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{{सूचना बक्सा स्वतन्त्रता सेनानी
|चित्र=Bhupendranath-Datta.png
|चित्र का नाम=भूपेंद्रनाथ दत्त
|पूरा नाम=भूपेंद्रनाथ दत्त
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|जन्म= [[4 सितंबर]], [[1880]]
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|अन्य जानकारी=उनकी लिखी हुई कुछ प्रसिद्ध पुस्तकें हैं- 'डाइलेक्टिक्स ऑफ हिंदू रिचुलिक्म', 'डाइलेक्टिक्स ऑफ लैंड-इकानामिक्स ऑफ इंडिया', 'स्वामी विवेकानंद- 'पैट्रियट-प्रोफेट', 'सेकंड फ्रीडम स्ट्रगल ऑफ इंडिया', 'आरिजिन एण्ड  डिवलपमेंट ऑफ इंडियन सोशल पोलिटी' आदि।
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'''भूपेंद्रनाथ दत्त''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Bhupendranath Datta'', जन्म- [[4 सितंबर]], [[1880]], [[कोलकाता]]; मृत्यु- [[26 दिसंबर]], [[1961]]) [[भारत]] के [[स्वतंत्रता संग्राम]] के प्रसिद्ध क्रांतिकारी, लेखक तथा समाजशास्त्री थे। ये [[स्वामी विवेकानंद]] के भाई थे। भूपेंद्रनाथ दत्त युवाकाल में 'युगांतर आन्दोलन' से नजदीकी से जुड़े थे। अपनी गिरफ्तारी (सन [[1907]]) तक वे 'युगांतर पत्रिका' के सम्पादक थे। भूपेंद्रनाथ दो बार 'अखिल भारतीय श्रमिक संघ' के [[अध्यक्ष]] भी रहे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन=भारतकोश पुस्तकालय |संपादन=|पृष्ठ संख्या=579|url=}}</ref>
==जन्म एवं परिचय==
भूपेंद्रनाथ दत्त का जन्म 4 सितंबर, 1880 ई. को कोलकाता में हुआ था। इनके [[परिवार]] का [[बंगाल]] के प्रबुद्ध व्यक्तियों से निकट का संबंध था। भूपेंद्रनाथ की आरंभिक शिक्षा [[ईश्वर चंद्र विद्यासागर]] द्वारा स्थापित विद्यालय में हुई थी। उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों के साथ अपना अध्ययन भी जारी रखा और [[अमेरिका]] से एम.ए. और [[जर्मनी]] से पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त की।
==क्रांतिकारी गतिविधियां==
भूपेंद्रनाथ दत्त शीघ्र ही क्रांतिकारियों के संपर्क में आ गए और बंगाल क्रांतिकारी दल के मुख्य पत्र 'युगांतर' के संपादक बने। [[1902]] में उन्हें राजद्रोह के अपराध में गिरफ्तार करके एक [[वर्ष]] कैद की सजा दे दी गई। जेल से छूटने पर जब भूपेंद्रनाथ दत्त को 'अलीपुर बम कांड' में फंसाने की तैयारी हो रही थी, वे देश से बाहर अमेरिका चले गए।  प्रथम विश्वयुद्ध के समय भूपेंद्रनाथ जर्मनी में थे। उन्होंने  अमेरिका में स्थापित '[[गदर पार्टी]]' से भी संबंध रखा। [[1925]] में वे [[भारत]] आए। भूपेंद्रनाथ दत्त को यह देखकर दु:ख हुआ कि स्वयं को मार्क्सवादी कहने वाले लोग भारत के [[स्वतंत्रता संग्राम]] का विरोध कर रहे  हैं।
==समाज सुधारक ==
भूपेंद्रनाथ दत्त [[कांग्रेस]] में सम्मिलित हो गए। [[1930]] की कराची कांग्रेस में किसानों, मजदूरों के हिर संबंधी प्रस्ताव को स्वीकार कराने में उनका बड़ा हाथ था। उसके बाद उन्होंने अपना ध्यान श्रमिकों को संगठित करने पर लगाया। भूपेंद्रनाथ दो बार अखिल भारतीय श्रमिक संघ के [[अध्यक्ष]] भी रहे। समाज सुधार के कामों में भी भूपेंद्रनाथ दत्त बराबर भाग लेते रहे। वे जाति-पांत, छुआछूत और महिलाओं के प्रति भेदभाव के विरोधी थे।
==लेखन कार्य==
भूपेंद्रनाथ नाथ अच्छे लेखक थे। उनकी लिखी हुई कुछ प्रसिद्ध पुस्तकें निम्नलिखित हैं-
*'डाइलेक्टिक्स ऑफ हिंदू रिचुलिक्म',
*'डाइलेक्टिक्स ऑफ लैंड-इकानामिक्स ऑफ इंडिया',
*'स्वामी विवेकानंद- 'पैट्रियट-प्रोफेट',
*'सेकंड फ्रीडम स्ट्रगल ऑफ इंडिया',
*'आरिजिन एण्ड  डिवलपमेंट ऑफ इंडियन सोशल पोलिटी' आदि।
==निधन==
[[26 दिसंबर]], [[1961]] को भूपेंद्रनाथ दत्त का [[कोलकाता]] में देहांत हो गया।
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक1 |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
[[Category:स्वतन्त्रता सेनानी]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:समाज सुधारक]][[Category:साहित्यकार]][[Category:जीवनी_साहित्य]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:साहित्य कोश]]
__INDEX__
__NOTOC__
'''भूपेंद्र नाथ बोस''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Bhupendra Nath Bose'', जन्म- [[1859]], [[बंगाल]]; मृत्यु- [[1924]], [[कोलकाता]]) [[1914]] में भारतीय नेता और [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के [[अध्यक्ष]] थे। वे कोलकाता कॉरपोरेशन में म्युनिसिपल कमिश्नत थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन=भारतकोश पुस्तकालय |संपादन=|पृष्ठ संख्या=580|url=}}</ref>
==जन्म एवं परिचय==
भूपेंद्रनाथ बोस का जन्म 1859 ई. में कृष्णा नगर बंगाल में हुआ था। उन्होंने एम.ए. और कानून की शिक्षा कोलकाता से पूरी की। आरंभ में भूपेंद्रनाथ ने सार्वजनिक कार्यों में रुचि ली। भूपेंद्रनाथ उदार विचारों के व्यक्ति थे। शिक्षा, नारे उत्थान, अस्पृश्यता निवारण आदि कार्यों में उन्होंने सहयोग दिया। वे यशासंभव सरकार का समर्थन करने के पक्षपाती थे। साथ ही यह भी कहते थे "कि अनिवार्य होने पर हमें विरोध के लिए भी तत्पर रहना चाहिए।" 1904 से 1910 तक बंगाल लेजिस्लेचर के सदस्य रहे। बंग-भंग के विरोध में जो आंदोलन चला उसके वे समर्थक थे। बंगाल प्रदेश राजनीतिक सम्मेलन की भी उन्होंने अध्यक्षता की।
==राजनैतिक जीवन==
वह नरम विचार के नेताओं का समय था। भूपेंद्रनाथ बोस की गणना उनमें प्रमुख रूप से की जाती थी। उनका महत्त्व इसी से प्रकट है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने [[1914]] में अपना मद्रास अधिवेशन का उन्हें अध्यक्ष बनाया था। परंतु ज्यों-ज्यों [[कांग्रेस]] संघर्ष की दिशा में आगे बढ़ने लगी, भूपेंद्रनाथ बोस उससे हटकर [[ब्रिटिश सरकार]] के निकट चले गए।
==अन्य सरकारी पद==
इसके बाद उनका पूरा जीवन विभिन्न सरकारी पदों पर ही बीता। [[1917]] में भारत मंत्री की कौंसिल के सदस्य नामजद होकर वे इंगलैंड गए। [[1923]] में उन्हें बंगाल के गर्वनर की कौंसिल का सदस्य बनाया गया।
==निधन==
1924 में वे कोलकाता विध्वविद्यालय के कुलपति थे, तभी उनका देहांत हो गया।

08:34, 12 मई 2017 के समय का अवतरण