"मंत्रिपरिषद": अवतरणों में अंतर
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "महत्वपूर्ण" to "महत्त्वपूर्ण") |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "{{लेख प्रगति" to "{{प्रचार}} {{लेख प्रगति") |
||
पंक्ति 336: | पंक्ति 336: | ||
यू. एन. राव बनाम इंदिरा गांधी मामले में उच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि लोकसभा के विघटन हो जाने पर भी मंत्रिमण्डल समाप्त नहीं होगा और वह राष्ट्रपति को सलाह देता रहेगा। यदि राष्ट्रपति मंत्रिमण्डल की सलाह के बिना कार्य करता है तो वह अनुच्छेद 53(1) के विपरीत होगा। केन्द्र में कार्यवाहक सरकार का उपबंध नहीं किया गया है। अत: जो मंत्रिमण्डल पहले से ही कार्य कर रहा होता है, लोकसभा के विघटन की स्थिति में भी वह पूर्ण मंत्रिमण्डल होता है। इसका अस्तित्व तब तक बना रहता है जब तक कि नई लोकसभा के गठन के पश्चात् नई मंत्रिपरिषद कर्यभार ग्रहण नहीं कर लेती। | यू. एन. राव बनाम इंदिरा गांधी मामले में उच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि लोकसभा के विघटन हो जाने पर भी मंत्रिमण्डल समाप्त नहीं होगा और वह राष्ट्रपति को सलाह देता रहेगा। यदि राष्ट्रपति मंत्रिमण्डल की सलाह के बिना कार्य करता है तो वह अनुच्छेद 53(1) के विपरीत होगा। केन्द्र में कार्यवाहक सरकार का उपबंध नहीं किया गया है। अत: जो मंत्रिमण्डल पहले से ही कार्य कर रहा होता है, लोकसभा के विघटन की स्थिति में भी वह पूर्ण मंत्रिमण्डल होता है। इसका अस्तित्व तब तक बना रहता है जब तक कि नई लोकसभा के गठन के पश्चात् नई मंत्रिपरिषद कर्यभार ग्रहण नहीं कर लेती। | ||
{{प्रचार}} | |||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति | ||
|आधार= | |आधार= |
11:30, 10 जनवरी 2011 का अवतरण
अनुच्छेद 74(1) यह उपबंधित करता है कि राष्ट्रपति को उसके कृत्यों के संचालन एवं शक्तियों के प्रयोग में सहायता और मंत्रणा देने के लिए एक अनुच्छेद 74(1) यह उपबंधित करता है कि राष्ट्रपति को उसके कृत्यों के संचालन एवं शक्तियों के प्रयोग में सहायता और मंत्रणा देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी। यह प्रधानमंत्री के नेतृत्व में कार्य करती है।
गठन
संघ मंत्रिपरिषद का गठन प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति के द्वारा किया जाता है। मंत्रिमण्डल का गठन कैबिनेट स्तर के मंत्रियों से होता है। मूल संविधान में कैबिनेट शब्द का उल्लेख नहीं किया गया था। परन्तु बाद में 44वें संविधान संशोधन (1978) के द्वारा अनुच्छेद 352 के तहत कैबिनेट शब्द को सम्मिलित किया गया। जब मंत्रिमण्डल के सदस्यों को उनके कार्यों में सहायता देने के लिए राज्य मंत्रियों और उपमंत्रियों को नियुक्त किया जाता है, तब इन्हें मिलाकर मंत्रिमण्डल को मंत्रिपरिषद की संज्ञा दी जाती है। मंत्रिपरिषद तीन स्तरीय होता है, अर्थात् (1) कैबिनेट स्तर का मंत्री, (2) राज्य स्तर का मंत्री, तथा (3) उपमंत्री। कैबिनेट स्तर का मंत्री अपने विभाग का अध्यक्ष होता है तथा उसकी सहायता के लिए राज्यमंत्री तथा उपमंत्री नियुक्ति की जाती है। राज्यमंत्री को किसी विभाग का प्रभार स्वरूप रूप से सौंपा जा सकता है। सरकार की नीति का निर्णय मत्रिमंण्डल के सदस्यों के द्वारा किया जाता है लेकिन किसी विभाग के सम्बन्ध में मंत्रिमण्डल द्वारा नीति निर्धारण करते समय उस विभाग के राज्यमंत्री को विशेष आमंत्रित के रूप में नीति निर्धारण कार्यवाही में सम्मिलित किया जा सकता है।
मंत्रियों की संख्या
मूल संविधान में मंत्रिपरिषद में सदस्यों (मंत्रियों) की संख्या निर्धारित नहीं थी। प्रधानमंत्री अपने विवेकाधिकार के आधार पर मंत्रिपरिषद के आकार को सुनिश्चित करता था। परन्तु 91वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2004 के द्वारा यह निर्धारित किया गया है कि केन्द्रीय मंत्रिपरिषद में प्रधानमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या लोकसभा के कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी। इन प्रकार प्रधानमंत्री अब मंत्रिपरिषद में सदस्यों की अधिकतम संख्या के मामले में अपने विवेक का प्रयोग नहीं कर सकता है। मंत्रिपरिषद में उन्हीं व्यक्तियों को शामिल किया जाता है, जो संसद के सदस्य होते हैं। लेकिन संसद सदस्य न होने वाले व्यक्ति को भी मंत्रिपरिषद में शामिल किया जा सकता है। यदि ऐसे व्यक्ति को मंत्रिपरिषद में शामिल किया जाता है तो उसे 6 मास के अन्दर संसद के किसी सदन का सदस्य निर्वाचित होना पड़ता है। परन्तु संविधान में यह व्यवस्था नहीं दी गयी है कि ऐसा व्यक्ति इस्तीफ़ा देकर पुन: मंत्रिपरिषद का सदस्य बन सकता है या नहीं। सरकार ने इस अस्पष्ट प्रावधान का लाभ उठाते हुए उस व्यक्ति को पुन: मंत्रिपरिषद में शामिल कर लेते थे। अब 16 अगस्त, 2001 को सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय देते हुए व्यवस्था दी कि विधायिका का सदस्य निर्वाचित हुए बिना कोई भी व्यक्ति 6 महीने से अधिक मंत्री पद धारण नहीं कर सकता। यदि इस व्यक्ति को 6 महीने के बाद विधायिका के उसी सत्र में मंत्री पद पर दोबारा बहाल किया जाता है तो आवश्यक है कि वह चुनाव जीत कर सदन का सदस्य बने। यदि मंत्री पद पर आसीन गैर निर्वाचित व्यक्ति दिये गये 6 महीने की अवधि में चुनाव जीतने में असफल रहता है और उस व्यक्ति को दोबारा मंत्री पद पर बहाल किया जाता है तो यह संविधान के अनुच्छेद 164(1) और 164(4) की योजना पर आघात जैसा होगा।
वेतन एवं भत्ते
10 जनवरी, 2008 को लिये गये निर्णय के अनुसार कैबिनेट स्तर के मंत्री का वेतन 65,000 रुपये मासिक निर्धारित किया गया है। इसके अतिरिक्त उनके रहने के लिए सरकारी आवास तथा जब वे सरकारी कार्य के लिए बाहर जाते हैं तो यात्रा भत्ता भी मिलता है।
कार्य
संघ मंत्रिमण्डल में ही कार्यपालिका की वास्तविक शक्ति निहित है तथा राष्ट्रपति संघ मंत्रिमण्डल की सलाह के अनुसार अपनी शक्तियों का प्रयोग करता है। मंत्रिमण्डल देश के प्रशासन, आर्थिक सुधार, सुरक्षा तथा विदेशी राज्यों के सम्बन्ध में नीति का निर्धारण करता है और मंत्रिमण्डल द्वारा निर्धारित नीति के अनुसार ही संघ का शासन संचालित होता है।
उत्तरदायित्व
संघ मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होता है तथा मंत्रिपरिषद का प्रत्येक सदस्य मंत्रिमण्डल के निर्णय के लिए उत्तरदायी होता है। इसके अतिरिक्त मंत्री अपने विभाग के अधिकारियों के कार्य के लिए भी संसद के प्रति उत्तरदायी होता है। कोई भी मंत्री अपने विभाग के कार्यों के दायित्व से अधिकारियों पर दोष लगाकर बच नहीं सकता है। मंत्री के विभाग के मामलों के सम्बन्ध में संसद में उससे प्रश्न पूछा जा सकता है, जिसका उत्तर मंत्री को देना पड़ता है, लेकिन कभी-कभी वह लोकहित अथवा गोपनीयता के आधार पर उत्तर देने से इन्कार कर सकता है। इस प्रकार से मंत्री का दोहरा उत्तरदायित्व है। अपने विभाग के लिए वह व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी है। जबकि अन्य मंत्रियों के विभागों के लिए अन्य मंत्रियों के साथ सामूहिक रूप से उत्तदायी है।
संघ के मंत्रालय एवं विभाग
क्रमांक | मंत्रालय एवं विभाग |
---|
संघ मंत्रालय में अनेक विभाग हैं, जिनकी संख्या समयानुसार परिवर्तित होती रहती है। 15 अगस्त, 1947 को संघ मंत्रालयों की संख्या 18 थी, जिसे 13 सितम्बर, 2008 को बढ़ाकर 55 कर दिया गया। ये मंत्रालय तथा इनके विभाग निम्न प्रकार से हैं-
मंत्रिपरिषद की पदावधि
मंत्रिपरिषद तब तक अपने पद पर बना रहता है, जब तक की उसे लोकसभा से बहुमत प्राप्त रहता है तथा लोकसभा के नये चुनाव के बाद नये मंत्रिमण्डल का गठन नहीं हो जाता। मंत्रिपरिषद का कोई भी सदस्य प्रधानमंत्री के साथ मतभेद होने के कारण त्यागपत्र दे सकता है या प्रधानमंत्री राष्ट्रपति से सिफ़ारिश कर उसे बर्ख़ास्त कर सकता है। यदि कोई मंत्री संसद का सदस्य नहीं रह जाता, तो उसे त्यागपत्र देना पड़ता है। लेकिन कोई मंत्री संसद का सदस्य न रहते हुए भी मंत्री के पद पर रह सकता है, बशर्ते वह 6 महीने के भीतर संसद के किसी सदन का सदस्य बन जाए। यदि मंत्रिपरिषद लोकसभा में विश्वास का मत प्राप्त करने में असफल रहने के बावजूद त्यागपत्र नहीं देता, तो उसे राष्ट्रपति बर्ख़ास्त कर सकता है।
यू. एन. राव बनाम इंदिरा गांधी मामले में उच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि लोकसभा के विघटन हो जाने पर भी मंत्रिमण्डल समाप्त नहीं होगा और वह राष्ट्रपति को सलाह देता रहेगा। यदि राष्ट्रपति मंत्रिमण्डल की सलाह के बिना कार्य करता है तो वह अनुच्छेद 53(1) के विपरीत होगा। केन्द्र में कार्यवाहक सरकार का उपबंध नहीं किया गया है। अत: जो मंत्रिमण्डल पहले से ही कार्य कर रहा होता है, लोकसभा के विघटन की स्थिति में भी वह पूर्ण मंत्रिमण्डल होता है। इसका अस्तित्व तब तक बना रहता है जब तक कि नई लोकसभा के गठन के पश्चात् नई मंत्रिपरिषद कर्यभार ग्रहण नहीं कर लेती।
|
|
|
|
|