"स्वाहा देवी": अवतरणों में अंतर
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*उसी के माध्यम से देवता तृप्त हो जायेंगे। | *उसी के माध्यम से देवता तृप्त हो जायेंगे। | ||
*[[अग्नि]] ने वहां उपस्थित होकर उसका पाणिग्रहण किया।< | *[[अग्निदेव|अग्नि]] ने वहां उपस्थित होकर उसका पाणिग्रहण किया।<ref>भागवत, 9।43</ref> | ||
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==संबंधित लेख== | |||
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10:57, 21 मार्च 2011 के समय का अवतरण
- ब्राह्मणों और क्षत्रियों के यज्ञों की हवि देवताओं तक नहीं पहुंचती थी, अत: वे सब ब्रह्मा के पास गये।
- ब्रह्मा उनके साथ श्री कृष्ण की शरण में पहुंचे।
- कृष्ण ने उन्हें प्रकृति की पूजा करने के लिए कहा। प्रकृति की कला ने प्रकट होकर उनसे वर मांगने को कहा।
- उन्होंने वर स्वरूप सदैव हवि प्राप्त करते रहने की इच्छा प्रकट की।
- उसने देवताओं को हवि मिलने के लिए आश्वस्त किया।
- वह स्वयं कृष्ण की आराधिका थी।
- प्रकृति की उस कला से कृष्ण ने कहा कि वह अग्नि की पत्नी स्वाहा होगी।
- उसी के माध्यम से देवता तृप्त हो जायेंगे।
- अग्नि ने वहां उपस्थित होकर उसका पाणिग्रहण किया।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भागवत, 9।43