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'''क्रयिक कर''' [[प्राचीन भारत]] की शासन व्यवस्था में लिया जाने वाला कर था।
'''क्रयिक''' [[प्राचीन भारत]] की अर्थव्यवस्था में प्रचलित एक शब्द था, जिसका [[कौटिल्य]] ने अपने अर्थशास्त्र में उल्लेख किया है।
====भेद====
*क्रयिक को तीन भागों में बाँटा है-
[[कौटिल्य]] के अनुसार यह कर तीन प्रकार का होता है-
#धान्यमूलक- धान्य को बेचकर प्राप्त धन
#धान्यमूलक- धान्य को बेचकर प्राप्त धन
#कोशनिर्हार- धन देकर खरीदा हुआ अन्न
#कोशनिर्हार- धन देकर खरीदा हुआ अन्न
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# [[सीता कर]]
# [[सीता कर]]
# [[राष्ट्र कर]]
# [[राष्ट्र कर]]
# [[क्रयिक कर]]
# [[परिवर्त्तक कर]]
# [[प्रामित्यक कर]]
# [[आपमित्यक]]
# [[सिंहनिका कर]]
# [[सिंहनिका कर]]
# [[अन्वजात कर]]
# [[व्ययप्रत्यात कर]]
# [[उपस्थान कर]]




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{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=कौटिलीय अर्थशास्त्रम्‌ |लेखक=वाचस्पति गैरोला|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=चौखम्बा विधाभवन, चौक (बैंक ऑफ़ बड़ौदा भवन के पीछे , वाराणसी 221001, उत्तर प्रदेश|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=157|url=}}
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==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
 
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08:17, 27 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

क्रयिक प्राचीन भारत की अर्थव्यवस्था में प्रचलित एक शब्द था, जिसका कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में उल्लेख किया है।

  • क्रयिक को तीन भागों में बाँटा है-
  1. धान्यमूलक- धान्य को बेचकर प्राप्त धन
  2. कोशनिर्हार- धन देकर खरीदा हुआ अन्न
  3. प्रयोग-प्रत्यादान- ब्याज आदि से प्राप्त धन
  • प्राचीन भारतीय अर्थव्यवस्था में निम्नांकित कर भी प्रचलित थे-
  1. सीता कर
  2. राष्ट्र कर
  3. सिंहनिका कर


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टीका टिप्पणी और संदर्भ


कौटिलीय अर्थशास्त्रम्‌ |लेखक: वाचस्पति गैरोला |प्रकाशक: चौखम्बा विधाभवन, चौक (बैंक ऑफ़ बड़ौदा भवन के पीछे , वाराणसी 221001, उत्तर प्रदेश |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 157 |

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