"अजंता की गुफ़ाएं": अवतरणों में अंतर

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चट्टानों को काटकर बनाए गए बौद्ध गुफ़ा मंदिर व मठ, अजंता गाँव के समीप, उत्तर-मध्य [[महाराष्ट्र]], पश्चिमी [[भारत]] में स्थित है, जो अपनी भित्ति चित्रकारी के लिए विख्यात है। [[औरंगाबाद]] से 107 किलोमीटर पूर्वोत्तर में वगुर्ना नदी घाटी के 20 मीटर गहरे बाएँ छोर पर एक चट्टान के आग्नेय पत्थरों की परतों को खोखला करके ये मंदिर बनाए गए हैं।
{{सूचना बक्सा पर्यटन
|चित्र=Ajanta-Caves-1.jpg
|चित्र का नाम=अजंता की गुफ़ाएं, [[औरंगाबाद]]
|विवरण=अजंता की गुफाएं [[बौद्ध धर्म]] द्वारा प्रेरित और उनकी करुणामय भावनाओं से भरी हुई शिल्‍पकला और [[चित्रकला]] से ओतप्रोत है जो मानवीय इतिहास में [[कला]] के उत्‍कृष्‍ट ज्ञान और अनमोल समय को दर्शाती हैं।
|राज्य=[[महाराष्ट्र]]
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|निर्माण काल=द्वितीय शताब्दी
|स्थापना=[[सातवाहन वंश]] द्वारा स्थापित है।
|भौगोलिक स्थिति=[http://maps.google.com/maps?q=20.552377,75.700436&ll=20.552538,75.700436&spn=0.009383,0.013797&t=m&z=16&vpsrc=0&iwloc=near उत्तर- 20°33′09″, पूर्व- 75°42′02″]
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|प्रसिद्धि=अजंता की प्रसिद्ध गुफाओं के चित्रों की चमक हज़ार से अधिक [[वर्ष]] बीतने के बाद भी आधुनिक समय से विद्वानों के लिए आश्चर्य का विषय है।
|कब जाएँ=
|कैसे पहुँचें=हवाई जहाज़, रेल, बस आदि से पहुँचा जा सकता है।
|हवाई अड्डा=जलगाँव हवाई अड्डा
|रेलवे स्टेशन=[[जलगाँव]] रेलवे स्टेशन
|बस अड्डा=
|यातायात=औरंगाबाद सिटी बस, टैक्सी
|क्या देखें=[[कार्ले चैत्यगृह]]
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|संबंधित लेख=[[एलोरा की गुफ़ाएं]], [[बीबी का मक़बरा]]
|शीर्षक 1=[[भाषा]]
|पाठ 1=[[मराठी]], [[हिन्दी भाषा|हिन्दी]], [[अंग्रेज़ी]] और [[गुजराती भाषा|गुजराती]]
|शीर्षक 2=मुख्य आकर्षण
|पाठ 2=अंजता की गुफ़ाओं का मुख्य आकर्षण भित्ति चित्रकारी है। इन चित्रों में बौद्ध धार्मिक आख्यानों और देवताओं का जितनी प्रचुरता और जीवंतता के साथ चित्रण किया गया है, वह भारतीय कला के क्षेत्र में अद्वितीय है।
|अन्य जानकारी=[[यूनेस्को]] द्वारा 1983 से [[विश्‍व विरासत स्‍थल]] घोषित किए जाने के बाद [[अजंता]] और एलोरा की तस्‍वीरें और शिल्‍पकला बौद्ध धार्मिक कला के उत्‍कृष्‍ट नमूने माने गए हैं।
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चट्टानों को काटकर बनाए गए बौद्ध गुफ़ा मंदिर व मठ, [[अजंता|अजंता गाँव]] के समीप, उत्तर-मध्य [[महाराष्ट्र]], [[पश्चिमी भारत]] में स्थित है, जो अपनी भित्ति चित्रकारी के लिए विख्यात है। [[औरंगाबाद]] से 107 किलोमीटर पूर्वोत्तर में वगुर्ना नदी घाटी के 20 मीटर गहरे बाएँ छोर पर एक चट्टान के आग्नेय पत्थरों की परतों को खोखला करके ये मंदिर बनाए गए हैं।
 
लगभग तीस गुफ़ाओं के इस समूह की खुदाई पहली शताब्दी ई. पू. और सातवीं शताब्दी के बीच दो रूपों में की गई थी- चैत्य (मंदिर) और विहार (मठ)। यद्यपि इन मंदिरों की [[मूर्तिकला]], ख़ासकर चैत्य स्तंभों का अलंकरण अद्भुत तो है, लेकिन अंजता की गुफ़ाओं का मुख्य आकर्षण भित्ति चित्रकारी है। इन चित्रों में बौद्ध धार्मिक आख्यानों और [[देवता|देवताओं]] का जितनी प्रचुरता और जीवंतता के साथ चित्रण किया गया है, वह भारतीय कला के क्षेत्र में अद्वितीय है।
[[चित्र:Ajanta-Caves-Aurangabad-Maharashtra-3.jpg|thumb|250px|left|अजंता की गुफ़ाएं, [[औरंगाबाद महाराष्ट्र|औरंगाबाद]]<br /> Ajanta Caves, Aurangabad]]
अजंता की गुफाएं [[बौद्ध धर्म]] द्वारा प्रेरित और उनकी करुणामय भावनाओं से भरी हुई शिल्‍पकला और [[चित्रकला]] से ओतप्रोत हैं, जो मानवीय इतिहास में [[कला]] के उत्‍कृष्‍ट ज्ञान और अनमोल समय को दर्शाती हैं। [[बौद्ध]] तथा [[जैन]] सम्‍प्रदाय द्वारा बनाई गई ये गुफाएं सजावटी रूप से तराशी गई हैं। फिर भी इनमें एक शांति और अध्‍यात्‍म झलकता है तथा ये दैवीय ऊर्जा और शक्ति से भरपूर हैं। दूसरी शताब्‍दी डी. सी. में आरंभ करते हुए और छठवीं शताब्‍दी ए. डी. में जारी रखते हुए [[महाराष्ट्र]] में औरंगाबाद शहर से लगभग 107 किलो मीटर की दूरी पर अजंता की ये गुफाएं पहाड़ को काट कर विशाल घोड़े की नाल के आकार में बनाई गई हैं। अजंता में 29 गुफालाओं का एक झुंड बौद्ध [[वास्‍तुकला]], गुफा चित्रकला और शिल्‍प चित्रकला के उत्‍कृष्‍तम उदाहरणों में से एक है। इन गुफाओं में चैत्‍य कक्ष या मठ है, जो [[बुद्ध|भगवान बुद्ध]] और विहार को समर्पित हैं, जिनका उपयोग बौद्ध भिक्षुओं द्वारा ध्‍यान लगाने और भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का अध्‍ययन करने के लिए किया जाता था। गुफाओं की दीवारों तथा छतों पर बनाई गई ये तस्‍वीरें भगवान बुद्ध के जीवन की विभिन्‍न घटनाओं और विभिन्‍न बौद्ध देवत्‍व की घटनाओं का चित्रण करती हैं। इसमें से सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण चित्रों में [[जातक कथा|जातक कथाएं]] हैं, जो [[बोधिसत्व]] के रूप में बुद्ध के पिछले जन्‍म से संबंधित विविध कहानियों का चित्रण करते हैं, ये एक संत थे जिन्‍हें बुद्ध बनने की नियति प्राप्‍त थी। ये शिल्‍पकलाओं और तस्‍वीरों को प्रभावशाली रूप में प्रस्‍तुत करती हैं जबकि ये समय के असर से मुक्‍त है। ये सुंदर छवियां और तस्‍वीरें बुद्ध को शांत और पवित्र मुद्रा में दर्शाती हैं।
 
सह्याद्रि की पहाडि़यों पर स्थित इन 30 गुफाओं में लगभग 5 प्रार्थना भवन और 25 बौद्ध मठ हैं। इन गुफाओं की खोज आर्मी ऑफिसर जॉन स्मिथ व उनके दल द्वारा सन् 1819 में की गई थी। वे यहाँ शिकार करने आए थे, तभी उन्हें कतारबद्ध 29 गुफाओं की एक श्रृंखला नज़र आई और इस तरह ये गुफाएँ प्रसिद्ध हो गई। घोड़े की नाल के आकार में निर्मित ये गुफाएँ अत्यन्त ही प्राचीन व ऐतिहासिक महत्त्व की है। इनमें 200 ईसा पूर्व से 650 ईसा पश्चात् तक के [[बौद्ध धर्म]] का चित्रण किया गया है। अजंता की गुफाओं में दीवारों पर ख़ूबसूरत अप्सराओं व राजकुमारियों के विभिन्न मुद्राओं वाले सुंदर चित्र भी उकेरे गए है, जो यहाँ की उत्कृष्ट चित्रकारी व मूर्तिकला के बेहद ही सुंदर नमूने है। अजंता की गुफाओं को दो भागों में बाँटा जा सकता है। एक भाग में बौद्ध धर्म के [[हीनयान]] और दूसरे भाग में [[महायान]] संप्रदाय की झलक देखने को मिलती है। [[हीनयान]] वाले भाग में 2 चैत्य<ref> प्रार्थना भवन</ref> और 4 विहार<ref> बौद्ध भिक्षुओं के रहने के स्थान</ref> है तथा महायान वाले भाग में 3 चैत्य और 11 विहार है। ये 19वीं शताब्दी की गुफाएँ है, जिसमें बौद्ध भिक्षुओं की मूर्तियाँ व चित्र है। हथौड़े और छैनी की सहायता से तराशी गई ये मूर्तियाँ अपने आप में अप्रतिम सुंदरता को समेटे है। <ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/entertainment/tourism/mountains/0904/15/1090415076_1.htm|title=अजंता की गुफाएँ|accessmonthday=14अक्टूबर|accessyear=|last=शर्मा|first=गायत्री|authorlink= |format=एच.टी.एम.एल|publisher=webdunia|language=}}</ref>
[[चित्र:Ajanta-Caves-Aurangabad-Maharashtra-2.jpg|thumb|250px|left|अजंता की गुफ़ाएं, [[औरंगाबाद महाराष्ट्र|औरंगाबाद]]<br /> Ajanta Caves, Aurangabad]]
अजन्ता में निर्मित कुल 29 गुफाओं में वर्तमान में केवल 6 ही, गुफा संख्या 1, 2, 9, 10, 16, 17 शेष है। इन 6 गुफाओं में गुफा संख्या 16 एवं 17 ही [[गुप्तकाल|गुप्तकालीन]] हैं। अजन्ता के चित्र तकनीकि दृष्टि से विश्व में प्रथम स्थान रखते हैं। इन गुफाओं में अनेक प्रकार के फूल-पत्तियों, वृक्षों एवं पशु आकृति से सजावट का काम तथा [[बुद्ध]] एवं [[बोधिसत्व|बोधिसत्वों]] की प्रतिमाओं के चित्रण का काम, [[जातक कथा|जातक ग्रंथों]] से ली गई कहानियों का वर्णनात्मक दृश्य के रूप में प्रयोग हुआ है। ये चित्र अधिकतर जातक कथाओं को दर्शाते हैं। इन चित्रों में कहीं-कही गैर भारतीय मूल के मानव चरित्र भी दर्शाये गये हैं। अजन्ता की चित्रकला की एक विशेषता यह है कि इन चित्रों में दृश्यों को अलग अलग विन्यास में नहीं विभाजित किया गया है।
 
अजन्ता में 'फ़्रेस्को' तथा 'टेम्पेरा' दोनों ही विधियों से चित्र बनाये गए हैं। चित्र बनाने से पूर्व दीवार को भली भांति रगड़कर साफ़ किया जाता था तथा फिर उसके ऊपर लेप चढ़ाया जाता था।
अजन्ता की गुफा संख्या 16 में उत्कीर्ण ‘मरणासन्न राजकुमारी‘ का चित्र प्रशंसनीय है। इस चित्र की प्रशंसा करते हुए ग्रिफिथ, वर्गेस एवं फर्गुसन ने कहा,- ‘करुणा, भाव एवं अपनी कथा को स्पष्ट ढंग से कहने की दृष्टि‘ यह [[चित्रकला]] के इतिहास में अनतिक्रमणीय<ref>जिसका अतिक्रमण या उल्लंघन न हो सकता हो या  जिसका अतिक्रमण करना उचित न हो</ref> है। [[वाकाटक वंश]] के वसुगुप्त शाखा के शासक [[हरिषेण]] (475-500ई.) के मंत्री वराहमंत्री ने गुफा संख्या 16 को बौद्ध संघ को दान में दिया था।
 
गुफा संख्या 17 के चित्र को ‘चित्रशाला‘ कहा गया है। इसका निर्माण हरिषेण नामक एक सामन्त ने कराया था। इस चित्रशाला में [[बुद्ध]] के जन्म, जीवन, महाभिनिष्क्रमण एवं महापरिनिर्वाण की घटनाओं से संबंधित चित्र उकेरे गए हैं। गुफा संख्या 17 में उत्कीर्ण सभी चित्रों में माता और शिशु नाम का चित्र सर्वोत्कृष्ट है। अजन्ता की गुफाऐं [[बौद्ध धर्म]] की ‘महायान शाखा से संबंधित थी।
 
अजंता की प्रसिद्ध गुफाओं के चित्रों की चमक हज़ार से अधिक [[वर्ष]] बीतने के बाद भी आधुनिक समय से विद्वानों के लिए आश्चर्य का विषय है। भगवान बुद्ध से संबंधित घटनाओं को इन चित्रों में अभिव्यक्त किया गया है। चावल के मांड, गोंद और अन्य कुछ पत्तियों तथा वस्तुओं का सम्मिश्रमण कर आविष्कृत किए गए रंगों से ये चित्र बनाए गए। लगभग हज़ार साल तक भूमि में दबे रहे और 1819 में पुन: [[उत्खनन]] कर इन्हें प्रकाश में लाया गया। हज़ार वर्ष बीतने पर भी इनका [[रंग]] हल्का नहीं हुआ, ख़राब नहीं हुआ, चमक यथावत बनी रही। कहीं कुछ सुधारने या आधुनिक रंग लगाने का प्रयत्न हुआ तो वह असफल ही हुआ। रंगों और रेखाओं की यह तकनीक आज भी गौरवशाली अतीत का याद दिलाती है।


लगभग तीस गुफ़ाओं के इस समूह की खुदाई पहली शताब्दी ई. पू. और सातवीं शताब्दी के बीच दो रूपों में की गई थी- चैत्य (मंदिर) और बिहार (मठ)। यद्यपि इन मंदिरों की मूर्तिकला, ख़ासकर चैत्य स्तंभों का अलंकरण अद्भुत तो है, लेकिन अंजता की गुफ़ाओं का मुख्य आकर्षण भित्ति चित्रकारी है। इन चित्रों में बौद्ध धार्मिक आख्यानों और देवताओं का जितनी प्रचुरता और जीवंतता के साथ चित्रण किया गया है, वह भारतीय कला के क्षेत्र में अद्वितीय है।  
ब्रिटिश संशोधक मि. ग्रिफिथ कहते हैं ‘अजंता में जिन चितेरों ने चित्रकारी की है, वे सृजन के शिखर पुरुष थे। अजंता में दीवारों पर जो लंबरूप (खड़ी) लाइनें कूची से सहज ही खींची गयी हैं वे अचंभित करती हैं। वास्तव में यह आश्चर्यजनक कृतित्व है। परन्तु जब छत की सतह पर संवारी क्षितिज के समानान्तर लकीरें, उनमें संगत घुमाव, मेहराब की शक्ल में एकरूपता के दर्शन होते हैं और इसके सृजन की हज़ारों जटिलताओं पर ध्यान जाता है, तब लगता है वास्तव में यह विस्मयकारी आश्चर्य और कोई चमत्कार है।‘<ref>{{cite web |url=http://vaigyanik-bharat.blogspot.com/2010/06/blog-post_3608.html|title=भारत का वैज्ञानिक चिन्तन|accessmonthday=15अक्टूबर|accessyear=2010|last=सोनी|first=सुरेश|authorlink=|format=एच.टी.एम.एल|publisher=vaigyanik-bharat|language=[[हिन्दी]]}}</ref>
{| class="bharattable" border="1" style="float:right; margin:5px"
|+ '''अजन्ता में प्राप्त चित्र गुफाओं की समय सीमा'''<br />
|-
! गुफा संख्या
! समय
|-
| 9 व 10
| प्रथम शताब्दी (गुप्तकाल से पूर्व)
|-
| 16 एवं 17
| 500 ई. (उत्तर गुप्त काल )
|-
|-
| 1 एवं 2
| लगभग 628 ई. (गुप्तोत्तर काल)
|-
|}
'''यूनेस्‍को''' द्वारा 1983 से '''विश्‍व विरासत स्‍थल''' घोषित किए जाने के बाद अजंता और एलोरा की तस्‍वीरें और शिल्‍पकला बौद्ध धार्मिक कला के उत्‍कृष्‍ट नमूने माने गए हैं और इनका [[भारत]] में कला के विकास पर गहरा प्रभाव है। रंगों का रचनात्‍मक उपयोग और अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता के उपयोग से इन गुफाओं की तस्‍वीरों में अजंता के अंदर जो मानव और जंतु रूप चित्रित किए गए हैं, उन्‍हें कलात्‍मक रचनात्‍मकता का एक उच्‍च स्‍तर माना जा सकता है। ये शताब्दियों से [[बौद्ध धर्म|बौद्ध]], [[हिन्दू धर्म|हिन्‍दू]] और [[जैन धर्म|जैन]] [[धर्म]] के प्रति समर्पित है। ये सहनशीलता की भावना को प्रदर्शित करते हैं, जो प्राचीन भारत की विशेषता रही है।


अजंता की गुफाएं [[बौद्ध धर्म]] द्वारा प्रेरित और उनकी करुणामय भावनाओं से भरी हुई शिल्‍पकला और चित्रकला से ओतप्रोत है जो मानवीय इतिहास में कला के उत्‍कृष्‍ट ज्ञान और अनमोल समय को दर्शाती हैं। [[बौद्ध]] तथा [[जैन]] सम्‍प्रदाय द्वारा बनाई गई ये गुफाएं सजावटी रूप से तराशी गई हैं। फिर भी इनमें एक शांति और अध्‍यात्‍म झलकता है तथा ये दैवीय ऊर्जा और शक्ति से भरपूर हैं। दूसरी शताब्‍दी डी. सी. में आरंभ करते हुए और छठवीं शताब्‍दी ए. डी. में जारी रखते हुए [[महाराष्ट्र]] में औरंगाबाद शहर से लगभग 107 किलो मीटर की दूरी पर अजंता की ये गुफाएं पहाड़ को काट कर विशाल घोड़े की नाल के आकार में बनाई गई हैं। अजंता में 29 गुफालाओं का एक सेट बौद्ध वास्‍तुकला, गुफा चित्रकला और शिल्‍प चित्रकला के उत्‍कृष्‍तम उदाहरणों में से एक है। इन गुफाओं में चैत्‍य कक्ष या मठ है, जो भगवान बुद्ध और विहार को समर्पित हैं, जिनका उपयोग बौद्ध भिक्षुओं द्वारा ध्‍यान लगाने और भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का अध्‍ययन करने के लिए किया जाता था। गुफाओं की दीवारों तथा छतों पर बनाई गई ये तस्‍वीरें भगवान बुद्ध के जीवन की विभिन्‍न घटनाओं और विभिन्‍न बौद्ध देवत्‍व की घटनाओं का चित्रण करती हैं। इसमें से सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण चित्रों में जातक कथाएं हैं, जो [[बोधिसत्व]] के रूप में बुद्ध के पिछले जन्‍म से संबंधित विविध कहानियों का चित्रण करते हैं, ये एक संत थे जिन्‍हें बुद्ध बनने की नियति प्राप्‍त थी। ये शिल्‍पकलाओं और तस्‍वीरों को प्रभावशाली रूप में प्रस्‍तुत करती हैं जबकि ये समय के असर से मुक्‍त है। ये सुंदर छवियां और तस्‍वीरें बुद्ध को शांत और पवित्र मुद्रा में दर्शाती हैं।
{{इन्हेंभीदेखें|एलोरा की गुफ़ाएं|उदयगिरि गुफ़ाएँ|कार्ले चैत्यगृह}}


'''यूनेस्‍को''' द्वारा 1983 से '''विश्‍व विरासत स्‍थल''' घोषित किए जाने के बाद अजंता और एलोरा की तस्‍वीरें और शिल्‍पकला बौद्ध धार्मिक कला के उत्‍कृष्‍ट नमूने माने गए हैं और इनका [[भारत]] में कला के विकास पर गहरा प्रभाव है। रंगों का रचनात्‍मक उपयोग और अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता के उपयोग से इन गुफाओं की तस्‍वीरों में अजंता के अंदर जो मानव और जंतु रूप चित्रित किए गए हैं, उन्‍हें कलात्‍मक रचनात्‍मकता का एक उच्‍च स्‍तर माना जा सकता है। ये शताब्दियों से [[बौद्ध]], [[हिन्‍दू]] और [[जैन]] धर्म के प्रति समर्पित है। ये सहनशीलता की भावना को प्रदर्शित करते हैं, जो प्राचीन भारत की विशेषता रही है।
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}}
}}
==वीथिका==
<gallery>
चित्र:Padmapani-Ajanta-Caves.jpg|पद्मापनी, अजंता की गुफ़ाएं
चित्र:Vajrapani-Ajanta-Caves.jpg|वज्रापनी, अजंता की गुफ़ाएं
चित्र:Ajanta-Caves-2.jpg|भित्ति चित्रकारी, अजंता की गुफ़ाएं
चित्र:Ajanta-Caves-3.jpg|फ़्रेस्को विधि से बनाए गये चित्र, अजंता की गुफ़ाएं
चित्र:Ajanta-Caves-4.jpg|फ़्रेस्को विधि से बनाए गये चित्र, अजंता की गुफ़ाएं
चित्र:Ajanta-Caves-5.jpg|अजंता की गुफ़ाएं, [[औरंगाबाद]]
चित्र:Ajanta-Caves-Aurangabad-Maharashtra-4.jpg|अजंता की गुफ़ाएं, [[औरंगाबाद]]
चित्र:Ajanta-Caves-Aurangabad-Maharashtra-5.jpg|अजंता की गुफ़ाएं, [[औरंगाबाद]]
चित्र:Ajanta-Caves-Aurangabad-Maharashtra-6.jpg|अजंता की गुफ़ाएं, [[औरंगाबाद]]
चित्र:Ajanta-Caves-Aurangabad-Maharashtra-7.jpg|अजंता की गुफ़ाएं, [[औरंगाबाद]]
चित्र:Ajanta-Caves-Aurangabad-Maharashtra-1.jpg|अजंता की गुफ़ाएं, [[औरंगाबाद]]
</gallery>


==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==बाहरी कडियाँ==
*[http://www.indiamonuments.org/Ajanta.htm चित्र अजंता गुफा]
*[http://photogallery.webdunia.com/hindi/892/rare-photo/tourism-site/ajanta-elora-caves-photos.htm चित्र अजंता गुफा]
==संबंधित लेख==
{{महाराष्ट्र के पर्यटन स्थल}}
{{भारत के मुख्य पर्यटन स्थल}}
{{विश्व विरासत स्थल2}}
[[Category:महाराष्ट्र]]
[[Category:महाराष्ट्र]]
[[Category:महाराष्ट्र के पर्यटन स्थल]]
[[Category:महाराष्ट्र के पर्यटन स्थल]]
[[Category:महाराष्ट्र के ऐतिहासिक स्थान]]
[[Category:महाराष्ट्र के ऐतिहासिक स्थान]]
[[Category:विश्‍व विरासत स्‍थल]]
[[Category:विश्‍व विरासत स्‍थल]]
[[Category:पर्यटन कोश]]
[[Category:स्थापत्य कला]]
[[Category:कला कोश]]
[[Category:गुफ़ाएँ]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__

11:51, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

अजंता की गुफ़ाएं
अजंता की गुफ़ाएं, औरंगाबाद
अजंता की गुफ़ाएं, औरंगाबाद
विवरण अजंता की गुफाएं बौद्ध धर्म द्वारा प्रेरित और उनकी करुणामय भावनाओं से भरी हुई शिल्‍पकला और चित्रकला से ओतप्रोत है जो मानवीय इतिहास में कला के उत्‍कृष्‍ट ज्ञान और अनमोल समय को दर्शाती हैं।
राज्य महाराष्ट्र
ज़िला औरंगाबाद
निर्माण काल द्वितीय शताब्दी
स्थापना सातवाहन वंश द्वारा स्थापित है।
भौगोलिक स्थिति उत्तर- 20°33′09″, पूर्व- 75°42′02″
मार्ग स्थिति मेजर राज्य राजमार्ग से 102 किमी की दूरी पर स्थित है।
प्रसिद्धि अजंता की प्रसिद्ध गुफाओं के चित्रों की चमक हज़ार से अधिक वर्ष बीतने के बाद भी आधुनिक समय से विद्वानों के लिए आश्चर्य का विषय है।
कैसे पहुँचें हवाई जहाज़, रेल, बस आदि से पहुँचा जा सकता है।
हवाई अड्डा जलगाँव हवाई अड्डा
रेलवे स्टेशन जलगाँव रेलवे स्टेशन
यातायात औरंगाबाद सिटी बस, टैक्सी
क्या देखें कार्ले चैत्यगृह
कहाँ ठहरें होटल, धर्मशाला, अतिथि ग्रह
एस.टी.डी. कोड 2432
ए.टी.एम लगभग सभी
गूगल मानचित्र
संबंधित लेख एलोरा की गुफ़ाएं, बीबी का मक़बरा भाषा मराठी, हिन्दी, अंग्रेज़ी और गुजराती
मुख्य आकर्षण अंजता की गुफ़ाओं का मुख्य आकर्षण भित्ति चित्रकारी है। इन चित्रों में बौद्ध धार्मिक आख्यानों और देवताओं का जितनी प्रचुरता और जीवंतता के साथ चित्रण किया गया है, वह भारतीय कला के क्षेत्र में अद्वितीय है।
अन्य जानकारी यूनेस्को द्वारा 1983 से विश्‍व विरासत स्‍थल घोषित किए जाने के बाद अजंता और एलोरा की तस्‍वीरें और शिल्‍पकला बौद्ध धार्मिक कला के उत्‍कृष्‍ट नमूने माने गए हैं।
अद्यतन‎

चट्टानों को काटकर बनाए गए बौद्ध गुफ़ा मंदिर व मठ, अजंता गाँव के समीप, उत्तर-मध्य महाराष्ट्र, पश्चिमी भारत में स्थित है, जो अपनी भित्ति चित्रकारी के लिए विख्यात है। औरंगाबाद से 107 किलोमीटर पूर्वोत्तर में वगुर्ना नदी घाटी के 20 मीटर गहरे बाएँ छोर पर एक चट्टान के आग्नेय पत्थरों की परतों को खोखला करके ये मंदिर बनाए गए हैं।

लगभग तीस गुफ़ाओं के इस समूह की खुदाई पहली शताब्दी ई. पू. और सातवीं शताब्दी के बीच दो रूपों में की गई थी- चैत्य (मंदिर) और विहार (मठ)। यद्यपि इन मंदिरों की मूर्तिकला, ख़ासकर चैत्य स्तंभों का अलंकरण अद्भुत तो है, लेकिन अंजता की गुफ़ाओं का मुख्य आकर्षण भित्ति चित्रकारी है। इन चित्रों में बौद्ध धार्मिक आख्यानों और देवताओं का जितनी प्रचुरता और जीवंतता के साथ चित्रण किया गया है, वह भारतीय कला के क्षेत्र में अद्वितीय है।

अजंता की गुफ़ाएं, औरंगाबाद
Ajanta Caves, Aurangabad

अजंता की गुफाएं बौद्ध धर्म द्वारा प्रेरित और उनकी करुणामय भावनाओं से भरी हुई शिल्‍पकला और चित्रकला से ओतप्रोत हैं, जो मानवीय इतिहास में कला के उत्‍कृष्‍ट ज्ञान और अनमोल समय को दर्शाती हैं। बौद्ध तथा जैन सम्‍प्रदाय द्वारा बनाई गई ये गुफाएं सजावटी रूप से तराशी गई हैं। फिर भी इनमें एक शांति और अध्‍यात्‍म झलकता है तथा ये दैवीय ऊर्जा और शक्ति से भरपूर हैं। दूसरी शताब्‍दी डी. सी. में आरंभ करते हुए और छठवीं शताब्‍दी ए. डी. में जारी रखते हुए महाराष्ट्र में औरंगाबाद शहर से लगभग 107 किलो मीटर की दूरी पर अजंता की ये गुफाएं पहाड़ को काट कर विशाल घोड़े की नाल के आकार में बनाई गई हैं। अजंता में 29 गुफालाओं का एक झुंड बौद्ध वास्‍तुकला, गुफा चित्रकला और शिल्‍प चित्रकला के उत्‍कृष्‍तम उदाहरणों में से एक है। इन गुफाओं में चैत्‍य कक्ष या मठ है, जो भगवान बुद्ध और विहार को समर्पित हैं, जिनका उपयोग बौद्ध भिक्षुओं द्वारा ध्‍यान लगाने और भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का अध्‍ययन करने के लिए किया जाता था। गुफाओं की दीवारों तथा छतों पर बनाई गई ये तस्‍वीरें भगवान बुद्ध के जीवन की विभिन्‍न घटनाओं और विभिन्‍न बौद्ध देवत्‍व की घटनाओं का चित्रण करती हैं। इसमें से सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण चित्रों में जातक कथाएं हैं, जो बोधिसत्व के रूप में बुद्ध के पिछले जन्‍म से संबंधित विविध कहानियों का चित्रण करते हैं, ये एक संत थे जिन्‍हें बुद्ध बनने की नियति प्राप्‍त थी। ये शिल्‍पकलाओं और तस्‍वीरों को प्रभावशाली रूप में प्रस्‍तुत करती हैं जबकि ये समय के असर से मुक्‍त है। ये सुंदर छवियां और तस्‍वीरें बुद्ध को शांत और पवित्र मुद्रा में दर्शाती हैं।

सह्याद्रि की पहाडि़यों पर स्थित इन 30 गुफाओं में लगभग 5 प्रार्थना भवन और 25 बौद्ध मठ हैं। इन गुफाओं की खोज आर्मी ऑफिसर जॉन स्मिथ व उनके दल द्वारा सन् 1819 में की गई थी। वे यहाँ शिकार करने आए थे, तभी उन्हें कतारबद्ध 29 गुफाओं की एक श्रृंखला नज़र आई और इस तरह ये गुफाएँ प्रसिद्ध हो गई। घोड़े की नाल के आकार में निर्मित ये गुफाएँ अत्यन्त ही प्राचीन व ऐतिहासिक महत्त्व की है। इनमें 200 ईसा पूर्व से 650 ईसा पश्चात् तक के बौद्ध धर्म का चित्रण किया गया है। अजंता की गुफाओं में दीवारों पर ख़ूबसूरत अप्सराओं व राजकुमारियों के विभिन्न मुद्राओं वाले सुंदर चित्र भी उकेरे गए है, जो यहाँ की उत्कृष्ट चित्रकारी व मूर्तिकला के बेहद ही सुंदर नमूने है। अजंता की गुफाओं को दो भागों में बाँटा जा सकता है। एक भाग में बौद्ध धर्म के हीनयान और दूसरे भाग में महायान संप्रदाय की झलक देखने को मिलती है। हीनयान वाले भाग में 2 चैत्य[1] और 4 विहार[2] है तथा महायान वाले भाग में 3 चैत्य और 11 विहार है। ये 19वीं शताब्दी की गुफाएँ है, जिसमें बौद्ध भिक्षुओं की मूर्तियाँ व चित्र है। हथौड़े और छैनी की सहायता से तराशी गई ये मूर्तियाँ अपने आप में अप्रतिम सुंदरता को समेटे है। [3]

अजंता की गुफ़ाएं, औरंगाबाद
Ajanta Caves, Aurangabad

अजन्ता में निर्मित कुल 29 गुफाओं में वर्तमान में केवल 6 ही, गुफा संख्या 1, 2, 9, 10, 16, 17 शेष है। इन 6 गुफाओं में गुफा संख्या 16 एवं 17 ही गुप्तकालीन हैं। अजन्ता के चित्र तकनीकि दृष्टि से विश्व में प्रथम स्थान रखते हैं। इन गुफाओं में अनेक प्रकार के फूल-पत्तियों, वृक्षों एवं पशु आकृति से सजावट का काम तथा बुद्ध एवं बोधिसत्वों की प्रतिमाओं के चित्रण का काम, जातक ग्रंथों से ली गई कहानियों का वर्णनात्मक दृश्य के रूप में प्रयोग हुआ है। ये चित्र अधिकतर जातक कथाओं को दर्शाते हैं। इन चित्रों में कहीं-कही गैर भारतीय मूल के मानव चरित्र भी दर्शाये गये हैं। अजन्ता की चित्रकला की एक विशेषता यह है कि इन चित्रों में दृश्यों को अलग अलग विन्यास में नहीं विभाजित किया गया है।

अजन्ता में 'फ़्रेस्को' तथा 'टेम्पेरा' दोनों ही विधियों से चित्र बनाये गए हैं। चित्र बनाने से पूर्व दीवार को भली भांति रगड़कर साफ़ किया जाता था तथा फिर उसके ऊपर लेप चढ़ाया जाता था। अजन्ता की गुफा संख्या 16 में उत्कीर्ण ‘मरणासन्न राजकुमारी‘ का चित्र प्रशंसनीय है। इस चित्र की प्रशंसा करते हुए ग्रिफिथ, वर्गेस एवं फर्गुसन ने कहा,- ‘करुणा, भाव एवं अपनी कथा को स्पष्ट ढंग से कहने की दृष्टि‘ यह चित्रकला के इतिहास में अनतिक्रमणीय[4] है। वाकाटक वंश के वसुगुप्त शाखा के शासक हरिषेण (475-500ई.) के मंत्री वराहमंत्री ने गुफा संख्या 16 को बौद्ध संघ को दान में दिया था।

गुफा संख्या 17 के चित्र को ‘चित्रशाला‘ कहा गया है। इसका निर्माण हरिषेण नामक एक सामन्त ने कराया था। इस चित्रशाला में बुद्ध के जन्म, जीवन, महाभिनिष्क्रमण एवं महापरिनिर्वाण की घटनाओं से संबंधित चित्र उकेरे गए हैं। गुफा संख्या 17 में उत्कीर्ण सभी चित्रों में माता और शिशु नाम का चित्र सर्वोत्कृष्ट है। अजन्ता की गुफाऐं बौद्ध धर्म की ‘महायान शाखा से संबंधित थी।

अजंता की प्रसिद्ध गुफाओं के चित्रों की चमक हज़ार से अधिक वर्ष बीतने के बाद भी आधुनिक समय से विद्वानों के लिए आश्चर्य का विषय है। भगवान बुद्ध से संबंधित घटनाओं को इन चित्रों में अभिव्यक्त किया गया है। चावल के मांड, गोंद और अन्य कुछ पत्तियों तथा वस्तुओं का सम्मिश्रमण कर आविष्कृत किए गए रंगों से ये चित्र बनाए गए। लगभग हज़ार साल तक भूमि में दबे रहे और 1819 में पुन: उत्खनन कर इन्हें प्रकाश में लाया गया। हज़ार वर्ष बीतने पर भी इनका रंग हल्का नहीं हुआ, ख़राब नहीं हुआ, चमक यथावत बनी रही। कहीं कुछ सुधारने या आधुनिक रंग लगाने का प्रयत्न हुआ तो वह असफल ही हुआ। रंगों और रेखाओं की यह तकनीक आज भी गौरवशाली अतीत का याद दिलाती है।

ब्रिटिश संशोधक मि. ग्रिफिथ कहते हैं ‘अजंता में जिन चितेरों ने चित्रकारी की है, वे सृजन के शिखर पुरुष थे। अजंता में दीवारों पर जो लंबरूप (खड़ी) लाइनें कूची से सहज ही खींची गयी हैं वे अचंभित करती हैं। वास्तव में यह आश्चर्यजनक कृतित्व है। परन्तु जब छत की सतह पर संवारी क्षितिज के समानान्तर लकीरें, उनमें संगत घुमाव, मेहराब की शक्ल में एकरूपता के दर्शन होते हैं और इसके सृजन की हज़ारों जटिलताओं पर ध्यान जाता है, तब लगता है वास्तव में यह विस्मयकारी आश्चर्य और कोई चमत्कार है।‘[5]

अजन्ता में प्राप्त चित्र गुफाओं की समय सीमा
गुफा संख्या समय
9 व 10 प्रथम शताब्दी (गुप्तकाल से पूर्व)
16 एवं 17 500 ई. (उत्तर गुप्त काल )
1 एवं 2 लगभग 628 ई. (गुप्तोत्तर काल)

यूनेस्‍को द्वारा 1983 से विश्‍व विरासत स्‍थल घोषित किए जाने के बाद अजंता और एलोरा की तस्‍वीरें और शिल्‍पकला बौद्ध धार्मिक कला के उत्‍कृष्‍ट नमूने माने गए हैं और इनका भारत में कला के विकास पर गहरा प्रभाव है। रंगों का रचनात्‍मक उपयोग और अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता के उपयोग से इन गुफाओं की तस्‍वीरों में अजंता के अंदर जो मानव और जंतु रूप चित्रित किए गए हैं, उन्‍हें कलात्‍मक रचनात्‍मकता का एक उच्‍च स्‍तर माना जा सकता है। ये शताब्दियों से बौद्ध, हिन्‍दू और जैन धर्म के प्रति समर्पित है। ये सहनशीलता की भावना को प्रदर्शित करते हैं, जो प्राचीन भारत की विशेषता रही है।

इन्हें भी देखें: एलोरा की गुफ़ाएं, उदयगिरि गुफ़ाएँ एवं कार्ले चैत्यगृह


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. प्रार्थना भवन
  2. बौद्ध भिक्षुओं के रहने के स्थान
  3. शर्मा, गायत्री। अजंता की गुफाएँ (एच.टी.एम.एल) webdunia। अभिगमन तिथि: 14अक्टूबर, ।
  4. जिसका अतिक्रमण या उल्लंघन न हो सकता हो या जिसका अतिक्रमण करना उचित न हो
  5. सोनी, सुरेश। भारत का वैज्ञानिक चिन्तन (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) vaigyanik-bharat। अभिगमन तिथि: 15अक्टूबर, 2010।

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