"राधाकृष्ण": अवतरणों में अंतर
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* राधाकृष्ण [[रांची]] में एक समाज कल्याण विभाग की [[पत्रिका]] के संपादक थे। इनमें चुटीले व्यंग लिखने की अद्भुत शक्ति थी। | * राधाकृष्ण [[रांची]] में एक समाज कल्याण विभाग की [[पत्रिका]] के संपादक थे। इनमें चुटीले व्यंग लिखने की अद्भुत शक्ति थी। | ||
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* अब तक कई [[उपन्यास]] तथा कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें रूपान्तर एवं सजला को [[हिन्दी-साहित्य]] में समुचित आदर मिला है। | * अब तक कई [[उपन्यास]] तथा कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें रूपान्तर एवं सजला को [[हिन्दी-साहित्य]] में समुचित आदर मिला है। | ||
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साहित्य की दुनिया में पाँच दशकों तक लगातार सक्रिय रहने वाले राधाकृष्ण का जीवन संघर्ष में ही व्यतीत हुआ। अभाव और वेदना के बीच। बचपन से लेकर बुढ़ापे तक का उनका सफर किसी ट्रेजडी से कम नहीं है। फिर भी राधाकृष्ण जी जिए अपनी शर्तों पर ही। | |||
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11:22, 25 जनवरी 2020 के समय का अवतरण
राधाकृष्ण
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पूरा नाम | राधाकृष्ण |
जन्म | 8 सितंबर, 1910 |
जन्म भूमि | रांची, (झारखंड) |
मृत्यु | 3 फ़रवरी, 1979 |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | उपन्यासकार, कहानीकार, नाटककार, व्यंग्यकार, कवि |
मुख्य रचनाएँ | 'रामलीला', 'सजला', 'गेंद और गोल', 'गल्पिका', 'फुटपाथ' आदि। |
भाषा | हिंदी |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | राधाकृष्ण रांची में एक समाज कल्याण विभाग की पत्रिका के संपादक थे। इनमें चुटीले व्यंग लिखने की अद्भुत शक्ति थी। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
राधाकृष्ण (अंग्रेज़ी: Radhakrishna, जन्म: 8 सितंबर, 1910; मृत्यु: 3 फ़रवरी, 1979) बिहार में जन्मे हिन्दी के यशस्वी कहानीकार थे। हालांकि उन्होंने लेखन की शुरुआत कहानी से की, लेकिन आगे चलकर उपन्यास भी लिखे, संस्मरण भी लिखा, हास्य-व्यंग्य, नाटक, एकांकी पर भी अपनी कलम चलाई और बच्चों के लिए भी खूब मन से लिखा। यानी साहित्य की ऐसी कोई विधा नहीं, जिसमें राधाकृष्ण की कलम न चली हो।
संक्षिप्त परिचय
- राधाकृष्ण रांची में एक समाज कल्याण विभाग की पत्रिका के संपादक थे। इनमें चुटीले व्यंग लिखने की अद्भुत शक्ति थी।
- वे प्रेमचंद के ‘हंस’ के समय से ही लिखते रहे।
- राधाकृष्ण की कहानियों में देश एवं समाज की कुरीतियों पर गहरा व्यंग्य रहता है। भाषा सरल, सीधी किन्तु हृदयग्राही है।
- अब तक कई उपन्यास तथा कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें रूपान्तर एवं सजला को हिन्दी-साहित्य में समुचित आदर मिला है।
- उनकी हिन्दी कहानी जगत् में अपनी अलग पहचान थी।
साहित्य की दुनिया में पाँच दशकों तक लगातार सक्रिय रहने वाले राधाकृष्ण का जीवन संघर्ष में ही व्यतीत हुआ। अभाव और वेदना के बीच। बचपन से लेकर बुढ़ापे तक का उनका सफर किसी ट्रेजडी से कम नहीं है। फिर भी राधाकृष्ण जी जिए अपनी शर्तों पर ही।
प्रेमचंद का लगाव
राधाकृष्ण को प्रेमचंद अपने पुत्र की तरह मानते थे, उनका खर्च चलाते थे और जब प्रेमचंद का निधन हो गया तो राधाकृष्ण 'हंस' को संभालने रांची से बनारस चले गए। यह राधाकृष्ण ही थे, जिनकी कथा-प्रतिभा को देखकर कथा सम्राट प्रेमचंद ने कहा था- यदि हिंदी के उत्कृष्ट कथा-शिल्पियों की संख्या काट-छाँटकर पाँच भी कर दी जाए, तो उनमें एक नाम राधाकृष्ण का होगा। आज के समय में सब लेखक राधाकृष्ण को भूल गए, जिसने अपने समय में अपनी मंजिल खुद तय की। अपनी कहानियों का शिल्प खुद गढ़ा। वह किसी लीक पर नहीं चला। कोई उन पर दोषारोपण नहीं कर सकता कि उनकी कहानियों पर अमुक का प्रभाव है।
प्रमुख रचनाएँ
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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