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बचपन से ही त्रैलोक्य चक्रवर्ती के परिवार का वातावरण राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत था। पिता दुर्गाचरण स्वदेशी शासन के समर्थक थे। भाई व्यामिनी मोहन का क्रान्तिकारियों से संपर्क था। इसका प्रभाव त्रैलोक्य चक्रवर्ती पर भी पड़ा। देश प्रेम की भावना उनके मन में गहराई तक समाई थी। इंटर की परीक्षा देने से पहले ही वे गिरफ़्तार कर लिए गए। जेल से छूटते ही वे ‘अनुशीलन समिति’ में सम्मिलित हो गए। 1909 ई. में उन्हें 'ढाका षडयंत्र केस' का अभियुक्त बनाया गया, पर वे पुलिस के हाथ नहीं आए। 1912 ई. में वे गिरफ़्तार तो हुए, पर अदालत में उन पर आरोप सिद्ध नहीं हो सके। 1914 ई. में उन्हें 'बारीसाल षडयंत्र केस' में सज़ा हुई और सज़ा काटने के लिए उन्हें [[अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह|अंडमान]] भेज दिया गया।
बचपन से ही त्रैलोक्य चक्रवर्ती के परिवार का वातावरण राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत था। पिता दुर्गाचरण स्वदेशी शासन के समर्थक थे। भाई व्यामिनी मोहन का क्रान्तिकारियों से संपर्क था। इसका प्रभाव त्रैलोक्य चक्रवर्ती पर भी पड़ा। देश प्रेम की भावना उनके मन में गहराई तक समाई थी। इंटर की परीक्षा देने से पहले ही वे गिरफ़्तार कर लिए गए। जेल से छूटते ही वे ‘अनुशीलन समिति’ में सम्मिलित हो गए। 1909 ई. में उन्हें 'ढाका षडयंत्र केस' का अभियुक्त बनाया गया, पर वे पुलिस के हाथ नहीं आए। 1912 ई. में वे गिरफ़्तार तो हुए, पर अदालत में उन पर आरोप सिद्ध नहीं हो सके। 1914 ई. में उन्हें 'बारीसाल षडयंत्र केस' में सज़ा हुई और सज़ा काटने के लिए उन्हें [[अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह|अंडमान]] भेज दिया गया।
====क्रान्तिकारी गतिविधियाँ====
====क्रान्तिकारी गतिविधियाँ====
यद्यपि प्रथम विश्वयुद्ध के बाद देश की राजनीति [[गांधी जी]] के प्रभाव में आ गई थी, लेकिन साथ-साथ क्रान्तिकारी आंदोलन भी चलता रहा। 1928 में त्रैलोक्य [[उत्तर प्रदेश]] आकर [[चन्द्रशेखर आज़ाद]], [[भगतसिंह]] आदि की ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट एसोसियेशन’ में सम्मिलित हो गए। साथ ही [[कांग्रेस]] से भी उनका संपर्क रहा। 1929 में कांग्रेस के ऐतिहासिक 'लाहौर अधिवेशन' में उन्होंने भाग लिया था। 1930 में वे फिर गिरफ़्तार हुए और छूटने के बाद 1938 की रामगढ़ कांग्रेस में सम्मिलित हुए। [[नेताजी सुभाषचंद्र बोस]] का उन पर बहुत प्रभाव था। 'भारत छोड़ो आंदोलन' में जेल जाने के बाद त्रैलोक्य चक्रवर्ती ने 1946 ई. में नोआखाली में रचनात्मक कार्य आरंभ किया।
यद्यपि प्रथम विश्वयुद्ध के बाद देश की राजनीति [[गांधी जी]] के प्रभाव में आ गई थी, लेकिन साथ-साथ क्रान्तिकारी आंदोलन भी चलता रहा। 1928 में त्रैलोक्य [[उत्तर प्रदेश]] आकर [[चन्द्रशेखर आज़ाद]], [[भगतसिंह]] आदि की ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट एसोसियेशन’ में सम्मिलित हो गए। साथ ही [[कांग्रेस]] से भी उनका संपर्क रहा। 1929 में कांग्रेस के ऐतिहासिक 'लाहौर अधिवेशन' में उन्होंने भाग लिया था। 1930 में वे फिर गिरफ़्तार हुए और छूटने के बाद 1938 की रामगढ़ कांग्रेस में सम्मिलित हुए। [[नेताजी सुभाषचंद्र बोस]] का उन पर बहुत प्रभाव था। 'भारत छोड़ो आंदोलन' में जेल जाने के बाद त्रैलोक्य चक्रवर्ती ने 1946 ई. में नोआख़ाली में रचनात्मक कार्य आरंभ किया।
==देहान्त==
==देहान्त==
स्वतंत्रता के बाद भी त्रैलोक्य चक्रवर्ती [[पूर्वी बंगाल]] में ही रहे। 1954 में उन्हें वहाँ की प्रांतीय असेम्बली का सदस्य चुना गया था, लेकिन जल्दी ही न केवल उनकी असेम्बली सदस्यता समाप्त कर दी गई, बल्कि उन्हें कोई भी राजनीतिक या समाज-सेवा का काम करने से भी वंचित कर दिया गया। ‘महाराज’ के नाम से लोकप्रिय त्रैलोक्य चक्रवर्ती 1970 में इलाज करने के लिए [[कोलकाता]] आए। उसी वर्ष [[दिल्ली]] में उनका देहांत हो गया।
स्वतंत्रता के बाद भी त्रैलोक्य चक्रवर्ती [[पूर्वी बंगाल]] में ही रहे। 1954 में उन्हें वहाँ की प्रांतीय असेम्बली का सदस्य चुना गया था, लेकिन जल्दी ही न केवल उनकी असेम्बली सदस्यता समाप्त कर दी गई, बल्कि उन्हें कोई भी राजनीतिक या समाज-सेवा का काम करने से भी वंचित कर दिया गया। ‘महाराज’ के नाम से लोकप्रिय त्रैलोक्य चक्रवर्ती 1970 में इलाज करने के लिए [[कोलकाता]] आए। उसी वर्ष [[दिल्ली]] में उनका देहांत हो गया।

11:18, 5 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

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त्रैलोक्य चक्रवर्ती बंगाल के पुराने और प्रसिद्ध क्रान्तिकारियों में से एक थे। इनका जन्म 1889 ई. में पूर्वी बंगाल में मेमनसिंह ज़िले के कपासतिया गांव में हुआ था। पिता 'दुर्गाचरन' तथा भाई 'व्यामिनी मोहन' का इनके जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ा था। त्रैलोक्य चक्रवर्ती को 'ढाका षडयंत्र केस' तथा 'बारीसाल षडयंत्र केस' का अभियुक्त बनाया गया था। इन्हें 'महाराज' के नाम से काफ़ी लोकप्रियता प्राप्त हुई थी। 1970 ई. में इस महान् क्रान्तिकारी की मृत्यु हुई।

गिरफ़्तारी तथा सज़ा

बचपन से ही त्रैलोक्य चक्रवर्ती के परिवार का वातावरण राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत था। पिता दुर्गाचरण स्वदेशी शासन के समर्थक थे। भाई व्यामिनी मोहन का क्रान्तिकारियों से संपर्क था। इसका प्रभाव त्रैलोक्य चक्रवर्ती पर भी पड़ा। देश प्रेम की भावना उनके मन में गहराई तक समाई थी। इंटर की परीक्षा देने से पहले ही वे गिरफ़्तार कर लिए गए। जेल से छूटते ही वे ‘अनुशीलन समिति’ में सम्मिलित हो गए। 1909 ई. में उन्हें 'ढाका षडयंत्र केस' का अभियुक्त बनाया गया, पर वे पुलिस के हाथ नहीं आए। 1912 ई. में वे गिरफ़्तार तो हुए, पर अदालत में उन पर आरोप सिद्ध नहीं हो सके। 1914 ई. में उन्हें 'बारीसाल षडयंत्र केस' में सज़ा हुई और सज़ा काटने के लिए उन्हें अंडमान भेज दिया गया।

क्रान्तिकारी गतिविधियाँ

यद्यपि प्रथम विश्वयुद्ध के बाद देश की राजनीति गांधी जी के प्रभाव में आ गई थी, लेकिन साथ-साथ क्रान्तिकारी आंदोलन भी चलता रहा। 1928 में त्रैलोक्य उत्तर प्रदेश आकर चन्द्रशेखर आज़ाद, भगतसिंह आदि की ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट एसोसियेशन’ में सम्मिलित हो गए। साथ ही कांग्रेस से भी उनका संपर्क रहा। 1929 में कांग्रेस के ऐतिहासिक 'लाहौर अधिवेशन' में उन्होंने भाग लिया था। 1930 में वे फिर गिरफ़्तार हुए और छूटने के बाद 1938 की रामगढ़ कांग्रेस में सम्मिलित हुए। नेताजी सुभाषचंद्र बोस का उन पर बहुत प्रभाव था। 'भारत छोड़ो आंदोलन' में जेल जाने के बाद त्रैलोक्य चक्रवर्ती ने 1946 ई. में नोआख़ाली में रचनात्मक कार्य आरंभ किया।

देहान्त

स्वतंत्रता के बाद भी त्रैलोक्य चक्रवर्ती पूर्वी बंगाल में ही रहे। 1954 में उन्हें वहाँ की प्रांतीय असेम्बली का सदस्य चुना गया था, लेकिन जल्दी ही न केवल उनकी असेम्बली सदस्यता समाप्त कर दी गई, बल्कि उन्हें कोई भी राजनीतिक या समाज-सेवा का काम करने से भी वंचित कर दिया गया। ‘महाराज’ के नाम से लोकप्रिय त्रैलोक्य चक्रवर्ती 1970 में इलाज करने के लिए कोलकाता आए। उसी वर्ष दिल्ली में उनका देहांत हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 367 |


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