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'''कालूराम बामनिया''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kaluram Bamaniya'') [[मध्य प्रदेश]] का बड़ा नाम है, जिन्हें [[कला]] के क्षेत्र में विदेशों तक पहचान मिली है। वे [[कबीर]] को अनूठे तरीके से प्रस्तुत करने के लिए जाने जाते हैं। कालूराम बामनिया मध्य प्रदेश के [[मालवा]] क्षेत्र में कबीर, [[गोरखनाथ]], बन्नानाथ और [[मीरा]] जैसे [[भक्ति]] कवियों के भजन गाते हैं। [[भारत सरकार]] ने कालूराम बामनिया को साल [[2024]] में [[पद्म श्री]] से सम्मानित किया है। | '''कालूराम बामनिया''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kaluram Bamaniya'') [[मध्य प्रदेश]] का बड़ा नाम है, जिन्हें [[कला]] के क्षेत्र में विदेशों तक पहचान मिली है। वे [[कबीर]] को अनूठे तरीके से प्रस्तुत करने के लिए जाने जाते हैं। कालूराम बामनिया मध्य प्रदेश के [[मालवा]] क्षेत्र में कबीर, [[गोरखनाथ]], बन्नानाथ और [[मीरा]] जैसे [[भक्ति]] कवियों के भजन गाते हैं। [[भारत सरकार]] ने कालूराम बामनिया को साल [[2024]] में [[पद्म श्री]] से सम्मानित किया है। | ||
05:59, 25 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण
कालूराम बामनिया (अंग्रेज़ी: Kaluram Bamaniya) मध्य प्रदेश का बड़ा नाम है, जिन्हें कला के क्षेत्र में विदेशों तक पहचान मिली है। वे कबीर को अनूठे तरीके से प्रस्तुत करने के लिए जाने जाते हैं। कालूराम बामनिया मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में कबीर, गोरखनाथ, बन्नानाथ और मीरा जैसे भक्ति कवियों के भजन गाते हैं। भारत सरकार ने कालूराम बामनिया को साल 2024 में पद्म श्री से सम्मानित किया है।
- कालूराम बामनिया की कहानी बचपन में ही शुरू हो गई थी। महज 9 साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता, दादा और चाचा के साथ मंजीरा सीखना शुरू कर दिया था।
- 13 साल की उम्र में कालूराम बामनिया घर से भागकर राजस्थान चले गए। यहां उन्होंने गायन सीखा।[1]
- इसके बाद करीब 1-2 साल तक उन्होंने भ्रमणशील मिरासी गायक रामनिवास राव के गीतों की एक विस्तृत सूची को समाहित किया।
- अपने गायन को लेकर कालूराम बामनिया कहते हैं कि "उनके लिए ये सिर्फ एक पेशा नहीं है, बल्कि जीवन जीने का एक तरीका है"।
- उनका कहना है कि "कबीर को गाने से बहुत शक्ति मिलती है"।
- कालूराम बामनिया और उनकी मंडली राज्य और देश-विदेश में प्रस्तुतियां देती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कालूराम बामनिया को पद्मश्री, 9 साल से शुरू हो गई थी कहानी (हिंदी) zeenews.india.com। अभिगमन तिथि: 25 फ़रवरी, 2024।
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