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'''बिरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Birendra Kumar Bhattacharya'', जन्म- [[14 अक्टूबर]], [[1924]]; मृत्यु- [[6 अगस्त]], [[1997]]) असमिया [[साहित्यकार]] थे। इनके द्वारा रचित [[उपन्यास]] 'इयारुइंगम' के लिये उन्हें [[1961]] में '[[साहित्य अकादमी पुरस्कार]]' (असमिया) से सम्मानित किया गया था। [[1979]] में उन्हें '[[ज्ञानपीठ पुरस्कार]]' से सम्मानित किया गया। समाजवादी विचारों से प्रेरित बिरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य [[कहानीकार]], [[कवि]], निबंधकार और पत्रकार थे। वे साहित्य अकादमी, दिल्ली और असम साहित्य सभा के अध्यक्ष भी रहे।
#पुनर्प्रेषित [[बीरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य]]
==परिचय==
भारतीय साहित्य के यशस्वी हस्ताक्षर बिरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य का जन्म 14 अक्टूबर, 1924 को [[असम]] के पूर्वी अंचल में, एक [[चाय]] बागान परिसर में हुआ। जोरहाट गवर्नमेंट हाई स्कूल और [[गुवाहाटी]] के काटन कालेज में पढ़ाई के बाद, वे [[साहित्य]] लेखन, पत्रकारिता और स्वाधीनता आन्दोलन में एक साथ कूद पड़े और तीनों ही क्षेत्र में अपने समर्पित योगदान के लिए अपनी विशिष्ट पहचान बनायी।<ref>{{cite web |url= https://www.pustak.org/index.php/books/authorbooks/Birendra%20Kumar%20Bhattacharya|title=बीरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य|accessmonthday=01 अक्टूबर|accessyear=2022 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=pustak.org |language=हिंदी}}</ref>
 
पिछले पचास सालों में बिरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य के पचास से अधिक ग्रंथ प्रकाशित हैं, जिनमें [[उपन्यास]], कहानी-संग्रह, कविता-संकलन, यात्रा-वृत्त तथा [[निबंध]], लोक साहित्य तथा गद्य लेखन सभी सम्मिलित है। अपने लेखन के लिए विभिन्न राष्ट्रीय पुरस्कारों तथा साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित हुए।
==सरल स्वभाव==
देश का सर्वोच्च सम्मान प्राप्त बड़ा लेखक होने के साथ-साथ बिरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य बहुत सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। अहंकार तो उन्हें छू भी नहीं सका था। साहित्य अकादेमी जैसी सर्वोच्च साहित्यिक संस्था का अध्यक्ष होते हुए भी वे युवा लेखकों की बैठकों में शामिल होने में अत्यंत प्रसन्नता अनुभव करते थे। जब वे साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष थे तो एक लेखक ने उनके सामने, साधारण बातचीत के दौरान, प्रस्ताव रखा था कि साहित्य अकादेमी द्वारा बाल साहित्य को मान्यता दी जानी चाहिए और हर साल कम से कम एक पुरस्कार, भारतीय भाषाओं के बाल साहित्य लेखक को दिया जाना चाहिए, लेकिन इसकी राशि दूसरे पुरस्कारों के समान हो। बाल साहित्य को साहित्य अकादेमी साहित्य ही न माने यह बहुत गलत बात है। बिरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य ने लिखित प्रस्ताव देने को कहा था और उसे [[संस्कृति मंत्रालय]] में भेजने का वायदा किया। उस प्रस्ताव पर तो कुछ नहीं हुआ किंतु साहित्य अकादेमी ने बाल साहित्य की अंतर भारतीय पुस्तकमाला प्रकाशित करना मान लिया।<ref name="pp">{{cite web |url=https://samtamarg.in/2021/12/21/birendra-kumar-bhattacharya-lonely-writer-of-his-line-mastram-kapoor-3rd-installment-and-final-installment/ |title=अपनी पंक्ति का अकेला लेखक|accessmonthday=01 अक्टूबर|accessyear=2022 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=samtamarg.in |language=हिंदी}}</ref>
==लेखन कार==
बिरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य ने [[कहानी]], [[उपन्यास]], यात्रावृत्त, [[निबंध]] आदि विभिन्न विधाओं में पचास से अधिक पुस्तकें लिखीं। उनका अधिकांश लेखन असमिया में हुआ। [[हिंदी]] में उनका बहुत थोड़ा [[साहित्य]] उपलब्ध है। लेकिन उससे यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि वह किस कोटि के लेखक थे। उन्होंने अछूते विषयों को उठाया और पूरे रागात्मक बोध के साथ उनमें प्रवेश कर उन्हें सजीव बनाया। उनकी रचनाओं में [[असम]] के ग्राम्यांचलों का जनजीवन मूर्त हो उठता है। [[नागालैंड]] की पहाड़ियाँ और जंगल-नदियाँ, [[धान]] के खेत और उन खेतों में काम करते स्त्री-पुरुष अपनी खुशियों और व्यथाओं के साथ पाठक की स्मृतियों में बस जाते हैं। किसी लेखक की कसौटी होती है टाइम और स्पेस (देश-काल) को बाँधने की क्षमता। प्रवहमान क्षणों को पकड़ना और उन्हें कील देना ही कला है। इस काम के लिए कलाकार को जिस स्पेस या कैनवस की जरूरत होती है, उसके रेशे-रेशे से परिचित होना उसके लिए जरूरी होता है।
==कृतियाँ==
उन्होंने [[1950]] में संपादित असमी [[पत्रिका]] 'रामधेनु' का संपादन कर असमिया साहित्य को नया मोड़ दिया। बिरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य के चर्चित उपन्यासों 'इयारूंगम', 'मृत्युंजय', 'राजपथे', 'रिंगियाई', 'आई', 'प्रितपद', 'शतघ्नी', 'कालर हुमुनियाह' हैं। उनके दो कहानी संग्रह भी प्रकाशित हुए- 'कलंग आजियो बोइ' और 'सातसरी'।
==पुरस्कार==
*[[ज्ञानपीठ पुरस्कार]], [[1979]]
*[[साहित्य अकादमी पुरस्कार]], [[1961]]
==मृत्यु==
बिरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य की मृत्यु [[6 अगस्त]], [[1997]] को हुई।
==अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्षधर==
असमिया साहित्यकार बिरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य के अनुसार-
 
मैं हमेशा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पक्षधर रहा, यही वजह थी कि मुझे कई बार नौकरी से निकाल दिया जाता था। जब [[1967]] में तीसरी बार मुझे नौकरी से निकाला गया, तो मैंने तय कर लिया कि अब स्वतंत्र लेखन ही करूंगा। हालांकि स्वतंत्र लेखन से जीविका चलाना मुश्किल था, लेकिन सौभाग्य से बेहद मुश्किल क्षणों में भी मेरी पत्नी मेरे साथ खड़ी रही। मैंने जीवन में तमाम जोखिम उठाए, लेकिन लिखना कभी नहीं छोड़ा और न ही जिंदगी में प्रेम का उत्सव मनाना छोड़ा। मैंने अपने उपन्यासों में आजादी से पहले और बाद की क्रूरता, आतंक और विनाश की पृष्ठभूमि में शांति और जीवन की रचनात्मकता के पक्ष में लिखा।
 
एक स्वतंत्रता सेनानी और [[राममनोहर लोहिया]] का अनुयायी होने के कारण मैंने सोच लिया था कि सरकारी नौकरी नहीं करूंगा और स्वतंत्र जीवन जिऊंगा। इसलिए मैंने पत्रकारिता का पेशा अपनाया, क्योंकि मेरा मानना था कि इसमें पूरी स्वतंत्रता होगी। हालांकि मैंने पाया कि दो साहित्यिक पत्रिकाओं की संपादकी के बावजूद मैं बिना नौकरी के हूं। मेरे पास [[परिवार]] था, लेकिन जीविका के लिए कोई साधन नहीं था। स्वतंत्र लेखन के अपने जोखिम थे। स्वतंत्र लेखन से मैं कभी महीने में तीन सौ रुपये से ज्यादा नहीं कमा पाया, जो पर्याप्त नहीं था। मैंने स्वैच्छिक रूप से गरीबी में जीना स्वीकार किया था, ताकि मेरी [[आत्मा]] स्वतंत्र और जीवित रह सके। [[दिल्ली]] में रहते हुए अक्सर मैं [[राजघाट दिल्ली|राजघाट]] जाता था। जब भी मैं [[गांधीजी]] की समाधि के पास जाकर बैठता था, मुझे एक तरह की शांति और धीरज का एहसास होता था।<ref>{{cite web |url= https://www.amarujala.com/columns/literature/know-about-birendra-kumar-bhattacharya-gyanpeeth-award-winner-novelist-of-assam|title='मैंने गरीबी में जीना स्वीकार किया, ताकि मेरी आत्मा स्वतंत्र रहे'|accessmonthday=01 अक्टूबर|accessyear=2022 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==संबंधित लेख==
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12:16, 1 अक्टूबर 2022 के समय का अवतरण

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