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-[[कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी]]
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+[[नर्मद]]
+[[नर्मद]]
||[[चित्र:Narmad.jpg|border|right|100px|नर्मद]]'नर्मद' [[गुजराती भाषा]] के युग प्रवर्तक माने जाने वाले रचनाकार थे। जिस प्रकार [[हिन्दी साहित्य]] में आधुनिक काल के आरंभिक अंश को 'भारतेंदु युग' संज्ञा दी जाती है, उसी प्रकार गुजराती में नवीन चेतना के प्रथम कालखंड को 'नर्मद युग' कहा जाता है। भारतेंदु की तरह ही [[नर्मद]] की प्रतिभा भी सर्वतोमुखी थी। नर्मद ने नए विषयों पर पद्य और गद्य में रचनाएँ कीं। प्रकृति स्वतंत्रता आदि विषयों पर रचनाएँ आरंभ करने का श्रेय नर्मद को जाता है। 'मारी हकीकत' नामक उनकी [[आत्मकथा]] को गुजराती की पहली आत्मकथा होने का गौरव प्राप्त है। उनकी अधिकांश कविताएँ [[1855]] और [[1867]] के बीच लिखी गईं। गुजराती के प्रथम कोश का निर्माण उन्होंने बहुत आर्थिक हानि उठाकर भी किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नर्मद]]
||[[चित्र:Narmad.jpg|border|right|100px|नर्मद]]'नर्मद' [[गुजराती भाषा]] के युग प्रवर्तक माने जाने वाले रचनाकार थे। जिस प्रकार [[हिन्दी साहित्य]] में आधुनिक काल के आरंभिक अंश को 'भारतेंदु युग' संज्ञा दी जाती है, उसी प्रकार गुजराती में नवीन चेतना के प्रथम कालखंड को 'नर्मद युग' कहा जाता है। भारतेंदु की तरह ही [[नर्मद]] की प्रतिभा भी सर्वतोमुखी थी। नर्मद ने नए विषयों पर पद्य और गद्य में रचनाएँ कीं। प्रकृति स्वतंत्रता आदि विषयों पर रचनाएँ आरंभ करने का श्रेय नर्मद को जाता है। 'मारी हकीकत' नामक उनकी [[आत्मकथा]] को गुजराती की पहली आत्मकथा होने का गौरव प्राप्त है। उनकी अधिकांश कविताएँ [[1855]] और [[1867]] के बीच लिखी गईं। गुजराती के प्रथम कोश का निर्माण उन्होंने बहुत आर्थिक हानि उठाकर भी किया था।→अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नर्मद]]
-[[हरिशंकर शर्मा]]
-[[हरिशंकर शर्मा]]
-[[रघुवीर चौधरी]]
-[[रघुवीर चौधरी]]

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