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अर्थात देवों के लिए यज्ञार्थ जनमेजय ने आसन्दीवत् में एक स्वर्ण अलंकृत पीली माला धारण किए हुए श्याम रंग का [[अश्व]] बांधा। परीक्षित की राजधानी [[हस्तिनापुर]] में थी और इसी से जान पड़ता है कि आसंदीवत् हस्तिनापुर का ही दूसरा नाम था। किंतु यह अभिज्ञान पूर्णतः निश्चित नहीं कहा जा सकता क्योंकि [[महाभारत]] <ref>महाभारत 13,5,34</ref> में जनमेजय की राज्यसभा को [[तक्षशिला]] में बताया गया है। [[पाणिनी]] ने [[अष्टाध्यायी]] 4,2,12 और 4,2,86 में इसके नाम का उल्लेख किया है। काशिका 24,226 के अनुसार (कुरुक्षेत्रे परिणाहि स्थले) यह कुरुक्षेत्र के परिवर्ती प्रदेश का अभिधान था। इसे अहिस्थल भी कहते थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=72|url=}}
अर्थात देवों के लिए यज्ञार्थ जनमेजय ने आसन्दीवत् में एक स्वर्ण अलंकृत पीली माला धारण किए हुए श्याम रंग का [[अश्व]] बांधा। परीक्षित की राजधानी [[हस्तिनापुर]] में थी और इसी से जान पड़ता है कि आसंदीवत् हस्तिनापुर का ही दूसरा नाम था। किंतु यह अभिज्ञान पूर्णतः निश्चित नहीं कहा जा सकता क्योंकि [[महाभारत]] <ref>महाभारत 13,5,34</ref> में जनमेजय की राज्यसभा को [[तक्षशिला]] में बताया गया है। [[पाणिनी]] ने [[अष्टाध्यायी]] 4,2,12 और 4,2,86 में इसके नाम का उल्लेख किया है। काशिका 24,226 के अनुसार (कुरुक्षेत्रे परिणाहि स्थले) यह कुरुक्षेत्र के परिवर्ती प्रदेश का अभिधान था। इसे अहिस्थल भी कहते थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=72|url=}}</ref>




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आसंदीवत पाणिनि कालीन भारतवर्ष का एक स्थान था। यह जनमेजय परीक्षित की राजधानी का नाम था, इसी में उन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया था।[1]

पौराणिक उल्लेख

पांडवों के वंशज तथा परीक्षित के पुत्र जनमेजय की राजधानी थी। ऐतरेय ब्राह्मण की एक गाथा 8,21 में इसका उल्लेख इस प्रकार है-
'आसंदीवतिधान्यादं रुकमणं हरितंत्रजम्। अश्वं बबंधसारंग देवभ्यो जनमेजय इति'।

अर्थात देवों के लिए यज्ञार्थ जनमेजय ने आसन्दीवत् में एक स्वर्ण अलंकृत पीली माला धारण किए हुए श्याम रंग का अश्व बांधा। परीक्षित की राजधानी हस्तिनापुर में थी और इसी से जान पड़ता है कि आसंदीवत् हस्तिनापुर का ही दूसरा नाम था। किंतु यह अभिज्ञान पूर्णतः निश्चित नहीं कहा जा सकता क्योंकि महाभारत [4] में जनमेजय की राज्यसभा को तक्षशिला में बताया गया है। पाणिनी ने अष्टाध्यायी 4,2,12 और 4,2,86 में इसके नाम का उल्लेख किया है। काशिका 24,226 के अनुसार (कुरुक्षेत्रे परिणाहि स्थले) यह कुरुक्षेत्र के परिवर्ती प्रदेश का अभिधान था। इसे अहिस्थल भी कहते थे।[5]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वैदिक इंडेक्स 1।72
  2. कुरुक्षेत्रे परेणाहिस्थले, कात्या. श्रौ. 24।226
  3. पाणिनीकालीन भारत |लेखक: वासुदेवशरण अग्रवाल |प्रकाशक: चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी-1 |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 86 |
  4. महाभारत 13,5,34
  5. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 72 |

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