"प्रियप्रवास तृतीय सर्ग": अवतरणों में अंतर
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|पाठ 1= तृतीय | |पाठ 1= तृतीय | ||
|शीर्षक 2= छंद | |शीर्षक 2= छंद | ||
|पाठ 2= | |पाठ 2=द्रुतविलम्बित, शार्दूल-विक्रीड़ित, मालिनी, | ||
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जब कभी घटता दु:ख - वेग था। | जब कभी घटता दु:ख - वेग था। | ||
तब नवा कर वे निज - शीश को। | तब नवा कर वे निज - शीश को। | ||
महि | महि विलम्बित हो कर जोड़ के। | ||
विनय यों करती चुपचाप थीं॥37॥ | विनय यों करती चुपचाप थीं॥37॥ | ||
सकल – मंगल – मूल कृपानिधे। | सकल – मंगल – मूल कृपानिधे। | ||
पंक्ति 216: | पंक्ति 216: | ||
उपकृत अति होके आपकी सत्कृपा से॥47॥ | उपकृत अति होके आपकी सत्कृपा से॥47॥ | ||
''' | '''द्रुतविलम्बित छंद''' | ||
यह प्रलोभन है न कृपानिधे। | यह प्रलोभन है न कृपानिधे। |
09:05, 10 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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