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| <quiz display=simple>
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| {खड़ीबोली का अरबी-फ़ारसीमय रूप है?
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| |type="()"}
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| - [[फ़ारसी भाषा]]
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| - [[अरबी भाषा]]
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| + [[उर्दू भाषा]]
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| - अदालती भाषा
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| || [[उर्दू भाषा]] भारतीय-आर्य भाषा है, जो भारतीय संघ की 18 राष्ट्रीय भाषाओं में से एक व [[पाकिस्तान]] की राष्ट्रभाषा है। हालाँकि यह [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] और [[अरबी भाषा|अरबी]] से प्रभावित है, लेकिन यह [[हिन्दी भाषा|हिन्दी]] के निकट है और इसकी उत्पत्ति और विकास भारतीय उपमहाद्वीप में ही हुआ। दोनों भाषाएँ एक ही भारतीय आधार से उत्पन्न हुई हैं। हिन्दी के लिए [[देवनागरी लिपि|देवनागरी]] का उपयोग होता है और उर्दू के लिए फ़ारसी-अरबी लिपि प्रयुक्त होती है, जिसे आवश्यकतानुसार स्थानीय रूप में परिवर्तित कर लिया गया है। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[उर्दू भाषा]]
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| {[[हिन्दी भाषा]] का पहला समाचार-पत्र 'उदंत मार्ताण्ड' किस सन् में प्रकाशित हुआ था?
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| |type="()"}
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| - (1821)
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| + (1826)
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| - (1828)
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| - (1830)
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| {हिन्दी के किस समाचार-पत्र में 'खड़ीबोली' को 'मध्यदेशीय भाषा' कहा गया है?
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| |type="()"}
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| + बनारस अखबार
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| - सुधाकर
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| - बुद्धिप्रकाश
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| - उदंत मार्तण्ड
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| {'गाथा' (गाहा) कहने से किस लोक प्रचलित काव्यभाषा का बोध होता है?
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| |type="()"}
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| - [[पालि भाषा|पालि]]
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| + '[[प्राकृत]]
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| - अपभ्रंश
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| - [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]]
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| || प्राकृत भाषा भारतीय आर्यभाषा का एक प्राचीन रूप है। इसके प्रयोग का समय 500 ई.पू. से 1000 ई. सन तक माना जाता है। धार्मिक कारणों से जब [[संस्कृत]] का महत्व कम होने लगा तो प्राकृत भाषा अधिक व्यवहार में आने लगी। इसके चार रूप विशेषत: उल्लेखनीय हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[प्राकृत|प्राकृत भाषा]]
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| {सिद्धों की उद्धृत रचनाओं की काव्य भाषा है?
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| |type="()"}
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| + देशभाषा मिश्रित अपभ्रंश अर्थात् पुरानी हिन्दी
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| - प्राकृत भाषा
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| - अवहट्ठ भाषा
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| - [[पालि भाषा]]
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| {अपभ्रंश भाषा के प्रथम व्याकरणाचार्य थे?
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| |type="()"}
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| - [[पाणिनि]]
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| - [[कात्यायन]]
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| + [[हेमचन्द्र]]
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| - [[पतंजलि]]
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| {'जो जिण सासण भाषियउ सो मई कहियउ सार। जो पालइ सइ भाउ करि सो तरि पावइ पारु॥' इस दोहे के रचनाकार का नाम है?
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| |type="()"}
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| - स्वयभू
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| + [[देवसेन]]
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| - पुष्यदन्त
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| - कनकामर
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| {प्रादेशिक बोलियाँ के साथ [[ब्रज]] या मध्य देश की भाषा का आश्रय लेकर एक सामान्य साहित्यिक भाषा स्वीकृत हुई, जिसे चारणों ने नाम दिया?
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| |type="()"}
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| - डिंगल भाषा
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| - मेवाड़ी भाषा
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| - मारवाड़ी भाषा
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| + पिंगल भाषा
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| {अपभ्रंश के योग से [[राजस्थानी भाषा]] का जो साहित्यिक रुप बना, उसे कहा जाता है?
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| |type="()"}
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| - पिंगल भाषा
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| + डिंगल भाषा
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| - मेवाड़ी भाषा
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| - बाँगरु भाषा
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| {[[अमीर ख़ुसरो]] ने जिन मुकरियों, पहेलियों और दो सुखनों की रचना की है, उसकी मुख्य भाषा है?
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| |type="()"}
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| - दक्खिनी
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| + खड़ीबोली
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| - बुन्देली
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| - बघेली
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| {'एक नगर पिया को भानी। तन वाको सगरा ज्यों पानी।' यह पंक्ति किस भाषा की है?
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| |type="()"}
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| + [[ब्रजभाषा]]
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| - खड़ीबोली भाषा
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| - अपभ्रंश भाषा
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| - कन्नौजी भाषा
| |
| ||[[ब्रजभाषा]] मूलत: ब्रजक्षेत्र की बोली है। विक्रम की 13वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक भारत में साहित्यिक भाषा रहने के कारण [[ब्रज]] की इस जनपदीय बोली ने अपने विकास के साथ भाषा नाम प्राप्त किया और ब्रजभाषा नाम से जानी जाने लगी। शुद्ध रूप में यह आज भी [[मथुरा]], [[आगरा]], [[धौलपुर]] और अलीगढ़ जिलों में बोली जाती है। इसे हम केंद्रीय ब्रजभाषा भी कह सकते हैं। आधुनिक ब्रजभाषा 1 करोड़ 23 लाख जनता के द्वारा बोली जाती है और लगभग 38,000 वर्गमील के क्षेत्र में फैली हुई है। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[ब्रजभाषा]]
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| {किस भाषा को वैज्ञानिक ने [[बिहारी भाषाएँ|बिहारी]] और [[मैथिली भाषा|मैथिली]] मागधी से निकली होने के कारण हिन्दी से पृथक् माना है?
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| |type="()"}
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| - हार्नले
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| + सुनीति कुमार चटर्जी
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| - जॉर्ज ग्रियर्सन
| |
| - धीरेन्द्र वर्मा
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| {[[देवनागरी लिपि]] को राष्ट्रलिपि के रूप में कब स्वीकार किया गया था??
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| |type="()"}
| |
| +([[14 सितम्बर]], [[1949]])
| |
| - ([[21 सितम्बर]], 1949)
| |
| - ([[23 सितम्बर]], 1949)
| |
| - ([[25 सितम्बर]], 1949)
| |
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| {'रानी केतकी की कहानी' की भाषा को कहा जाता है?
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| |type="()"}
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| - हिन्दुस्तानी
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| + खड़ीबोली
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| - [[उर्दू भाषा|उर्दू]]
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| - अपभ्रंश
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| {[[देवनागरी लिपि]] का विकास किस लिपि से हुआ है?
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| |type="()"}
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| - [[खरोष्ठी लिपि]]
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| - कुटिल लिपि
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| + [[ब्राह्मी लिपि]]
| |
| - गुप्तकाल की लिपि
| |
| ||[[चित्र:Devnagari-Lipi.jpg|thumb|200px|[[अशोक]] की ब्राह्मी लिपि के अक्षर]] प्राचीन ब्राह्मी लिपि के उत्कृष्ट उदाहरण सम्राट [[अशोक]] (असोक) द्वारा ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में बनवाये गये शिलालेखों के रूप में अनेक स्थानों पर मिलते है । नये अनुसंधानों के आधार 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के लेख भी मिले है। ब्राह्मी भी [[खरोष्ठी]] की तरह ही पूरे [[एशिया]] में फैली हुई थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[ब्राह्मी लिपि]]
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| {'बाँगरू' बोली का किस बोली से निकट सम्बन्ध है?
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| |type="()"}
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| - कन्नौजी
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| - बुन्देली
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| - [[ब्रजभाषा]]
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| +खड़ीबोली
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| {मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का स्थिति काल रहा है?
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| |type="()"}
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| - (1500 ई.पू. से 500 ई.पू.)
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| - (1000 ई.पू. से 500 ई.पू.)
| |
| - (500 ई.पू. से 600 ई.पू.)]
| |
| + (500 ई.पू. से 1000 ई.पू.)
| |
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| |
| {'प्राचीन देशभाषा' (पूर्व अपभ्रंश) को 'अपभ्रंश' तथा परवर्ती अर्थात् अग्रसरीभूत अपभ्रंश को 'अवहट्ठ' किस भाषा वैज्ञानिक ने कहा है?
| |
| |type="()"}
| |
| - ग्रियर्सन
| |
| - भोलानाथ तिवारी
| |
| +सुनीतिकुमार चटर्जी एवं सुकुमार सेन
| |
| -उदयनारायण तिवारी
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| {अर्द्धमागधी अपभ्रंश से इनमें से किस बोली का विकास हुआ है?
| |
| |type="()"}
| |
| - पश्चिमी
| |
| - [[बिहारी भाषाएँ|बिहारी]]
| |
| - [[बांग्ला भाषा|बंगाली]]
| |
| + [[बांग्ला भाषा|बंगाली]]
| |
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| {कामताप्रसाद गुरु का हिन्दी व्याकरण विषयक ग्रंथ, जो नागरी प्रचारिणी सभा, काशी से प्रकाशित हुआ था, उसका नाम था?
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| |type="()"}
| |
| - [[हिन्दी]] का सरल व्याकरण
| |
| - हिन्दी का प्रामाणिक व्याकरण
| |
| + हिन्दी व्याकरण
| |
| - हिन्दी का व्यावहारिक व्याकरण
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| {[[देवनागरी लिपि]] है?
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| |type="()"}
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| - वर्णात्मक
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| - वर्णात्मक और अक्षरात्मक दोनों
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| + अक्षरात्मक
| |
| -इनमें से कोई नहीं
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| |
| {विद्यापति की उस प्रमुख रचना का नाम बताइए, जिसमें 'अवहट्ठ' भाषा का बहुतायत से प्रयोग हुआ है?
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| |type="()"}
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| - कीर्तिपताका
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| + कीर्तिलता
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| - विद्यापति पदावली
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| -पुरुष परीक्षा
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| {जॉर्ज ग्रियर्सन ने पश्चिमोत्तर समुदाय की भाषा को आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं की किस उपशाखा में रखा है?
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| |type="()"}
| |
| - भीतरी उपशाखा
| |
| + बाहरी उपशाखा
| |
| - मध्यवर्गीय उपशाखा
| |
| -इनमें से कोई नहीं
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| {[[उर्दू भाषा|उर्दू]] किस भाषा का मूल शब्द है?
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| |type="()"}
| |
| + तुर्की भाषा''
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| - ईरानी भाषा
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| - [[अरबी भाषा]]
| |
| -[[फ़ारसी भाषा]]
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| {'साहित्य का इतिहास दर्शन' ग्रंथ के लेखक का नाम है?
| |
| |type="()"}
| |
| - डॉ. श्यामसुन्दर दास
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| -आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
| |
| + डॉ. नलिन विलोचन शर्मा
| |
| -डॉ. गुलाब राय
| |
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| |
| {आचार्य रामचन्द्र शुक्ल कृत 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' की अधिकांश सामग्री पुस्तकाकार प्रकाशन के पूर्व 'हिन्दी शब्द- सागर की भूमिका में छपी थी। इस भूमिका में उसका शीर्षक था?
| |
| |type="()"}
| |
| - [[हिन्दी]] साहित्य का उद्भव और विकास
| |
| +हिन्दी साहित्य का विकास
| |
| - हिन्दी साहित्य का विकासात्मक इतिहास
| |
| -हिन्दी साहित्य की विकास यात्रा
| |
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| |
| {जॉर्ज ग्रियर्सन का इतिहास ग्रन्थ 'मॉडर्न वर्नाक्युलर लिटरेचर ऑफ़ नॉदर्न हिन्दुस्तान' का प्रकाशन हुआ था?
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| |type="()"}
| |
| -([[1887]])
| |
| +([[1888]])
| |
| -([[1889]])
| |
| -([[1890]])
| |
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| {"जिस कालखण्ड के भीतर किसी विशेष ढंग की रचनाओं की प्रचुरता दिखाई पड़ी है, वह एक अलग काल माना गया है और उसका नामकरण उन्हीं रचनाओं के अनुसार किया गया है" यह मान्यता किस इतिहासकार की है?
| |
| |type="()"}
| |
| -डॉ. श्यामसुन्दर दास
| |
| +आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
| |
| -डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी
| |
| -डॉ. रामविलास शर्मा
| |
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| |
| {आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के उस इतिहास ग्रंथ का नाम बतलाइए जिसमें मात्र आदिकालीन हिन्दी साहित्य सम्बन्धी सामग्री संग्रहीत है?
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| |type="()"}
| |
| -[[हिन्दी]] साहित्य की भूमिका
| |
| -हिन्दी साहित्य: उद्भव और विकास
| |
| -मध्यकालीन धर्मसाधना)
| |
| +हिन्दी साहित्य का आदिकाल
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| {आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने किन दो प्रमुख तथ्यों को ध्यान में रखकर 'हिन्दी साहित्य के इतिहास' के काल खण्डों का नामकरण किया है?
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| |type="()"}
| |
| -ग्रंथों की प्रसिद्धि
| |
| +ग्रंथों की प्रचुरता एवं ग्रंथों की प्रसिद्धि
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| -ग्रंथों की उपलब्धता
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| -रचनाकारों की संख्या
| |
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| {इनमें किस इतिहासकार ने सर्वप्रथम रीतिकालीन कवियों के सर्वाधिक परिचयात्मक विवरण दिए है?
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| |type="()"}
| |
| -डॉ. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र
| |
| -डॉ. नगेन्द्र
| |
| -डॉ.रामशंकर शुक्ल 'रसाल'
| |
| +मिश्रबन्धु
| |
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| |
| {'हिन्दी साहित्य का अतीत: भाग- एक' के लेखक का नाम है?
| |
| |type="()"}
| |
| -आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी
| |
| +डॉ. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र
| |
| -डॉ. माताप्रसाद गुप्त
| |
| -डॉ. विद्यानिवास मिश्र
| |
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| {प्रेम लक्षणा भक्ति को किस भक्ति शाखा ने अपनी साधना का मुख्य आधार बनाया है?
| |
| |type="()"}
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| -रामभक्ति शाखा
| |
| -ज्ञानाश्रयी शाखा
| |
| +कृष्णभक्ति शाखा
| |
| -प्रेममार्गी शाखा
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| {मनुष्यत्व की सामान्य भावना को आगे करके निम्न श्रेणी की जनता में आत्म- गौरव का भाव जगाने वाले सर्वश्रेष्ठ कवि थे?
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| |type="()"}
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| -[[तुलसीदास]]
| |
| +[[कबीर]]
| |
| -[[जायसी]]
| |
| -[[सूरदास]]
| |
| ||महात्मा कबीरदास के जन्म के समय में [[भारत]] की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक दशा शोचनीय थी। एक तरफ मुसलमान शासकों की धर्मांन्धता से जनता परेशान थी और दूसरी तरफ हिन्दू धर्म के कर्मकांड, विधान और पाखंड से धर्म का ह्रास हो रहा था। जनता में भक्ति- भावनाओं का सर्वथा अभाव था। पंडितों के पाखंडपूर्ण वचन समाज में फैले थे। ऐसे संघर्ष के समय में, कबीरदास का प्रार्दुभाव हुआ।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[सूरदास]]
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| {'हंस जवाहिर' रचना किस सूफी कवि द्वारा रची गई थी?
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| |type="()"}
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| -मंझन
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| -कुतुबन
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| -उसमान
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| +क़ासिमशाह
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| {'देखन जौ पाऊँ तौ पठाऊँ जमलोक हाथ, दूजौ न लगाऊँ, वार करौ एक कर को।' ये पंक्तियाँ किस कवि द्वारा सृजित हैं?
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| |type="()"}
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| -ह्रदयराम
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| -अग्रदास
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| -[[तुलसीदास]]
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| +नाभादास
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| {'[[भक्तमाल]]' भक्तिकाल के कवियों की प्राथमिक जानकारी देता है, इसके रचयिता थे?
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| |type="()"}
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| -[[वल्लभाचार्य]]
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| +नाभादास
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| -रामानन्द
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| -नन्ददास
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| {आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने रीतिकाल को 'श्रृंगारकाल' नाम दिया, लेकिन उन्होंने इस पर जो ग्रंथ लिखा, उसका नाम 'हिन्दी का श्रृंगारकाल' नहीं है, बल्कि उसका नाम है?
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| |type="()"}
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| -रीतिकाव्य की भूमिका
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| -रीतिकाव्य की पृष्ठभूमि
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| -रीतिकाव्य की प्रस्तावना
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| +हिन्दी साहित्य का अतीत, भाग -2
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| {'भारत मित्र' पत्र (जो [[कलकत्ता]] से स. [[1934]] वि. में प्रकाशित हुआ था) के एक सम्पादक थे?
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| |type="()"}
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| -तोताराम
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| +रुद्रदत्त शर्मा
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| -[[कन्हैयालाल नंदन|कन्हैयालाल]]
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| -बल्देव प्रसाद
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| {'हरिश्चन्द्री हिन्दी' शब्द का प्रयोग किस इतिहासकार ने अपने इतिहास ग्रंथ में किया है?
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| |type="()"}
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| -मिश्रबंधु
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| -शिवसिंह 'सेंगर'
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| +रामचन्द्र शुक्ल
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| -रामविलास शर्मा
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| {'गिला' कहानी के लेखक का नाम है?
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| |type="()"}
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| +[[मुंशी प्रेमचंद|प्रेमचन्द्र]]
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| -यशपाल
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| -अज्ञेय
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| -निर्मल वर्मा
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| [[भारत]] के उपन्यास सम्राट '''मुंशी प्रेमचंद''' (जन्म- [[31 जुलाई]], [[1880]] - मृत्यु- [[8 अक्टूबर]], [[1936]]) के युग का विस्तार सन 1880 से 1936 तक है। यह कालखण्ड भारत के इतिहास में बहुत महत्त्व का है। इस युग में भारत का स्वतंत्रता-संग्राम नई मंज़िलों से गुज़रा। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[प्रेमचंद]]
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| {'मेवाड़ की पन्ना नामक धाय के अलौकिक त्याग का ऐतिहासिक वृत्त लेकर 'राजमुकुट' नाटक की रचना की गई थी, इस नाटक के लेखक का नाम है?
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| |type="()"}
| |
| -हरिकृष्ण प्रेमी
| |
| -लक्ष्मीनारायण मिश्र
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| -उदयशंकर भट्ट
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| +[[गोविंद बल्लभ पंत]]
| |
| ||[[चित्र:Pandit-Govind-Ballabh-Pant.jpg|thumb|[[गोविंद बल्लभ पंत]]<br /> Govind Ballabh Pant]] <small><sub>(10 सितम्बर , 1887 - 7 मार्च, 1961)</sub></small> <br /> गोविंद बल्लभ पंत प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी और [[उत्तर प्रदेश]] के प्रथम मुख्यमंत्री थे। गोविंद वल्लभ पंत जी अगस्त 15, 1947 - मई 27, 1964 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। अपने संकल्प और साहस के मशहूर पंत जी का जन्म वर्तमान [[उत्तराखंड]] राज्य के [[अल्मोड़ा ज़िला|अल्मोडा ज़िले]] के खूंट (धामस) नामक गाँव में हुआ था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[गोविंद बल्लभ पंत]]
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| {डॉ. कृष्ण शंकर शुक्ल ने आचार्य [[केशवदास]] पर एक समीक्षात्मक पुस्तक लिखी थी, उस पुस्तक का नाम है?
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| |type="()"}
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| -केशव का आचार्यत्व
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| -केशव की प्रतिभा
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| -केशव की कला
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| +केशव की काव्यकला
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| {'गंगावतरण' काव्य के रचियता हैं?
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| |type="()"}
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| -अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'
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| +जगन्नाथदास 'रत्नाकर
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| -श्रीधर पाठक
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| -रामनरेश त्रिपाठी
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| {छायावादी कवियों ने जब आध्यात्मिक प्रेम को अपनी कविताओं में व्यक्त किया तो ऐसी कविताओं को किस वाद के अंतर्गत रखा गया है?=====
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| |type="()"}
| |
| -छायावाद
| |
| -प्रतीकवाद
| |
| +रहस्यवाद
| |
| -बिम्बवाद
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| {'परिवर्तन' नामक कविता सर्वप्रथम सुमित्रानन्दन पंत के किस कविता संग्रह में संगृहीत हुई है?
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| |type="()"}
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| -वीणा
| |
| +पल्लव
| |
| -तारापथ
| |
| -ग्रंथि
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| {भिखारीदास की रचना का नाम है?
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| |type="()"}
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| +काव्य निर्णय
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| -काव्य विवेक
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| -भाव विलास
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| -नवरस तरंग
| |
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| {उन्नीसवीं सदी की साहित्य- सर्जना का मूल हेतु है?
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| |type="()"}
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| -ईसाई विरोध
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| -मुस्लिम विरोध
| |
| +पराधीनता का बोध
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| -परमाणु परीक्षण
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| {'यह प्रेम को पंथ कराल महा तलवार की धार पै धावनी है', नामक पंक्ति किस कवि द्वारा सृजित है?
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| |type="()"}
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| -घनानंद
| |
| +बोधा
| |
| -आलम
| |
| -ठाकुर
| |
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| {आचार्य [[केशवदास]] को 'कठिन काव्य का प्रेत' किस आलोचक ने कहा है?
| |
| |type="()"}
| |
| -आचार्य पद्मसिंह शर्मा
| |
| -आचार्य नंददुलारे बाजपेयी
| |
| -आचार्य विश्वनाथप्रसाद मिश्र
| |
| +आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
| |
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| {बूँदी नरेश महाराज भावसिंह का आश्रित कवि निम्नलिखित में से कौन था?
| |
| |type="()"}
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| -बिहारी
| |
| -बोधा
| |
| +मतिराम
| |
| -ठाकुर
| |
|
| |
| {भूषण का निम्नलिखित में से कौन सा लक्षण ग्रंथ है?
| |
| |type="()"}
| |
| +शिवराज भूषण
| |
| -भूषण हजारा
| |
| -शिवा बावनी
| |
| -छत्रसाल दशक
| |
|
| |
| {निम्नलिखित में से किस रचना की सर्वाधिक टीकाएँ लिखी गई हैं?
| |
| |type="()"}
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| -मतिराम सतसई
| |
| +बिहारी सतसई
| |
| -वृन्द सतसई
| |
| -विक्रम सतसई
| |
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| |
| {इनमें किस नाटककार ने अपने नाटकों के लिए रंगमंच को अनिवार्य नहीं माना है?
| |
| |type="()"}
| |
| -डॉ. रामकुमार वर्मा
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| -सेठ गोविन्ददास
| |
| -लक्ष्मीनारायण मिश्र
| |
| +[[जयशंकर प्रसाद]]
| |
| ||महाकवि जयशंकर प्रसाद (जन्म- [[30 जनवरी]], [[1889]] ई.,[[वाराणसी]], [[उत्तर प्रदेश]], मृत्यु- [[15 नवम्बर]], सन [[1937]]) हिंदी नाट्य जगत और कथा साहित्य में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। कथा साहित्य के क्षेत्र में भी उनकी देन महत्त्वपूर्ण है। '''भावना-प्रधान कहानी लिखने वालों में जयशंकर प्रसाद अनुपम थे।'''{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[जयशंकर प्रसाद]]}}
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| {'प्रभातफेरी' काव्य के रचनाकार कौन हैं?
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| |type="()"}
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| -केदारनाथ सिंह
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| -सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
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| +नरेन्द्र शर्मा
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| -[[रामधारी सिंह दिनकर|रामधारी सिंह 'दिनकर']]
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| {'निशा -निमंत्रण के रचनाकार कौन हैं?
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| |type="()"}
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| -[[महादेवी वर्मा]]
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| -श्यामनारायण पाण्डेय
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| -[[जयशंकर प्रसाद]]
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| +हरिवंशराय 'बच्चन
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| { 'बिहारी सतसई' पर किस ग्रंथ का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा है?
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| |type="()"}
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| +गाथा सप्तशती
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| -अमरूफ शतक
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| -आर्या सप्तशती
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| -उपर्युक्त में किसी का नहीं
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| { 'बिहारी सतसई' की प्रसिद्धि का प्रमुख कारण है?
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| |type="()"}
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| +कल्पना की समाहार शक्ति
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| -नायिका -भेद वर्णन
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| -प्रतीकों का नपा -तुला प्रयोग
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| -पिंगल वर्णन
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| { बिहारी किस राजा के दरबारी कवि थे?
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| |type="()"}
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| -बूँदी नरेश महाराज भावसिंह के
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| +[[जयपुर]] नरेश [[जयसिंह]] के
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| -[[नागपुर]] के[[सूर्यवंश|सूर्यवंशी]] भोंसला मकरन्द शाह के
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| -चित्रकूट नरेश रुद्रदेव के
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| ||आमेर नरेश मिर्जा [[जयसिंह]] [[मुग़ल काल|मुग़ल]] दरबार का सर्वाधिक प्रभावशाली सामंत था, वह [[औरंगजेब]] की आँख का काँटा बना हुआ था। जिस समय दक्षिण में [[शिवाजी]] के विजय−अभियानों की घूम थी, और उनसे युद्ध करने में अफजलख़ाँ एवं शाइस्ताख़ाँ की हार हुई थी, तथा राजा [[यशवंतसिंह]] को भी सफलता मिली थी; तब [[औरंगजेब]] ने मिर्जा राजा जयसिंह को शिवाजी को दबाने के लिए भेजा था। इस प्रकार वह एक तीर से दो शिकार करना चाहता था। जयसिंह ने बड़ी बुद्धिमत्ता, वीरता और कूटनीति से [[शिवाजी]] को औरंगजेब से संधि करने के लिए राजी किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[जयसिंह]]
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| {[[तुलसीदास]] का वह ग्रंथ कौनसा है, जिसमें ज्योतिष का वर्णन किया गया है?
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| |type="()"}
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| -दोहावली
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| -गीतावली
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| +रामाज्ञा प्रश्नावली
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| -कवितावली
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| {'[[रामचरितमानस]]' में प्रधान रस के रूप में किस रस को मान्यता मिली है?
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| |type="()"}
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| -शांत रस
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| +भक्ति रस
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| -वात्सल्य रस
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| -अद्भुत रस
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| {'समांतर कहानी' के प्रवर्तक कौन थे?
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| |type="()"}
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| +कमलेश्वर
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| -हिमांशु जोशी
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| -मोहन राकेश
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| -मन्मथनाथ गुप्त
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| {सर्वप्रथम किस आलोचक ने अपने किस ग्रंथ में 'देव बड़े हैं कि बिहारी' विवाद को जन्म दिया?
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| |type="()"}
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| +मिश्रबंधु : हिन्दी नवरत्न
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| -पद्मसिंह शर्मा : बिहारी सतसई की भूमिका
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| -कृष्ण बिहारी मिश्र : देव और बिहारी
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| -लाला भगवान दीन : बिहारी और देव
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| {इनमें किस आलोचक ने अपना कौन सा आलोचना ग्रंथ लिखकर हिन्दी के स्नातकोत्तर कक्षाओं के पाठ्यक्रम में आलोचना के अभाव को पूरा करने का सर्वप्रथम सफल प्रयास किया था?
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| |type="()"}
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| -पदुमलाल पन्नालाल बख्ती : विश्व साहित्यविकल्प
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| -गयाप्रसाद अग्निहोत्री : समालोचना
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| -रामचन्द्र शुक्ल : चिंतामणि
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| +श्यामसुन्दर दास : साहित्यालोचन
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| {आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने 'त्रिवेणी' में किन तीन महाकवियों की समीक्षाएँ प्रस्तुत की हैं?
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| |type="()"}
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| -[[कबीर]], [[जायसी]], [[सूरदास|सूर]]
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| -[[कबीर]], [[जायसी]], [[तुलसीदास|तुलसी]]
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| +[[सूरदास|सूर]], [[तुलसीदास|तुलसी]], [[जायसी]]
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| -[[कबीर]], [[सूरदास|सूर]], [[तुलसीदास|तुलसी]]
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| ||सूरदास हिन्दी साहित्य में [[भक्तिकाल]] में [[कृष्ण]] भक्ति के भक्त कवियों में महाकवि सूरदास का नाम अग्रणी है। सूरदास जी वात्सल्य रस के सम्राट माने जाते हैं। उन्होंने श्रृंगार और शान्त रसों का भी बड़ा मर्मस्पर्शी वर्णन किया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[सूरदास]]तुलसीदास;गोस्वामी तुलसीदास [1497(1532?) - 1623] एक महान कवि थे। उनका जन्म राजापुर, (वर्तमान बाँदा ज़िला) [[उत्तर प्रदेश]] में हुआ था। तुलसीदास द्वारा रचित ग्रंथों की संख्या 39 बताई जाती है। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[तुलसीदास]]
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| ;मलिक मुहम्मद जायसी
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| मलिक मुहम्मद जायसी (जन्म- 1397 ई॰ और 1494 ई॰ के बीच, मृत्यु- 1542 ई.) भक्ति काल की निर्गुण प्रेमाश्रयी धारा व मलिक वंश के कवि है। जायसी अत्यंत उच्चकोटि के सरल और उदार सूफ़ी महात्मा थे। हिन्दी के प्रसिद्ध सूफ़ी कवि, जिनके लिए केवल 'जायसी' शब्द का प्रयोग भी, उनके उपनाम की भाँति, किया जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[मलिक मुहम्मद जायसी]]
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| {भक्तिकाल में एक ऐसा कवि हुआ, जिसने अपने भाव व्यक्त करने के लिए उर्दू, फारसी, खड़ीबोली आदि के शब्दों का मुक्त उपयोग किया है?
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| |type="()"}
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| -[[तुलसीदास]]
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| -[[जायसी]]
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| -[[सूरदास]]
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| +[[कबीर]]
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| ||महात्मा कबीरदास के जन्म के समय में [[भारत]] की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक दशा शोचनीय थी। एक तरफ मुसलमान शासकों की धर्मांन्धता से जनता परेशान थी और दूसरी तरफ हिन्दू धर्म के कर्मकांड, विधान और पाखंड से धर्म का ह्रास हो रहा था। जनता में भक्ति- भावनाओं का सर्वथा अभाव था। पंडितों के पाखंडपूर्ण वचन समाज में फैले थे। ऐसे संघर्ष के समय में, कबीरदास का प्रार्दुभाव हुआ।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[कबीरदास]]
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| {'समांतर कहानी' के प्रवर्तक कौन थे?
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| |type="()"}
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| +कमलेश्वर
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| -हिमांशु जोशी
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| -मोहन राकेश
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| -मन्मथनाथ गुप्त
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| ===== आचार्य शुक्ल के अनुसार इनमें एक ऐसा कवि है, जिसका 'वियोग वर्णन, वियोग वर्णन के लिए ही है, परिस्थिति के अनुरोध से नहीं'?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=कबीर|विकल्प 2=सूरदास|विकल्प 3=जायसी|विकल्प 4=तुलसी}}{{Ans|विकल्प 1='''[[कबीर]]'''{{Check}}|विकल्प 2=[[सूरदास]]|विकल्प 3=[[जायसी]]|विकल्प 4=[[तुलसी]]|विवरण=}}
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| ===== 'सुन्दर परम किसोर बयक्रम चंचल नयन बिसाल। कर मुरली सिर मोरपंख पीतांबर उर बनमाल॥ ये पंक्तियाँ किस रचनाकार की हैं?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=बिहारी|विकल्प 2=केशवदास|विकल्प 3=तुलसीदास|विकल्प 4=सूरदास}}{{Ans|विकल्प 1=[[बिहारी लाल|बिहारी]]|विकल्प 2=[[केशवदास]]|विकल्प 3=[[तुलसीदास]]|विकल्प 4='''[[सूरदास]]'''{{Check}}|विवरण=*हिन्दी साहित्य में [[भक्तिकाल]] में [[कृष्ण]] भक्ति के भक्त कवियों में महाकवि सूरदास का नाम अग्रणी है। सूरदास जी वात्सल्य रस के सम्राट माने जाते हैं। उन्होंने श्रृंगार और शान्त रसों का भी बड़ा मर्मस्पर्शी वर्णन किया है। उनका जन्म 1478 ईस्वी में [[मथुरा]] [[आगरा]] मार्ग पर स्थित [[रुनकता]] नामक गांव में हुआ था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[सूरदास]]}}
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| ===== [[भक्तिकाल]] का एक कवि अवतारवाद और मूर्तिपूजा का विरोधी है. इसके बावजूद वह हिन्दूओं के जन्म-मृत्यु सम्बन्धी सिद्धांत को मानता है, ऐसा रचनाकार है?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=जायसी|विकल्प 2=कबीर|विकल्प 3=तुलसीदास|विकल्प 4=कुम्भनदास}}{{Ans|विकल्प 1=[[जायसी]]|विकल्प 2='''[[कबीर]]'''{{Check}}|विकल्प 3=[[तुलसीदास]]|विकल्प 4=[[कुम्भनदास]]|विवरण=}}
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| ===== भक्तिकालीन कवियों में एक ऐसा ख्यातिलब्ध रचनाकार है जो अपने काव्य में लोकव्यापी प्रभाव वाले कर्म और लोकव्यापिनी दशाओं के वर्णन में माहिर है. ऐसे रचनाकार का नाम है?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=जायसी|विकल्प 2=सूरदास|विकल्प 3=तुलसीदास|विकल्प 4=रविदास}}{{Ans|विकल्प 1=[[जायसी]]|विकल्प 2=[[सूरदास]]|विकल्प 3='''[[तुलसीदास]]'''{{Check}}|विकल्प 4=रविदास|विवरण=गोस्वामी तुलसीदास [1497(1532?) - 1623] एक महान कवि थे। उनका जन्म राजापुर, (वर्तमान बाँदा ज़िला) [[उत्तर प्रदेश]] में हुआ था। तुलसी का बचपन बड़े कष्टों में बीता। माता-पिता दोनों चल बसे और इन्हें भीख मांगकर अपना पेट पालना पड़ा था। इसी बीच इनका परिचय राम-भक्त साधुओं से हुआ और इन्हें ज्ञानार्जन का अनुपम अवसर मिल गया। पत्नी के व्यंग्यबाणों से विरक्त होने की लोकप्रचलित कथा को कोई प्रमाण नहीं मिलता। अपने जीवनकाल में तुलसीदास जी ने 12 ग्रन्थ लिखे और उन्हें [[संस्कृत]] विद्वान होने के साथ ही हिन्दी भाषा के प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ट कवियों में एक माना जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[तुलसीदास]]}}
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| ===== 'जायसी -ग्रंथावली' के सम्पादक का नाम है?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल|विकल्प 2=चन्द्रबली पाण्डेय|विकल्प 3=डॉ. भगवतीप्रसाद सिंह|विकल्प 4=रामचन्द्र शुक्ल}}{{Ans|विकल्प 1=डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल|विकल्प 2=चन्द्रबली पाण्डेय|विकल्प 3=डॉ. भगवतीप्रसाद सिंह|विकल्प 4='''रामचन्द्र शुक्ल'''{{Check}}|विवरण=}}
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| ===== दोहा छन्द में श्रृंगारी रचना प्रस्तुत करने वालों में हिन्दी के सर्वाधिक ख्यातिलब्ध कवि हैं?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=रहीम|विकल्प 2=बिहारी|विकल्प 3=भूषण|विकल्प 4=सूरदास}}{{Ans|विकल्प 1=[[रहीम]]|विकल्प 2='''[[बिहारी लाल|बिहारी]]'''{{Check}}|विकल्प 3=[[भूषण]]|विकल्प 4=[[सूरदास]]|विवरण=*हिन्दी साहित्य के रीति काल के कवियों में बिहारीलाल का नाम महत्वपूर्ण है। महाकवि बिहारीलाल का जन्म 1595 के लगभग [[ग्वालियर]] में हुआ। वे जाति के माथुर चौबे थे। उनके पिता का नाम केशवराय था। उनका बचपन [[बुंदेलखंड]] में कटा और युवावस्था ससुराल [[मथुरा]] में व्यतीत हुई।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[बिहारी लाल]]}}
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| ===== 'कंचन तन धन बरन बर रहयौ रंग मिलि रंग। जानी जाति सुबास ही केसरि लाई अंग॥ ये पंक्तियाँ किसकी हैं?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=रहीम|विकल्प 2=तुलसी|विकल्प 3=बिहारी|विकल्प 4=भूषण}}{{Ans|विकल्प 1=[[रहीम]]|विकल्प 2=[[तुलसीदास|तुलसी]]|विकल्प 3='''[[बिहारी लाल|बिहारी]]'''{{Check}}|विकल्प 4=[[भूषण]]|विवरण=}}
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| ===== जलप्लावन भारतीय इतिहास की ऐसी प्राचीन घटना है जिसको आधार बनाकर छायावादी युग में एक महाकाव्य लिखा गया है. उसका नाम है?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=लोकायतन|विकल्प 2=कुरुक्षेत्र|विकल्प 3=कामायनी|विकल्प 4=चिताम्बरा}}{{Ans|विकल्प 1=लोकायतन|विकल्प 2=[[कुरुक्षेत्र]]|विकल्प 3='''कामायनी'''{{Check}}|विकल्प 4=चिताम्बरा|विवरण=}}
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| ===== 'लहरे व्योम चूमती उठती। चपलाएं असंख्य नचती।' पंक्ति जयशंकर प्रसाद के किस रचना का अंश है?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=लहर|विकल्प 2=झरना|विकल्प 3=आँसू|विकल्प 4=कामायनी}}{{Ans|विकल्प 1=लहर|विकल्प 2=झरना|विकल्प 3=आँसू|विकल्प 4='''कामायनी'''{{Check}}|विवरण=}}
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| ===== 'नखत की आशा - किरन -समान\ ह्रदय के कोमल कवि की कांत।' पंक्ति किसकी लिखी हुई है?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'|विकल्प 2=जयशंकर प्रसाद|विकल्प 3=सुमित्रानंदन पंत|विकल्प 4=महादेवी वर्मा}}{{Ans|विकल्प 1=[[सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला|सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला']]|विकल्प 2='''[[जयशंकर प्रसाद]]'''{{Check}}|विकल्प 3=[[सुमित्रानंदन पंत]]|विकल्प 4=[[महादेवी वर्मा]]|विवरण=}}
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| ===== 'मौन, नाश, विध्वंस, अंधेरा। शून्य बना जो प्रकट अभाव।। पंक्ति किसके द्वारा लिखी गई?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=महादेवी वर्मा|विकल्प 2=सुमित्रानंदन पंत|विकल्प 3=जयशंकर प्रसाद|विकल्प 4=सूर्यकांत त्रिपाठी निराला}}{{Ans|विकल्प 1=[[महादेवी वर्मा]]|विकल्प 2=[[सुमित्रानंदन पंत]]|विकल्प 3='''[[जयशंकर प्रसाद]]'''{{Check}}|विकल्प 4=[[सूर्यकांत त्रिपाठी निराला]]|विवरण=महाकवि जयशंकर प्रसाद (जन्म- [[30 जनवरी]], [[1889]] ई.,[[वाराणसी]], [[उत्तर प्रदेश]], मृत्यु- [[15 नवम्बर]], सन [[1937]]) हिंदी नाट्य जगत और कथा साहित्य में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। कथा साहित्य के क्षेत्र में भी उनकी देन महत्त्वपूर्ण है। '''भावना-प्रधान कहानी लिखने वालों में जयशंकर प्रसाद अनुपम थे।'''{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[जयशंकर प्रसाद]]}}
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| ===== 'दुरित, दुःख, दैन्य न थे जब ज्ञात। पंक्ति अपरिचित जरा- मरण -भ्रू पात।।' पंक्ति के रचनाकार हैं?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=सूर्यकांत त्रिपाठी निराला|विकल्प 2=सुमित्रानंदन पंत|विकल्प 3=जयशंकर प्रसाद|विकल्प 4=महादेवी वर्मा}}{{Ans|विकल्प 1=[[सूर्यकांत त्रिपाठी निराला]]|विकल्प 2='''[[सुमित्रानंदन पंत]]'''{{Check}}|विकल्प 3=[[जयशंकर प्रसाद]]|विकल्प 4=[[महादेवी वर्मा]]|विवरण=सुमित्रानंदन पंत हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार स्तंभों में से एक है। सुमित्रानंदन पंत उस नये युग के प्रवर्तक के रूप में आधुनिक हिन्दी साहित्य में उदित हुए। सुमित्रानंदन पंत का जन्म [[20 मई]] [[1900]] में कौसानी, [[उत्तराखण्ड]], [[भारत]] में हुआ था। जन्म के छह घंटे बाद ही माँ को क्रूर मृत्यु ने छीन लिया। शिशु को उसकी दादी ने पाला पोसा। शिशु का नाम रखा गया गुसाई दत्त।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[सुमित्रानंदन पंत]]}}
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| ===== 'काल का अकरुण भृकुटि -विलास। तुमारा ही परिहास।।' नामक पंक्ति पंत की किस कविता का अंश है?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=परिवर्तन|विकल्प 2=नौका विहार|विकल्प 3=मौन निमंत्रण|विकल्प 4=ओ रहस्य}}{{Ans|विकल्प 1='''परिवर्तन'''{{Check}}|विकल्प 2=नौका विहार|विकल्प 3=मौन निमंत्रण|विकल्प 4=ओ रहस्य|विवरण=}}
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| ===== 'अब पहुँची चपला बीच धार। छिप गया चाँदनी का कगार।।' पंक्ति सुमित्रानंदन पंत की किस कविता का अंश है?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=परिवर्तन|विकल्प 2=मौन निमंत्रण|विकल्प 3=बादल|विकल्प 4=नौका विहार}}{{Ans|विकल्प 1=परिवर्तन|विकल्प 2=मौन निमंत्रण|विकल्प 3=बादल|विकल्प 4='''नौका विहार'''{{Check}}|विवरण=}}
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| ====='निराला के [[राम]] [[तुलसीदास]] के राम से भिन्न और भवभूति के राम के निकट हैं।' यह कथन किस [[हिन्दी]] आलोचना का है?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी|विकल्प 2=डॉ. सूर्यप्रसाद दीक्षित|विकल्प 3=डॉ. रामविलास शर्मा|विकल्प 4=डॉ. गंगाप्रसाद पाण्डेय}}{{Ans|विकल्प 1=डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी|विकल्प 2=डॉ. सूर्यप्रसाद दीक्षित|विकल्प 3='''डॉ. रामविलास शर्मा'''{{Check}}|विकल्प 4=डॉ. गंगाप्रसाद पाण्डेय|विवरण=}}
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| ====='[[राम]] की शक्तिपूजा' में [[सूर्यकांत त्रिपाठी निराला|निराला]] की इन दो कविताओं का सारतत्व समाहित है?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=तुलसीदास और सरोजस्मृति|विकल्प 2=तुलसीदास और बादल|विकल्प 3=सरोजस्मृति और तोड़ती पत्थर|विकल्प 4=जागो फिर एक बार और तुलसीदास}}{{Ans|विकल्प 1=[[तुलसीदास]] और सरोजस्मृति|विकल्प 2=तुलसीदास और बादल|विकल्प 3=सरोजस्मृति और तोड़ती पत्थर|विकल्प 4='''जागो फिर एक बार और तुलसीदास'''{{Check}}|विवरण=}}
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| =====किस छायावादी कवि ने संवाद शैली का सर्वाधिक उपयोग किया है?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=जयशंकर प्रसाद|विकल्प 2=सुमित्रानंदन पंत|विकल्प 3=महादेवी वर्मा|विकल्प 4=सूर्यकांत त्रिपाठी निराला}}{{Ans|विकल्प 1='''[[जयशंकर प्रसाद]]'''{{Check}}|विकल्प 2=[[सुमित्रानंदन पंत]]|विकल्प 3=[[महादेवी वर्मा]]|विकल्प 4=[[सूर्यकांत त्रिपाठी निराला]]|विवरण=}}
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| =====व्यवस्थाप्रियता और विद्रोह का विलक्षण संयोग किस प्रयोगवादी कवि में सबसे अधिक मिलता है?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=गजानन माधव मुक्तिबोध में|विकल्प 2=भारतभूषण अग्रवाल में|विकल्प 3=नेमिचन्द्र जैन में|विकल्प 4=अज्ञेय में}}{{Ans|विकल्प 1=[[गजानन माधव मुक्तिबोध]] में|विकल्प 2=भारतभूषण अग्रवाल में|विकल्प 3=नेमिचन्द्र जैन में|विकल्प 4='''अज्ञेय में'''{{Check}}|विवरण=}}
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| ====='वह उस महत्ता का। हम सरीखों के लिए उपयोग। उस आंतरिकता का बताता में महत्व।।' पंक्तियाँ मुक्तिबोध की किस कविता से ली गई हैं?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=ब्रह्मराक्षस|विकल्प 2=भूलगलती|विकल्प 3=पता नहीं|विकल्प 4=अँधेरे में}}{{Ans|विकल्प 1='''ब्रह्मराक्षस'''{{Check}}|विकल्प 2=भूलगलती|विकल्प 3=पता नहीं|विकल्प 4=अँधेरे में|विवरण=}}
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| =====ऋतु वसंत का सुप्रभात था। मंद मंद था अनिल बह रहा॥ बालारुण की मृदु किरणें थीं। अगल बगल स्वर्णाभ शिखर थे॥' ये पंक्तियाँ नागार्जुन की किस कविता की हैं?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=प्रतिबद्ध हूँ|विकल्प 2=तालाब की मछलियाँ|विकल्प 3=बादल को घिरते देखा है|विकल्प 4=सिन्दूर तिलकित भाल}}{{Ans|विकल्प 1=प्रतिबद्ध हूँ|विकल्प 2=तालाब की [[मछली|मछलियाँ]]|विकल्प 3='''बादल को घिरते देखा है'''{{Check}}|विकल्प 4=सिन्दूर तिलकित भाल|विवरण=}}
| |
| ====='अकाल और उसके बाद' नामक कविता के रचनाकार हैं?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=केदारनाथ अग्रवाल|विकल्प 2=त्रिलोचन|विकल्प 3=नागार्जुन|विकल्प 4=इनमें से कोई नहीं}}{{Ans|विकल्प 1=केदारनाथ अग्रवाल|विकल्प 2=त्रिलोचन|विकल्प 3='''नागार्जुन'''{{Check}}|विकल्प 4=इनमें से कोई नहीं|विवरण=}}
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| =====भारतेन्दु कृत 'भारत दुर्दशा' किस साहित्य रूप का हिस्सा है?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=कथा साहित्य|विकल्प 2=नाटक साहित्य|विकल्प 3=संस्मरण साहित्य|विकल्प 4=जीवनी साहित्य}}{{Ans|विकल्प 1=कथा साहित्य|विकल्प 2='''नाटक साहित्य'''{{Check}}|विकल्प 3=संस्मरण साहित्य|विकल्प 4=जीवनी साहित्य|विवरण=}}
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| ====='आदमी कितना स्वार्थी हो जाता है, जिसके लिए मरो, वही जान का दुश्मन हो जाता है।' यह कथन 'गोदान के किस पात्र का है?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=मेहता|विकल्प 2=खन्ना|विकल्प 3=मालती|विकल्प 4=होरी}}{{Ans|विकल्प 1=मेहता|विकल्प 2=खन्ना|विकल्प 3=मालती|विकल्प 4='''होरी'''{{Check}}|विवरण=}}
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| ====='नारी में पुरुष के गुण आ जाते हैं, तो वह कुलटा हो जाती है।' यह कथन 'गोदान' के किस पात्र का है?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=रायसाहब|विकल्प 2=ओंकारनाथ|विकल्प 3=मेहता|विकल्प 4=होरी}}{{Ans|विकल्प 1=रायसाहब|विकल्प 2=ओंकारनाथ|विकल्प 3='''मेहता'''{{Check}}|विकल्प 4=होरी|विवरण=}}
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| ====='जो अपनी जान खपाते हैं, उनका हक उन लोगों से ज्यादा है, जो केवल रुपया लगाते हैं।' यह कथन 'गोदान' के किस पात्र द्वारा कहा गया है?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=ओंकारनाथ|विकल्प 2=मेहता|विकल्प 3=मालती|विकल्प 4=खन्ना}}{{Ans|विकल्प 1=ओंकारनाथ|विकल्प 2='''मेहता'''{{Check}}|विकल्प 3=मालती|विकल्प 4=खन्ना|विवरण=}}
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| ====='पवित्रता की माप है, मलिनता, सुख का आलोचना है. दुःख, पुण्य की कसौटी है पाप।' यह कथन 'स्कन्दगुप्त' नाटक के किस पात्र का है?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=विजया|विकल्प 2=देवसेना|विकल्प 3=भटार्क|विकल्प 4=प्रपंचबुद्धि}}{{Ans|विकल्प 1=विजया|विकल्प 2='''देवसेना'''{{Check}}|विकल्प 3=भटार्क|विकल्प 4=प्रपंचबुद्धि|विवरण=}}
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| ====='मनुष्य अपूर्ण है. इसलिए सत्य का विकास जो उसके द्वारा होता है, अपूर्ण होता है. यही विकास का रहस्य है।' यह कथन 'स्कन्दगुप्त' नाटक के किस पात्र का है?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=प्रख्यातकीर्ति|विकल्प 2=देवसेना|विकल्प 3=मातृगुप्त|विकल्प 4=धातुसेन}}{{Ans|विकल्प 1='''प्रख्यातकीर्ति'''{{Check}}|विकल्प 2=देवसेना|विकल्प 3=मातृगुप्त|विकल्प 4=धातुसेन|विवरण=}}
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| ====='विश्व -प्रेम, सर्व-भूत -हित- कामना परम धर्म हैः परंतु इसका अर्थ यह नहीं हो सकता कि अपने पर प्रेम न हो।' यह कथन 'स्कन्दगुप्त' नाटक के किस पात्र का है?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=बंधु वर्मा|विकल्प 2=चक्रपालित|विकल्प 3=भीम वर्मा|विकल्प 4=जयमाला}}{{Ans|विकल्प 1=बंधु वर्मा|विकल्प 2=चक्रपालित|विकल्प 3=भीम वर्मा|विकल्प 4='''जयमाला'''{{Check}}|विवरण=}}
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| ====='मनुष्य के आचरण के प्रवर्तक भाव या मनोविकार ही होते हैं, बुद्धि नहीं।' यह कथन है?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=सरदार पूर्णसिंह का|विकल्प 2=रामचन्द्र शुक्ल का|विकल्प 3=महावीर प्रसाद द्विवेदी का|विकल्प 4=बालकृष्ण भट्ट का}}{{Ans|विकल्प 1=सरदार पूर्णसिंह का|विकल्प 2='''रामचन्द्र शुक्ल का'''{{Check}}|विकल्प 3=महावीर प्रसाद द्विवेदी का|विकल्प 4=बालकृष्ण भट्ट का|विवरण=}}
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| ====='रस मीमांसा' रस -सिद्धांत से सम्बन्धित पुस्तक है, इस पुस्तक के लेखक हैं?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=डॉ. श्यामसुन्दर दास|विकल्प 2=डॉ. गुलाब राय|विकल्प 3=डॉ. नगेन्द्र|विकल्प 4=आचार्य रामचन्द्र शुक्ल}}{{Ans|विकल्प 1=डॉ. श्यामसुन्दर दास|विकल्प 2=डॉ. गुलाब राय|विकल्प 3=डॉ. नगेन्द्र|विकल्प 4='''आचार्य रामचन्द्र शुक्ल'''{{Check}}|विवरण=}}
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| ====='यह युग (भारतेन्दु) बच्चे के समान हँसता-खेलता आया था, जिसमें बच्चों की सी निश्छलता' अक्खड़पन, सरलता और तन्मयता थी।' यह कथन किस आलोचक का है?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=आचार्य रामचन्द्र शुक्ल|विकल्प 2=डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी|विकल्प 3=डॉ. रामविलास शर्मा|विकल्प 4=डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल}}{{Ans|विकल्प 1='''आचार्य रामचन्द्र शुक्ल'''{{Check}}|विकल्प 2=डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी|विकल्प 3=डॉ. रामविलास शर्मा|विकल्प 4=डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल|विवरण=}}
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| =====मनुष्य से बड़ा है उसका अपना विश्वास और उसका ही रचा हुआ विधान। अपने विवशता अनुभव करता है और स्वयं ही वह उसे बदल भी देता है॥' यह कथन किस उपन्यासकार लिखा है?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=प्रेमचन्द्र|विकल्प 2=भगवतीचरण वर्मा|विकल्प 3=हजारीप्रसाद द्विवेदी|विकल्प 4=यशपाल}}{{Ans|विकल्प 1=[[मुंशी प्रेमचंद|प्रेमचन्द्र]]|विकल्प 2=भगवतीचरण वर्मा|विकल्प 3='''हजारीप्रसाद द्विवेदी'''{{Check}}|विकल्प 4=यशपाल|विवरण=}}
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| ===== 'अपने अतीत का मनन और मंथन हम भविष्य के लिए संकेत पाने के प्रयोजन से करते हैं।' यह कथन किस उपन्यासकार का है?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=हजारीप्रसाद द्विवेदी|विकल्प 2=यशपाल|विकल्प 3=वृन्दावनलाल वर्मा|विकल्प 4=रांगेय राघव}}{{Ans|विकल्प 1='''हजारीप्रसाद द्विवेदी'''{{Check}}|विकल्प 2=यशपाल|विकल्प 3=वृन्दावनलाल वर्मा|विकल्प 4=रांगेय राघव|विवरण=}}
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| ====='मनुष्य अपूर्ण है, इसलिए सत्य का विकास जो उसके द्वारा होता है, अपूर्ण होता है. यही विकास का रहस्य है।' यह कथन 'स्कन्दगुप्त' नाटक के किस पात्र का है?=====
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| {{Opt|विकल्प 1=प्रख्यातकीर्ति|विकल्प 2=देवसेना|विकल्प 3=मातृगुप्त|विकल्प 4=धातुसेन}}{{Ans|विकल्प 1='''प्रख्यातकीर्ति'''{{Check}}|विकल्प 2=देवसेना|विकल्प 3=मातृगुप्त|विकल्प 4=धातुसेन|विवरण=}}
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