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'''नारी शक्ति पुरस्कार''' ([[अंग्रेज़ी]]:Women Power Award) प्राचीन काल से ही [[भारतीय इतिहास]] में महिलाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही हैं। हमें पता है कि [[वैदिक]] या [[उपनिषद्]] युग में [[मैत्रेयी]], [[गार्गी]] और अन्य महिलाओं ने ब्रह्म के ऊपर विचार करने की योग्यता के आधार पर [[ऋषि|ऋषियों]] का स्थान प्राप्त किया था। हजारों [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] की उपस्थिति में विदुषी गार्गी ने ब्रह्म के ऊपर शास्त्रार्थ करने की चुनौती [[याज्ञवल्क्य]] को दी थी।<ref> {{cite web |url=http://pib.nic.in/newsite/hindifeature.aspx|title=नारी शक्ति पुरस्कार 2016|accessmonthday= 17 मार्च|accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=hindifuture.aspx|language= हिंदी}}</ref>
जन्म: 1935 (मायमेंसिंग, वर्तमान बांग्लादेश)


===इतिहास===
वर्तमान निवास स्थान: चितरंजन पार्क, नई दिल्ली (भारत)
स्वतंत्रता पूर्व समय में महिलाओं ने शिक्षा और सामाजिक उन्नति के उद्देश्य के लिए नेतृत्व किया था। वर्ष [[1950]] में [[भारत]] दुनिया के ऐसे कुछ देशों में गिना जाता था जिन्होंने अपने नागरिकों को सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार प्रदान किया था। महिलाओं ने युवा भारत के विकास का मार्ग प्रशस्त किया। और, आज हम देख रहे हैं कि महिलाएं सरकार, व्यापार, खेल, सशस्त्र बलों और यहां तक कि वास्तविक रॉकेट विज्ञान में भी अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। महिलाओं ने समस्त मानक तोड़ दिये हैं और प्रतिदिन नए-नए मानक स्थापित कर रही हैं।
 
===गठन===
कार्यक्षेत्र: सितार वादक और संगीत शिक्षक
नारी शक्ति पुरस्कार [[1999]] में गठित किया गया था ताकि उन महिलाओं का सम्मान किया जा सके जिन्होंने उम्मीदों से बढ़कर काम किया, बंधे-बंधाये ढर्रे को चुनौती दी और महिला सशक्तिकरण में अविस्मरणीय योगदान किया। भारत सरकार ये पुरस्कार उन व्यक्तियों और संस्थानों को प्रदान करती है जिन्होंने महिलाओं के लिए अभूतपूर्व सेवा की हो। महिला विकास और उन्नयन के क्षेत्र में शानदार योगदान करने के लिए यह पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। इस वर्ष नारी शक्ति पुरस्कार विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाली महिलाओं और संस्थानों को दिया जा रहा है। उल्लेखनीय है इस संबंध में बहुत सारे आवेदन प्राप्त हुए थे, जिसके मद्देनजर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने उन उम्मीदवारों का चयन किया है जो सामाजिक उद्यमिता, [[कला]], बागवानी, [[योग]], पर्यावरण संरक्षण, [[पत्रकारिता]], [[नृत्य]], सामाजिक कार्य, [[विज्ञान]] और प्रौद्योगिकी जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभाई है। महिलाओं ने इन सभी क्षेत्रों में राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ी है तथा पूरी दुनिया के सामने यह साबित कर दिया है कि सफलता के लिए लैंगिक सीमा का कोई अस्तित्व नहीं होता। समस्त पुरस्कृत लोग सामाजिक उद्यमिता निर्माण, जैविक खपत को प्रोत्साहन देने और सतत [[पर्यावरण]] के निर्माण जैसे नए और उभरते हुए क्षेत्रों में योगदान कर रहे हैं। यह देखना बहुत उत्साहवर्धक है कि इन सभी क्षेत्रों में महिलाएं नेतृत्व कर रही हैं, जिससे भावी विकास कि रूपरेखा तय होगी।
 
===भारतीय महिलाओं का स्वरूप===  
पंडित देवब्रत चौधरी को भारतीय संगीत के क्षेत्र में ‘देबू’ के नाम से भी जाना जाता है. पंडित देवब्रत (देबू) चौधरी भारत के प्रमुख सितार वादक, भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में एक ख्याति प्राप्त [[संगीतकार]] और [[दिल्ली विश्वविद्यालय]] में संगीत के शिक्षक रह चुके हैं. इन्होंने ‘सेनिआ संगीत घराना’ के श्री पंचू गोपाल दत्ता और संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली खान से संगीत की शिक्षा ग्रहण की। इन्हें ‘[[पद्मभूषण]]’ और ‘[[पद्मश्री]]’ जैसे प्रतिष्ठित सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी अलंकृत किया जा चुका है।
इन पुरस्‍कार विजेताओं ने [[अंतरिक्ष]] अनुसंधान, रेलवे, मोटरसाइक्लिंग और पवर्तारोहण जैसे क्षेत्रों में अपनी मौजूदगी दर्ज कराकर महिलाओं से जुड़ी रूढ़ीवादी सोच को चुनौती दी है। इन्‍होंने न केवल चुनौती दी है बल्कि उन क्षेत्रों में उत्‍कृष्‍टता प्राप्ति की है जहाँ इतिहास में कभी महिलाओं की भागीदारी नहीं देखी गई। इसरो के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों, पहली डीजल ट्रेन चालक सुश्री मुमताज काजी, मोटरसाइक्लिस्‍ट सुश्री पल्‍लवी फौजदार और पर्वतारोही सुश्री सुनीता चोकेन ऐसे युवा भारतीयों के लिये एक उदाहरण हैं जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। ये विजेता बदलते वैश्विक भारत की एक अलग तस्‍वीर पेश करते हैं। सुश्री टीयाशा अद्या और सुश्री बानो हरालु ने मत्स्य विडाल के शिकार पर रोक लगाने के लिए संघर्ष किया। सुश्री वी.नानाम्ल ने योग की शिक्षा देने के लिए बेहतरीन योगदान दिया। आज उनके विद्यार्थी देशभर में योग की शिक्षा देने के कार्य में जुटे हुए हैं।
 
===सरकार द्वारा प्रोत्साहन===
ये संगीत से संबंधित कई पुस्तकों के लेखक, आठ नए संगीत रागों के जन्मदाता और बहुत से नए संगीत के धुनों के निर्माता भी हैं। इन्होंने वर्ष 1963 से देश-विदेश में बहुत से स्टेज शो, रेडियो और टीवी कार्यक्रमों में अपने संगीत की प्रस्तुति दी है। ये ‘सेनिया संगीत घराना’ मैहर (मध्य प्रदेश) के [[शास्त्रीय संगीत]] के ध्वज वाहक हैं। ये संगीत का शिक्षण कार्य करते हुए [[दिल्ली विश्वविद्यालय]] के संगीत संकाय के डीन और विभागाध्यक्ष भी रह चुके हैं। इनकी संगीत के मधुर धुनों की एक अपनी अलग ही विशेषता है। इन्होंने बहुत से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त किए हैं। ये इस्कॉन मंदिर के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के आजीवन सदस्य भी हैं।
सरकार ने उन महिलाओं और संस्‍थानों को सम्‍मानित किया है जो कमजोर और पीड़ित महिलाओं के लिए कार्य कर रहे है और जिन्‍हें हिंसा का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा देश के सुदूरवर्ती इलाकों में लिंग अनुपात में सुधार के लिए महिलाओं को आर्थिक स्‍वतंत्रता के प्रति प्रोत्‍साहित करने, महिला किसानों के लिए विकास कार्य करने तथा वास्‍तविक विकास के लिए प्रयास किये जा रहे हैं। छांव फाउण्‍डेशन और शिक्षित रोजगार केन्‍द्र प्रबंधक समिति, साधना महिला संघ जैसे संस्‍थानों तथा डॉ. कल्‍पना शंकर ने अपनी संस्‍था ‘हैंड इन हैंड’ के जरिये समाज में महिलाओं की उन्‍नति के लिए जमीनी स्‍तर पर कार्य किया है।
==प्रारम्भिक एवं पारिवारिक जीवन==
इन पुरस्‍कार विजेताओं ने यह साबित किया है कि नये विचार अक्‍सर स्थितिजन्‍य बाधाओं को पार कर सकते हैं। वित्तीय अवसरों की कमी का सामना कर रही महिलाओं ने धन जुटाने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग किया है। प्राकृतिक आपदाओं के बाद उन्‍हें स्‍थानीय लोगों के पुनर्वास के लिए अनूठे तरीके मिल गये हैं। आर्थिक अवसरों की कमी के साथ महिलाओं ने डिजिटल अर्थव्‍यवस्‍था में प्रवेश किया है। पुरस्‍कार विजेताओं में से एक ‘शरन’ की स्‍थापक डॉ. नन्‍दि‍ता शाह का उद्देश्‍य मधुमेह मुक्‍त भारत बनाना है। एक टैक्‍सटाइल डिजाइनर सुश्री कल्‍याणी प्रमोद बालाकृष्‍णन ने पारंपरिक शिल्‍प को बढ़ावा देकर गरीब बुनकरों की मदद की है।
पंडित देवब्रत (चौधरी) का जन्म वर्ष [[1935]] में मायमेंसिंग (तत्कालीन भारत) वर्तमान [[बांग्लादेश]] में हुआ था। इन्होंने मात्र चार वर्ष की उम्र से ही सितार के साथ खेलना प्रारम्भ कर दिया था। उन्होंने अपने पहले सार्वजनिक संगीत कार्यक्रम का प्रदर्शन मात्र 12 वर्ष की अवस्था में ही कर दिया था। इनके [[संगीत]] के कार्यक्रम का आल इंडिया रेडिओ पर प्रथम प्रसारण 18 वर्ष की अवस्था में वर्ष [[1953]] में हुआ था।
===सराकारी व गैर सरकारी संगठनों द्वारा सुधार===
जीवन के 38 वर्ष बिताने के बाद इन्होंने सितार का प्रशिक्षण ‘सेनिआ घराने’ के महान संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली खान से लेना प्रारम्भ किया। इन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा प्राप्त की। [[दिल्ली विश्वविद्यालय]] से अवकाश प्राप्त करने के बाद ये वर्तमान में अपने पुत्र, पुत्री, दामाद और भतीजा-भतिजिओं के साथ चितरंजन पार्क, नई दिल्ली में रहते हैं।
सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों ने अपने-अपने क्षेत्रों में जीवन में सुधार लाने के लिए दशकों तक काम किया है। लोगों ने अपने घरों के आराम को छोड़कर लोगों के कल्याण के लिए संघर्ष किया है और उनका साथ दिया है। परिवर्तन धीरे-धीरे आता है लेकिन इन महिलाओं और संस्थानों ने यह साबित कर दिया है कि संगठित प्रयत्नों से सकारात्मक बदलाव आता है। इन लाभार्थियों ने यह साबित किया है कि कोई भी व्यक्ति अगर ठान ले तो कुछ भी संभव है।  
==शिक्षण एवं प्रशिक्षण कार्य==
इस वर्ष के नारी शक्ति पुरस्कार ने हमारे देश के एक अलग स्तर को प्रमाणित किया है ये पुरस्कार पाने वाली जीवट महिलाएं अपने समर्पण, विश्वास और प्रेरणा के लिए मिशाल हैं। इन महिलाओं ने यह साबित किया है कि यदि कोई व्यक्ति सही दिशा में कार्य करे तो लाखों लोगों के जीवन में सुधार लाया जा सकता है। आइए हम लोगों को प्रेरित करें कि वे श्रेष्ठ भारत के लिए जनकल्याण के कार्य जारी रखें।
इन्होंने वर्ष [[1971]] से वर्ष [[1982]] तक दिल्ली विश्वविद्यालय में संगीत विभाग के रीडर के रूप में अध्यापन का कार्य किया और वर्ष [[1985]] से वर्ष [[1988]] तक ये इसी विभाग में डीन और विभागाध्यक्ष भी रहे। इन्होंने महर्षि इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी (अब महर्षि यूनिवर्सिटी ऑफ मनेजमेंट), अमेरिका में भी वर्ष [[1991]] से वर्ष [[1994]] तक भारतीय शास्त्रीय संगीत को पाश्चात्य देशों में प्रचार-प्रसार में अपनी विशेष सेवाएं दी हैं।
 
[[दिल्ली विश्वविद्यालय|दिल्ली विश्वविद्याल]] से अवकाश ग्रहण के बाद इन्होंने एक विशेष संगीत प्रोजेक्ट पर कार्य करना प्रारम्भ किया, जो दुर्लभ संगीत वाद्य यंत्रों के द्वारा प्रस्तुत धुनों को परम्परागत ‘ध्रुपद’ और ‘ख्याल’ राग द्वारा नए राग में प्रस्तुत करने का है। यह प्रोजेक्ट आने वाली युवा पीढ़ी को संगीत के क्षेत्र में बहुत ही दुर्लभ अनुभव प्रदान करेगा।
==संगीत पर आधारित नई धुनों, पुस्तकों और सीडी का निर्माण==
इन्होंने आठ नए संगीत के रागों की रचना की है, ये राग हैं- बिस्वेस्वरी, पलास-सारंग, अनुरंजनी, आशिकी ललित, स्वनान्देस्वरी, कल्याणी बिलावल, शिवमंजरी और प्रभाती मंजरी (अपनी पत्नी मंजू की स्मृति में बनाया). इसके अतिरिक्त इन्होंने संगीत पर आधारित तीन पुस्तकों की भी रचना की है, ये हैं- ‘सितार एंड इट्स टेक्निक्स’, ‘म्यूजिक ऑफ इंडिया’ और ‘ऑन इंडियन म्यूजिक’. अपने [[अमेरिका]] प्रवास के दौरान इन्होंने ‘महर्षि गन्धर्व वेद’ नाम से  24 सीडी को 24 घंटों के संगीत के लिए रिकॉर्ड कराया।
 
इन्होंने बहुत से एल्बम और कैसेट्स का भी निर्माण EMI, HMV, ABK (USA), टीवी सीरीज, रिदम हाउस, आर्काइव म्यूजिक यूएसए, ‘टी’ सीरीज और संसार की अन्य कम्पनियों के साथ मिलकर किया है।
==संगीत के प्रति इनका लगाव==
पंडित देबू चौधरी को दुर्लभ संगीत और वाद्य यंत्रों पर आधारित रचनाओं का संग्रह करने में  विशेष लगाव है, जिसके परिणामस्वरुप इन्होने इस अनूठी परियोजना को प्रारंभ किया। पंडित जी का यह ड्रीम प्रोजेक्ट जब पूर्ण हो जाएगा तो यह भारतीय वाद्य संगीत के इतिहास में एक मील के पत्थर से कम नहीं होगा। इनकी अन्य उपलब्धियों में वर्ष [[1984]] में स्वीडन में 67 दिनों में 87 व्याख्यान हैं, जो 70 से अधिक कार्यक्रमों में दिए गए थे। विश्व स्तर पर आयोजित इन कार्यक्रमों में [[भारत सरकार]] ने इनको अपना पूर्ण सहयोग दिया था।
 
ये महान सितार वादकों के उस युग से सम्बन्ध रखते हैं, जिनमें प्रमुख हैं- उस्ताद विलायत खान, पंडित रवि शंकर और निखिल बनर्जी आदि. ये 17 फ्रेट के विशेषज्ञ हैं, जबकि अधिकांशतः सितार वादक 19 फ्रेट का सितार बजाते हैं।
==पुरस्कार एवं सम्मान==
इन्हें [[भारत सरकार]] की तरफ से ‘[[पद्मभूषण]]’ और ‘[[पद्मश्री]]’ जैसे प्रतिष्ठित सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी अलंकृत किया जा चुका है।
भारतीय [[संगीत नाटक अकादमी]] द्वारा इन्हें संगीत के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए पुरस्कृत किया जा चुका है। इन्हें कुछ समय पूर्व एशिया के एकमात्र संगीत विश्वविद्यालय ‘इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय’ खैरागढ़ ([[छत्तीसगढ़]]) द्वारा डी. लिट. की उपाधि से नवाजा जा चुका है।
[[भारत सरकार]] के सार्वजनिक प्रसारण माध्यम ‘ऑल इंडिया रेडियो’ के 54वीं वर्षगांठ के अवसर पर वर्ष 2002 में देबू चौधरी के जीवन के इतिहास को प्रसारित किया गया।
हाल ही के वर्षों में इन्हें संगीत के क्षेत्र में आजीवन उपलब्धियों के लिए [[दिल्ली]], मुंबई और [[कोलकाता]] के विभिन्न सांस्कृतिक केन्द्रों द्वारा विशेष सम्मान समारोहों में कई ख्यातियों एवं उपाधियों से विभूषित किया गया है।

12:21, 22 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण

जन्म: 1935 (मायमेंसिंग, वर्तमान बांग्लादेश)

वर्तमान निवास स्थान: चितरंजन पार्क, नई दिल्ली (भारत)

कार्यक्षेत्र: सितार वादक और संगीत शिक्षक

पंडित देवब्रत चौधरी को भारतीय संगीत के क्षेत्र में ‘देबू’ के नाम से भी जाना जाता है. पंडित देवब्रत (देबू) चौधरी भारत के प्रमुख सितार वादक, भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में एक ख्याति प्राप्त संगीतकार और दिल्ली विश्वविद्यालय में संगीत के शिक्षक रह चुके हैं. इन्होंने ‘सेनिआ संगीत घराना’ के श्री पंचू गोपाल दत्ता और संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली खान से संगीत की शिक्षा ग्रहण की। इन्हें ‘पद्मभूषण’ और ‘पद्मश्री’ जैसे प्रतिष्ठित सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी अलंकृत किया जा चुका है।

ये संगीत से संबंधित कई पुस्तकों के लेखक, आठ नए संगीत रागों के जन्मदाता और बहुत से नए संगीत के धुनों के निर्माता भी हैं। इन्होंने वर्ष 1963 से देश-विदेश में बहुत से स्टेज शो, रेडियो और टीवी कार्यक्रमों में अपने संगीत की प्रस्तुति दी है। ये ‘सेनिया संगीत घराना’ मैहर (मध्य प्रदेश) के शास्त्रीय संगीत के ध्वज वाहक हैं। ये संगीत का शिक्षण कार्य करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के संगीत संकाय के डीन और विभागाध्यक्ष भी रह चुके हैं। इनकी संगीत के मधुर धुनों की एक अपनी अलग ही विशेषता है। इन्होंने बहुत से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त किए हैं। ये इस्कॉन मंदिर के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के आजीवन सदस्य भी हैं।

प्रारम्भिक एवं पारिवारिक जीवन

पंडित देवब्रत (चौधरी) का जन्म वर्ष 1935 में मायमेंसिंग (तत्कालीन भारत) वर्तमान बांग्लादेश में हुआ था। इन्होंने मात्र चार वर्ष की उम्र से ही सितार के साथ खेलना प्रारम्भ कर दिया था। उन्होंने अपने पहले सार्वजनिक संगीत कार्यक्रम का प्रदर्शन मात्र 12 वर्ष की अवस्था में ही कर दिया था। इनके संगीत के कार्यक्रम का आल इंडिया रेडिओ पर प्रथम प्रसारण 18 वर्ष की अवस्था में वर्ष 1953 में हुआ था। जीवन के 38 वर्ष बिताने के बाद इन्होंने सितार का प्रशिक्षण ‘सेनिआ घराने’ के महान संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली खान से लेना प्रारम्भ किया। इन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा प्राप्त की। दिल्ली विश्वविद्यालय से अवकाश प्राप्त करने के बाद ये वर्तमान में अपने पुत्र, पुत्री, दामाद और भतीजा-भतिजिओं के साथ चितरंजन पार्क, नई दिल्ली में रहते हैं।

शिक्षण एवं प्रशिक्षण कार्य

इन्होंने वर्ष 1971 से वर्ष 1982 तक दिल्ली विश्वविद्यालय में संगीत विभाग के रीडर के रूप में अध्यापन का कार्य किया और वर्ष 1985 से वर्ष 1988 तक ये इसी विभाग में डीन और विभागाध्यक्ष भी रहे। इन्होंने महर्षि इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी (अब महर्षि यूनिवर्सिटी ऑफ मनेजमेंट), अमेरिका में भी वर्ष 1991 से वर्ष 1994 तक भारतीय शास्त्रीय संगीत को पाश्चात्य देशों में प्रचार-प्रसार में अपनी विशेष सेवाएं दी हैं।

दिल्ली विश्वविद्याल से अवकाश ग्रहण के बाद इन्होंने एक विशेष संगीत प्रोजेक्ट पर कार्य करना प्रारम्भ किया, जो दुर्लभ संगीत वाद्य यंत्रों के द्वारा प्रस्तुत धुनों को परम्परागत ‘ध्रुपद’ और ‘ख्याल’ राग द्वारा नए राग में प्रस्तुत करने का है। यह प्रोजेक्ट आने वाली युवा पीढ़ी को संगीत के क्षेत्र में बहुत ही दुर्लभ अनुभव प्रदान करेगा।

संगीत पर आधारित नई धुनों, पुस्तकों और सीडी का निर्माण

इन्होंने आठ नए संगीत के रागों की रचना की है, ये राग हैं- बिस्वेस्वरी, पलास-सारंग, अनुरंजनी, आशिकी ललित, स्वनान्देस्वरी, कल्याणी बिलावल, शिवमंजरी और प्रभाती मंजरी (अपनी पत्नी मंजू की स्मृति में बनाया). इसके अतिरिक्त इन्होंने संगीत पर आधारित तीन पुस्तकों की भी रचना की है, ये हैं- ‘सितार एंड इट्स टेक्निक्स’, ‘म्यूजिक ऑफ इंडिया’ और ‘ऑन इंडियन म्यूजिक’. अपने अमेरिका प्रवास के दौरान इन्होंने ‘महर्षि गन्धर्व वेद’ नाम से 24 सीडी को 24 घंटों के संगीत के लिए रिकॉर्ड कराया।

इन्होंने बहुत से एल्बम और कैसेट्स का भी निर्माण EMI, HMV, ABK (USA), टीवी सीरीज, रिदम हाउस, आर्काइव म्यूजिक यूएसए, ‘टी’ सीरीज और संसार की अन्य कम्पनियों के साथ मिलकर किया है।

संगीत के प्रति इनका लगाव

पंडित देबू चौधरी को दुर्लभ संगीत और वाद्य यंत्रों पर आधारित रचनाओं का संग्रह करने में विशेष लगाव है, जिसके परिणामस्वरुप इन्होने इस अनूठी परियोजना को प्रारंभ किया। पंडित जी का यह ड्रीम प्रोजेक्ट जब पूर्ण हो जाएगा तो यह भारतीय वाद्य संगीत के इतिहास में एक मील के पत्थर से कम नहीं होगा। इनकी अन्य उपलब्धियों में वर्ष 1984 में स्वीडन में 67 दिनों में 87 व्याख्यान हैं, जो 70 से अधिक कार्यक्रमों में दिए गए थे। विश्व स्तर पर आयोजित इन कार्यक्रमों में भारत सरकार ने इनको अपना पूर्ण सहयोग दिया था।

ये महान सितार वादकों के उस युग से सम्बन्ध रखते हैं, जिनमें प्रमुख हैं- उस्ताद विलायत खान, पंडित रवि शंकर और निखिल बनर्जी आदि. ये 17 फ्रेट के विशेषज्ञ हैं, जबकि अधिकांशतः सितार वादक 19 फ्रेट का सितार बजाते हैं।

पुरस्कार एवं सम्मान

इन्हें भारत सरकार की तरफ से ‘पद्मभूषण’ और ‘पद्मश्री’ जैसे प्रतिष्ठित सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी अलंकृत किया जा चुका है। भारतीय संगीत नाटक अकादमी द्वारा इन्हें संगीत के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए पुरस्कृत किया जा चुका है। इन्हें कुछ समय पूर्व एशिया के एकमात्र संगीत विश्वविद्यालय ‘इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय’ खैरागढ़ (छत्तीसगढ़) द्वारा डी. लिट. की उपाधि से नवाजा जा चुका है। भारत सरकार के सार्वजनिक प्रसारण माध्यम ‘ऑल इंडिया रेडियो’ के 54वीं वर्षगांठ के अवसर पर वर्ष 2002 में देबू चौधरी के जीवन के इतिहास को प्रसारित किया गया। हाल ही के वर्षों में इन्हें संगीत के क्षेत्र में आजीवन उपलब्धियों के लिए दिल्ली, मुंबई और कोलकाता के विभिन्न सांस्कृतिक केन्द्रों द्वारा विशेष सम्मान समारोहों में कई ख्यातियों एवं उपाधियों से विभूषित किया गया है।