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'''आल्हा ऊदल''' [[कालिंजर]] और [[महोबा]] के वीर दो भाई थे। कालिंजर के राजा परमार के दरबार में [[जगनिक]] नाम के एक [[कवि]] ने 'आल्हाखण्ड' नामक एक काव्य रचा था, उसमें इन वीरों की गाथा वर्णित है। इस ग्रंथ में इन दो वीरों की 52 लड़ाइयों का रोमांचकारी वर्णन है। अंतिम लड़ाई उन्होंने [[पृथ्वीराज चौहान]] के साथ लड़ी थी।
'''आल्हा ऊदल''' [[कालिंजर]] और [[महोबा]] के वीर दो भाई थे। कालिंजर के राजा परमार के दरबार में [[जगनिक]] नाम के एक [[कवि]] ने 'आल्हाखण्ड' नामक एक काव्य रचा था, उसमें इन वीरों की गाथा वर्णित है। इस ग्रंथ में इन दो वीरों की 52 लड़ाइयों का रोमांचकारी वर्णन है। अंतिम लड़ाई उन्होंने [[पृथ्वीराज चौहान]] के साथ लड़ी थी।
==परिचय==
==परिचय==
आल्हा और ऊदल, दोनों भाई चंदेल राजा परमार देव के संरक्षण में बढ़े हुए, लेकिन राज दरबार के षड्यंत्रों के कारण वहां टिक ना सके और दोनों [[कन्नौज]] के गहड़वाल राजा जयचंद के पास चले गए। कुछ समय बाद [[दिल्ली]] के चौहान राजा पृथ्वीराज ने जब चंदेलों पर आक्रमण कर दिया तो स्वदेश प्रेम दोनों भाइयों को महोबा खींच लाया। वे अपने महोबा के लिए लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गए। उनके शौर्य और युद्ध कौशल का वर्णन कवि [[जगनिक]] ने अपने ग्रंथ ‘आल्हाखण्ड’ में किया है। यह ग्रंथ [[उत्तर भारत]] में बहुत ज्यादा लोकप्रिय है।
आल्हा और ऊदल, दोनों भाई चंदेल राजा परमार देव के संरक्षण में बढ़े हुए, लेकिन राज दरबार के षड्यंत्रों के कारण वहां टिक ना सके और दोनों [[कन्नौज]] के गहड़वाल राजा जयचंद के पास चले गए। कुछ समय बाद [[दिल्ली]] के चौहान राजा पृथ्वीराज ने जब चंदेलों पर आक्रमण कर दिया तो स्वदेश प्रेम दोनों भाइयों को महोबा खींच लाया। वे अपने महोबा के लिए लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गए। उनके शौर्य और युद्ध कौशल का वर्णन कवि [[जगनिक]] ने अपने ग्रंथ ‘आल्हाखण्ड’ में किया है। यह ग्रंथ [[उत्तर भारत]] में बहुत ज्यादा लोकप्रिय है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=77|url=}}</ref>
==बुंदेली इतिहास के महानायक==
==बुंदेली इतिहास के महानायक==
बुंदेली इतिहास में आल्हा ऊदल का नाम बड़े ही आदर भाव से लिया जाता है। बुंदेली कवियों ने आल्हा का गीत भी बनाया है, जो [[सावन]] के महीने में [[बुंदेलखंड]] के हर गांव-गली में गाया जाता है। जैसे पानीदार यहां का पानी आग, यहां के पानी में शौर्य गाथा के रूप से गाया जाता है। यही नहीं, बड़े लड़ैया महोबे वाले खनक-खनक बाजी तलवार आज भी हर बुंदेला की जुबान पर है।
बुंदेली इतिहास में आल्हा ऊदल का नाम बड़े ही आदर भाव से लिया जाता है। बुंदेली कवियों ने आल्हा का गीत भी बनाया है, जो [[सावन]] के महीने में [[बुंदेलखंड]] के हर गांव-गली में गाया जाता है। जैसे पानीदार यहां का पानी आग, यहां के पानी में शौर्य गाथा के रूप से गाया जाता है। यही नहीं, बड़े लड़ैया महोबे वाले खनक-खनक बाजी तलवार आज भी हर बुंदेला की जुबान पर है।
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*[http://hindi.webdunia.com/navratri-special/maihar-mata-sharda-temple-of-alha-and-udal-116100100030_1.html आल्हा-ऊदल सैकड़ों साल से कर रहे हैं माँ शारदा की आरती]
*[http://hindi.webdunia.com/navratri-special/maihar-mata-sharda-temple-of-alha-and-udal-116100100030_1.html आल्हा-ऊदल सैकड़ों साल से कर रहे हैं माँ शारदा की आरती]
==संबंधित लेख==
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07:06, 5 मई 2018 के समय का अवतरण

आल्हा ऊदल कालिंजर और महोबा के वीर दो भाई थे। कालिंजर के राजा परमार के दरबार में जगनिक नाम के एक कवि ने 'आल्हाखण्ड' नामक एक काव्य रचा था, उसमें इन वीरों की गाथा वर्णित है। इस ग्रंथ में इन दो वीरों की 52 लड़ाइयों का रोमांचकारी वर्णन है। अंतिम लड़ाई उन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ लड़ी थी।

परिचय

आल्हा और ऊदल, दोनों भाई चंदेल राजा परमार देव के संरक्षण में बढ़े हुए, लेकिन राज दरबार के षड्यंत्रों के कारण वहां टिक ना सके और दोनों कन्नौज के गहड़वाल राजा जयचंद के पास चले गए। कुछ समय बाद दिल्ली के चौहान राजा पृथ्वीराज ने जब चंदेलों पर आक्रमण कर दिया तो स्वदेश प्रेम दोनों भाइयों को महोबा खींच लाया। वे अपने महोबा के लिए लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गए। उनके शौर्य और युद्ध कौशल का वर्णन कवि जगनिक ने अपने ग्रंथ ‘आल्हाखण्ड’ में किया है। यह ग्रंथ उत्तर भारत में बहुत ज्यादा लोकप्रिय है।[1]

बुंदेली इतिहास के महानायक

बुंदेली इतिहास में आल्हा ऊदल का नाम बड़े ही आदर भाव से लिया जाता है। बुंदेली कवियों ने आल्हा का गीत भी बनाया है, जो सावन के महीने में बुंदेलखंड के हर गांव-गली में गाया जाता है। जैसे पानीदार यहां का पानी आग, यहां के पानी में शौर्य गाथा के रूप से गाया जाता है। यही नहीं, बड़े लड़ैया महोबे वाले खनक-खनक बाजी तलवार आज भी हर बुंदेला की जुबान पर है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 77 |

बाहरी कड़ियाँ

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