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'''अऋणिन्''' ([[विशेषण]]) [नास्ति ॠणं यस्य न. ब.] (यहाँ 'ऋ' को [[व्यंजन (व्याकरण)|व्यंजन]] ध्वनि माना गया है।)  
'''अऋणिन्''' ([[विशेषण]]) [नास्ति ॠणं यस्य (नञ्‌ बहुव्रीहि समास)] (यहाँ 'ऋ' को [[व्यंजन (व्याकरण)|व्यंजन]] ध्वनि माना गया है।)  


*जिसने कभी ऋण न लिया हो; जो कर्जदार न हो, ऋणमुक्त। ('अनृणिन्' शब्द भी इसी अर्थ में प्रयुक्त होता है।)<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश|लेखक=वामन शिवराम आप्टे|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=01|url=|ISBN=}}</ref>
*जिसने कभी ऋण न लिया हो; जो कर्जदार न हो, ऋणमुक्त। ('अनृणिन्' शब्द भी इसी अर्थ में प्रयुक्त होता है।)<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश|लेखक=वामन शिवराम आप्टे|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=01|url=|ISBN=}}</ref>
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अऋणिन् (विशेषण) [नास्ति ॠणं यस्य (नञ्‌ बहुव्रीहि समास)] (यहाँ 'ऋ' को व्यंजन ध्वनि माना गया है।)

  • जिसने कभी ऋण न लिया हो; जो कर्जदार न हो, ऋणमुक्त। ('अनृणिन्' शब्द भी इसी अर्थ में प्रयुक्त होता है।)[1]


इन्हें भी देखें: संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेताक्षर सूची) एवं संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेत सूची)


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 01 |

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