"चन्हूदड़ों": अवतरणों में अंतर

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[[मोहनजोदाड़ो]] के दक्षिण में स्थित चन्हूदड़ों नामक स्थान पर मुहर एवं गुड़ियों के निर्माण के साथ-साथ हड्डियों से भी अनेक वस्तुओं का निर्माण होता था। इस नगर की खोज सर्वप्रथम 1931 में 'एन.गोपाल मजूमदार' ने किया तथा 1943 ई. में 'मैके' द्वारा यहां उत्खनन करवाया गया। सबसे निचले स्तर से [[सिंधु घाटी सभ्यता|सैंधव संस्कृति]] के साक्ष्य मिलते हैं। यहां पर गुरिया निर्माण हेतु एक कारखाने का अवशेष मिला है। यहां पर सैन्धवकालीन संस्कृति के अतिरिक्त 'प्राक् हड़प्पा संस्कृति', 'झूकर संस्कृति' एवं 'झांगर संस्कृति' के भी अवशेष मिले हैं।  
[[मोहनजोदाड़ो]] के दक्षिण में स्थित चन्हूदड़ों नामक स्थान पर मुहर एवं गुड़ियों के निर्माण के साथ-साथ हड्डियों से भी अनेक वस्तुओं का निर्माण होता था। इस नगर की खोज सर्वप्रथम 1931 में 'एन.गोपाल मजूमदार' ने किया तथा 1943 ई. में 'मैके' द्वारा यहाँ [[उत्खनन]] करवाया गया। सबसे निचले स्तर से [[सिंधु घाटी सभ्यता|सैंधव संस्कृति]] के साक्ष्य मिलते हैं। यहाँ पर गुरिया निर्माण हेतु एक कारखाने का अवशेष मिला है। यहाँ पर सैन्धवकालीन संस्कृति के अतिरिक्त 'प्राक् हड़प्पा संस्कृति', 'झूकर संस्कृति' एवं 'झांगर संस्कृति' के भी अवशेष मिले हैं।  


चन्हूदड़ों से किलेबन्दी के साक्ष्य नहीं मिले है। यहां से प्राप्त अन्य अवशेषों में अलंकृत हाथी एवं कुत्ते द्वारा बिल्ली का पीछा करते हुए पदचिन्ह प्राप्त हुए हैं। सौन्दर्य प्रसाधनों में प्रयुक्त लिपिस्टिक के अवशेष भी यहां से मिले हैं। तांबे और कांसे के औज़ार और सांचों के भण्डार मिले हैं जिससे यह स्पष्ट होता कि मनके बनाने, हड्डियों की वस्तुएं, मुद्राएं बनाने आदि की दस्तकारियाँ यहां प्रचलित थी। वस्तुए निर्मित व अर्द्धनिर्मित दोनों रूप में पाई गईं जिससे यह आभास होता था कि यहां पर मुख्यतः दस्तकार और कारीगर लोग रहते थे।  
चन्हूदड़ों से किलेबन्दी के साक्ष्य नहीं मिले है। यहाँ से प्राप्त अन्य अवशेषों में अलंकृत हाथी एवं कुत्ते द्वारा बिल्ली का पीछा करते हुए पदचिह्न प्राप्त हुए हैं। सौन्दर्य प्रसाधनों में प्रयुक्त लिपिस्टिक के अवशेष भी यहाँ से मिले हैं। तांबे और कांसे के औज़ार और सांचों के भण्डार मिले हैं जिससे यह स्पष्ट होता कि मनके बनाने, हड्डियों की वस्तुएं, मुद्राएं बनाने आदि की दस्तकारियाँ यहाँ प्रचलित थी। वस्तुए निर्मित व अर्द्धनिर्मित दोनों रूप में पाई गईं जिससे यह आभास होता था कि यहाँ पर मुख्यतः दस्तकार और कारीगर लोग रहते थे।  


वस्तुंए जिस प्रकार चारों और फैली पड़ी थी, उससे यहां के निवासियों के मकान छोड़कर सहसा भागने के साक्ष्य मिलते हैं। इसके अतिरिक्त चन्हूदड़ों से जला हुआ एक कपाल मिला है। चार पहियों वाली गाड़ी भी मिली है। चन्हूदड़ों की एक मिट्टी की मुद्रा पर तीन घड़ियालों तथा दो मछलियों का अंकन मिला है। यहां से एक वर्गाकार मुद्रा की छाप पर दो नग्न नारियो, जो हाथ में एक-एक ध्वज पकड़े है तथा ध्वजों के बीच से पीपल की पंक्तियां निकल रही हैं। यहाँ से मिली एक ईंट पर कुत्ते और बिल्ली के पंजों के निशान मिले हैं। साथ ही मिट्टी के मोर की एक आकृति भी मिली है।
वस्तुंए जिस प्रकार चारों और फैली पड़ी थी, उससे यहाँ के निवासियों के मकान छोड़कर सहसा भागने के साक्ष्य मिलते हैं। इसके अतिरिक्त चन्हूदड़ों से जला हुआ एक [[कपाल]] मिला है। चार पहियों वाली गाड़ी भी मिली है। चन्हूदड़ों की एक मिट्टी की मुद्रा पर तीन घड़ियालों तथा दो मछलियों का अंकन मिला है। यहाँ से एक वर्गाकार मुद्रा की छाप पर दो नग्न नारियो, जो हाथ में एक-एक ध्वज पकड़े है तथा ध्वजों के बीच से [[पीपल]] की पंक्तियां निकल रही हैं। यहाँ से मिली एक ईंट पर कुत्ते और बिल्ली के पंजों के निशान मिले हैं। साथ ही मिट्टी के मोर की एक आकृति भी मिली है।
*चन्हूदड़ों एक मात्र पुरास्थल है जहां से वक्रकार ईटें मिली हैं।  
*चन्हूदड़ों एक मात्र पुरास्थल है जहां से वक्रकार ईटें मिली हैं।  
*चन्हूदड़ों में किसी दुर्ग का अस्तित्व नहीं मिला है।
*चन्हूदड़ों में किसी दुर्ग का अस्तित्व नहीं मिला है।




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13:01, 4 अगस्त 2014 के समय का अवतरण

मोहनजोदाड़ो के दक्षिण में स्थित चन्हूदड़ों नामक स्थान पर मुहर एवं गुड़ियों के निर्माण के साथ-साथ हड्डियों से भी अनेक वस्तुओं का निर्माण होता था। इस नगर की खोज सर्वप्रथम 1931 में 'एन.गोपाल मजूमदार' ने किया तथा 1943 ई. में 'मैके' द्वारा यहाँ उत्खनन करवाया गया। सबसे निचले स्तर से सैंधव संस्कृति के साक्ष्य मिलते हैं। यहाँ पर गुरिया निर्माण हेतु एक कारखाने का अवशेष मिला है। यहाँ पर सैन्धवकालीन संस्कृति के अतिरिक्त 'प्राक् हड़प्पा संस्कृति', 'झूकर संस्कृति' एवं 'झांगर संस्कृति' के भी अवशेष मिले हैं।

चन्हूदड़ों से किलेबन्दी के साक्ष्य नहीं मिले है। यहाँ से प्राप्त अन्य अवशेषों में अलंकृत हाथी एवं कुत्ते द्वारा बिल्ली का पीछा करते हुए पदचिह्न प्राप्त हुए हैं। सौन्दर्य प्रसाधनों में प्रयुक्त लिपिस्टिक के अवशेष भी यहाँ से मिले हैं। तांबे और कांसे के औज़ार और सांचों के भण्डार मिले हैं जिससे यह स्पष्ट होता कि मनके बनाने, हड्डियों की वस्तुएं, मुद्राएं बनाने आदि की दस्तकारियाँ यहाँ प्रचलित थी। वस्तुए निर्मित व अर्द्धनिर्मित दोनों रूप में पाई गईं जिससे यह आभास होता था कि यहाँ पर मुख्यतः दस्तकार और कारीगर लोग रहते थे।

वस्तुंए जिस प्रकार चारों और फैली पड़ी थी, उससे यहाँ के निवासियों के मकान छोड़कर सहसा भागने के साक्ष्य मिलते हैं। इसके अतिरिक्त चन्हूदड़ों से जला हुआ एक कपाल मिला है। चार पहियों वाली गाड़ी भी मिली है। चन्हूदड़ों की एक मिट्टी की मुद्रा पर तीन घड़ियालों तथा दो मछलियों का अंकन मिला है। यहाँ से एक वर्गाकार मुद्रा की छाप पर दो नग्न नारियो, जो हाथ में एक-एक ध्वज पकड़े है तथा ध्वजों के बीच से पीपल की पंक्तियां निकल रही हैं। यहाँ से मिली एक ईंट पर कुत्ते और बिल्ली के पंजों के निशान मिले हैं। साथ ही मिट्टी के मोर की एक आकृति भी मिली है।

  • चन्हूदड़ों एक मात्र पुरास्थल है जहां से वक्रकार ईटें मिली हैं।
  • चन्हूदड़ों में किसी दुर्ग का अस्तित्व नहीं मिला है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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