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| {{सूचना बक्सा राजनीतिज्ञ
| | #REDIRECT [[एन.जी. चन्दावरकर]] |
| |चित्र=N. G. Chandavarkar.png
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| |चित्र का नाम=एन.जी. चन्द्रावरकर
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| |पूरा नाम=नारायण गणेश चंद्रावरकर
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| |अन्य नाम=
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| |जन्म=[[2 दिसंबर]], 1855
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| |जन्म भूमि=[[बम्बई]], नॉर्थ कनारा जिला
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| |मृत्यु=[[14 मई]], [[1923]]
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| |मृत्यु स्थान=
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| |मृत्यु कारण=
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| |अभिभावक=
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| |पति/पत्नी=
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| |संतान=
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| |स्मारक=
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| |क़ब्र=
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| |नागरिकता=भारतीय
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| |प्रसिद्धि=
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| |पार्टी=[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]
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| |पद=
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| |कार्य काल=[[1900]] -[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के [[अध्यक्ष]]
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| |शिक्षा=
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| |भाषा=
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| |विद्यालय=
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| |जेल यात्रा=
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| |पुरस्कार-उपाधि=
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| |विशेष योगदान=
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| |संबंधित लेख=
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| |शीर्षक 1=
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| |पाठ 1=
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| |शीर्षक 2=
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| |पाठ 2=
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| |अन्य जानकारी=[[1914]] में उन्होंने दोबारा राजनीति में प्रवेश किया। जब वह [[इंदौर]] से लौटे, जहां उन्होंने [[प्रधानमंत्री]] के रूप में अपनी सेवाएं दी
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| |बाहरी कड़ियाँ=
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| |अद्यतन=
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| '''एन.जी. चन्द्रावरकर''' (अंग्रेज़ी: ''N. G. Chandavarkar'', जन्म: [[2 दिसंबर]], 1855, [[बम्बई]], नॉर्थ कनारा जिला; मृत्यु: [[14 मई]], [[1923]]) [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के अध्यक्ष थे।<ref name="aa"/>
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| ===जीवन परिचय===
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| एन.जी. चन्द्रावरकर का पूरा नाम 'नारायण गणेश चंद्रावरकर' है। इनका जन्म [[बम्बई]] के होनावर के नॉर्थ कनारा जिले में [[2 दिसंबर]] 1855 को हुआ। [[1881]] में कानून की डिग्री लेने से पहले उन्होंने एल्फिनस्टोन कॉलेज में कुछ समय के लिए दक्षिणा फैलो के रूप में अपनी सेवाएं दी।<ref name="aa"/>
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| ===राजनैतिक जीवन===
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| [[1885]] में [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] की स्थापना के कुछ ही समय बाद एन.जी. चंद्रावरकर को तीन सदस्यीय प्रतिनिधि दल के सदस्य के रूप में [[इंग्लैंड]] भेजा गया, ताकि वह [[इंग्लैंड]] के आम चुनाव की पूर्वसंध्या पर वहां के शिक्षित लोगों से [[भारत]] के बारे में राय ले सके। एक सफल और समृद्ध अधिवक्ता के पेशेवर जीवन के बाद [[1901]] में चंद्रावरकर पदोन्नत होकर [[बम्बई उच्च न्यायालय]] की बेंच का हिस्सा बने। [[1921]] में धारा [[1919]] के तहत जब नई सुधारवादी काउंसिल अस्तित्व में आई, तब नारायण चंद्रावरकर बम्बई विधान परिषद के पहले गैर-अधिकारिक [[अध्यक्ष]] बने। इस पद की गरिमा को उन्होंने अपने जीवन के आखिरी समय तक बनाए रखा।<ref name="aa">{{cite web |url=http://inc.in/organization/1044-%E0%A4%8F%E0%A4%A8.%E0%A4%9C%E0%A5%80.-%E0%A4%9A%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%B0/profile|title=एन.जी. चंद्रावरकर |accessmonthday=[[2 जून]]|accessyear=[[2017]] |last|first=|authorlink=|format=|publisher=indian National Congress|language=[[हिन्दी]] }}</ref>
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| ===राजनैतिक करियर की शुरुआत===
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| [[1885]] में उनका [[इंग्लैंड]] दौरा उनके राजनीतिक करियर के शुरुआत की वजह बना और वह पूरे मन से [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के कामों में जुट गए, जिसकी स्थापना [[28 दिसंबर]] [[1885]] को [[बम्बई]] में उस दिन हुई जब वह दूसरे प्रतिनिधियों के साथ भारत लौट रहे थे। 15 साल बाद [[लाहौर]] में हुए [[कांग्रेस]] के वार्षिक अधिवेशन के लिए वह [[अध्यक्ष]] चुने गए। इसके तुरंत बाद वह [[कांग्रेस]] के निर्वाचित [[अध्यक्ष]] बने, चंद्रावरकर बम्बई हाईकोर्ट के न्यायाधीश भी बने और फिर उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया।<ref name="aa"/>
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| ===पुन: राजनीति में प्रवेश===
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| साल [[1914]] में उन्होंने दोबारा राजनीति में प्रवेश किया। जब वह [[इंदौर]] से लौटे, जहां उन्होंने [[प्रधानमंत्री]] के रूप में अपनी सेवाएं दी, उस वक्त कांग्रेस दो हिस्सों में बंटी हुई थी और मतभेदों के असर ये हुआ कि चार साल बाद साल [[1918]] में ऑल इंडिया मॉड्ररेट्स कॉन्फ्रेंस की स्थापना हुई, सरेंद्रनाथ बनर्जी और दिनशाह वाचा, चंद्रावरकर इसके मार्ग दर्शक और नेता बने। [[1920]] में [[जलियाँवाला बाग़]] में हुए अत्याचार पर भारतीय सरकार की ओर से बनी हंटर कमेटी की रिपोर्ट के खिलाफ [[बम्बई]] में एक जनसभा को उन्होंने संबोधित किया। अध्यक्षीय भाषण के बाद [[महात्मा गांधी]] ने मुख्य प्रस्ताव पेश किया। बाद में उन्होंने चंद्रावरकर की चेतावनी को सुना और [[1921]] में असहयोग आंदोलन को खत्म करने के दौरान उनकी सलाह को माना। जब [[1885]] में रानादे ने नेशनल सोशल कॉन्फ्रेंस की स्थापना की, तो चंद्रावरकर उसके चीफ लेफ्टिनेंट बने।
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| [[1901]] में जब रानादे का निधन हुआ तो महासचिव की जिम्मेदारी चंद्रावरकर के कंधों पर आ गई। दो दशकों तक वह कॉन्फ्रेंस के विस्तार के लिए कार्य करते रहे। दस से बारह साल के दौरान बड़ी संख्या में कई संस्थाएं [[बम्बई]] में स्थापित हुई, जिसके चलते उन्होंने अस्थायी तौर पर राजनीति से संन्यास ले लिया। इनमें से हर एक संस्था में वह कहीं संस्थापक, कहीं अध्यक्ष, कहीं मार्ग दर्शक, कहीं सलाहकार के रूप में जुड़े रहे। आत्मिक प्रकाश और शक्ति के लिए वह जिस संस्था से जुड़े उसका नाम प्रार्थना समाज था, जिसके वह 23 साल तक, [[1901]] से लेकर अपनी जिंदगी के आखिरी दिन तक, अध्यक्ष रहे।<ref name="aa"/>
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| {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
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| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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| ==बाहरी कड़ियाँ==
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| ==संबंधित लेख==
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| {{भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के अध्यक्ष}}
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| [[Category:भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस अध्यक्ष]][[Category:राजनीतिज्ञ]][[Category:राजनेता]][[Category:राजनीति कोश]][[Category:चरित कोश]]
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