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गिरिधर शर्मा सन [[1908]] से [[1917]] ई. तक ऋषिकुल ब्रह्मचर्याश्रम, [[हरिद्वार]] के आचार्य थे। फिर उन्होंने सन [[1918]] से [[1924]] ई. तक गिरिधर सनातन धर्म संस्कृत कालेज, [[लाहौर|लाहौर]] के आचार्य का पद ग्रहण किया। सन [[1925]] से [[1944]] ई. तक [[जयपुर|जयपुर]], के महाराजा संस्कृत कालेज में [[दर्शन शास्त्र|दर्शन]] के प्राध्यापक पद पर थे। गिरिधर सन [[1940]] से [[1954]] ई. तक [[काशी हिन्दू विश्वविद्यालय]] में संस्कृत अध्ययन एवं अनुशीलन मण्डल के [[अध्यक्ष]] के पद पर कार्यरत रहे। [[1960]] ई. से वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय के सम्मानित प्राध्यापक का पद ग्रहण किया। उसके वाद सन [[1951]]-[[1952|52]] ई. में [[भारत सरकार]] की संविधान संस्कृतानुवाद समिति के सदस्य रहे। सन [[1930]] और [[1940]] ई. में हिन्दी साहित्य सम्मेलन के दर्शन-परिषद के सभापति के पद पर कार्यरत रहे।  
=== रचनाएँ ===
=== रचनाएँ ===
गिरिधर शर्मा [[वेद]], दर्शन तथा [[संस्कृत साहित्य]] के प्रकाण्ड पण्डित, महान व्याख्याता, समर्थ लेखक तथा अनेक पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादक थे। इन्होंने बहुत से महत्त्वपूर्ण [[ग्रंथ|ग्रंथों]] का सम्पादन किया है। गिरिधर जी की [[संस्कृत]] तथा [[हिन्दी]] की कृतियाँ इस प्रकार हैं-  
गिरिधर शर्मा [[वेद]], [[दर्शन शास्त्र|दर्शन]] तथा [[संस्कृत साहित्य]] के प्रकाण्ड पण्डित, महान् व्याख्याता, समर्थ लेखक तथा अनेक पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादक थे। इन्होंने बहुत से महत्त्वपूर्ण [[ग्रंथ|ग्रंथों]] का सम्पादन किया है। गिरिधर जी की [[संस्कृत]] तथा [[हिन्दी]] की कृतियाँ इस प्रकार हैं-  
*महाकाव्य संग्रह
*महाकाव्य संग्रह
*महर्षि कुलवैभव
*महर्षि कुलवैभव
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*पुराण पारिजात
*पुराण पारिजात
*गीता व्याख्यान
*गीता व्याख्यान
*पुराण पारिजात इनकी नवीनतम कृतियाँ हैं।  
*पुराण पारिजात इनकी नवीनतम कृतियाँ हैं।
===पुरस्कृत===
 
गिरिधर जी की 'वैदिक विज्ञान' और 'भारतीय संस्कृति' पुस्तक [[उत्तर प्रदेश]] और [[राजस्थान]] सरकारों द्वारा पुरस्कृत हुई है। सन [[1962]] ई. में इनकी यह पुस्तक [[साहित्य अकादमी]] द्वारा भी पुरस्कृत हुई। इस पुस्तक का [[अंग्रेज़ी]] अनुवाद भी हो रहा है। वर्तमान युग की बहुमुखी जिज्ञासुओं तथा प्रवृत्तियों के सन्दर्भ में यह ग्रंथ बहुत ही महत्त्व का है। महामहोपाध्याय पण्डित गिरिघर शर्मा चतुर्वेदी जी के उपर्युक्त 13 ग्रंथों के अतिरिक्त 70 छोटे-बड़े उल्लेखनीय [[निबन्ध]] प्रकाशित हैं। इनमें 18 [[संस्कृत]] के थे और शेष [[हिन्दी]] के थे। इनमें भारतीय वैदिक तथा [[शास्त्रीय]] परम्पराओं के महत्त्व पर विचार के साथ ही उनका वैज्ञानिक एवं दार्शनिक विवेचन एवं विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।
;पुरस्कृत लेख
गिरिधर जी की 'वैदिक विज्ञान' और 'भारतीय संस्कृति' पुस्तक [[उत्तर प्रदेश]] और [[राजस्थान]] सरकारों द्वारा पुरस्कृत हुई है। सन [[1962]] ई. में इनकी यह पुस्तक [[साहित्य अकादमी]] द्वारा भी पुरस्कृत हुई। इस पुस्तक का [[अंग्रेज़ी]] अनुवाद भी हो रहा है। वर्तमान युग की बहुमुखी जिज्ञासुओं तथा प्रवृत्तियों के सन्दर्भ में यह ग्रंथ बहुत ही महत्त्व का है। महामहोपाध्याय पण्डित गिरिघर शर्मा चतुर्वेदी जी के उपर्युक्त 13 ग्रंथों के अतिरिक्त 70 छोटे-बड़े उल्लेखनीय [[निबन्ध]] प्रकाशित हैं। इनमें 18 [[संस्कृत]] के थे और शेष [[हिन्दी]] के थे। इनमें भारतीय वैदिक तथा [[शास्त्रीय]] परम्पराओं के महत्त्व पर विचार के साथ ही उनका वैज्ञानिक एवं दार्शनिक विवेचन एवं विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी साहित्य कोश भाग-2|लेखक=डॉ. धीरेन्द्र वर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन=भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन=|पृष्ठ संख्या=131|url=}}</ref>


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गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी
पूरा नाम गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी
जन्म 29 दिसम्बर, 1881 ई.
जन्म भूमि जयपुर, राजस्थान
मुख्य रचनाएँ 'महाकाव्य संग्रह', 'महर्षि कुलवैभव', 'ब्रह्म सिद्धांत', 'प्रमेयपारिजात','स्मृति विरोध परिहार'
भाषा हिन्दी, संस्कृत
पुरस्कार-उपाधि गिरिधर जी की 'वैदिक विज्ञान' और 'भारतीय संस्कृति' पुस्तक उत्तर प्रदेश और राजस्थान सरकारों द्वारा पुरस्कृत हुई है।
प्रसिद्धि लेखक, साहित्यकार
विशेष योगदान इनमें भारतीय वैदिक तथा शास्त्रीय परम्पराओं के महत्त्व पर विचार के साथ ही उनका वैज्ञानिक एवं दार्शनिक विवेचन एवं विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख पंजाब विश्वविद्यालय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, संस्कृत, हिन्दी
अन्य जानकारी 'गीता व्याख्यान' तथा 'पुराण पारिजात' गिरिधर शर्मा जी की नवीनतम कृतियाँ हैं।

गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी (जन्म- 29 दिसम्बर, 1881 ई., जयपुर, राजस्थान) पंजाब विश्वविद्यालय में शिक्षा-शास्त्री, जयपुर विश्वविद्यालय में व्याकरणाचार्य तथा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के वाचस्पति थे। गिरिधर जी सन 1951-52 ई. में भारत सरकार की संविधान संस्कृतानुवाद समिति के सदस्य रहे तथा सन 1930 और 1940 ई. में हिन्दी साहित्य सम्मेलन के दर्शन-परिषद के सभापति रहे थे।

परिचय

गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी का जन्म 29 दिसम्बर, सन 1881 ई. को जयपुर, राजस्थान में हुआ था। गिरिधर शर्मा पंजाब विश्वविद्यालय में शिक्षा-शास्त्री, जयपुर विश्वविद्यालय में व्याकरणाचार्य तथा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के वाचस्पति थे। शर्मा जी को हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा साहित्यवाचस्पति, भारत सरकार द्बारा महामहोपाध्याय की उपाधि से विभूषित तथा राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया था।

शिक्षण कार्य

गिरिधर शर्मा सन 1908 से 1917 ई. तक ऋषिकुल ब्रह्मचर्याश्रम, हरिद्वार के आचार्य थे। फिर उन्होंने सन 1918 से 1924 ई. तक गिरिधर सनातन धर्म संस्कृत कालेज, लाहौर के आचार्य का पद ग्रहण किया। सन 1925 से 1944 ई. तक जयपुर, के महाराजा संस्कृत कालेज में दर्शन के प्राध्यापक पद पर थे। गिरिधर सन 1940 से 1954 ई. तक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में संस्कृत अध्ययन एवं अनुशीलन मण्डल के अध्यक्ष के पद पर कार्यरत रहे। 1960 ई. से वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय के सम्मानित प्राध्यापक का पद ग्रहण किया। उसके वाद सन 1951-52 ई. में भारत सरकार की संविधान संस्कृतानुवाद समिति के सदस्य रहे। सन 1930 और 1940 ई. में हिन्दी साहित्य सम्मेलन के दर्शन-परिषद के सभापति के पद पर कार्यरत रहे।

रचनाएँ

गिरिधर शर्मा वेद, दर्शन तथा संस्कृत साहित्य के प्रकाण्ड पण्डित, महान् व्याख्याता, समर्थ लेखक तथा अनेक पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादक थे। इन्होंने बहुत से महत्त्वपूर्ण ग्रंथों का सम्पादन किया है। गिरिधर जी की संस्कृत तथा हिन्दी की कृतियाँ इस प्रकार हैं-

  • महाकाव्य संग्रह
  • महर्षि कुलवैभव
  • ब्रह्म सिद्धांत
  • प्रमेयपारिजात
  • चातुर्वर्ण्य
  • पाणिनीय परिचय
  • स्मृति विरोध परिहार
  • गीता व्याख्यान
  • वेद विज्ञान विन्दु [1]
  • वैदिक विज्ञान
  • भारतीय संस्कृति
  • पुराण पारिजात
  • गीता व्याख्यान
  • पुराण पारिजात इनकी नवीनतम कृतियाँ हैं।
पुरस्कृत लेख

गिरिधर जी की 'वैदिक विज्ञान' और 'भारतीय संस्कृति' पुस्तक उत्तर प्रदेश और राजस्थान सरकारों द्वारा पुरस्कृत हुई है। सन 1962 ई. में इनकी यह पुस्तक साहित्य अकादमी द्वारा भी पुरस्कृत हुई। इस पुस्तक का अंग्रेज़ी अनुवाद भी हो रहा है। वर्तमान युग की बहुमुखी जिज्ञासुओं तथा प्रवृत्तियों के सन्दर्भ में यह ग्रंथ बहुत ही महत्त्व का है। महामहोपाध्याय पण्डित गिरिघर शर्मा चतुर्वेदी जी के उपर्युक्त 13 ग्रंथों के अतिरिक्त 70 छोटे-बड़े उल्लेखनीय निबन्ध प्रकाशित हैं। इनमें 18 संस्कृत के थे और शेष हिन्दी के थे। इनमें भारतीय वैदिक तथा शास्त्रीय परम्पराओं के महत्त्व पर विचार के साथ ही उनका वैज्ञानिक एवं दार्शनिक विवेचन एवं विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।[2]


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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संस्कृत
  2. हिन्दी साहित्य कोश भाग-2 |लेखक: डॉ. धीरेन्द्र वर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 131 |

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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