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तेइ रघुनंदनु लखनु सिय अनहित लागे जाहि।
तेइ रघुनंदनु लखनु सिय अनहित लागे जाहि।
तासु तनय तजि दुसह दुख दैउ सहावइ काहि॥262॥</poem>
तासु तनय तजि दुसह दु:ख दैउ सहावइ काहि॥262॥</poem>
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वे ही श्री रघुनंदन, [[लक्ष्मण]] और [[सीता]] जिसको शत्रु जान पड़े, उस [[कैकेयी]] के पुत्र मुझको छोड़कर दैव दुःसह दुःख और किसे सहावेगा?॥262॥
वे ही श्री रघुनंदन, [[लक्ष्मण]] और [[सीता]] जिसको शत्रु जान पड़े, उस [[कैकेयी]] के पुत्र मुझको छोड़कर दैव दुःसह दुःख और किसे सहावेगा?॥262॥


{{लेख क्रम4| पिछला=महीं सकल अनरथ कर मूला |मुख्य शर्षक=रामचरितमानस |अगला= तेइ रघुनंदनु लखनु}}
{{लेख क्रम4| पिछला=अब सबु आँखिन्ह देखेउँ आई |मुख्य शर्षक=रामचरितमानस |अगला= सुनि अति बिकल भरत बर बानी}}





14:00, 2 जून 2017 के समय का अवतरण

तेइ रघुनंदनु लखनु
रामचरितमानस
रामचरितमानस
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड अयोध्या काण्ड
सभी (7) काण्ड क्रमश: बालकाण्ड‎, अयोध्या काण्ड‎, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड‎, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड‎, उत्तरकाण्ड
दोहा

तेइ रघुनंदनु लखनु सिय अनहित लागे जाहि।
तासु तनय तजि दुसह दु:ख दैउ सहावइ काहि॥262॥

भावार्थ

वे ही श्री रघुनंदन, लक्ष्मण और सीता जिसको शत्रु जान पड़े, उस कैकेयी के पुत्र मुझको छोड़कर दैव दुःसह दुःख और किसे सहावेगा?॥262॥


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तेइ रघुनंदनु लखनु
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दोहा - मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (अयोध्याकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-289

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