"महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक": अवतरणों में अंतर

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महाराणा प्रताप प्रजा के हृदय पर शासन करने वाले शासक थे। उनकी एक आज्ञा हुई और विजयी सेना ने देखा कि उसकी विजय व्यर्थ है। [[चित्तौड़]] भस्म हो गया, खेत उजड़ गये, कुएँ भर दिये गये और [[ग्राम]] के लोग जंगल एवं पर्वतों में अपने समस्त पशु एवं सामग्री के साथ अदृश्य हो गये। शत्रु के लिये इतना विकट उत्तर, यह उस समय महाराणा की अपनी सूझ थी। [[अकबर]] के उद्योग में राष्ट्रीयता का स्वप्न देखने वालों को [[बदायूँनी|इतिहासकार बदायूँनी आसफ ख़ाँ]] के ये शब्द स्मरण कर लेने चाहिये कि- "किसी की ओर से सैनिक क्यों न मरे, थे वे [[हिन्दू]] ही और प्रत्येक स्थिति में विजय [[इस्लाम]] की ही थी।" यह कूटनीति थी अकबर की और महाराणा इसके समक्ष अपना राष्ट्रगौरव लेकर अडिग भाव से उठे थे।
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==युद्धमय जीवन==
सम्पूर्ण जीवन युद्ध करके और भयानक कठिनाइयों का सामना करके [[राणा प्रताप]] ने जिस तरह से अपना जीवन व्यतीत किया था, उसकी प्रशंसा इस संसार से मिट न सकेगी। महाराणा प्रताप ने जो प्रतिज्ञा की थी, उसे अन्त तक निभाया। राजमहलों को छोड़कर प्रताप ने [[पिछोला झील|पिछोला तालाब]] के निकट अपने लिए कुछ झोपड़ियाँ बनवाई थीं ताकि [[वर्षा]] में आश्रय लिया जा सके। इन्हीं झोपड़ियों में प्रताप ने सपरिवार अपना जीवन व्यतीत किया था। प्रताप ने चित्तौड़ के उद्धार की प्रतिज्ञा की थी, परन्तु उसमें सफलता न मिली। फिर भी, उन्होंने अपनी थोड़ी सी सेना की सहायता से [[मुग़ल|मुग़लों]] की विशाल सेना को इतना अधिक परेशान किया था कि अन्त में [[अकबर]] को युद्ध बन्द कर देना पड़ा।


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महाराणा प्रताप विषय सूची
महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक
महाराणा प्रताप
महाराणा प्रताप
पूरा नाम ‌‌‌‌‌‌‌महाराणा प्रताप
जन्म 9 मई, 1540 ई.
जन्म भूमि कुम्भलगढ़, राजस्थान
मृत्यु तिथि 29 जनवरी, 1597 ई.
पिता/माता पिता- महाराणा उदयसिंह, माता- रानी जीवत कँवर
राज्य सीमा मेवाड़
शासन काल 1568-1597 ई.
शा. अवधि 29 वर्ष
धार्मिक मान्यता हिंदू धर्म
युद्ध हल्दीघाटी का युद्ध
राजधानी उदयपुर
पूर्वाधिकारी महाराणा उदयसिंह
उत्तराधिकारी राणा अमर सिंह
राजघराना राजपूताना
वंश सिसोदिया राजवंश
संबंधित लेख राजस्थान का इतिहास, राजपूत साम्राज्य, राजपूत काल, महाराणा उदयसिंह, सिसोदिया राजवंश, उदयपुर, मेवाड़, अकबर, मानसिंह

महाराणा प्रताप के नाम से भारतीय इतिहास गुंजायमान है। प्रताप ऐसे योद्धा थे, जिन्होंने मुग़लों से अपने अंत समय तक युद्ध जारी रखा। उनकी वीरता की कथा से भारत की भूमि गौरवान्वित है। महाराणा प्रताप मेवाड़ की प्रजा के राजा थे। वर्तमान में यह क्षेत्र राजस्थान में आता है। प्रताप राजपूतों में सिसोदिया वंश के वंशज थे। वे एक बहादुर राजपूत थे, जिन्होंने हर परिस्थिती में अपनी आखिरी सांस तक अपनी प्रजा की रक्षा की। उन्होंने सदैव अपने एवं अपने परिवार से ऊपर प्रजा को मान और सम्मान दिया। प्रताप युद्ध कौशल में तो निपूण थे ही, इसके साथ ही वे एक भावुक एवं धर्म परायण भी थे।

राज्याभिषेक

महाराणा प्रताप के काल में दिल्ली पर मुग़ल बादशाह अकबर का शासन था। हिन्दू राजाओं की शक्ति का उपयोग कर दूसरे हिन्दू राजाओं को अपने नियंत्रण में लाना, यह मुग़लों की नीति थी। अपनी मृत्यु से पहले राणा उदयसिंह ने अपनी सबसे छोटी पत्नी के बेटे जगमल को राजा घोषित किया था, जबकि प्रताप सिंह जगमल से बड़े थे। महाराणा प्रताप अपने छोटे भाई के लिए अपना अधिकार छोड़कर मेवाड़ से निकल जाने को तैयार थे, किंतु सभी सरदार राजा के निर्णय से सहमत नहीं हुए। अत: सबने मिलकर यह निर्णय लिया कि जगमल को सिंहासन का त्याग करना पड़ेगा। महाराणा प्रताप ने भी सभी सरदार तथा लोगों की इच्छा का आदर करते हुए मेवाड़ की जनता का नेतृत्व करने का दायित्व स्वीकार किया। इस प्रकार बप्पा रावल के कुल की अक्षुण्ण कीर्ति की उज्ज्वल पताका, राजपूतों की आन एवं शौर्य का पुण्य प्रतीक, राणा साँगा के पावन पौत्र महाराणा प्रताप (विक्रम संवत 1628 फाल्गुन शुक्ल 15) तारीख़ 1 मार्च सन 1573 ई. को सिंहासनासीन हुए। उनका राज्याभिषेक गोगुंदा में हुआ।

कुशल प्रशासक

महाराणा प्रताप प्रजा के हृदय पर शासन करने वाले शासक थे। उनकी एक आज्ञा हुई और विजयी सेना ने देखा कि उसकी विजय व्यर्थ है। चित्तौड़ भस्म हो गया, खेत उजड़ गये, कुएँ भर दिये गये और ग्राम के लोग जंगल एवं पर्वतों में अपने समस्त पशु एवं सामग्री के साथ अदृश्य हो गये। शत्रु के लिये इतना विकट उत्तर, यह उस समय महाराणा की अपनी सूझ थी। अकबर के उद्योग में राष्ट्रीयता का स्वप्न देखने वालों को इतिहासकार बदायूँनी आसफ ख़ाँ के ये शब्द स्मरण कर लेने चाहिये कि- "किसी की ओर से सैनिक क्यों न मरे, थे वे हिन्दू ही और प्रत्येक स्थिति में विजय इस्लाम की ही थी।" यह कूटनीति थी अकबर की और महाराणा इसके समक्ष अपना राष्ट्रगौरव लेकर अडिग भाव से उठे थे।



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