कारण सदा के लिए लंगड़ा हो गया।
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| |बाहरी कड़ियाँ=
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| |अद्यतन=
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| }}
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| महादजी शिन्दे ([[अंग्रेज़ी]]: ''Mahadaji Shinde'', जन्म:1727 ई.- मृत्यु:[[12 फरवरी]] 1794 ई.) रणोजी सिंधिया का अवैध [[पुत्र]] और उत्तराधिकारी था। वह अंग्रेज़ों के औपनिवेशिक काल में प्रमुख रूप से सक्रिय था। महादजी शिन्दे एक बहुत ही महत्वाकांक्षी और सैनिक गुणों से सम्पन्न व्यक्ति था। अपनी तीव्र बुद्धि और सैनिक कुशलताओं के कारण ही वह [[मराठा साम्राज्य]] में विशिष्ट स्थान रखता था। उसकी [[मृत्यु]] 1794 ई. में हुई थी।
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