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| *हम ऐसा मानने की ग़लती कभी न करें कि अपराध, आकार में छोटा या बड़ा होता है। -'''[[महात्मा गाँधी]]''' (बापू के आशीर्वाद, 268) | | *मनुष्य में तीनों चीज़ें वास करती हैं- मनुष्यता, पशुता और दिव्यता। -शिवानंद (दिव्योपदेश 2।26) |
| *महानता अहंकार रहित होती है, तुच्छता अहंकार की सीमा पर पहुँच जाती है। -'''तिरुवल्लुवर''' (तिरुक्कुरल, 969)
| | *जीवन स्वयं में न तो अच्छा होता है, न बुरा। जैसा तुम इसे बना दो, यह तो वैसा ही अच्छा या बुरा बन जाता है। -मांतेन (निबंध) [[सूक्ति और कहावत|.... और पढ़ें]] |
| *मनुष्य का अहंकार ऐसा है कि प्रासादों का भिखारी भी कुटी का अतिथि बनना स्वीकार नहीं करेगा। -'''[[महादेवी वर्मा]]''' (दीपशिखा, चिंतन के कुछ क्षण) | |
| *प्राय: प्रत्ययमाघत्ते स्वगुणेषूत्तमादर:॥<br>“बड़े लोगों से प्राप्त सम्मान अपने गुणों में विश्वास उत्पन्न कर देता है।” -'''[[कालिदास]]''' (कुमारसंभव,6|20)
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| *केवल हृदय में अनुभव करने से ही किसी चीज़ को भाषा में व्यक्त नहीं किया जा सकता । सभी चीज़ों को कुछ सीखना पड़ता है और यह सीखना सदा अपने आप नहीं होता । -'''शरतचन्द्र''' (शरत पत्रावली, पृ॰ 60)
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| *सभी लोग हिंसा का त्याग कर दें तो फिर क्षात्रधर्म रहता ही कहाँ है ? और यदि क्षात्रधर्म नष्ट हो जाता है तो जनता का कोई त्राता नहीं रहेगा । -'''[[बाल गंगाधर तिलक|लोकमान्य तिलक]]''' (गीतारहस्य, पृ॰32)
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| *प्रलय होने पर समुद्र भी अपनी मर्यादा को छोड़ देते हैं लेकिन सज्जन लोग महाविपत्ति में भी मर्यादा को नहीं छोड़ते। -'''[[चाणक्य]]'''
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| *कबीर सो धन संचिये, जो आगै कूँ होइ।<br>सीस चढ़ाये पोटली, ले जात न देख्या कोइ॥ -'''[[कबीर]]''' (कबीर ग्रन्थावली, पृ॰ 33) '''[[सूक्ति और कहावत|.... और पढ़ें]]'''
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