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'''हामिद अली ख़ान''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Hamid Ali Khan'', जन्म- [[27 जनवरी]], [[1922]], [[गोलकुंडा]]; मृत्यु- [[21 अक्टूबर]], [[1998]], [[हैदराबाद]]) [[हिन्दी सिनेमा|भारतीय हिन्दी सिनेमा]] के प्रसिद्ध अभिनेता थे। उन्होंने [[हिन्दी]] सिनेमा में एक खलनायक के रूप में प्रसिद्धि पाई थी। अजित के पसंद के किरदार की बात की जाये तो उन्होंने सबसे पहले अपना मनपसंद और कभी भुलाया नहीं जा सकने वाला किरदार निर्माता-निर्देशक [[सुभाष घई]] की [[1976]] में प्रदशित फिल्म 'कालीचरण' में निभाया। फिल्म 'कालीचरण' में उनका निभाया किरदार 'लॉयन' उनके नाम का पर्याय ही बन गया था।
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==परिचय==
हामिद अली ख़ान उर्फ अजित का जन्म 27 जनवरी, सन 1922 को तत्कालीन हैदराबाद रियासत के गोलकुंडा में हुआ था। अजित को बचपन से ही [[अभिनय]] करने का शौक था। उनके पिता बशीर अली ख़ान [[हैदराबाद]] में निज़ाम की सेना में काम करते थे। अजित ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा [[आंध्र प्रदेश]] के वारांगल ज़िले से पूरी की। चालीस के दशक में उन्होंने नायक बनने के लिए फिल्म इंडस्ट्री का रूख किया और अपने अभिनय जीवन की शुरूआत वर्ष [[1946]] में प्रदर्शित फिल्म 'शाहे मिस्र' से की।
==फ़िल्मी कॅरियर==
सन [[1946]] से [[1956]] तक अजित फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। 'शाहे मिस्र' के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली, वह उसे स्वीकार करते चले गए। इस बीच उन्होंने 'पतंगा', 'जिद', 'सरकार', 'सईयां', 'तरंग', 'मोती महल', 'सम्राट' और 'तीरंदाज' जैसी कई फिल्मों मे अभिनय किया; लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुई। [[1950]] में फिल्म निर्देशक के. अमरनाथ ने उन्हें सलाह दी कि वह अपना फिल्मी नाम छोटा कर लें। इसके बाद उन्होंने अपना फिल्मी नाम हामिद अली ख़ान की जगह पर अजित रखा और अमरनाथ के निर्देशन में बनी फिल्म 'बेकसूर' में बतौर नायक काम किया।
 
सन [[1957]] में [[बी. आर. चोपड़ा]] की फिल्म 'नया दौर' में अजित ग्रामीण युवक की भूमिका में दिखाई दिए। इस फिल्म में उनकी भूमिका ग्रे-शेड्स वाली थी। यह फिल्म पूरी तरह अभिनेता [[दिलीप कुमार]] पर केन्द्रित थी। फिर भी वह दिलीप कुमार जैसे अभिनेता की उपस्थिति में अपने अभिनय की छाप दर्शकों के बीच छोड़ने में कामयाब रहे। इस फिल्म के बाद अजित ने यह निश्चय किया कि वह खलनायकी में ही अपने अभिनय का जलवा दिखाएंगे। इसके बाद वह बतौर खलनायक फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करने लगे। [[1960]] में प्रदर्शित फिल्म '[[मुग़ल-ए-आज़म]]' में एक बार फिर से उनके सामने [[हिन्दी]] फिल्म जगत के अभिनय सम्राट दिलीप कुमार थे, लेकिन अजित ने अपनी छोटी सी भूमिका के जरिए दर्शकों की वाह-वाही लूट ली।
====सफलता====
'जिंदगी और ख्वाब', 'शिकारी', 'हिमालय की गोद में', 'सूरज', 'प्रिंस', 'आदमी और इंसान' जैसी फिल्मों से मिली कामयाबी के जरिए अजित दर्शकों के बीच अपने अभिनय की धाक जमाते हुए ऐसे मुकाम पर पहुंच गए, जहां वह फिल्म में अपनी भूमिका स्वयं चुन सकते थे। [[1973]] अजित के सिने कॅरियर का अहम पड़ाव साबित हुआ। उस वर्ष उनकी 'जंजीर', 'यादों की बारात', 'समझौता', 'कहानी किस्मत की' और 'जुगनू' जैसी फिल्में प्रदर्शित हुईं, जिन्होंने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किए। इन फिल्मों की सफलता के बाद अजित ने उन ऊंचाइयों को छू लिया, जिसके लिए वह अपने सपनों के शहर [[मुंबई]] आए थे।
==लोकप्रिय संवाद==
अजित के पसंद के किरदार की बात करें तो उन्होंने सबसे पहले अपना मनपसंद और कभी भुलाया नहीं जा सकने वाला किरदार निर्माता-निर्देशक [[सुभाष घई]] की [[1976]] मे प्रदशित फिल्म 'कालीचरण' में निभाया। फिल्म 'कालीचरण' में उनका निभाया किरदार 'लॉयन' तो उनके नाम का पर्याय ही बन गया था। फिल्म में उनका संवाद '''सारा शहर मुझे लॉयन के नाम से जानता है''' आज भी बहुत लोकप्रिय है और गाहे-बगाहे लोग इसे बोलचाल में इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा उनके '''लिली डोंट बी सिली''' और '''मोना डार्लिंग''' जैसे संवाद भी सिने प्रेमियों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुए।
==खलनायकी के बादशाह==
फिल्म 'कालीचरण' की कामयाबी के बाद अजित के सिने कॅरियर में जबरदस्त बदलाव आया और वह खलनायकी की दुनिया के बेताज बादशाह बन गए। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपने दमदार अभिनय से दर्शकों की वाह-वाही लूटते रहे। खलनायक की प्रतिभा के निखार में नायक की प्रतिभा बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, इसी कारण अभिनेता [[धर्मेन्द्र]] के साथ अजित के निभाए किरदार अधिक प्रभावी रहे। उन्होंने धमेन्द्र के साथ 'यादों की बारात', 'जुगनू', 'प्रतिज्ञा', 'चरस', 'आजाद', 'राम बलराम', 'रजिया सुल्तान' और 'राजतिलक' जैसी अनेक कामयाब फिल्मों में काम किया।
यह बात जग जाहिर है कि जहां फिल्मी पर्दे पर खलनायक बहुत क्रूर हुआ करते हैं, वहीं वास्तविक जीवन में बहुत सज्जन होते हैं। निजी जीवन में अत्यंत कोमल हृदय अजित ने इस बीच 'हम किसी से कम नहीं' (1977), 'कर्मयोगी', 'देस परदेस' (1978), 'राम बलराम', 'चोरनी' (1981), 'खुदा कसम' (1981), 'मंगल पांडेय' (1982), 'रजिया सुल्तान' (1983) और 'राजतिलक' (1984) जैसी कई सफल फिल्मों मे अपना एक अलग समां बांधे रखा।
==मृत्यु==
90 के दशक में अजित ने स्वास्थ्य खराब रहने के कारण फिल्मों में काम करना कुछ कम कर दिया। इस दौरान उन्होंने 'जिगर' (1992), 'शक्तिमान' (1993), 'आदमी' (1993), 'आतिश', 'आ गले लग जा' और 'बेताज बादशाह' (1994) जैसी कई फिल्मों में अपने अभिनय से दर्शकों का मनोरंजन किया। संवाद अदायगी के बेताज बादशाह अजित ने करीब चार दशक के फिल्मी कॅरियर में लगभग 200 फिल्मों में अपने अभिनय का जौहर दिखाया और [[21 अक्टूबर]], [[1998]] को इस दुनिया से रूखसत हो गए।
 
 
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://www.livehindustan.com/news//article1-story-77252.html कालीचरण ने बनाया था अजित को लॉयन]
*[http://www.patrika.com/news/today-special/birtday-special-ajit-known-for-his-dialogues-in-industry-1165851/ सारा शहर इन्हें लॉयन के नाम से जानता है, संघर्षपूर्ण रहा अजित का करियर]
==संबंधित लेख==
{{अभिनेता}}{{फ़िल्म निर्माता और निर्देशक}}
[[Category:अभिनेता]][[Category:सिनेमा]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:चरित कोश]][[Category:सिनेमा कोश]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]]
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09:27, 27 मई 2017 के समय का अवतरण

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