"दृष्टकूट": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
No edit summary |
No edit summary |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
|संस्कृत=दृष्ट सामान्यत कूट | |संस्कृत=दृष्ट सामान्यत कूट | ||
|अन्य ग्रंथ= | |अन्य ग्रंथ= | ||
|संबंधित शब्द=[[दृष्ट]] | |संबंधित शब्द=[[दृष्ट]], [[दृष्ट दोष]] | ||
}} | }} | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
10:16, 6 जनवरी 2011 का अवतरण
हिन्दी | पहेली, गूढ़, प्रश्न |
-व्याकरण | पुंलिंग- कठिन प्रश्न, (कर्मवाचक संज्ञा) |
-उदाहरण | वह कविता जिसको शब्दों के वाच्यार्थ से न जाना जा सके अपितु प्रसंग और रूढ़ अर्थों की सहायता से जाना जाए। |
-विशेष | इसका एक उदाहरण द्रष्टव्य है- कृष्ण वियोग में गोपिकाओं का कथन है- ग्रह, नक्षत्र जुग जोरि अरध करि सोई बनत अब खात। यहाँ ग्रह अर्थात् 9, नक्षत्र अर्थात् 27, जुग अर्थात् 4 को जोरि (जोड़कर) प्राप्त 40 को अरध करि (आशा करके) प्राप्त 'बीस' (अर्थात् बिस=विष) खाते ही अब बनता है। |
-विलोम | |
-पर्यायवाची | |
संस्कृत | दृष्ट सामान्यत कूट |
अन्य ग्रंथ | |
संबंधित शब्द | दृष्ट, दृष्ट दोष |
संबंधित लेख |