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'''हसन इमाम''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Hasan Imam'', जन्म- [[31 अगस्त]], [[1871]], नियोरा, [[पटना]]; मृत्यु- [[19 अप्रैल]], [[1933]]) उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के अध्यक्ष थे।
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==परिचय==
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इमदाद इमाम के बेटे और सर अली इमाम के छोटे भाई
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{[[महाभारत]] में [[कीचक वध]] किस पर्व के अंतर्गत आता है?
|type="()"}
+[[विराट पर्व महाभारत|विराट पर्व]]
-[[अनुशासन पर्व महाभारत|अनुशासन पर्व]]
-[[आदि पर्व महाभारत |आदि पर्व]]
-[[वन पर्व महाभारत|वन पर्व]]
||[[विराट पर्व महाभारत|विराट पर्व]] में [[अज्ञातवास]] की अवधि में [[विराट नगर]] में रहने के लिए गुप्तमन्त्रणा, धौम्य द्वारा उचित आचरण का निर्देश, [[युधिष्ठिर]] द्वारा भावी कार्यक्रम का निर्देश, विभिन्न नाम और रूप से विराट के यहाँ निवास, [[भीमसेन]] द्वारा जीमूत नामक मल्ल तथा [[कीचक]] और उपकीचकों का वध, [[दुर्योधन]] के गुप्तचरों द्वारा [[पाण्डव|पाण्डवों]] की खोज तथा लौटकर [[कीचक वध]] की जानकारी देना, त्रिगर्तों और [[कौरव|कौरवों]]  द्वारा [[मत्स्य]] देश पर आक्रमण, कौरवों द्वारा [[विराट]] की गायों  का हरण, पाण्डवों का कौरव-सेना से युद्ध, [[अर्जुन]] द्वारा विशेष रूप से युद्ध और कौरवों की पराजय, अर्जुन और कुमार उत्तर का लौटकर विराट की सभा में  आना, विराट का युधिष्ठिरादि पाण्डवों से परिचय तथा अर्जुन द्वारा [[उत्तरा]] को पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करना वर्णित है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[विराट पर्व महाभारत]], [[कीचक वध]]


हसन इमाम का जन्म [[31 अगस्त]], [[1871]] को ज़िला पटना के नियोरा में हुआ था। शिया मुस्लिम मत को मानने वाला यह परिवार प्रतिष्ठित, शिक्षित मध्यम वर्ग का था।
{[[महाभारत]] युद्ध में कौन-से दिन [[श्रीकृष्ण]] ने [[शस्त्र]] न उठाने की अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ा?
|type="()"}
-[[महाभारत युद्ध आठवाँ दिन|आठवें दिन]]
-[[महाभारत युद्ध दसवाँ दिन|दसवें दिन]]
-[[महाभारत युद्ध ग्यारहवाँ दिन|ग्यारहवें दिन]]
+[[महाभारत युद्ध नौवाँ दिन|नौवें दिन]]
||[[महाभारत युद्ध नौवाँ दिन|नौवें दिन]] के युद्ध में [[भीष्म]] के [[बाण अस्त्र|बाणों]] से [[अर्जुन]] घायल हो गए। भीष्म की भीषण बाण-वर्षा से [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] के अंग भी जर्जर हो गए। तब श्रीकृष्ण अपनी प्रतिज्ञा भूलकर रथ का एक चक्र उठाकर भीष्म को मारने के लिए दौड़े। अर्जुन भी रथ से कूदे और कृष्ण के पैरों से लिपट पड़े। वे श्रीकृष्ण को अपनी प्रतिज्ञा का स्मरण दिलाते हैं कि वे युद्ध में [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र-शस्त्र]] नहीं उठायेंगे।


स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद खराब स्वास्थ्य के कारण उनकी पढ़ाई में अक्सर बाधा रहती थी, वे जुलाई 1889 में इंग्लैंड चले गये और मिडिल टेंपल में शामिल हो गए। वहां रहते हुए वे दादाभाई नैरोजी के लिये 1891 में इंग्लैंड के आम चुनाव के दौरान सक्रिय रूप से अभियान चलाते रहे। उन्हें 1892 में बार में बुला लिया गया; इसी साल वे वापस घर लौट आये और कलकत्ता उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस शुरू कर दी।
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हसन इमाम कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे। मार्च 1916 में पटना उच्च न्यायालय की स्थापना पर इमाम ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पद से इस्तीफा दिया और पटना में प्रैक्टिस शुरू कर दी।
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1921 में वह बिहार व उड़ीसा विधान परिषद के सदस्य मनोनीत किये गये। 1908 के बाद से उन्होंने राजनीतिक मामलों में हिस्सा लिया। अक्टूबर 1909 में उन्हें बिहार कांग्रेस समिति का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया और अगले महीने उन्होंने बिहार छात्र सम्मेलन के चौथे सत्र की अध्यक्षता की।
 
उन्होंने 1916 में न्यायाधीश पद से इस्तीफे के बाद बड़े पैमाने पर राजनीतिक गतिविधि की फिर से शुरुआत की। नवंबर 1917 में भारत राज्य के सचिव मोंटेगू द्वारा बुलाये गये प्रमुख भारतीय नेताओं में से हसन इमाम एक थे और उसके द्वारा ‘‘भारतीय राजनीतिक परिदृश्य के वास्तविक दिग्गजों’’ के बीच इमाम को भी सूचीबद्ध किया गया था।
 
उन्होंने मोंटेगू-चेम्सफोर्ड सुधार योजना पर विचार करने के लिए 1918 में बंबई में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विशेष सत्र की अध्यक्षता की। यह बेहद महत्वपूर्ण और बेहद ही मुश्किल सत्र था क्योंकि इसमें योजना की विशेषताओं पर मतभिन्नता थी। हसन इमाम ने इसमें उदारवादी भूमिका निभाई।
 
एक कट्टर संविधानविद् के नाते उन्होंने असहयोग आंदोलन की विचारधारा का विरोध किया था। हसन इमाम ने [[खिलाफत आंदोलन]] में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। वे 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल हो गए और पटना में गठित स्वदेशी लीग के सचिव चुने गए।
 
उन्होंने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और खादी के इस्तेमाल के लिए सक्रिय रूप से अभियान चलाया। इससे पहले वे 1927 में बिहार में साइमन कमीशन के बहिष्कार की सफलता के वास्तविक सूत्रधार थे। हसन इमाम विशेष रूप से सामाजिक सुधारों, महिलाओं और दलित वर्गों की स्थिति की सुधार की वकालत करते थे।
 
टिकरी बोर्ड न्यास के सदस्य के रूप में उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए योजनाओं को बढ़ावा दिया। उन्होंने कंपनी और शाही शासन दोनों के तहत देश के आर्थिक शोषण को उजागर किया। वे बिहार के प्रमुख अंग्रेजी दैनिक बेहरे के न्यासी बोर्ड के अध्यक्ष थे, वह सफल सर्चलाइट के संस्थापकों में से भी एक थे।
 
19 अप्रैल 1933 को उनका निधन हो गया और उन्हें जिला शाहाबाद के जपाला में दफनाया गया।

12:40, 7 जनवरी 2018 के समय का अवतरण

2 महाभारत युद्ध में कौन-से दिन श्रीकृष्ण ने शस्त्र न उठाने की अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ा?

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