"सत्यजित राय": अवतरणों में अंतर
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'''सत्यजीत रे''' <br /> | |||
*विश्व में भारतीय फिल्मों को नई पहचान दिलाने वाले सत्यजीत राय (जन्म- [[2 मई]], [[1921]] [[कलकत्ता]] - मृत्यु- [[23 अप्रॅल]], [[1992]] [[कोलकाता]]) 20वीं सदी की विश्व की महानतम फिल्मी हस्तियों में एक थे, जिन्होंने यथार्थवादी धारा की फिल्मों को नई दिशा देने के अलावा [[साहित्य]], [[चित्रकला]] जैसी अन्य विधाओं में भी अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। | *विश्व में भारतीय फिल्मों को नई पहचान दिलाने वाले सत्यजीत राय (जन्म- [[2 मई]], [[1921]] [[कलकत्ता]] - मृत्यु- [[23 अप्रॅल]], [[1992]] [[कोलकाता]]) 20वीं सदी की विश्व की महानतम फिल्मी हस्तियों में एक थे, जिन्होंने यथार्थवादी धारा की फिल्मों को नई दिशा देने के अलावा [[साहित्य]], [[चित्रकला]] जैसी अन्य विधाओं में भी अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। | ||
*सत्यजित राय प्रमुख रूप से फ़िल्मों में निर्देशक के रूप में जाने जाते हैं, लेकिन लेखक और साहित्यकार के रूप में भी उन्होंने फ़िल्मों और साहित्य में ख्याति अर्जित की है। | *सत्यजित राय प्रमुख रूप से फ़िल्मों में निर्देशक के रूप में जाने जाते हैं, लेकिन लेखक और साहित्यकार के रूप में भी उन्होंने फ़िल्मों और साहित्य में ख्याति अर्जित की है। | ||
*कोलकाता के एक जाने-माने बंगाली परिवार में 2 मई, 1921 को जन्मे सत्यजीत राय फिल्म निर्माण से संबंधित कई काम खुद ही करते थे। इनमें निर्देशन, छायांकन, पटकथा, पार्श्व संगीत, कला निर्देशन, संपादन आदि शामिल हैं। | *कोलकाता के एक जाने-माने बंगाली परिवार में 2 मई, 1921 को जन्मे सत्यजीत राय फिल्म निर्माण से संबंधित कई काम खुद ही करते थे। इनमें निर्देशन, छायांकन, पटकथा, पार्श्व संगीत, कला निर्देशन, संपादन आदि शामिल हैं। | ||
*फिल्मकार के अलावा वह कहानीकार, चित्रकार, फिल्म आलोचक भी थे। सत्यजीत राय कथानक लिखने को निर्देशन का अभिन्न अंग मानते थे। | *फिल्मकार के अलावा वह कहानीकार, चित्रकार, फिल्म आलोचक भी थे। सत्यजीत राय कथानक लिखने को निर्देशन का अभिन्न अंग मानते थे। | ||
==जीवन परिचय== | |||
अपने माता-पिता की इकलौती संतान सत्यजीत राय के पिता '''सुकुमार राय''' की मृत्यु सन [[1923]] में हुई जब सत्यजीत राय मुश्किल से दो वर्ष के थे। उनका पालन-पोषण उनकी माँ '''सुप्रभा राय''' ने अपने भाई के घर में ममेरे भाई-बहनों, मामा-मामियों वाले एक भरे-पूरे और फैले हुए कुनबे के बीच किया। उनकी मां जो लंबे सधे व्यक्तित्व की स्वामिनी थीं, [[रवीन्द्र संगीत]] की मंजी हुई गायिका थीं और उनकी आवाज़ काफी दमदार थी। उनके द्वारा निर्मित [[बुद्ध]] और [[बोधिसत्व]] की मिट्टी की मूर्तियों ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया। इनके दादाजी '''उपेन्द्रकिशोर राय''' एक लेखक एवं चित्रकार थे और इनके पिताजी भी बांग्ला में बच्चों के लिए रोचक कविताएँ लिखते थे और वह एक चित्रकार भी थे। यह परिवार अपरिहार्य रूप से टैगोर घराने के नजदीक था। [[प्रेसीडेंसी कॉलेज कलकत्ता]] से स्नातक होने के बाद राय पेंटिंग के अध्ययन के लिए जिसमें वे प्रारंभिक अवस्था में ही अपनी योग्यता प्रदर्शित कर चुके थे, [[रवीन्द्रनाथ टैगोर]] द्वारा स्थापित [[रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय शांतिनिकेतन|रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय]], [[शांतिनिकेतन]] चले गए। | |||
====शांतिनिकेतन में शिक्षा==== | |||
शांतिनिकेतन में सत्यजीत राय ने नंदलाल बोस और विनोद बिहारी मुखोपाध्याय जैसे सिद्धहस्त कलाकारों से शिक्षा प्राप्त की जिन पर बाद में उन्होंने ‘इनर आई’ फिल्म बनाई। उन दिनों शांतिनिकेतन साहित्य और कला की नयी भारतीय चेतना के केंद्र के रूप में न केवल देश में बल्कि विश्व भर में चर्चित था। टैगोर के प्रति आकर्षण समूचे [[भारत]] से छात्र और अध्यायकों को यहाँ खींच लाता था। अन्य देशों से भी छात्र यहाँ आते थे और इस तरह एक ऐसी नयी भारतीय [[संस्कृति]] के विकास की परिस्थितियां निर्मित हो रही थीं जो अपनी स्वयं की परंपराओं पर आधारित थीं लेकिन विश्व परंपराएं जिनमें टैगोर के व्यक्तित्व और कृतित्व का योगदान हो रहा था, से वह समृद्ध हो रही थीं। | |||
====प्रेस और प्रकाशन संस्थान==== | |||
सन [[1942]] में मध्य भारत के कला स्मारकों के भ्रमण के बाद राय ने शांतिनिकेतन छोड़ दिया। शीघ्र ही उन्हें एक ब्रिटिश विज्ञापन एजेंसी 'डी .जे. केमर एंड कंपनी' में वाणिज्यिक कलाकार (कमर्शियल आर्टिस्ट) के रूप में रोजगार मिल गया जहाँ काम करते हुए उन्होंने पुस्तकों के आवरण पृष्ठों की डिजाइनिंग और रेखांकन कार्य पर्याप्त मात्रा में किया। यह काम उन्होंने भारतीय पुस्तक प्रकाशन के क्षेत्र में नए मानक स्थापित करने वाले अग्रणी प्रकाशन संस्थान साइनेट प्रेस के लिए किया। जिन पुस्तकों का उन्होंने रेखांकन किया उनमें से एक 'विभूति भूषण बंद्योपाध्याय' की पाथेर पांचाली का संक्षिप्त संस्करण भी था। | |||
==सिनेमा में रुचि और प्रशिक्षण== | |||
इस समय तक, फिल्मों में उनकी रुचि पर्याप्त रूप से उजागर हो चुकी थी। सन 1947 में उन्होंने अन्य लोगों के साथ 'कलकत्ता फिल्म सोसायटी' की स्थापना की और भारतीय सिनेमा की समस्याओं तथा सिनेमा किस तरह का चाहिए, विषय पर लेख लिखे। कलकत्ता फिल्म सोसायटी ने बड़ी संख्या में सिने प्रेमियों को जुटाया जिनमें से कुछ प्रमुख फिल्म निर्माता बने। राय की पहल ने न केवल उन्हें फिल्म शिक्षण प्रदान किया बल्कि अन्य को भी फिल्मी शिक्षा प्रदान की, क्योंकि कलकत्ता फिल्म सोसायटी ने विश्व सिनेमा की बहुत सी ऐसी प्रमुख कृतियों का प्रदर्शन किया जो इससे पूर्व भारत में कभी नहीं दिखाई गई थीं। | |||
==विदेश में प्रशिक्षण== | |||
सन् 1950 में उनके नियोक्ताओं ने उन्हें अग्रिम प्रशिक्षण के लिए लंदन भेजा। यहां उनकी लिंड्से एंडर्सन और गाविन लम्बर्ट से मित्रता हुई और उन्होंने अपने साढ़े चार माह के प्रवास के दौरान लगभग सौ फिल्में देखीं जिनमें बाइसिकिल थीवस तथा अन्य इतालवी नव-यथार्थवादी फिल्में शामिल थीं, जिन्होंने उनके ऊपर गहरा प्रभाव छोड़ा। जलयान द्वारा भारत वापस लौटते समय ही उन्होंने पाथेर पांचाली की पटकथा लिखना शुरू किया। सन् 1952 में भारत के पहले अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव का आयोजन हुआ जिसमें उन्होंने एक बार फिर इतालवी नव-यथार्थवादी फिल्मों से साक्षात्कार किया। साथ ही जापान सहित अन्य देशों की फिल्मों भी उन्होंने देखीं। | |||
==प्रारंभिक प्रशिक्षण हॉलीवुड फिल्मों से== | |||
राय का सिनेमा का प्रारंभिक प्रशिक्षण हॉलीवुड फिल्मों के अध्यायन के रूप में हुआ- वास्तव में आजादी से पूर्व वे ये ही फिल्में देख सकते थे। जैसा कि उन्होंने बार-बार कहा-उन्होंने फिल्म निर्माण मुख्यत: अमरीकी फिल्मों को बार-बार देखकर सीखा। तार्किक और (कम से कम सतह पर) यथार्थवादी वर्णन की हॉलीवुड शैली ने उनके ऊपर गहरा प्रभाव छोड़ा। | |||
==पाथेर पांचाली की सफलता== | |||
पाथेर पांचाली की निर्विवाद सफलता के बाद ही हुआ कि राय ने, जिन्हें फिल्म निर्माण के दौरान कुछ महीनों की छुट्टी सवेतन प्रदान की गई थी, अंतत: डी.जे. केमर एवं कंपनी की अपनी नौकरी छोड़ दी। विज्ञापन में उनकी रुचि पूरी तरह कभी भी समाप्त नहीं हुई, अपनी प्राथमिक फिल्मों के लिए प्रचार सामग्री खुद ही तैयार करने के अलावा वे कई वर्षों तक क्लेरियन एडवरटाइजिंग सर्विसेज (डी.जे. केमर के उत्तराधिकारी, और कर्मचारियों के स्वामित्व वाली) के एक निदेशक के रूप में कार्य करते रहे। यहाँ उनके कई पुराने साथी अभी कार्य करते हैं। | |||
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सत्यजीत रे
- विश्व में भारतीय फिल्मों को नई पहचान दिलाने वाले सत्यजीत राय (जन्म- 2 मई, 1921 कलकत्ता - मृत्यु- 23 अप्रॅल, 1992 कोलकाता) 20वीं सदी की विश्व की महानतम फिल्मी हस्तियों में एक थे, जिन्होंने यथार्थवादी धारा की फिल्मों को नई दिशा देने के अलावा साहित्य, चित्रकला जैसी अन्य विधाओं में भी अपनी प्रतिभा का परिचय दिया।
- सत्यजित राय प्रमुख रूप से फ़िल्मों में निर्देशक के रूप में जाने जाते हैं, लेकिन लेखक और साहित्यकार के रूप में भी उन्होंने फ़िल्मों और साहित्य में ख्याति अर्जित की है।
- कोलकाता के एक जाने-माने बंगाली परिवार में 2 मई, 1921 को जन्मे सत्यजीत राय फिल्म निर्माण से संबंधित कई काम खुद ही करते थे। इनमें निर्देशन, छायांकन, पटकथा, पार्श्व संगीत, कला निर्देशन, संपादन आदि शामिल हैं।
- फिल्मकार के अलावा वह कहानीकार, चित्रकार, फिल्म आलोचक भी थे। सत्यजीत राय कथानक लिखने को निर्देशन का अभिन्न अंग मानते थे।
जीवन परिचय
अपने माता-पिता की इकलौती संतान सत्यजीत राय के पिता सुकुमार राय की मृत्यु सन 1923 में हुई जब सत्यजीत राय मुश्किल से दो वर्ष के थे। उनका पालन-पोषण उनकी माँ सुप्रभा राय ने अपने भाई के घर में ममेरे भाई-बहनों, मामा-मामियों वाले एक भरे-पूरे और फैले हुए कुनबे के बीच किया। उनकी मां जो लंबे सधे व्यक्तित्व की स्वामिनी थीं, रवीन्द्र संगीत की मंजी हुई गायिका थीं और उनकी आवाज़ काफी दमदार थी। उनके द्वारा निर्मित बुद्ध और बोधिसत्व की मिट्टी की मूर्तियों ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया। इनके दादाजी उपेन्द्रकिशोर राय एक लेखक एवं चित्रकार थे और इनके पिताजी भी बांग्ला में बच्चों के लिए रोचक कविताएँ लिखते थे और वह एक चित्रकार भी थे। यह परिवार अपरिहार्य रूप से टैगोर घराने के नजदीक था। प्रेसीडेंसी कॉलेज कलकत्ता से स्नातक होने के बाद राय पेंटिंग के अध्ययन के लिए जिसमें वे प्रारंभिक अवस्था में ही अपनी योग्यता प्रदर्शित कर चुके थे, रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय, शांतिनिकेतन चले गए।
शांतिनिकेतन में शिक्षा
शांतिनिकेतन में सत्यजीत राय ने नंदलाल बोस और विनोद बिहारी मुखोपाध्याय जैसे सिद्धहस्त कलाकारों से शिक्षा प्राप्त की जिन पर बाद में उन्होंने ‘इनर आई’ फिल्म बनाई। उन दिनों शांतिनिकेतन साहित्य और कला की नयी भारतीय चेतना के केंद्र के रूप में न केवल देश में बल्कि विश्व भर में चर्चित था। टैगोर के प्रति आकर्षण समूचे भारत से छात्र और अध्यायकों को यहाँ खींच लाता था। अन्य देशों से भी छात्र यहाँ आते थे और इस तरह एक ऐसी नयी भारतीय संस्कृति के विकास की परिस्थितियां निर्मित हो रही थीं जो अपनी स्वयं की परंपराओं पर आधारित थीं लेकिन विश्व परंपराएं जिनमें टैगोर के व्यक्तित्व और कृतित्व का योगदान हो रहा था, से वह समृद्ध हो रही थीं।
प्रेस और प्रकाशन संस्थान
सन 1942 में मध्य भारत के कला स्मारकों के भ्रमण के बाद राय ने शांतिनिकेतन छोड़ दिया। शीघ्र ही उन्हें एक ब्रिटिश विज्ञापन एजेंसी 'डी .जे. केमर एंड कंपनी' में वाणिज्यिक कलाकार (कमर्शियल आर्टिस्ट) के रूप में रोजगार मिल गया जहाँ काम करते हुए उन्होंने पुस्तकों के आवरण पृष्ठों की डिजाइनिंग और रेखांकन कार्य पर्याप्त मात्रा में किया। यह काम उन्होंने भारतीय पुस्तक प्रकाशन के क्षेत्र में नए मानक स्थापित करने वाले अग्रणी प्रकाशन संस्थान साइनेट प्रेस के लिए किया। जिन पुस्तकों का उन्होंने रेखांकन किया उनमें से एक 'विभूति भूषण बंद्योपाध्याय' की पाथेर पांचाली का संक्षिप्त संस्करण भी था।
सिनेमा में रुचि और प्रशिक्षण
इस समय तक, फिल्मों में उनकी रुचि पर्याप्त रूप से उजागर हो चुकी थी। सन 1947 में उन्होंने अन्य लोगों के साथ 'कलकत्ता फिल्म सोसायटी' की स्थापना की और भारतीय सिनेमा की समस्याओं तथा सिनेमा किस तरह का चाहिए, विषय पर लेख लिखे। कलकत्ता फिल्म सोसायटी ने बड़ी संख्या में सिने प्रेमियों को जुटाया जिनमें से कुछ प्रमुख फिल्म निर्माता बने। राय की पहल ने न केवल उन्हें फिल्म शिक्षण प्रदान किया बल्कि अन्य को भी फिल्मी शिक्षा प्रदान की, क्योंकि कलकत्ता फिल्म सोसायटी ने विश्व सिनेमा की बहुत सी ऐसी प्रमुख कृतियों का प्रदर्शन किया जो इससे पूर्व भारत में कभी नहीं दिखाई गई थीं।
विदेश में प्रशिक्षण
सन् 1950 में उनके नियोक्ताओं ने उन्हें अग्रिम प्रशिक्षण के लिए लंदन भेजा। यहां उनकी लिंड्से एंडर्सन और गाविन लम्बर्ट से मित्रता हुई और उन्होंने अपने साढ़े चार माह के प्रवास के दौरान लगभग सौ फिल्में देखीं जिनमें बाइसिकिल थीवस तथा अन्य इतालवी नव-यथार्थवादी फिल्में शामिल थीं, जिन्होंने उनके ऊपर गहरा प्रभाव छोड़ा। जलयान द्वारा भारत वापस लौटते समय ही उन्होंने पाथेर पांचाली की पटकथा लिखना शुरू किया। सन् 1952 में भारत के पहले अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव का आयोजन हुआ जिसमें उन्होंने एक बार फिर इतालवी नव-यथार्थवादी फिल्मों से साक्षात्कार किया। साथ ही जापान सहित अन्य देशों की फिल्मों भी उन्होंने देखीं।
प्रारंभिक प्रशिक्षण हॉलीवुड फिल्मों से
राय का सिनेमा का प्रारंभिक प्रशिक्षण हॉलीवुड फिल्मों के अध्यायन के रूप में हुआ- वास्तव में आजादी से पूर्व वे ये ही फिल्में देख सकते थे। जैसा कि उन्होंने बार-बार कहा-उन्होंने फिल्म निर्माण मुख्यत: अमरीकी फिल्मों को बार-बार देखकर सीखा। तार्किक और (कम से कम सतह पर) यथार्थवादी वर्णन की हॉलीवुड शैली ने उनके ऊपर गहरा प्रभाव छोड़ा।
पाथेर पांचाली की सफलता
पाथेर पांचाली की निर्विवाद सफलता के बाद ही हुआ कि राय ने, जिन्हें फिल्म निर्माण के दौरान कुछ महीनों की छुट्टी सवेतन प्रदान की गई थी, अंतत: डी.जे. केमर एवं कंपनी की अपनी नौकरी छोड़ दी। विज्ञापन में उनकी रुचि पूरी तरह कभी भी समाप्त नहीं हुई, अपनी प्राथमिक फिल्मों के लिए प्रचार सामग्री खुद ही तैयार करने के अलावा वे कई वर्षों तक क्लेरियन एडवरटाइजिंग सर्विसेज (डी.जे. केमर के उत्तराधिकारी, और कर्मचारियों के स्वामित्व वाली) के एक निदेशक के रूप में कार्य करते रहे। यहाँ उनके कई पुराने साथी अभी कार्य करते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ