"हिममानव": अवतरणों में अंतर
No edit summary |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{विचाराधीन}} | |||
==हिममानव का आकार और प्रकार== | ==हिममानव का आकार और प्रकार== | ||
[[चित्र:bigfoot.jpg|thumb|250px|हिममानव<br />Bigfoot]] | [[चित्र:bigfoot.jpg|thumb|250px|हिममानव<br />Bigfoot]] | ||
पंक्ति 61: | पंक्ति 62: | ||
[[Category:नया पन्ना]] | [[Category:नया पन्ना]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
10:11, 29 जनवरी 2011 का अवतरण
यह पन्ना भारतकोश की विचाराधीन सूची में है। यदि भारतकोश के लिए यह पन्ना उपयोगी है तो इसे मिटाया नहीं जायेगा। देखें:-अस्वीकरण
हिममानव का आकार और प्रकार
हिममानव यानि येति को दिखने का जब भी दावा किया जाता हैं। इसके अस्तित्व पर सवाल उठ खड़े होते हैं। क्या हिममानव का अस्तित्व है और यदि इस बर्फिले इलाके में हिममानव रहता है तो कहां है हिममानव का ठिकाना । साथ ही इस निर्जन बर्फिले इलाके में वो रहस्यमयी जीव कैसे जिंदा रहता है। इस तरह के तमाम सवाल सबके जेहन में उठता है। लेकिन जवाब किसी के पास नहीं है। दरअसल हिममानव को जब भी देखा गया है, वो थोड़ी देर के लिए तो दिखाई देता है लेकिन पल भर में गायब हो जाता है और वो रहस्यमयी जीव कहां बर्फ में गुम में हो जाता है ये आज भी रहस्य बना हुआ है। हिममानव कितना रहस्यमयी है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारत, नेपाल और तिब्बत के दुर्गम और निर्जन हिमालय क्षेत्र में सैकड़ों बर्षों से लोग इसे देखते आ रहे हैं, लेकिन इंसान हिममानव के पहुंच से अब तक दूर है। रहस्यमयी हिममानव यानि येति के अस्तित्व को लेकर तमाम तरह की बातें कही जाती है। लेकिन बर्फिले निर्जन इलाके में दिखने वाला रहस्यमयी हिममानव यानि येति अब तक दुर्गम इलाके में ही देखा गया है। लेकिन निर्जन पहाड़ों के बर्फिली चोटियों के बीच वो कहां गायब हो जाता है, इससे हर कोई अंजान है । येति का यदि बर्फ में ठिकाना है तो हो सकता है कि येति पहाड़ के किसी गुफा में रहता हो या फिर येति बर्फ में छिपने में माहिर हो तभी तो थोड़ी देर दिखने के बाद वो गायब हो जाता है ।
भारत, नेपाल और तिब्बत के दुर्गम तथा निर्जन हिमालयी क्षेत्रों में सैकड़ों वर्षों से रहस्यमयी हिममानव के अस्तित्व को लेकर अनेक किस्से - कहानियां प्रचलित हैं। ‘येति’ नाम से प्रसिद्ध इस कथित हिममानव को अब तक सैकड़ों लोगों द्वारा देखने का दावा किया जाता रहा है। येति को देखने का दावा करने वालों का कहना है कि शरीर पर काले भूरे घने बालों वाला ये रहस्यमयी प्राणी सात से नौ फीट लंबा दिखता है जो किसी दावन की तरह दिखता है, जबकि इसका वजन तकरीबन दो सौ किलो हो सकता है और इसकी खासियत है कि ये इंसान की तरह दो पैरो पर चलता है। इसकी आंखे लाल अंगारे जैसी है और यह भद्दी शकलवाला डरावना भी है, यह हिमालय में पाए जाने वाले जानवरों को मार कर खा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि ये रहस्यमयी भीमकाय जीव रात में शिकार करता है और दिन में सोता रहता है लेकिन येति कभी कभार दिन में भी इंसान को दिख जाता है। ऐसे में हो सकता है कि हिममानव इंसान का पूर्वज हो, जो इंसान के विकास की कड़ी हो । इस रहस्मयी प्राणी को हिममानव इस लिए कहा जाता है कि ये ज्यादातर निर्जन बर्फिले इलाके में ही लोगों को दिखता है। तिब्बत और नेपाल के लोग दो तरह के येति के बारे में बाताते हैं, जिसमें एक इंसान और बंदर के हाईब्रिड यानि वर्णसंकर की तरह दिखता है, ये रहस्यमयी हिममानव दो मीटर लंबा और भूरे वालों वाला होता है और इसका वजन 200 किलो तक होता है । दूसरे किस्म का येति यानि हिममानव समान्य इंसान से छोटे कद का दिखता है, जो लाल भूरे बालों वाला होता है। लेकिन दोनों तरह के हिममानव में सामान्य बात ये पायी जाती है कि ये खड़े होकर इंसान की तरह चलते हैं और इंसान को चकमा देने में माहिर होते हैं। हो सकता है येति की अपनी दुनिया हो, जहां वो इंसान की पहुंच से दूर बर्फ में सैकड़ों की तादाद में रहता हो या ये भी हो सकता है कि हिममानव की तादाद बहुत कम हो और अपने अस्तित्व को बचाने के लिए दुर्गम बर्फिले में छिप कर रहता हो और इंसान के सामने नहीं आना चाहता हो । इसलिए आज तक हिममानव का इंसान से आमना सामना नहीं हो पाया है । हो सकता है हजारों साल से बर्फ में रहने को आदी हो चुके हिमामानव इंसान को दुश्मन समझता हो । इस लिए जब हिममानव और इंसान की नजरें मिलती है, छिपने में माहिर ये प्राणी गायब हो जाता है । लेकिन ये तमाम तरह के कयास है और जब तक इंसान और हिममानव का आमना सामना नहीं हो जाता है या फिर हिममानव का ठिकाना ढुढ नहीं लिया जाता है, हिममानव यानि येति रहस्यमयी प्राणी बना रहेगा ।
हिममानव का दुनिया - भर मे अलग अलग नाम
ऐसा नहीं है कि हिमामानव का अस्तित्व सिर्फ एशिया में है, दुनिया भर में हिममानव को सैकड़ो साल से लोग देखने का दावा करते आ रहे हैं। इस रहस्यमयी प्राणी को दुनिया भर के कई इलाके में अलग अलग नामों से जाना जाता है। अमेरिका में हिममानव को बड़े पैरो वाला प्राणी यानि बिग फूट ( Bigfoot ), ब्राजील में मपिंगुरे, आस्ट्रेलिया में योवेई, इंडोनेशिया में साजारंग गीगी कहा जाता है। जबकि कनाडा में सास्कयूआच, अमेजन में मपिंगुअरी, और एशिया में -- भारत में हिममानव, नेपाल में यति नाम है।
येति शेरपा शब्द है, जिसमें येह का मतलब चट्टान और तेह का अर्थ जंतु होता है, यानि चट्टानों का जीव । शेरपा भाषा में इस रहस्यमयी प्राणी को मिरका, कांग और मेह- तेह के नाम से भी जाना जाता है, तिब्बती में इसका अर्थ जादुई प्राणी होता है। ऐसे में पूरी दुनिया में दिखाई देने वाले इस जादुई प्राणी के अस्तित्व से इंकार नहीं किया जा सकता। लेकिन हिममानव का कहां है ठिकाना । ये रहस्य आज भी बरकार है । हो सकता है हिममानव इंसान के विकास कड़ी हो । जो बर्फ में हिममानव के रूप में मौजूद हो । लेकिन इंसान के पास तमाम तरह के अत्याधुनिक साधन होने के बाद भी हिमामानव यानि येति आज भी इंसान की पहुंच से दूर है। दुनिया भर के वैज्ञानिक रिसर्च में जुटे हैं लेकिन हिममानव के अस्तित्व के बारे में कोई भी पुख्ता सबूत मौजूद नहीं हैं।
हिममानव से जुङी घटनायें
हिममानव यानि येति दुर्गम बर्फिले इलाके में सदियों से इंसान को दिखता रहा है, लेकिन हिममानव के रहस्य से परदा नहीं उठ पाया है । आखिर ये हिममानव बर्फिले इलाके में कहां रहता है और कहां गायब हो जाता है इसका पता अबतक नहीं चल पाया है। हिममानव के बारे में दुनिया को पहली बार तब पता चला । जब 1832 में बंगाल के एशियाटिक सोसाइटी के जर्नल में एक पर्वतारोही बी.एच. होजसन ने येति के बारे में जानकारी दी। जिसमें अपने हिमालय अभियान के अनुभवों में उन्होंने लिखा था कि उत्तरी नेपाल के पहाड़ी इलाके में ट्रैकिंग के दौरान उनके स्थानीय गाइड ने एक ऐसे विशालकाय प्राणी को देखा, जो इंसान की तरह दो पैरो पर चल रहा था, जिसके शरीर पर घने लंबे बाल थे, उस प्राणी को देखते ही वो डर कर भाग गया । होजसन ने साफ लिखा है कि उन्होंने कुछ नहीं देखा, लेकिन इस घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने अनजान प्राणी को यति नाम दिया। इसके बाद यति के देखे जाने और पदचिह्नों की पहचान किए जाने का लंबा इतिहास रहा है। कई पर्वतारोहियों ने अपनी किताबों में इसका उल्लेख किया है। हिमालय क्षेत्र ही नहीं, दुनिया के बाकी हिस्सों से भी ऐसी खबरें आती रहीं। हालांकि कोई भी अपनी बात साबित करने के लिए पुख्ता सबूत नहीं दे सका है। इसके बाद 1889 में एक बार फिर हिमालयी क्षेत्र में पर्वतारोहियों ने बर्फ में ऐसे किसी प्राणी का फूट प्रिंट देखा जो इंसान की तुलना में काफी बड़े थे।
20वीं सदी की शुरूआत में येति को देखने के मामले तब ज्यादा आने शुरू हुए जब पश्चिमी देशों के पर्वतारोहियों ने इस क्षेत्र की चोटियों पर चढ़ने का प्रयास शुरू किया। ऐसे कई पर्वतारोहियों ने यहां विचित्र जंतु और विचित्र पदचिन्ह देखने की बात कही। फिर सन् 1925 में पेशेवर फोटोग्राफर तथा रॉयल ज्योग्रॉफिकल सोसाइटी के एक फोटोग्राफर एम.ए. टॉमबाजी ने 15,000 फीट ऊंचाई वाले जेमू ग्लेशियर ( कंगचनजंघा पर्वत माला ) के पास एक विचित्र प्राणी को देखने की बात कही । उस फोटोग्राफर ने बताया कि उस विचित्र प्राणी को 200 से 300 गज की दूरी से उसने करीब एक मिनट तक देखा, जिसकी शारीरिक बनावट ठीक-ठीक इंसान जैसी थी, वो सीधा खड़े होकर चल रहा था , लेकिन शरीर पर बहुत अधिक मात्रा में बाल थे। उसके तन पर कपड़े जैसी कोई चीज नहीं थी। झाड़ियों के सामने रूक-रूक कर पत्तियां खींच रहा था, और बर्फीली पृष्ठभूमि में वह काला दिख रहा था। दो घंटे बाद टॉमबाजी और उसके साथी पहाड़ से नीचे उतर आये थे। रास्ते में उन्हें ऐसे पदचिह्न मिले जो सात इंच लंबे व चार इंच चौड़े थे और जो शायद उसी प्राणी के थे।
इसके बाद 1938 में येति एक बार फिर चर्चा में आया, विक्टोरिया मेमोरियल, कलकत्ता के क्यूरेटर एक कैप्टेन ने हिमालय की यात्रा के दौरान देखने का दावा किया । जिसमें कैप्टन ने उसे एक उदार और मददगार प्राणी बताया । कैप्टन के मुताबिक इस यात्रा के दौरान जब वो बर्फीली ढलान पर फिसल कर घायल हो गये थे, तब प्रागैतिहासिक मानव जैसे दिखने वाले एक 9 फीट लंबे प्राणी ने उसे मौत के मुंह से बचाया था। वह प्राणी कैप्टेन को उठाकर कई मील दूर अपनी गुफा में ले गया और तब तक उसकी सेवा करता रहा जब तक कि वह घर जाने लायक नहीं हो गया। 1942 में भी साइबेरिया के जेल से भागने वाले कुछ कैदियों ने भी हिमालय पार करते हुए विशाल बंदरों जैसे प्राणी को देखने का दावा किया।
1950 के दशक में येति में पश्चिमी देशों की दिलचस्पी नाटकीय ढंग से बढ़ गयी। लेकिन पहली बार ठोस सबूत तब मिला जब 1951 में एवरेस्ट चोटी पर चढ़ने का प्रयास करने वाले एक पर्वतारोही एरिक शिप्टन ने 19,685 फीट की ऊंचाई पर बर्फ पर बने पदचिन्हों के तस्वीर फोटो लिए, जिसका आज भी गहन अध्ययन और बहस का विषय हैं। बहुत से लोग मानते हैं ये फोटो येति की वास्तविकता का बेहरतीन सबूत हैं लेकिन कुछ लोग मानते हैं कि ये किसी दूसरे सांसारिक जीव के हैं और इन्हें तोड़ा-मोड़ा गया है। इतना ही नहीं 1953 में सर एडमंड हिलरी और तेनजिंग नोर्गे ने भी एवरेस्ट चढ़ाई के दौरान बड़े-बड़े पदचिह्न देखने की बात कही । येति का पता लगाने के लिए 1954 में ‘द डेली मेल एबनोमिनेबल स्नोमैन एक्सपीडिशन’ चलाया गया। पर्वतारोहियों के मुखिया जॉन एंजेलो जैक्सन ने एवरेस्ट से लेकर कंचनजंगा तक पहला रास्ता बनाया और इस प्रक्रिया में थ्यांगबोच गोम्पा में येति की पेंटिंग के फोटो लिए। उन्होंने बर्फ पर बने अनेक पदचिह्नों के फोटो भी लिए। ये पदचिह्न सामान्य से बड़े थे।
फिर 1960 में सर एडमंड हिलेरी के नेतृत्व में एक दल ने येति से संबद्ध सबूतों को एकत्रित करने के लिए हिमालय क्षेत्र की यात्रा की। यह अभियान वर्ल्ड बुक इनसाइक्लोडिया द्वारा प्रायोजित किया गया था जिसमें इंफ्रारेड फोटोग्राफी की मदद ली गयी लेकिन 10 महीने वहां रहने के बाद भी इस दल को येति के कोई ठोस प्रमाण नहीं मिल पाये। उन्हें वहां दो खालें मिलीं जिनमें एक एक सिर की थी। लेकिन जांच में पाया गया कि वे खालें हिमालय में पाये जाने वाले नीले भालू और हिरण जैसी बकरी की थीं।
इसके एक दशक बाद सन् 1970 में ब्रिटिश पर्वतारोही डॉन व्हिलॉन्स ने दावा किया कि अन्नपूर्णा चोटी पर चढ़ने के दौरान उन्होंने एक विचित्र प्राणी को देखा और रात में कैम्प के नजदीक विचित्र तरह के चीत्कार सुने। उनके शेरपा गाइड ने बताया कि यह आवाज येति की है। सुबह व्हिलॉन्स ने कैम्प के नजदीक मानव के जैसे बड़े पदचिन्ह देखे। उसी शाम उन्होंने दूरबीन की मदद से बंदर की शक्ल के दोपाये जंतु को करीब 20 मिनट तक देखा।
1974 में जुलाई के महिने में, एवरेस्ट गांव में एक घटना हुई, एक शेरपा चरवाहा लड़की ने यती देखने की बात बताई, जो अपनी याकों को चरा रही थी, लड़की पहले तो उसे देख कर ड़र गई और उसके मुंह से चीख निकल गई, तब बंदर जैसा विशाल प्राणी उसे खींच कर ले जाने लगा। लड़की के जोर - जोर से चिल्लाने पर उसने उसे छोड़ दिया और गुस्से से उस लड़की को उठाकर दूर फेंक दिया और उसके बाद गुस्से में उसने लड़की के दो याकों को मार कर उसका मांस खाता हुआ वह दूर चला गया। इसकी रिपोर्ट पुलिस में की गयी। पुलिस को उसके स्पष्ट पदचिन्ह मिले। खैर! इसे कल्पना भी कैसे कह सकते है ?
हाल के दिनों में येति देखने की बात करें तो 1998 में एक अमरीकी पर्वतारोही क्रैग कैलोनिया ने एवरेस्ट से चीन की तरफ से उतरते हुए येति के एक जोड़े को देखने का दावा किया, उस पर्वतारोही के मुताबिक दोनों के काले फर थे और वे सीधे खड़े होकर चल रहे थे । दिसंबर 2007 में अमेरिका के एक टीवी शो प्रस्तुतकर्ता जोशुआ गेट्स और उनकी टीम ने भी यति के स्पष्ट पदचिह्न देखने का दावा किया। उन्होंने बताया कि प्रत्येक पदचिह्न की लंबाई 33 से.मी. थी।
2008 में भी मेघालय में हिममानव यानि येति को देखने का दावा किया गया । जिसे गारो हिल्स की पहाड़ियों में देखा गया, गारो हिल्स की पहाड़ियों के आसपास रहने वाले गांव वालों ने दावा किया है कि उन्होंने हाल ही में एक ऐसा जीव इस इलाके में घुमते हुए देखा है, जिसकी लंबाई 10 फीट के आसपास और वजन लगभग 300 किलो ग्राम रहा होगा । मेघालय में येति के देखे जाने के दावे के बाद कुछ वैज्ञानिक दलों ने इस दिशा में एक बार फिर काम करना शुरु कर दिया है और खबर है कि कुछ दलों ने गारो हिल्स की पहाड़ियों में येति की खोज भी शुरु कर दी है । येति किसी के ठिक सामने आज तक नहीं आया है। इसके कोई ठोस सबूत आज तक नहीं मिला । हो सकता है इस हिममानव का हिमालय के क्षेत्रो में अस्तित्व हो, जो इंसान के सामने नहीं आना चाहाता हो । ऐसे में जबतक इंसान हिममानव तक नहीं पहुंच जाता, ये प्राणी रहस्यमयी बना रहेगा ।
हिममानव पर वैज्ञानिको का मत
अभी तक दर्जनों लोगों ने यति देखने के दावे किए हैं, लेकिन कोई भी पुख्ता सबूत पेश नहीं कर पाया है और विज्ञान ऐसे किसी सबूत के बिना यति के अस्तित्व पर मुहर नहीं लगा सकता है। दुनिया के अलग अलग इलाकों में देखे गए इस अदभुत जीव के अस्तित्व से जुड़े कई प्रमाण मिल रहे हैं। वैज्ञानिकों की टीम लगातार इस पर रिसर्च कर रही है। वैज्ञानिकों और विद्धानों में येति के अस्तित्व को लेकर मतभेद रहा है। कुछ कह रहे हैं कि प्रमाण इतने नहीं हैं कि यति का होना घोषित कर दिया जाए। कई लोग इसे एक विशालकाय जीव मानते हैं, लेकिन कुछ इन किस्सों पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं करते। उनके मुताबिक येति से जुड़ी सभी कहानियां सिर्फ काल्पनिक है। फिर भी विज्ञान के जानकारों का एक वर्ग ऐसा है, जो कह रहा है कि कुछ तो है। अमेरिका के पोकाटेलो में इदाहो विश्वविद्यालय में प्रोफेसर जेफ मेलड्रम का कहना है कि मैंने इस संबंध में मौजूदा सभी वैज्ञानिक प्रमाणों का अध्ययन किया है और इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि इस सृष्टि में कोई प्राणी ऐसा जरूर है, जिसकी पहचान होना बाकी है। जिन्होंने येति को देखने का दावा किया, उनके मुताबिक बर्फ पर पाए गए विशालकाय फुटप्रिन्ट्स येति के हैं। जबकि वैज्ञानिकों का तर्क है कि वो किसी जंगली जानवर के हो सकते है। जो बर्फ में पिघलकर फैल गए हैं। योति से जुड़े कई ऐसे सवाल है जिसका जवाब किसी के पास नहीं है। उनके पास भी नहीं जो इसे देखने का दावा कर चुके है। कहानियों और विज्ञान के बीच आज भी येति एक सवाल है। जब तक इसके वजूद से जुड़ी सच्चाई सामने नहीं आ जाती इसका रहस्य बरकरार रहेगा। बर्फीले पहाड़ों पर देखे और पहचाने गए विशालकाय वानर शरीर वाले हिममानव के अस्तित्व को लेकर जारी बहस के बीच वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी हकीकत का पता लगाने के प्रयास किए जा रहे हैं। जुटाए गए सबूतों की फोरेंसिक जाँच की जा रही है।
हिममानव से जुङी जाँचे
बालों की जाँच :- 19 मार्च 1954 को अंग्रेजी अखबार ‘डेली मेल’ में एक लेख प्रकाशित हुआ, जिसमें इस मसले पर वैज्ञानिक नजरिए से प्रकाश डाला गया था। असल में वहाँ के प्रोफेसर फ्रेडरिक वुड जोन्स ने यति के बालों के माइक्रोफोटोग्राफ का परीक्षण किया था। उनकी तुलना भालू और दूसरे पहाड़ी जानवरों के बालों से की गई, लेकिन इस निष्कर्ष पर नहीं पहुँचा जा सका कि आखिर ये बाल किसके हैं।
सन् 1957 में यति के मल की जाँच भी गई, लेकिन यह साफ नहीं हो सका कि अगर यह अवशिष्ट पदार्थ यति का नहीं है, तो किस जंतु का है? हाल ही में बीबीसी ने यति के बाल एकत्रित किए गए जाने और जाँच के लिए भेजे जाने की खबर प्रकाशित की है। इस रिपोर्ट में भी पता नहीं चल पाया है कि ये बाल किस पहाड़ी प्राणी के हैं। अब डीएनए विश्लषण किया जा रहा है।
खोपड़ी मिली :- सन् 1960 में एवरेस्ट के विजेता सर एडमंड हिलेरी को कथित तौर पर हिमालय में यति की खोपड़ी मिली। उन्होंने इसे जाँच के लिए पश्चिमी देशों में भेजा। उस समय यह बताया गया था कि खोपड़ी बर्फीले पहाड़ों पर पाए जाने वाले बकरी जैसे किसी जानवर की है। वैसे बड़ी तादाद में लोगों ने इस रिपोर्ट पर विश्वास नहीं किया।
हिममानव - संस्कृतियों में
रामायण से जुड़ी कहानी :- नेपाल में यति को राक्षस भी कहा जाता है। कुछ गंथों के मुताबिक कुछ नेपाली और हिमालय की तराई के इलाकों में राम और सीता के बारे में प्रचलित लोक कविताओं और गीतों में भी कई जगह यति का उल्लेख किया गया है।
यति...आम बात है :- इसी तरह यति या हिममानव और मानव की मुलाकातों के कई किस्से हिमालय पर्वतों के अनुभवी बूढ़े सुनाया करते हैं। भूटान में कुछ बुजुर्ग ऐसे हैं, जिनके लिए हिममानव कोई आश्चर्य की बात नहीं है। उनके मुताबित, उनके जमाने में हिममानव दिखना सामान्य बात थी। 77 साल के सोनम दोरजी का कहना है कि यति का इतिहास सदियों पुराना है और वे आज भी मौजूद हैं।
सांस्कृतिक प्रतीक यतिः नेपाल और तिब्बत में हिममानव को यति कहा जाता है। यति आज सांस्कृतिक प्रतीक बन गया है। अबूझ पहेली बनी सृष्टि की इस रचना पर कई किताबें लिखी गई हैं, वीडियो तथा फिल्में बनाई जा चुकी हैं। इस बीच जाने-अनजाने यह अनजान ‘प्रजाति’ आज मशहूर हो गई है। इन्हें किताबों, फिल्मों, बच्चों की कामिक्स में तो स्थान मिल ही गया है, अनेक वीडियो गेम्स में मौजूद होकर वह स्थानीय क्षेत्रों में वह लोकप्रिय संस्कृति का हिस्सा बन चुका है।
अब तक येति पर कई दिलचस्प फिल्में बन चुकी हैं, किताबें लिखी जा चुकी हैं और अनेक वीडियो गेम्स में मौजूद होकर वह स्थानीय क्षेत्रों में वह लोकप्रिय संस्कृति का हिस्सा बन चुका है। हिममानव को आमतौर पर एक घृणित शोमैन के रूप में दिखाया गया है। ‘द एबोमिनेबल शोमैन’, ‘डाक्टर हू’, ‘बग्स बनी कार्टून’, ‘देट्स शो घोस्ट’, ‘द माइटी बुश’, ‘काल आफ ए यति’ जैसे टीवी शो में यति को एक शैतान के रूप दिखाया गया है। बालीवुड फिल्म ‘अजूबा कुदरत का’ में भी यति को दिखाया गया है। यह ऐसी लड़की की कहानी है, जो यति को दिल दे बैठती है। विदेशों में भी कई फिल्में बन चुकी हैं। आज भी उसे देखने का दावा बहुत से लोग करते हैं लेकिन आज तक वह किसी के ठीक सामने नहीं आया। संभव है अगम्य हिमालयी क्षेत्रों में उसका अस्तित्व हो और किसी के सामने न आना चाहता हो। बहरहाल यह तो तय है कि आज तकनीक जितनी भी विकसित हो जाए पर प्रकृति के कुछ रहस्यों से पर्दा उठना अभी बाकी है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ