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{'देखन जौ पाऊँ तौ पठाऊँ जमलोक हाथ, दूजौ न लगाऊँ, वार करौ एक करको।' ये पंक्तियाँ किस कवि द्वारा सृजित हैं? | {'देखन जौ पाऊँ तौ पठाऊँ जमलोक हाथ, दूजौ न लगाऊँ, वार करौ एक करको।' ये पंक्तियाँ किस [[कवि]] द्वारा सृजित हैं? | ||
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||'नाभादास' [[स्वामी अग्रदास|अग्रदास जी]] के शिष्य, बड़े [[भक्त]] और साधुसेवी थे। संवत् 1657 के लगभग वर्तमान थे और [[तुलसीदास|गोस्वामी तुलसीदास]] की मृत्यु के बहुत पीछे तक जीवित रहे। इनका प्रसिद्ध ग्रंथ '[[भक्तमाल]]' [[संवत्]] 1642 के पीछे बना और संवत् 1769 में प्रियादास जी ने उसकी [[टीका]] लिखी। [[नाभादास]] के जन्मस्थान, [[माता]]-[[पिता]], जाति आदि के संबंध में भी प्रमाणों के अभाव में अधिकारपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता। 'भक्तनामावली' के संपादक राधाकृष्णदास ने किंवदंती के आधार पर लिखा है कि नाभादास जन्मांध थे और बाल्यावस्था में ही इनके पिता की मृत्यु हो गई। उस समय देश में [[अकाल]] की स्थिति थी, अत: माता इनका पालन-पोषण न कर सकीं और इन्हें वन में छोड़कर चली गईं। संयोगवश कील्ह और अग्रदास जी उसी वन में होकर जा रहे थे, उन्होंने बालक को देखा और उठा ले आए। महात्माओं के प्रभाव से नाभादास ने आँखों की ज्योति प्राप्त की और अग्रदास जी ने इन्हें दीक्षित किया।अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बुद्ध]] | ||'नाभादास' [[स्वामी अग्रदास|अग्रदास जी]] के शिष्य, बड़े [[भक्त]] और साधुसेवी थे। [[संवत्]] 1657 के लगभग वर्तमान थे और [[तुलसीदास|गोस्वामी तुलसीदास]] की मृत्यु के बहुत पीछे तक जीवित रहे। इनका प्रसिद्ध ग्रंथ '[[भक्तमाल]]' [[संवत्]] 1642 के पीछे बना और संवत् 1769 में प्रियादास जी ने उसकी [[टीका]] लिखी। [[नाभादास]] के जन्मस्थान, [[माता]]-[[पिता]], जाति आदि के संबंध में भी प्रमाणों के अभाव में अधिकारपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता। 'भक्तनामावली' के संपादक राधाकृष्णदास ने किंवदंती के आधार पर लिखा है कि नाभादास जन्मांध थे और बाल्यावस्था में ही इनके पिता की मृत्यु हो गई। उस समय देश में [[अकाल]] की स्थिति थी, अत: माता इनका पालन-पोषण न कर सकीं और इन्हें वन में छोड़कर चली गईं। संयोगवश कील्ह और अग्रदास जी उसी वन में होकर जा रहे थे, उन्होंने बालक को देखा और उठा ले आए। महात्माओं के प्रभाव से नाभादास ने आँखों की ज्योति प्राप्त की और अग्रदास जी ने इन्हें दीक्षित किया।अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बुद्ध]] | ||
{[[हर्षवर्धन]] द्वारा [[संस्कृत]] में लिखे गए नाटकों के लिये कौन-सा सही युग्म है? | {[[हर्षवर्धन]] द्वारा [[संस्कृत]] में लिखे गए [[नाटक|नाटकों]] के लिये कौन-सा सही युग्म है? | ||
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-[[मालविकाग्निमित्रम्]], विक्रमोर्वशीयम और [[अभिज्ञानशाकुन्तलम]] | -[[मालविकाग्निमित्रम्]], विक्रमोर्वशीयम और [[अभिज्ञानशाकुन्तलम]] | ||
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+नागानंद, प्रियदर्शिका और रत्नावली | +नागानंद, प्रियदर्शिका और रत्नावली | ||
-इनमें से कोई नहीं। | -इनमें से कोई नहीं। | ||
||'हर्षवर्धन' या 'हर्ष' (606 ई.-647 ई.), [[राज्यवर्धन]] के बाद लगभग 606 ई. में [[थानेश्वर]] के सिंहासन पर बैठा। उसके विषय में हमें [[बाणभट्ट]] के [[हर्षचरित]] से व्यापक जानकारी मिलती है। [[हर्षवर्धन]] ने लगभग 41 वर्ष शासन किया। हर्ष एक प्रतिष्ठित नाटककार एवं [[कवि]] भी था। उसने 'नागानन्द', 'रत्नावली' एवं 'प्रियदर्शिका' नामक नाटकों की रचना की। उसके दरबार में बाणभट्ट, हरिदत्त एवं जयसेन जैसे प्रसिद्ध कवि एवं लेखक शोभा बढ़ाते थे। हर्ष [[बौद्ध धर्म]] की [[महायान|महायान शाखा]] का समर्थक होने के साथ-साथ [[विष्णु]] एवं [[शिव]] की भी स्तुति करता था। ऐसा माना जाता है कि हर्ष प्रतिदिन 500 ब्राह्मणों एवं 1000 बौद्ध भिक्षुओं को भोजन कराता था।अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हर्षवर्धन]] | |||
{आधुनिक मनुष्य के हाल का पूर्वज कौन-सा है? | {आधुनिक मनुष्य के हाल का पूर्वज कौन-सा है? | ||
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+क्रो-मैगनॉन मानव | +क्रो-मैगनॉन मानव | ||
{[[ईसाई मिशनरी|ईसाई मिशनरियों]] को [[भारत]] में किस अधिनियम के तहत अपना धर्म फैलाने की अनुमति दी गई थी? | {[[ईसाई मिशनरी|ईसाई मिशनरियों]] को [[भारत]] में किस अधिनियम के तहत अपना [[ईसाई धर्म|धर्म]] फैलाने की अनुमति दी गई थी? | ||
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-पिट्स इंडिया अधिनियम, [[1784]] | -पिट्स इंडिया अधिनियम, [[1784]] | ||
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-[[1833]] का चार्टर एक्ट | -[[1833]] का चार्टर एक्ट | ||
-[[1853]] का चार्टर एक्ट | -[[1853]] का चार्टर एक्ट | ||
||[[ईसाई मिशनरी]], जिनका [[आधुनिक भारत]] पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है। [[भारत]] के सुदूर दक्षिणी भागों में बहुत पहले से ही सीरियाई ईसाइयों की भारी संख्या में उपस्थिति इस बात की द्योतक है कि इस देश में सबसे पहले आने वाले ईसाई मिशनरी [[यूरोप]] के नहीं, सीरिया के थे। सन [[1813]] ई. में ईसाई पादरियों पर से रोक हटा ली गई थी और कुछ ही वर्षों के अन्दर [[इंग्लैण्ड]], जर्मनी और [[अमेरिका]] से आने वाले विभिन्न ईसाई मिशन भारत में स्थापित हो गए। उन्होंने भारतीयों में [[ईसाई धर्म]] का प्रचार शुरू कर दिया। ये [[ईसाई मिशनरी]] अपने को बहुत अर्से तक विशुद्ध धर्म प्रचार तक ही सीमित न रख सके। उन्होंने शैक्षणिक और लोकोपकारी कार्यों में भी दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी और भारत के बड़े-बड़े नगरों में कॉलेजों की स्थापना की और उनका संचालन किया।अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ईसाई मिशनरी]] | |||
{पराध्वनिक विमानों की [[चाल]] कितनी होती है? | {पराध्वनिक विमानों की [[चाल]] कितनी होती है? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+ ध्वनि की चाल से अधिक | +ध्वनि की चाल से अधिक | ||
- [[ध्वनि]] की चाल के बराबर | -[[ध्वनि]] की चाल के बराबर | ||
- ध्वनि की चाल से कम | -ध्वनि की चाल से कम | ||
- कुछ भी हो सकती है | -कुछ भी हो सकती है | ||
</quiz> | </quiz> | ||
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