"शिवताण्डवस्तोत्रम्": अवतरणों में अंतर
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गलेऽव-लम्ब्य-लम्बितां-भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्<br /> | गलेऽव-लम्ब्य-लम्बितां-भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्<br /> | ||
डमड्डमड्डमड्डम-न्निनादव-ड्डमर्वयं<br /> | डमड्डमड्डमड्डम-न्निनादव-ड्डमर्वयं<br /> | ||
चकार-चण्ड्ताण्डवं-तनोतु-नः शिवः शिवम् .. | चकार-चण्ड्ताण्डवं-तनोतु-नः शिवः शिवम् .. 1.. | ||
जटा-कटा-हसं-भ्रम भ्रमन्नि-लिम्प-निर्झरी-<br /> | जटा-कटा-हसं-भ्रम भ्रमन्नि-लिम्प-निर्झरी-<br /> | ||
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रस-प्रवाह-माधुरी विजृंभणा-मधुव्रतम्<br /> | रस-प्रवाह-माधुरी विजृंभणा-मधुव्रतम्<br /> | ||
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं<br /> | स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं<br /> | ||
गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्तकान्तकं भजे .. | गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्तकान्तकं भजे .. 1०.. | ||
जयत्व-दभ्र-विभ्र-म-भ्रमद्भुजङ्ग-मश्वस-<br /> | जयत्व-दभ्र-विभ्र-म-भ्रमद्भुजङ्ग-मश्वस-<br /> | ||
द्विनिर्गमत्क्रम-स्फुरत्कराल-भाल-हव्यवाट्<br /> | द्विनिर्गमत्क्रम-स्फुरत्कराल-भाल-हव्यवाट्<br /> | ||
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्ग-तुङ्ग-मङ्गल<br /> | धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्ग-तुङ्ग-मङ्गल<br /> | ||
ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः .. | ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः .. 11.. | ||
दृष-द्विचित्र-तल्पयोर्भुजङ्ग-मौक्ति-कस्रजोर्<br /> | दृष-द्विचित्र-तल्पयोर्भुजङ्ग-मौक्ति-कस्रजोर्<br /> | ||
-गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्वि-पक्षपक्षयोः<br /> | -गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्वि-पक्षपक्षयोः<br /> | ||
तृष्णार-विन्द-चक्षुषोः प्रजा-मही-महेन्द्रयोः<br /> | तृष्णार-विन्द-चक्षुषोः प्रजा-मही-महेन्द्रयोः<br /> | ||
समप्रवृतिकः कदा सदाशिवं भजे .. | समप्रवृतिकः कदा सदाशिवं भजे .. 1२.. | ||
कदा निलिम्प-निर्झरीनिकुञ्ज-कोटरे वसन्<br /> | कदा निलिम्प-निर्झरीनिकुञ्ज-कोटरे वसन्<br /> | ||
विमुक्त-दुर्मतिः सदा शिरःस्थ-मञ्जलिं वहन् .<br /> | विमुक्त-दुर्मतिः सदा शिरःस्थ-मञ्जलिं वहन् .<br /> | ||
विमुक्त-लोल-लोचनो ललाम-भाललग्नकः<br /> | विमुक्त-लोल-लोचनो ललाम-भाललग्नकः<br /> | ||
शिवेति मन्त्र-मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् .. | शिवेति मन्त्र-मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् .. 1३.. | ||
इदम् हि नित्य-मेव-मुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं<br /> | इदम् हि नित्य-मेव-मुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं<br /> | ||
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धि-मेति-संततम्<br /> | पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धि-मेति-संततम्<br /> | ||
हरे गुरौ सुभक्ति-माशु याति नान्यथा गतिं<br /> | हरे गुरौ सुभक्ति-माशु याति नान्यथा गतिं<br /> | ||
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् .. | विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् .. 1४.. | ||
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः<br /> | पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः<br /> | ||
शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे<br /> | शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे<br /> | ||
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां<br /> | तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां<br /> | ||
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः .. | लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः .. 1५.. | ||
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08:53, 7 अप्रैल 2010 का अवतरण
शिवताण्डवस्तोत्रम् / Shivtandavstrotam
रावण द्वारा भगवान शिव की स्तुति
- कथा है की अहंकार वश रावण ने अपने आराध्य देव शिव के निवास स्थान कैलास पर्वत को अपने हाथों पर उठा लिया था|
- क्रोधित हो शिव ने रावण के हाथों को पर्वत के नीचे दबा दिया|
- रावण ने शिव की स्तुति में निम्न स्त्रोत कहा तो शिव ने प्रसन्न हो कर रावण को क्षमा कर दिया|
जटाटवी-गलज्जल-प्रवाह-पावित-स्थले जटा-कटा-हसं-भ्रम भ्रमन्नि-लिम्प-निर्झरी- धरा-धरेन्द्र-नंदिनी विलास-बन्धु-बन्धुर जटा-भुजङ्ग-पिङ्गल-स्फुरत्फणा-मणि प्रभा सहस्र लोचन प्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर ललाट-चत्वर-ज्वलद्धनञ्जय-स्फुलिङ्गभा- कराल-भाल-पट्टिका-धगद्धगद्धग-ज्ज्वल नवीन-मेघ-मण्डली-निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत् प्रफुल्ल-नीलपङ्कज-प्रपञ्च-कालिमप्रभा- अखर्व सर्व-मङ्ग-लाकला-कदंबमञ्जरी जयत्व-दभ्र-विभ्र-म-भ्रमद्भुजङ्ग-मश्वस- दृष-द्विचित्र-तल्पयोर्भुजङ्ग-मौक्ति-कस्रजोर् कदा निलिम्प-निर्झरीनिकुञ्ज-कोटरे वसन् इदम् हि नित्य-मेव-मुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः |