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जन्म : 17 सितम्बर, 1930 चेन्नई
जन्म: 1935 (मायमेंसिंग, वर्तमान बांग्लादेश)


निधन: 22 अप्रैल 2013, चेन्नई
वर्तमान निवास स्थान: चितरंजन पार्क, नई दिल्ली (भारत)


कार्यक्षेत्र : कर्नाटक शैली के वायलिन वादक, गायक और संगीतकार
कार्यक्षेत्र: सितार वादक और संगीत शिक्षक


'''लालगुडी जयरामन अय्यर''' ([[अंग्रेजी]]: Lalgudi Jayaraman जन्म : [[17 सितम्बर]], [[1930]], निधन: [[22 अप्रैल]] [[2013]], [[चेन्नई]]) एक प्रसिद्ध कर्नाटक शैली के वायलिन वादक, गायक और संगीतकार थे। अपने समृद्ध कल्पना, तीव्र अभिग्रहण क्षमता और कर्नाटक संगीत में अग्रणी संगीतज्ञों की व्यक्तिगत शैली को उनके साथ समारोह में जा कर आसानी से अपना लेने की अपनी क्षमता के चलते ये बहुत जल्द अग्रणी पंक्ति के संगीतज्ञ बन गए। संगीत समारोहों से मिले समृद्ध अनुभव के अलावा अपनी कड़ी मेहनत, लगन और अपने अन्दर उत्पन्न हो रहे संगीत के विचारों को मौलिक अभिव्यक्ति देने की दृढ़ इच्छा के बल पर ये दुर्लभ प्रतिभा के एकल वायलिन वादक के रूप में उभर कर आये।
पंडित देवब्रत चौधरी को भारतीय संगीत के क्षेत्र में ‘देबू’ के नाम से भी जाना जाता है. पंडित देवब्रत (देबू) चौधरी भारत के प्रमुख सितार वादक, भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में एक ख्याति प्राप्त [[संगीतकार]] और [[दिल्ली विश्वविद्यालय]] में संगीत के शिक्षक रह चुके हैं. इन्होंने ‘सेनिआ संगीत घराना’ के श्री पंचू गोपाल दत्ता और संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली खान से संगीत की शिक्षा ग्रहण की। इन्हें ‘[[पद्मभूषण]]’ और ‘[[पद्मश्री]]’ जैसे प्रतिष्ठित सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी अलंकृत किया जा चुका है।


इन्होंने समग्र रूप से वायलिन वादन की एक नई तकनीक को स्थापित किया, जिसे भारतीय शास्त्रीय संगीत की सर्वश्रेष्ठ अनुकूलता के लिए बनाया गया था, और एक अद्वितीय शैली को स्थापित किया, जिसे ‘लालगुडी बानी’ के रूप में जाना जाता है। इनकी सिद्ध और आकर्षक शैली, सुंदर और मौलिक थी जो कि पारंपरिक शैली से अलग नहीं थीं। इसके कारण इनके प्रशंसकों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती ही गई। इस बहुआयामी व्यक्तित्व सौंदर्य के कारण इन्हें कई कृतियों जैसे ‘तिलानस’, ‘वरनम’ और नृत्य रचना के निर्माण का श्रेय भी दिया गया, जिसमें राग, भाव, ताल और गीतात्मक सौन्दर्य का अद्भुत मिश्रण है। इन्होंने वायलिन में सबसे अधिक मांग वाली शैली को पेश किया और रचनाओं की गीतात्मक सामग्री का प्रस्तुतिकरण किया।
ये संगीत से संबंधित कई पुस्तकों के लेखक, आठ नए संगीत रागों के जन्मदाता और बहुत से नए संगीत के धुनों के निर्माता भी हैं। इन्होंने वर्ष 1963 से देश-विदेश में बहुत से स्टेज शो, रेडियो और टीवी कार्यक्रमों में अपने संगीत की प्रस्तुति दी है। ये ‘सेनिया संगीत घराना’ मैहर (मध्य प्रदेश) के [[शास्त्रीय संगीत]] के ध्वज वाहक हैं। ये संगीत का शिक्षण कार्य करते हुए [[दिल्ली विश्वविद्यालय]] के संगीत संकाय के डीन और विभागाध्यक्ष भी रह चुके हैं। इनकी संगीत के मधुर धुनों की एक अपनी अलग ही विशेषता है। इन्होंने बहुत से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त किए हैं। ये इस्कॉन मंदिर के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के आजीवन सदस्य भी हैं।
ये ऐसे पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने कर्नाटक शैली के वायलिन वादन को अंतर्राष्टीय ख्याति दिलवाई। साथ ही इन्होंने वर्ष 1996 में वायलिन, वेणु (बांसुरी) और वीणा के साथ को जोड़ने की एक नई अवधारणा की शुरूआत की और कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम (कंसर्ट) भी किए।
==प्रारम्भिक एवं पारिवारिक जीवन==
==जीवन परिचय==
पंडित देवब्रत (चौधरी) का जन्म वर्ष [[1935]] में मायमेंसिंग (तत्कालीन भारत) वर्तमान [[बांग्लादेश]] में हुआ था। इन्होंने मात्र चार वर्ष की उम्र से ही सितार के साथ खेलना प्रारम्भ कर दिया था। उन्होंने अपने पहले सार्वजनिक संगीत कार्यक्रम का प्रदर्शन मात्र 12 वर्ष की अवस्था में ही कर दिया था। इनके [[संगीत]] के कार्यक्रम का आल इंडिया रेडिओ पर प्रथम प्रसारण 18 वर्ष की अवस्था में वर्ष [[1953]] में हुआ था।
श्री लालगुडी जयरामन अय्यर का जन्म 17 सितम्बर, 1930 को चेन्नई (तमिलनाडु) के महान संत संगीतकार त्यागराज के वंश में हुआ था। इन्होंने बहुमुखी प्रतिभा के धनी अपने दिवंगत पिता गोपाल अय्यर वी।आर। से कर्नाटक संगीत की शिक्षा प्राप्त की। उनके पिता ने बड़ी कुशलता से इन्हें स्वयं प्रशिक्षित किया था। मात्र 12 वर्ष की उम्र में ही इन्होंने एक वायलिन वादक के रूप में अपने संगीत कैरियर की शुरूआत की।
जीवन के 38 वर्ष बिताने के बाद इन्होंने सितार का प्रशिक्षण ‘सेनिआ घराने’ के महान संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली खान से लेना प्रारम्भ किया। इन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा प्राप्त की। [[दिल्ली विश्वविद्यालय]] से अवकाश प्राप्त करने के बाद ये वर्तमान में अपने पुत्र, पुत्री, दामाद और भतीजा-भतिजिओं के साथ चितरंजन पार्क, नई दिल्ली में रहते हैं।
लालगुडी जयरामन का विवाह श्रीमती राजलक्ष्मी से हुआ। इनके दो बच्चें हैं- इनके बेटे का नाम जी।जे।आर। कृष्णन है और इनकी बेटी का नाम लालगुडी विजयलक्ष्मी है। इनका बेटा और बेटी दोनों अपने महान पिता के नक्शे कदम पर आज भी चल रहे हैं और अपनी प्रस्तुतियों के लिए जाने जाते हैं। आजकल की प्रसिद्ध वीणा वादक जयंती कुमारेश, लालगुडी की भतीजी हैं।
==शिक्षण एवं प्रशिक्षण कार्य==
==समकालीन अन्य संगीत विशेषज्ञों के साथ सम्बन्ध==
इन्होंने वर्ष [[1971]] से वर्ष [[1982]] तक दिल्ली विश्वविद्यालय में संगीत विभाग के रीडर के रूप में अध्यापन का कार्य किया और वर्ष [[1985]] से वर्ष [[1988]] तक ये इसी विभाग में डीन और विभागाध्यक्ष भी रहे। इन्होंने महर्षि इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी (अब महर्षि यूनिवर्सिटी ऑफ मनेजमेंट), अमेरिका में भी वर्ष [[1991]] से वर्ष [[1994]] तक भारतीय शास्त्रीय संगीत को पाश्चात्य देशों में प्रचार-प्रसार में अपनी विशेष सेवाएं दी हैं।
गायकों के साथ संगत करने के लिए लालगुडी जयरामन की काफी मांग रहती थी और अरियाकुडी रामानुजा अयंगर, चेम्बई वैदीनाथ भागावतार, सेमांदगुड़ी श्रीनिवास अय्यर, जी।एन। बालासुब्रमण्यम, मदुरै मणि अय्यर, के।वी। नारायणस्वामी, महाराजापुरम संथानम, डी.के. जयरामन, एम। बाल मुरलीकृष्णा, टी.वी. संकर नारायणनन, टी.एन. शेष गोपालन और बांसुरी संगीतज्ञ जैसे एन. रमानी जैसे महान विशेषज्ञों और गायकों के साथ इन्होने काम किया।
==देश-विदेश में संगीत कार्यक्रम==
इन्होंने बड़े पैमाने पर [[भारत]] के साथ-साथ विदेशों में भी अपने संगीत की प्रस्तुतियां दी। भारत सरकार ने इन्हें भारतीय सांस्कृतिक प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य के रूप में रूस भेजा था। वर्ष [[1965]] में एडिनबर्ग त्योहार पर प्रसिद्ध वायलिनवादक येहुदी मेनुहिन इनके तकनीक से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने इन्हें अपना इतालवी वायलिन भेंट किया था। साथ ही इन्होंने सिंगापुर, मलेशिया, मनीला और पूर्वी यूरोपीय देशों में अपना प्रदर्शन किया। वर्ष [[1979]] के दौरान इनकी नई दिल्ली आकाशवाणी में हुए रिकॉर्डिंग को अंतर्राष्ट्रीय संगीत परिषद्, बगदाद, एशियाई पैसिफिक रोस्ट्रम और इराक प्रसारण एजेंसी में इनके प्रस्तुत रिकॉर्डिंग को विभिन्न देशों से प्राप्त 77 प्रविष्टियों में सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया। इन्होने बेल्जियम और फ्रांस के संगीत समारोह में भी अपना कार्यक्रम प्रस्तुत किया।


[[भारत सरकार]] ने [[अमेरिका]] एवं [[लंदन]] में ‘फेस्टिवल ऑफ इंडिया’ में  [[भारत]] का प्रतिनिधित्व करने के लिए इन्हें चुना और इन्होंने लंदन में ‘एकल’ और ‘जुगलबंदी’ कंसर्ट पेश किया और साथ ही जर्मनी और इटली में भी प्रस्तुति दी, जिसकी काफी प्रशंसा की गई थी। वर्ष [[1984]] में श्री लालगुडी ने ओमान, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और कतर का दौरा किया, जो अत्यधिक सफल रहा। इन्होंने ओपेरा बैले ‘जय जय देवी’ के गीत और संगीत की रचना की, जिसका प्रीमियर वर्ष [[1994]] में क्लीवलैंड (अमेरिका) में किया गया और संयुक्त राज्य के कई शहरों में इसे प्रदर्शित किया गया था। [[अक्टूबर]], [[1999]] में लालगुडी ने श्रुथी लया संघम (इंस्टिट्यूट ऑफ फाइन आर्ट्स) के तत्वावधान में ब्रिटेन में अपने कला का प्रदर्शन किया था। यहां संगीत कार्यक्रम के बाद लालगुड़ी द्वारा रचित एक नृत्य नाटिका ‘पंचेस्वरम’ का मंचन भी किया गया था।
[[दिल्ली विश्वविद्यालय|दिल्ली विश्वविद्याल]] से अवकाश ग्रहण के बाद इन्होंने एक विशेष संगीत प्रोजेक्ट पर कार्य करना प्रारम्भ किया, जो दुर्लभ संगीत वाद्य यंत्रों के द्वारा प्रस्तुत धुनों को परम्परागत ‘ध्रुपद’ और ‘ख्याल’ राग द्वारा नए राग में प्रस्तुत करने का है। यह प्रोजेक्ट आने वाली युवा पीढ़ी को संगीत के क्षेत्र में बहुत ही दुर्लभ अनुभव प्रदान करेगा।
==रचनाएं==
==संगीत पर आधारित नई धुनों, पुस्तकों और सीडी का निर्माण==
‘थिलानस’ और ‘वरनम’ के लिए सबसे प्रसिद्ध श्री लालगुडी जयरामन को आधुनिक समय में सबसे सफल शाश्त्रीय संगीतकारों में से एक माना जाता है। इनकी रचनाएं चार भाषाओं (तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और संस्कृत) में हैं। वे राग के सभी क्षेत्रों में संगीत रचना करते थे। इनकी शैली की विशेषता है इनकी रचनाओं का माधुर्य, ध्यानपूर्वक सूक्ष्म तालबद्ध का परिष्कृत आलिंगन। इनकी रचनाएं भरतनाट्यम नृत्यांगनाओं के बीच बहुत लोकप्रिय हैं।
इन्होंने आठ नए संगीत के रागों की रचना की है, ये राग हैं- बिस्वेस्वरी, पलास-सारंग, अनुरंजनी, आशिकी ललित, स्वनान्देस्वरी, कल्याणी बिलावल, शिवमंजरी और प्रभाती मंजरी (अपनी पत्नी मंजू की स्मृति में बनाया). इसके अतिरिक्त इन्होंने संगीत पर आधारित तीन पुस्तकों की भी रचना की है, ये हैं- ‘सितार एंड इट्स टेक्निक्स’, ‘म्यूजिक ऑफ इंडिया’ और ‘ऑन इंडियन म्यूजिक’. अपने [[अमेरिका]] प्रवास के दौरान इन्होंने ‘महर्षि गन्धर्व वेद’ नाम से  24 सीडी को 24 घंटों के संगीत के लिए रिकॉर्ड कराया।
 
इन्होंने बहुत से एल्बम और कैसेट्स का भी निर्माण EMI, HMV, ABK (USA), टीवी सीरीज, रिदम हाउस, आर्काइव म्यूजिक यूएसए, ‘टी’ सीरीज और संसार की अन्य कम्पनियों के साथ मिलकर किया है।
==संगीत के प्रति इनका लगाव==
पंडित देबू चौधरी को दुर्लभ संगीत और वाद्य यंत्रों पर आधारित रचनाओं का संग्रह करने में  विशेष लगाव है, जिसके परिणामस्वरुप इन्होने इस अनूठी परियोजना को प्रारंभ किया। पंडित जी का यह ड्रीम प्रोजेक्ट जब पूर्ण हो जाएगा तो यह भारतीय वाद्य संगीत के इतिहास में एक मील के पत्थर से कम नहीं होगा। इनकी अन्य उपलब्धियों में वर्ष [[1984]] में स्वीडन में 67 दिनों में 87 व्याख्यान हैं, जो 70 से अधिक कार्यक्रमों में दिए गए थे। विश्व स्तर पर आयोजित इन कार्यक्रमों में [[भारत सरकार]] ने इनको अपना पूर्ण सहयोग दिया था।
 
ये महान सितार वादकों के उस युग से सम्बन्ध रखते हैं, जिनमें प्रमुख हैं- उस्ताद विलायत खान, पंडित रवि शंकर और निखिल बनर्जी आदि. ये 17 फ्रेट के विशेषज्ञ हैं, जबकि अधिकांशतः सितार वादक 19 फ्रेट का सितार बजाते हैं।
==पुरस्कार एवं सम्मान==
==पुरस्कार एवं सम्मान==
*इन्हें वर्ष [[1963]] में म्यूजिक लवर्स एसोसिएशन ऑफ लालगुडी द्वारा ‘नाद विद्या तिलक’ से सम्मानित किया गया।
इन्हें [[भारत सरकार]] की तरफ से [[पद्मभूषण]]’ और ‘[[पद्मश्री]]’ जैसे प्रतिष्ठित सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी अलंकृत किया जा चुका है।
*भारती सोसायटी (न्यूयॉर्क) द्वारा इन्हें वर्ष [[1971]] में ‘विद्या संगीत कलारत्न’ से भी सम्मानित किया गया।
भारतीय [[संगीत नाटक अकादमी]] द्वारा इन्हें संगीत के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए पुरस्कृत किया जा चुका है। इन्हें कुछ समय पूर्व एशिया के एकमात्र संगीत विश्वविद्यालय ‘इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय’ खैरागढ़ ([[छत्तीसगढ़]]) द्वारा डी. लिट. की उपाधि से नवाजा जा चुका है।
*फेडेरेशन ऑफ म्यूजिक सभा (मद्रास) द्वारा ‘संगीत चूड़ामणि’ से इन्हें वर्ष 1971 में सम्मानित किया गया।
[[भारत सरकार]] के सार्वजनिक प्रसारण माध्यम ‘ऑल इंडिया रेडियो’ के 54वीं वर्षगांठ के अवसर पर वर्ष 2002 में देबू चौधरी के जीवन के इतिहास को प्रसारित किया गया।
*वर्ष [[1972]] में इन्हें भारत सरकार द्वारा अपने नागरिक सम्मान ‘[[पद्मश्री]]’ से सम्मानित किया गया।
हाल ही के वर्षों में इन्हें संगीत के क्षेत्र में आजीवन उपलब्धियों के लिए [[दिल्ली]], मुंबई और [[कोलकाता]] के विभिन्न सांस्कृतिक केन्द्रों द्वारा विशेष सम्मान समारोहों में कई ख्यातियों एवं उपाधियों से विभूषित किया गया है।
*इन्हें ईस्ट वेस्ट एक्सचेंज (न्यूयॉर्क) द्वारा ‘नाद विद्या रत्नाकर’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
*वर्ष [[1979]] में इन्हें तमिलनाडु सरकार और संगीत नाटक अकादमी द्वारा ‘स्टेट विद्वान’ के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
*वर्ष [[1994]] में इन्हें मैरीलैंड (अमेरिका) की मानद नागरिकता भी प्रदान की गयी।
*वर्ष 2001 में इन्हें भारत सरकार द्वारा अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया।
*इन्होंने वर्ष 2006 में फिल्म ‘श्रीनगरम’ में बेस्ट म्यूजिक डायरेक्शन के लिए ‘नेशनल फिल्म अवार्ड’ भी प्राप्त किया।
*कर्नाटक के मुख्यमंत्री द्वारा इन्हें ‘फर्स्ट चौदइया मेमोरिएल-लेवल पुरस्कार’ भी दिया गया।
*वर्ष 2010 में इन्हें संगीत नाटक अकादमी का सदस्य भी बनाया गया।

12:21, 22 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण

जन्म: 1935 (मायमेंसिंग, वर्तमान बांग्लादेश)

वर्तमान निवास स्थान: चितरंजन पार्क, नई दिल्ली (भारत)

कार्यक्षेत्र: सितार वादक और संगीत शिक्षक

पंडित देवब्रत चौधरी को भारतीय संगीत के क्षेत्र में ‘देबू’ के नाम से भी जाना जाता है. पंडित देवब्रत (देबू) चौधरी भारत के प्रमुख सितार वादक, भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में एक ख्याति प्राप्त संगीतकार और दिल्ली विश्वविद्यालय में संगीत के शिक्षक रह चुके हैं. इन्होंने ‘सेनिआ संगीत घराना’ के श्री पंचू गोपाल दत्ता और संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली खान से संगीत की शिक्षा ग्रहण की। इन्हें ‘पद्मभूषण’ और ‘पद्मश्री’ जैसे प्रतिष्ठित सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी अलंकृत किया जा चुका है।

ये संगीत से संबंधित कई पुस्तकों के लेखक, आठ नए संगीत रागों के जन्मदाता और बहुत से नए संगीत के धुनों के निर्माता भी हैं। इन्होंने वर्ष 1963 से देश-विदेश में बहुत से स्टेज शो, रेडियो और टीवी कार्यक्रमों में अपने संगीत की प्रस्तुति दी है। ये ‘सेनिया संगीत घराना’ मैहर (मध्य प्रदेश) के शास्त्रीय संगीत के ध्वज वाहक हैं। ये संगीत का शिक्षण कार्य करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के संगीत संकाय के डीन और विभागाध्यक्ष भी रह चुके हैं। इनकी संगीत के मधुर धुनों की एक अपनी अलग ही विशेषता है। इन्होंने बहुत से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त किए हैं। ये इस्कॉन मंदिर के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के आजीवन सदस्य भी हैं।

प्रारम्भिक एवं पारिवारिक जीवन

पंडित देवब्रत (चौधरी) का जन्म वर्ष 1935 में मायमेंसिंग (तत्कालीन भारत) वर्तमान बांग्लादेश में हुआ था। इन्होंने मात्र चार वर्ष की उम्र से ही सितार के साथ खेलना प्रारम्भ कर दिया था। उन्होंने अपने पहले सार्वजनिक संगीत कार्यक्रम का प्रदर्शन मात्र 12 वर्ष की अवस्था में ही कर दिया था। इनके संगीत के कार्यक्रम का आल इंडिया रेडिओ पर प्रथम प्रसारण 18 वर्ष की अवस्था में वर्ष 1953 में हुआ था। जीवन के 38 वर्ष बिताने के बाद इन्होंने सितार का प्रशिक्षण ‘सेनिआ घराने’ के महान संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली खान से लेना प्रारम्भ किया। इन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा प्राप्त की। दिल्ली विश्वविद्यालय से अवकाश प्राप्त करने के बाद ये वर्तमान में अपने पुत्र, पुत्री, दामाद और भतीजा-भतिजिओं के साथ चितरंजन पार्क, नई दिल्ली में रहते हैं।

शिक्षण एवं प्रशिक्षण कार्य

इन्होंने वर्ष 1971 से वर्ष 1982 तक दिल्ली विश्वविद्यालय में संगीत विभाग के रीडर के रूप में अध्यापन का कार्य किया और वर्ष 1985 से वर्ष 1988 तक ये इसी विभाग में डीन और विभागाध्यक्ष भी रहे। इन्होंने महर्षि इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी (अब महर्षि यूनिवर्सिटी ऑफ मनेजमेंट), अमेरिका में भी वर्ष 1991 से वर्ष 1994 तक भारतीय शास्त्रीय संगीत को पाश्चात्य देशों में प्रचार-प्रसार में अपनी विशेष सेवाएं दी हैं।

दिल्ली विश्वविद्याल से अवकाश ग्रहण के बाद इन्होंने एक विशेष संगीत प्रोजेक्ट पर कार्य करना प्रारम्भ किया, जो दुर्लभ संगीत वाद्य यंत्रों के द्वारा प्रस्तुत धुनों को परम्परागत ‘ध्रुपद’ और ‘ख्याल’ राग द्वारा नए राग में प्रस्तुत करने का है। यह प्रोजेक्ट आने वाली युवा पीढ़ी को संगीत के क्षेत्र में बहुत ही दुर्लभ अनुभव प्रदान करेगा।

संगीत पर आधारित नई धुनों, पुस्तकों और सीडी का निर्माण

इन्होंने आठ नए संगीत के रागों की रचना की है, ये राग हैं- बिस्वेस्वरी, पलास-सारंग, अनुरंजनी, आशिकी ललित, स्वनान्देस्वरी, कल्याणी बिलावल, शिवमंजरी और प्रभाती मंजरी (अपनी पत्नी मंजू की स्मृति में बनाया). इसके अतिरिक्त इन्होंने संगीत पर आधारित तीन पुस्तकों की भी रचना की है, ये हैं- ‘सितार एंड इट्स टेक्निक्स’, ‘म्यूजिक ऑफ इंडिया’ और ‘ऑन इंडियन म्यूजिक’. अपने अमेरिका प्रवास के दौरान इन्होंने ‘महर्षि गन्धर्व वेद’ नाम से 24 सीडी को 24 घंटों के संगीत के लिए रिकॉर्ड कराया।

इन्होंने बहुत से एल्बम और कैसेट्स का भी निर्माण EMI, HMV, ABK (USA), टीवी सीरीज, रिदम हाउस, आर्काइव म्यूजिक यूएसए, ‘टी’ सीरीज और संसार की अन्य कम्पनियों के साथ मिलकर किया है।

संगीत के प्रति इनका लगाव

पंडित देबू चौधरी को दुर्लभ संगीत और वाद्य यंत्रों पर आधारित रचनाओं का संग्रह करने में विशेष लगाव है, जिसके परिणामस्वरुप इन्होने इस अनूठी परियोजना को प्रारंभ किया। पंडित जी का यह ड्रीम प्रोजेक्ट जब पूर्ण हो जाएगा तो यह भारतीय वाद्य संगीत के इतिहास में एक मील के पत्थर से कम नहीं होगा। इनकी अन्य उपलब्धियों में वर्ष 1984 में स्वीडन में 67 दिनों में 87 व्याख्यान हैं, जो 70 से अधिक कार्यक्रमों में दिए गए थे। विश्व स्तर पर आयोजित इन कार्यक्रमों में भारत सरकार ने इनको अपना पूर्ण सहयोग दिया था।

ये महान सितार वादकों के उस युग से सम्बन्ध रखते हैं, जिनमें प्रमुख हैं- उस्ताद विलायत खान, पंडित रवि शंकर और निखिल बनर्जी आदि. ये 17 फ्रेट के विशेषज्ञ हैं, जबकि अधिकांशतः सितार वादक 19 फ्रेट का सितार बजाते हैं।

पुरस्कार एवं सम्मान

इन्हें भारत सरकार की तरफ से ‘पद्मभूषण’ और ‘पद्मश्री’ जैसे प्रतिष्ठित सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी अलंकृत किया जा चुका है। भारतीय संगीत नाटक अकादमी द्वारा इन्हें संगीत के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए पुरस्कृत किया जा चुका है। इन्हें कुछ समय पूर्व एशिया के एकमात्र संगीत विश्वविद्यालय ‘इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय’ खैरागढ़ (छत्तीसगढ़) द्वारा डी. लिट. की उपाधि से नवाजा जा चुका है। भारत सरकार के सार्वजनिक प्रसारण माध्यम ‘ऑल इंडिया रेडियो’ के 54वीं वर्षगांठ के अवसर पर वर्ष 2002 में देबू चौधरी के जीवन के इतिहास को प्रसारित किया गया। हाल ही के वर्षों में इन्हें संगीत के क्षेत्र में आजीवन उपलब्धियों के लिए दिल्ली, मुंबई और कोलकाता के विभिन्न सांस्कृतिक केन्द्रों द्वारा विशेष सम्मान समारोहों में कई ख्यातियों एवं उपाधियों से विभूषित किया गया है।