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गुलाबो सपेरा
गुलाबो सपेरा
गुलाबो सपेरा
पूरा नाम गुलाबो सपेरा
जन्म 1973
जन्म भूमि राजस्थान
पति/पत्नी पुत्री- राखी सपेरा
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र लोक नृत्य
पुरस्कार-उपाधि पद्म श्री, 2016
प्रसिद्धि कालबेलिया नृत्यांगना
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी गुलाबो सपेरा राजस्थान के ग्रामीण इलाकों की लड़कियों को मुफ्त में पढ़ाने से लेकर अजमेर में डांस स्कूल खोलने में भूमिका निभा रही हैं।
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गुलाबो सपेरा (अंग्रेज़ी: Gulabo Sapera, जन्म- 1973) भारत की प्रसिद्ध कालबेलिया नृत्यांगना हैं। वह अपने कबीले का परचम देश-विदेश में लहरा रही हैं। गुलाबो सपेरा वहीं महिला हैं, जिन्हें पैदा होते ही समुदाय के लोगों ने जमीन में जिंदा दफना दिया था। 4 घंटे जमीन में दबे रहने के बावजूद उनकी जान बच गई तो लोगों ने ‘डायन’ नाम दे दिया। ​​बीन की धुन पर नृत्य करते-करते वे नृत्य सीख गईं। कबीले वालों को यह बात पसंद नहीं आई। इसके बावजूद वे रुकी नहीं और अपनी मेहनत और लगन से मुश्किलों को पार करती गईं। आज दुनिया के 165 देशों में गुलाबो सपेरा कालबेलिया नृत्य का डंका बजा चुकी हैं। उन पर कई डाक्युमेंट्री बनीं और किताबें भी लिखीं गईं। भारत सरकार ने उन्हें 'पद्म श्री' से सम्मानित किया है।

परिचय

राजस्थान के सपेरों का एक कबीला, जहां एक से ज्यादा लड़की होने पर उसे जमीन में जिंदा दफना दिया जाता था। जहां लड़की पैदा होना किसी अभिशाप से कम नहीं था। आज उसी कबीले की लड़कियां डांसर, सिंगर, एक्टर बन गई हैं। अपने कबीले का परचम देश-विदेश में लहरा रही हैं। यह सब संभव हो पाया कालबेलिया डांस को ख्याति दिलाने वाली गुलाबो सपेरा की वजह से।[1]

कालबेलिया समुदाय की गुलाबो सपेरा का जन्म अजमेर के कोटड़ा गांव में हुआ था। माता-पिता की वो 7वीं संतान थीं। पहले से उनकी 3 बहनें और 3 भाई थे तो प्रथा के अनुसार कबीले वालों ने मां को बिना बताए उन्हें जमीन में दफना दिया था। गुलाबो सपेरा बताती हैं, ‘मेरे पिताजी देवी के साधक थे। वे बच्चों को मारने के खिलाफ थे। जिस दिन मेरा जन्म हुआ, उस दिन पिताजी किसी काम से बाहर गए थे। मां बिस्तर पर पड़ी थी। कबीले वालों ने मौके का फायदा उठाया। मुझे चुपके से मिट्टी में दफन कर वे चले आए। मां को जब होश आया तो उन्होंने मुझे खोजना शुरू किया। 4 घंटे के बाद कबीले वालों ने बताया, बच्ची को जमीन में गाड़ दिया है। वहां मेरी मां और मौसी भागते हुए गईं और जमीन खोदकर मुझे निकाला। भगवान की दया थी कि 4 घंटे जमीन में गड़े रहने के बावजूद मैं जिंदा बच गई।’

समुदाय से परिवार का बहिष्कार

गुलाबो सपेरा की मां उन्हें जंगल से वापस लाईं तो कबीले वालों ने मां का विरोध किया। सब बच्ची को डायन कहकर पुकारने लगे। तब तक उनके पिता भी घर आ गए थे। दोनों ने अपनी बच्ची को सबसे बचाया। जिसके बाद उन्हें समुदाय से बहिष्कृत कर दिया गया। गुलाबो सपेरा के पिता एक सपेरा थे। सांपों की टोकरी के साथ गांव-गांव घूमते थे। सांपों को जगलिंग और बीन बजाकर हिप्नोटाइज करते थे। कबीले से बचाए रखने के लिए गुलाबो के पिता उन्हें छह महीने तक लगातार अपने साथ गांव-गांव लेकर जाते रहे। बचपन के दिनों को याद कर गुलाबो सपेरा कहती हैं, ‘पिता की बीन पर सांप नाचते थे। सांपों को नाचते देख मैंने भी थिरकना शुरू कर दिया। मैं सांपों का जूठा दूध पीकर बड़ी हुई हूं। मेरा डांस करना देख कबीले वाले पिताजी को तंज करते थे। लोग लड़ते कि पहले इस बच्ची को बचाया और अब इसे नचा रहे हो।’[1]

रबड़ की गुड़िया

भारत के सबसे व्यस्त सांस्कृतिक केंद्रों में से एक पुष्कर मेला, जहां सबसे पहले गुलाबो सपेरा को डांस करने का मौका मिला। उन्हें उस वक्त के पुष्कर मेले में राजस्थान पर्यटन विभाग के अफसर तृप्ति पांडे और हिम्मत सिंह ने नोटिस किया। वहां उन्हें ‘रबड़ की गुड़िया’ कहकर बुलाया गया। गुलाबो बताती हैं, 'कबीले वालों के कारण बाहर जाकर डांस करना बंद हो गया था। फिर फाल्गुन महीने में पुष्कर मेले में घूमने गई, तो वहां डांस करने का मौका मिला। तब मैं करीब 10 साल की थी। मेले में शाम के समय मैं डांस कर रही थी। तभी तृप्ति पांडे और हिम्मत सिंह ने मुझे देखा और मेले में डांस करने को कहा। मुझे खूब सराहा गया।

तृप्ति पांडे जो इला अरुण की बहन हैं, उनको मुझ में टैलेंट दिखा। मुझे भी बड़े मंच पर डांस करके बहुत अच्छा लगा, लेकिन कबीले के डर से मुझे वापस गांव आना पड़ा। तृप्ति जी मुझसे मिलना चाहती थीं। तब तक मैं वापस गांव आ गई थी। उन्होंने किसी को मुझे ढूंढने भेजा है, यह बात कहीं से पता चल गई।’ गुलाबो को यह बात अपने सपनों को पूरा करने का अवसर लगा। वह अपने एक भाई की मदद से फिर से मेला पहुंचीं। अपनी परफॉर्मेंस से स्किल को निखारने में लग गईं।

अमेरिका में नृत्य प्रदर्शन

1985 में गुलाबो सपेरा को अमेरिका में हुए एक कल्चरल प्रोग्राम में डांस करने का मौका मिला। इस बड़े मौके में जाने से एक दिन पहले ही उनके पिता की मौत हो गई। पिता के सपनों को पूरा करने और 'कालबेलिया डांस' को पहचान दिलाने के लिए वे अमेरिका के लिए रवाना हुईं। वह बताती हैं, ‘अमेरिका जाना मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा मौका था। पिता की मौत के बाद सबने चाहा कि मैं अमेरिका न जाऊं। मेरे लिए एक तरफ पिता को खोने का दर्द था तो दूसरी तरफ उनके सपने को पूरा करने का सफर। मैंने तय किया कि पिताजी तो रहे नहीं, लेकिन उनके सपने को जरूर पूरा करूंगी। ये सोचकर जाने का फैसला किया। मेरा डांस अमेरिका के लोगों को भी बहुत पसंद आया। मुझे अमेरिका में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से मिलने का मौका मिला। राजीव जी ने मुझसे राखी भी बंधवाई।’[1]

गुलाबो सपेरा का डांस अमेरिका में इतना पसंद किया गया कि इसके बाद उन्हें दुनिया के 165 देशों में डांस सिखाने का मौका मिला। गुलाबो को पहचान मिली, तो पहली बार कबीले वालों ने उनका खुशी से स्वागत किया। गुलाबो सपेरा कहती हैं, ‘जब मैं अमेरिका में थी, तब मीडिया में मेरी काफी तारीफ हो रही थी। जिसकी वजह से जब मैं वापस आई तो कबीले वालों ने मुझसे कहा, 'हमें तेरे जैसे और डांसर चाहिए'। जवाब में मैंने कहा- 'बेटियां तो आप जिंदा रखते ही नहीं तो मैं किसे सिखाऊं। वह दिन मेरे लिए अमेरिका जाने से भी बड़ा था। जब सबने मुझसे वादा किया कि अब से लड़कियों की जान नहीं लेंगे। उसी दिन मैंने ठाना कि अब हर घर में एक गुलाबो होगी।'

इस तरह गुलाबो सदियों से चली आ रही लड़कियों को मारने की कुप्रथा बंद करवाने में कामयाब रहीं। आज उनके सुमदाय की लड़कियां कालबेलिया डांस करने के साथ पढ़ाई कर अलग-अलग क्षेत्रों में आगे बढ़ रही हैं।

पुरस्कार व सम्मान

गुलाबो सपेरा को समय-समय पर कई नेशनल-इंटरनेशनल पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। भारत सरकार ने इन्हें 2016 में 'पद्म श्री' के नागरिक सम्मान से सम्मानित किया था।

कालबेलिया प्रशिक्षक

गुलाबो सपेरा कहती हैं, ‘मुझे देश से ज्यादा विदेशों में सराहा गया है। मुझ पर फ्रेंच के थियरी रॉबिन और वेरोनिक गुइलियन ने एक बुक भी लिखी है। मैंने फ्रांस में 10 से ज्यादा एलबम बनाए हैं। फ्रांस रेडियो पर भी गाने का कई बार मौका मिला। ‘गुलाबी सपेरा’ नाम से मेरा एक एलबम वहां काफी पॉपुलर हुआ था। मेरे सबसे ज्यादा स्टूडेंट डेनमार्क में हैं। हर साल मैं वहां एक बार डांस सिखाने जाती हूं, वहां मेरा अपना स्टूडियो है। अब तक मैंने डेनमार्क में करीब 5000 से ज्यादा लड़कियों को डांस सिखा चुकी हूं।’ वह अब राजस्थान के ग्रामीण इलाकों की लड़कियों को मुफ्त में पढ़ाने से लेकर अजमेर में डांस स्कूल खोलने में भूमिका निभा रही हैं। उनकी बेटी राखी सपेरा भी उनकी कला को आगे ले जा रही हैं।[1]


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