"हानि कि जग एहि सम किछु भाई": अवतरणों में अंतर
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हानि कि जग एहि सम किछु भाई। भजिअ न रामहि नर तनु पाई॥ | हानि कि जग एहि सम किछु भाई। भजिअ न रामहि नर तनु पाई॥ | ||
अघ कि पिसुनता सम कछु आना। धर्म कि दया सरिस हरिजाना॥5॥ | अघ कि पिसुनता सम कछु आना। धर्म कि दया सरिस हरिजाना॥5॥ | ||
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हे भाई! जगत में क्या इसके समान दूसरी भी कोई हानि है कि मनुष्य का शरीर पाकर भी [[राम|श्री राम जी]] का भजन न किया जाए? चुगलखोरी के समान क्या कोई दूसरा पाप है? और हे [[गरुड़|गरुड़ जी]]! दया के समान क्या कोई दूसरा धर्म है?॥5॥ | हे भाई! जगत में क्या इसके समान दूसरी भी कोई हानि है कि मनुष्य का शरीर पाकर भी [[राम|श्री राम जी]] का भजन न किया जाए? चुगलखोरी के समान क्या कोई दूसरा पाप है? और हे [[गरुड़|गरुड़ जी]]! दया के समान क्या कोई दूसरा धर्म है?॥5॥ | ||
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''' | '''चौपाई'''- मात्रिक सम [[छन्द]] का भेद है। [[प्राकृत]] तथा [[अपभ्रंश]] के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित [[हिन्दी]] का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। [[तुलसीदास|गोस्वामी तुलसीदास]] ने [[रामचरितमानस]] में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है। | ||
04:38, 14 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
हानि कि जग एहि सम किछु भाई
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
सभी (7) काण्ड क्रमश: | बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड |
हानि कि जग एहि सम किछु भाई। भजिअ न रामहि नर तनु पाई॥ |
- भावार्थ
हे भाई! जगत में क्या इसके समान दूसरी भी कोई हानि है कि मनुष्य का शरीर पाकर भी श्री राम जी का भजन न किया जाए? चुगलखोरी के समान क्या कोई दूसरा पाप है? और हे गरुड़ जी! दया के समान क्या कोई दूसरा धर्म है?॥5॥
हानि कि जग एहि सम किछु भाई |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-530
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