"बांडुंग सम्मेलन": अवतरणों में अंतर
(''''बांडुंग सम्मेलन''' सन 1955 में इण्डोनेशिया में आयोज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
'''बांडुंग सम्मेलन''' सन [[1955]] में इण्डोनेशिया में आयोजित हुआ था। 18-24 अप्रैल, 1955 में इण्डोनेशिया, [[म्यांमार]] (बर्मा), सीलोन ([[श्रीलंका]]), [[भारत]] व [[पाकिस्तान]] द्वारा बांडुंग (इण्डोनेशिया) में एशियाई और अफ़्रीकी देशों की एक बैठक आयोजित की गई, इसी को 'बांडुंग सम्मेलन' कहा गया। कुल मिलाकर विश्व की आधी से अधिक जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करने वाले 29 देशों ने इसमें अपने प्रतिनिधित्व भेजे।<ref name="aa">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारत ज्ञानकोश, खण्ड-3|लेखक=इंदु रामचंदानी|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=361|url=}}</ref> | '''बांडुंग सम्मेलन''' सन [[1955]] में इण्डोनेशिया में आयोजित हुआ था। [[18 अप्रैल|18]]-[[24 अप्रैल]], 1955 में इण्डोनेशिया, [[म्यांमार]] (बर्मा), सीलोन ([[श्रीलंका]]), [[भारत]] व [[पाकिस्तान]] द्वारा बांडुंग (इण्डोनेशिया) में एशियाई और अफ़्रीकी देशों की एक बैठक आयोजित की गई, इसी को 'बांडुंग सम्मेलन' कहा गया। कुल मिलाकर विश्व की आधी से अधिक जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करने वाले 29 देशों ने इसमें अपने प्रतिनिधित्व भेजे।<ref name="aa">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारत ज्ञानकोश, खण्ड-3|लेखक=इंदु रामचंदानी|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=361|url=}}</ref> | ||
==उद्देश्य== | ==उद्देश्य== | ||
इस सम्मेलन ने पश्चिमी शक्तियों द्वारा [[एशिया]] को प्रभावित करने वाले निर्णयों पर प्रायोजक देशों द्वारा उनकी राय लेने; चीनी जनवादी गणराज्य और [[अमेरिका]] के बीच तनाव पर उनकी चिंताओं; [[चीन]] के स्वयं उनसे व पश्चिम से शांतिपूर्ण संबंधों की और सुदृढ़ नींव रखने की उनकी इच्छा; उपनिवेशवाद के प्रति उनके विरोध, विशषेकर उत्तरी अफ़्रीका में [[फ़्राँसीसी]] हस्तक्षेप और इंडोनेशिया के पश्चिमी न्यू गिनी (ईरियाई जाया) पर नीदरलैंड से अपने मतभेदों पर अपना तर्क प्रस्तुत करने की इच्छा को प्रतिध्वनित किया गया। | इस सम्मेलन ने पश्चिमी शक्तियों द्वारा [[एशिया]] को प्रभावित करने वाले निर्णयों पर प्रायोजक देशों द्वारा उनकी राय लेने; चीनी जनवादी गणराज्य और [[अमेरिका]] के बीच तनाव पर उनकी चिंताओं; [[चीन]] के स्वयं उनसे व पश्चिम से शांतिपूर्ण संबंधों की और सुदृढ़ नींव रखने की उनकी इच्छा; उपनिवेशवाद के प्रति उनके विरोध, विशषेकर उत्तरी अफ़्रीका में [[फ़्राँसीसी]] हस्तक्षेप और इंडोनेशिया के पश्चिमी न्यू गिनी (ईरियाई जाया) पर नीदरलैंड से अपने मतभेदों पर अपना तर्क प्रस्तुत करने की इच्छा को प्रतिध्वनित किया गया। |
12:27, 6 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
बांडुंग सम्मेलन सन 1955 में इण्डोनेशिया में आयोजित हुआ था। 18-24 अप्रैल, 1955 में इण्डोनेशिया, म्यांमार (बर्मा), सीलोन (श्रीलंका), भारत व पाकिस्तान द्वारा बांडुंग (इण्डोनेशिया) में एशियाई और अफ़्रीकी देशों की एक बैठक आयोजित की गई, इसी को 'बांडुंग सम्मेलन' कहा गया। कुल मिलाकर विश्व की आधी से अधिक जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करने वाले 29 देशों ने इसमें अपने प्रतिनिधित्व भेजे।[1]
उद्देश्य
इस सम्मेलन ने पश्चिमी शक्तियों द्वारा एशिया को प्रभावित करने वाले निर्णयों पर प्रायोजक देशों द्वारा उनकी राय लेने; चीनी जनवादी गणराज्य और अमेरिका के बीच तनाव पर उनकी चिंताओं; चीन के स्वयं उनसे व पश्चिम से शांतिपूर्ण संबंधों की और सुदृढ़ नींव रखने की उनकी इच्छा; उपनिवेशवाद के प्रति उनके विरोध, विशषेकर उत्तरी अफ़्रीका में फ़्राँसीसी हस्तक्षेप और इंडोनेशिया के पश्चिमी न्यू गिनी (ईरियाई जाया) पर नीदरलैंड से अपने मतभेदों पर अपना तर्क प्रस्तुत करने की इच्छा को प्रतिध्वनित किया गया।
विश्व शांति और सहयोग के प्रोत्साहन हेतु घोषणा पत्र
प्रमुख वाद-विवाद इस प्रश्न पर केंद्रित रहा कि क्या पूर्वी यूरोप और मध्य यूरोप में सोवियत नीतियों की पश्चिमी उपनिवेशवाद के साथ ही निंदा की जानी चाहिए? एक आम सहमति बनी, जिसमें सभी प्रकार के उपनिवेशवाद की निंदा की गई और सोवियत संघ व साथ ही पश्चिम की कड़ी निंदा की गई। चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने एक उदार और समझौतावादी रुख़ अपनाया. जिसने साम्यवाद विरोधी कुछ प्रतिनिधियों के चीन के इरादों के प्रति डर का समाधान किया। 10 बिंदुओं का 'विश्व शांति और सहयोग के प्रोत्साहन हेतु घोषणा पत्र', जिसमें संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र के सिद्धांत व भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पांच सिद्धांत शामिल किए गए थे, सर्वसम्मति से पारित किया गया।[1]
अगले दशक के दौरान जैसे-जैसे उपनिवेश आज़ाद हुए और सम्मेलन के सदस्यों के बीच मनमुटाव बढ़े, एशियाई-अफ़्रीकी एकता की अवधारणा की अर्थवत्ता में कमी आती गई। प्रारम्भिक सम्मेलन के प्रायोजकों के बीच बड़े मतभेद उभर आये। पहले 1961 व फिर 1964-1965 में, जब चीन और इण्डोनेशिया ने दूसरे एशियाई-अफ़्रीकी सम्मेलन की मांग पर जोर दिया। दोनों बार भारत ने यूगोस्लाविया और संयुक्त अरब गणराज्य (मिस्र) के साथ गुटनिरपेक्ष देशों के समानांतर सम्मेलन आयोजित करने में सफलता पाई, जिन्होंने चीन और 1964-65 में इण्डोनेशिया द्वारा प्रस्तावित कठोर पश्चिम विरोधी दृष्टिकोण अपनाने से इंकार कर दिया। नवम्बर, 1965 में दूसरा एशियाई-अफ़्रीकी सम्मेलन[2] अनिश्चितकाल के लिए आगे बढ़ा दिया गया और यह असम्भव प्रतीत होने लगा कि बांडुंग सम्मेलन का कभी कोई परिवर्ती सम्मेलन होगा।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख