"भारतीय सशस्त्र सेना": अवतरणों में अंतर
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थल सेना, नौसेना, तटरक्षक और वायु सेना सहित [[भारत]] की संयुक्त सशस्त्र सेना है। जो विश्व की विशालतम सेनाओं में से एक है। [[भारत]] की रक्षा नीति का प्रमुख उद्देश्य यह है कि भारतीय उपमहाद्वीप में उसे बढ़ावा दिया जाए एवं स्थायित्व प्रदान किया जाए तथा देश की रक्षा सेनाओं को पर्याप्त रूप से सुसज्जित किया जाए, ताकि वे किसी भी आक्रमण से देश की रक्षा कर सकें। वर्ष [[1946]] के पूर्व भारतीय रक्षा का पूरा नियंत्रण अंग्रेज़ों के हाथों में था। उसी वर्ष केंद्र में अंतरिम सरकार में पहली बार एक भारतीय, बलदेव सिंह, देश के रक्षा मंत्री बने, हालांकि कमांडर-इन-चीफ एक अंग्रेज़ ही रहा। [[1947]] में देश का विभाजन होने पर भारत को 45 रेजीमेंटें मिलीं, जिनमें 2.5 लाख सैनिक थे। शेष रेजीमेंटं [[पाकिस्तान]] चली गयीं। [[गोरखा]] फौज की 6 रेजीमेंटं (लगभग 25,000 सैनिक) भी भारत को मिलीं। शेष गोरखा सैनिक ब्रिटिश सेना में सम्मिलित हो गये। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन हो गयी। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन भारतीय भूमि से [[28 फ़रवरी]], [[1948]] को स्वदेश रवाना हुई। कुछ [[अंग्रेज़]] अफ़सर परामर्शक के रूप में कुछ समय तक भारत में रहे लेकिन स्वतंत्रता के पहले क्षण से ही भारतीय सेना पूर्णत: भारतीयों के हाथों में आ गयी थी। स्वतंत्रता के तुरंत पश्चात भारत सरकार ने भारतीय सेना के ढांचे में कतिपय परिवर्तन किये। थल सेना, वायु सेना एवं नौसेना अपने-अपने मुख्य सेनाध्यक्षों के अधीन आयी। भारतीय रियासतों की सेना को भी देश की सैन्य व्यवस्था में शामिल कर लिया गया। [[26 जनवरी]], [[1950]] को देश के गणतंत्र बनने पर भारतीय सेनाओं की संरचनाओं में आवश्यक परिवर्तन किये गये। | थल सेना, नौसेना, तटरक्षक और वायु सेना सहित [[भारत]] की संयुक्त सशस्त्र सेना है। जो विश्व की विशालतम सेनाओं में से एक है। [[भारत]] की रक्षा नीति का प्रमुख उद्देश्य यह है कि भारतीय उपमहाद्वीप में उसे बढ़ावा दिया जाए एवं स्थायित्व प्रदान किया जाए तथा देश की रक्षा सेनाओं को पर्याप्त रूप से सुसज्जित किया जाए, ताकि वे किसी भी आक्रमण से देश की रक्षा कर सकें। वर्ष [[1946]] के पूर्व भारतीय रक्षा का पूरा नियंत्रण अंग्रेज़ों के हाथों में था। उसी वर्ष केंद्र में अंतरिम सरकार में पहली बार एक भारतीय, बलदेव सिंह, देश के रक्षा मंत्री बने, हालांकि कमांडर-इन-चीफ एक अंग्रेज़ ही रहा। [[1947]] में देश का विभाजन होने पर भारत को 45 रेजीमेंटें मिलीं, जिनमें 2.5 लाख सैनिक थे। शेष रेजीमेंटं [[पाकिस्तान]] चली गयीं। [[गोरखा]] फौज की 6 रेजीमेंटं (लगभग 25,000 सैनिक) भी भारत को मिलीं। शेष गोरखा सैनिक ब्रिटिश सेना में सम्मिलित हो गये। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन हो गयी। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन भारतीय भूमि से [[28 फ़रवरी]], [[1948]] को स्वदेश रवाना हुई। कुछ [[अंग्रेज़]] अफ़सर परामर्शक के रूप में कुछ समय तक भारत में रहे लेकिन स्वतंत्रता के पहले क्षण से ही भारतीय सेना पूर्णत: भारतीयों के हाथों में आ गयी थी। स्वतंत्रता के तुरंत पश्चात भारत सरकार ने भारतीय सेना के ढांचे में कतिपय परिवर्तन किये। थल सेना, वायु सेना एवं नौसेना अपने-अपने मुख्य सेनाध्यक्षों के अधीन आयी। भारतीय रियासतों की सेना को भी देश की सैन्य व्यवस्था में शामिल कर लिया गया। [[26 जनवरी]], [[1950]] को देश के गणतंत्र बनने पर भारतीय सेनाओं की संरचनाओं में आवश्यक परिवर्तन किये गये। | ||
भारत की रक्षा सेनाओं का सर्वोच्च कमांडर भारत का [[राष्ट्रपति]] है, किन्तु देश रक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी मंत्रिमंडल की है। रक्षा से संबंधित सभी महत्वपूर्ण मामलों का फैसला राजनीतिक कार्यों संबंधी मंत्रिमंडल समिति (कैबिनेट कमेटी ऑन पॉलिटिकल अफेयर्स) करती है, जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है। रक्षा मंत्री सेवाओं से संबंधित सभी विषयों के बारे में संसद के समक्ष उत्तरदायी है। | |||
==परम्परा व इतिहास== | |||
सेना की लंबी परम्परा व इतिहास है। आरंभ में यह केवल थलसेना ही थी। कहा जाता है कि [[भारत]] में सेनाओं का नियोजन चौथी शताब्दी ई.पू. से ही प्रचलन में था। मुख्य संघटन पैदल सेना, रथ और [[हाथी]] थे। यद्यपि भारत का एक लंबा नौ-इतिहास है, लेकिन भारतीय जलक्षेत्र में [[पुर्तग़ाली|पुर्तग़ालियों]] के आगमन के बाद ही नौसेना विकसित हुई। वायुसेना का गठन प्रथम विश्व [[युद्ध]] के दौरान और [[1913]] में [[उत्तर प्रदेश]] में एक सैनिक उड्डयन स्कूल की स्थापना के साथ हुआ। भारतीय सेना का सर्वोच्च नियंत्रण भारत के [[राष्ट्रपति]] के पास है। रक्षा मंत्रालय देश की रक्षा से संबंधित सभी मामलों में नीतियाँ बनाने व उन्हें लागू करने के लिए उत्तरदायी है। मंत्रालय का प्राथमिक कार्य सशस्त्र सेनाओं का प्रशासन है। यहाँ संघीय (केंद्रीय) मंत्रिमंडल राष्ट्र की रक्षा के लिए संयुक्त रूप से उत्तरदायी है, वहीं रक्षा मंत्री मंत्रिमंडल की ओर से उत्तरदायित्वों का निर्वहन करता है। प्रत्येक सेना का अपना सेना प्रमुख होता है और तीनों प्रमुख रक्षा की विस्तृत योजना बनाने, तैयारी करने और क्रमशः अपनी सेना के संचालन व प्रशासन के लिए उत्तरदायी होते हैं। नागरिक स्वेच्छा से सेनाओं में शामिल होते हैं और सुप्रशिक्षित, दक्ष पेशेवर अफ़सरों के दल द्वारा इनका नेतृत्व किया जाता है। भारतीय सशस्त्र सेनाओं में घरेलू राजनीति से दूर रहने की परंपरा रही है और ये विश्व भर में शांति सेना के रूप में भी असाधारण रही हैं। | |||
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|+ '''भारत के प्रक्षेपास्त्र''' | |+ '''भारत के प्रक्षेपास्त्र''' | ||
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|विकासशील एवं परीक्षणाधीन | |विकासशील एवं परीक्षणाधीन | ||
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भारत | |||
==भारत में प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम== | |||
[[चित्र:Indian-Navy | {{तीनों सेनाओं के समकक्ष सूची1}} | ||
भारत में प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम का विकास इस प्रकार हुआ- | |||
*[[1967]] में भारत ने अंतरिक्ष शोध और उपग्रह प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम प्रारम्भ किया और वर्ष [[1972]] तक रॉकेट रोहिणी-560 का परीक्षण कर लिया गया। रोहिणी-560 की मारक क्षमता लगभग 100 किलो भार के साथ 334 किलोमीटर दूर तक थी। | |||
*[[1979]] में भारत ने पहली बार उपग्रह प्रक्षेपण यान 'एसएलवी-3' अंतरिक्ष बूस्टर का प्रक्षेपण किया। | |||
*[[1980]] में 35 किलो भार वाले रोहिणी-1 उपग्रह का सफल प्रक्षेपण किया गया। | |||
*[[1983]] में भारत के 'रक्षा अनुसंधान और विकास संस्थान' (डी आर डी ओ) ने एकीकृत प्रक्षेपास्त्र विकास कार्यक्रम की घोषणा की जिसमें पाँच प्रक्षेपास्त्र विकसित किए जाने थे- | |||
#पृथ्वी जो सतह से सतह पर मार करने वाला प्रक्षेपास्त्र है (तरल ईंधन वाला बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र)। | |||
##पृथ्वी-1 जिसकी मारक क्षमता डेढ़ सौ किलोमीटर, एक हज़ार किलोग्राम की क्षमता है। यह सेना के लिए है। | |||
##पृथ्वी-2 जिसकी मारक क्षमता ढाई सौ किलोमीटर, पाँच सौ किलोग्राम की क्षमता है। यह वायु सेना के लिए है। | |||
##पृथ्वी-3 जिसकी मारक क्षमता साढ़े तीन सौ किलोमीटर, पाँच सौ किलोग्राम की क्षमता है। यह नौसेना के लिए है। | |||
#अग्नि जो सतह से सतह पर मार करने वाला प्रक्षेपास्त्र है और जिसकी क्षमता डेढ़ हज़ार किलोमीटर है। यह एक हज़ार किलोग्राम भार वाला अस्त्र ले जा सकता है। इस प्रक्षेपास्त्र का पहला चरण एसएलवी-3 के ठोस ईंधन वाले मोटर का और दूसरा चरण तरल ईंधन वाले पृथ्वी का प्रयोग करता है। | |||
[[चित्र:Indian-Navy.jpg|thumb|250px|left|भारतीय नौसेना]] | |||
#आकाश जो सतह से सतह पर मार करने वाला लंबी दूरी का प्रक्षेपास्त्र है। यह 55 किलोग्राम वजन का अस्त्र ले जा सकता है और अधिकतम 25 किलोमीटर की दूरी तक यह एक साथ पाँच विमानों को निशाना बना सकता है। | |||
#त्रिशूल जो सतह से सतह पर या सतह से हवा में मार करने वाला कम दूरी का प्रक्षेपास्त्र है। इसकी मारक दूरी 50 किलोमीटर है और यह रडार के निर्देशों से कार्य करता है। | |||
#नाग जो टैंक रोधी प्रक्षेपास्त्र है। यह लगभग चार किलोमीटर की क्षमता वाला प्रक्षेपास्त्र है और निर्देशों के लिए संवेदी प्रौद्योगिकी पर बना है। | |||
*[[1987]] में भारत ने आधुनिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (ए एस एल वी) का परीक्षण प्रारम्भ किया। चार हज़ार किलोमीटर की क्षमता वाले इस प्रक्षेपण की क्षमता डेढ़ सौ किलोग्राम है। इसमें तीन उपग्रह प्रक्षेपण यान रहते हैं। | |||
*[[1988]] में भारत ने 'पृथ्वी' की परीक्षण उड़ान का परीक्षण किया। भारत ने ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पी एस एल वी) के निर्माण की घोषणा की जिसकी क्षमता लगभग आठ हज़ार किलोमीटर थी। एक हज़ार किलो वजन की क्षमता के इस यान से एक टन का उपग्रह ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया सकता था। यदि इस यान को हथियार प्रणाली की भाँति किया जाए तो यह परमाणु अस्त्र को एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक ले जाने में सक्षम है। | |||
[[चित्र:Fighter-Aircrafts.jpg|thumb|250px|भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान]] | |||
*[[1989]] में भारत ने अग्नि का परीक्षण किया और नवंबर में नाग का परीक्षण किया। | |||
*[[1994]] के मध्य तक पृथ्वी-1 का प्रारम्भिक उत्पादन प्रारम्भ हो गया था। भारतीय सेना ने 100 पृथ्वी-1 प्रक्षेपास्त्र लेने का आदेश दिया जिसे उसकी 333 प्रक्षेपास्त्र ग्रुप के साथ तैनात किया जाना था। | |||
*[[1996]] में भारत ने कहा कि वह 'भू-समकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान' विकसित कर रहा है। भारत की योजना जनवरी माह में रूस की जी एस एल वी के लिए सात क्रायोजेनिक इंजन देने की योजना थी। | |||
*[[1998]] में भारत में 'भारतीय जनता पार्टी' ने 'पृथ्वी प्रक्षेपास्त्रों' का उत्पादन अधिक करने की योजना के साथ ही मध्यम दूरी के 'अग्नि प्रक्षेपास्त्र' विकसित करने का भी फ़ैसला लिया। | |||
*क्लिंटन प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी ने अमेरीका में कहा कि भारत के पास 'सागरिका' नाम का समुद्र से जुड़ा प्रक्षेपास्त्र है। सागरिका की क्षमता 200 मील की है और वह परमाणु अस्त्र ले जाने में सक्षम है। | |||
*[[11 मई]] भारत ने त्रिशूल का सफल परीक्षण किया है। यह सतह से सतह और सतह से हवा में मारने वाला प्रक्षेपास्त्र है। | |||
==रक्षा मंत्रालय== | ==रक्षा मंत्रालय== | ||
रक्षा मंत्रालय का प्रमुख रक्षा मंत्री है और सबसे बड़ा वित्तीय अधिकारी रक्षा मंत्रालय का वित्तीय सलाहकर होता है। रक्षा मंत्रालय में चार विभाग है- | रक्षा मंत्रालय का प्रमुख रक्षा मंत्री है और सबसे बड़ा वित्तीय अधिकारी रक्षा मंत्रालय का वित्तीय सलाहकर होता है। रक्षा मंत्रालय में चार विभाग है- | ||
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#रक्षा आपूर्ति विभाग | #रक्षा आपूर्ति विभाग | ||
#रक्षा विज्ञान एवं अनुसंधान विभाग। | #रक्षा विज्ञान एवं अनुसंधान विभाग। | ||
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|[[चित्र:Indian-Navy-Logo.jpg|80px|भारतीय नौसेना का प्रतीक]] | |[[चित्र:Indian-Navy-Logo.jpg|80px|भारतीय नौसेना का प्रतीक]] | ||
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[[चित्र:Indian-Army-2.jpg|thumb|250px|भारतीय थलसेना]] | [[चित्र:Indian-Army-2.jpg|thumb|250px|भारतीय थलसेना]] | ||
सेना को अधिकतर थल सेना ही समझा जाता है, यह ठीक भी है क्योंकि रक्षा-पक्ति में थल सेना का ही प्रथम तथा प्रधान स्थान है। इस समय लगभग 13 लाख सैनिक-असैनिक थल सेना में भिन्न-भिन्न पदों पर कार्यरत हैं, जबकि 1948 में सेना में लगभग 2,00,000 सैनिक थे। थल सेना का मुख्यालय [[नई दिल्ली]] में है। भारतीय थल सेना के प्रशासनिक एवं सामरिक कार्य संचालन का नियंत्रण थल सेनाध्यक्ष करता है। | सेना को अधिकतर थल सेना ही समझा जाता है, यह ठीक भी है क्योंकि रक्षा-पक्ति में थल सेना का ही प्रथम तथा प्रधान स्थान है। इस समय लगभग 13 लाख सैनिक-असैनिक थल सेना में भिन्न-भिन्न पदों पर कार्यरत हैं, जबकि 1948 में सेना में लगभग 2,00,000 सैनिक थे। थल सेना का मुख्यालय [[नई दिल्ली]] में है। भारतीय थल सेना के प्रशासनिक एवं सामरिक कार्य संचालन का नियंत्रण थल सेनाध्यक्ष करता है। | ||
थल सेनाध्यक्ष की सहायता के लिए थलसेना के वाइस चीफ, तथा चीफ स्टाफ अफसर होते हैं। इनमें डिप्टी चीफ आफ आर्मी स्टाफ, एडजुटेंट-जनरल, क्वार्टर मास्टर-जनरल, मास्टर-जनरल आफ़ आर्डनेन्स और सेना सचिव तथा इंजीनियर-इन-चीफ सम्मिलित हैं। थल सेना 6 कमानों में संगठित है- (1) पश्चिमी कमान (मुख्यालय: [[शिमला]]) (2) पूर्वी कमान ([[कोलकाता]]) (3) उत्तरी कमान ([[उधमपुर]]) (4) दक्षिणी कमान ([[पुणे]]) (5) मध्य कमान ([[लखनऊ]]) एवं (6) दक्षिणी-पश्चिमी कमान ([[जयपुर]])। दक्षिण-पश्चिम कमान का गठन [[15 अप्रैल]], [[2005]] को किया गया। इसका मुख्यालय जयपुर में स्थापित किया गया है। यह थल सेना की सबसे बड़ी कमान है।<ref name="अधिकारिक">{{cite web |url=http://www.bharat.gov.in/myindia/armed_forces.php |title=भारतीय सशस्त्र सेनाएं |accessmonthday=[[6 फ़रवरी]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=अधिकारिक वेबसाइट |language=हिंदी }}</ref> | |||
==भारतीय नौ सेना== | ==भारतीय नौ सेना== | ||
{{main|भारतीय नौसेना}} | {{main|भारतीय नौसेना}} | ||
[[चित्र:Indian-Navy-2.jpg|thumb|250px|भारतीय नौसेना]] | |||
आधुनिक भारतीय नौ सेना की नीव 17वीं शताब्दी में रखी गई थी, जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने एक समुद्री सेना के रूप में [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]] की स्थापना की और इस प्रकार [[1934]] में रॉयल इंडियन नेवी की स्थापना हुई। भारतीय नौ सेना का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है और यह मुख्य नौ सेना अधिकारी – एक एडमिरल के नियंत्रण में होता है। भारतीय नौ सेना 3 क्षेत्रों की कमांडों के तहत तैनात की गई है, जिसमें से प्रत्येक का नियंत्रण एक फ्लैग अधिकारी द्वारा किया जाता है। | आधुनिक भारतीय नौ सेना की नीव 17वीं शताब्दी में रखी गई थी, जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने एक समुद्री सेना के रूप में [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]] की स्थापना की और इस प्रकार [[1934]] में रॉयल इंडियन नेवी की स्थापना हुई। भारतीय नौ सेना का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है और यह मुख्य नौ सेना अधिकारी – एक एडमिरल के नियंत्रण में होता है। भारतीय नौ सेना 3 क्षेत्रों की कमांडों के तहत तैनात की गई है, जिसमें से प्रत्येक का नियंत्रण एक फ्लैग अधिकारी द्वारा किया जाता है। | ||
*पश्चिमी नौ सेना कमांड का मुख्यालय [[अरब सागर]] में [[मुम्बई]] में स्थित है। | *पश्चिमी नौ सेना कमांड का मुख्यालय [[अरब सागर]] में [[मुम्बई]] में स्थित है। | ||
*दक्षिणी नौ सेना कमांड [[केरल]] के [[कोच्चि]] (कोचीन) में है तथा यह भी अरब सागर में स्थित है। | *दक्षिणी नौ सेना कमांड [[केरल]] के [[कोच्चि]] (कोचीन) में है तथा यह भी अरब सागर में स्थित है। | ||
*पूर्वी नौ सेना कमांड [[बंगाल की खाड़ी]] में [[आंध्र प्रदेश]] के विशाखापट्नम में है। | *पूर्वी नौ सेना कमांड [[बंगाल की खाड़ी]] में [[आंध्र प्रदेश]] के विशाखापट्नम में है।<ref name="अधिकारिक"/> | ||
==भारतीय वायु सेना== | ==भारतीय वायु सेना== | ||
{{main|भारतीय वायु सेना}} | {{main|भारतीय वायु सेना}} | ||
[[चित्र:Indian-Air-Force-Flag.png|thumb|भारतीय वायुसेना का ध्वज]] | [[चित्र:Indian-Air-Force-Flag.png|thumb|250px|भारतीय वायुसेना का ध्वज]] | ||
भारतीय वायु सेना की स्थापना [[8 अक्टूबर]] [[1932]] को की गई और [[1 अप्रैल]] [[1954]] को एयर मार्शल सुब्रोतो मुखर्जी, भारतीय नौ सेना के एक संस्थापक सदस्य ने प्रथम भारतीय वायु सेना प्रमुख का कार्यभार संभाला। समय बितने के साथ भारतीय वायु सेना ने अपने हवाई जहाजों और उपकरणों में अत्यधिक उन्नयन किए हैं और इस प्रक्रिया के भाग के रूप में इसमें 20 नए प्रकार के हवाई जहाज शामिल किए हैं। 20वीं शताब्दी के अंतिम दशक में भारतीय वायु सेना में महिलाओं को शामिल करने की पहल के लिए संरचना में असाधारण बदलाव किए गए, जिन्हें अल्प सेवा कालीन कमीशन हेतु लिया गया यह ऐसा समय था जब वायु सेना ने अब तक के कुछ अधिक जोखिम पूर्ण कार्य हाथ में लिए हुए थे। | भारतीय वायु सेना की स्थापना [[8 अक्टूबर]] [[1932]] को की गई और [[1 अप्रैल]] [[1954]] को एयर मार्शल सुब्रोतो मुखर्जी, भारतीय नौ सेना के एक संस्थापक सदस्य ने प्रथम भारतीय वायु सेना प्रमुख का कार्यभार संभाला। समय बितने के साथ भारतीय वायु सेना ने अपने हवाई जहाजों और उपकरणों में अत्यधिक उन्नयन किए हैं और इस प्रक्रिया के भाग के रूप में इसमें 20 नए प्रकार के हवाई जहाज शामिल किए हैं। 20वीं शताब्दी के अंतिम दशक में भारतीय वायु सेना में महिलाओं को शामिल करने की पहल के लिए संरचना में असाधारण बदलाव किए गए, जिन्हें अल्प सेवा कालीन कमीशन हेतु लिया गया यह ऐसा समय था जब वायु सेना ने अब तक के कुछ अधिक जोखिम पूर्ण कार्य हाथ में लिए हुए थे।<ref name="अधिकारिक"/> | ||
==घुड़सवार सेना== | |||
भारतीय थलसेना की विभिन्न रेजिमेंटों में 61वीं कैवॅलरी की अनोखी विशिष्टता है कि यह विश्व में एकमात्र अयांत्रिक घुड़सवार सेना है। आधुनिक यंत्रीकृत युद्ध [[कला]] से पहले राजाओं व सम्राटों की शक्ति का अंदाज़ा उनकी घुड़सवार सेना लगाया जाता था। [[मुग़ल]] शासन के दौरान भारत में प्रत्येक कुलीन का ओहदा उसके पास मौजूद घोड़ों की संख्या से तय होता था। | |||
मुग़ल काल और 1947 में भारत की स्वतंत्रता के समय तक यह स्थिति बदल चुकी थी। जब [[अंग्रेज़]] भारत से गए, तो सैन्य अस्तबलों में भारतीय रजवाड़ों की शाही टुकड़ियों के घोड़े ही बचे थे। अंततः [[1951]] में राज्य सेनाओं को भारतीय थलसेना में मिला लिया गया, परिणामस्वरूप चार से पाँच घुड़सवार सेना की इकाइयों का निर्माण हुआ। [[मई]] [[1953]] में अलग-अलग इकाइयों को विघटित कर न्यू हॉर्स्ड कैवॅलरी रेजिमेंट नामक रेजिमेंट बनाई गई। जनवरी [[1954]] में इसका नाम बदलकर 61वीं कैवॅलरी रेजिमेंट रख दिया गया। | |||
इस रेजिमेंट को पोलो खेल परंपरा की विशिष्टता भी हासिल है। इसने भारत को नामी पोलो खिलाड़ी दिए हैं। इस रेजिमेंट के सदस्यों ने चार पोलो और पाँच बार घुड़सवारी के लिए खेल के क्षेत्र में दिए जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार, अर्जुन पुरस्कार जीता है। | |||
==वीरता पुरस्कार== | |||
*सशस्त्र सैन्य कर्मियों को उनके शौर्य के लिए भारत के [[राष्ट्रपति]] द्वारा वीरता पुरस्कार दिए जाते हैं। चार प्रमुख वीरता पुरस्कार हैं। परमवीर चक्र, अशोक चक्र, सर्वोत्तम युद्ध सेवा मेडल और विशिष्ट सेवा मेडल है। | |||
*वीरता पुरस्कारों में शामिल हैं, महावीर चक्र, वीर चक्र, शौर्य चक्र, उत्तम युद्ध सेवा मेडल युद्ध सेवा मेडल, अति विशिष्ट सेवा मेडल, विशिष्ट सेवा मेडल, वायु सेना मेडल और नौसेना मेडल है। | |||
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चित्र:Indian-Air-Force-3.jpg|भारतीय वायुसेना के सेनिक | चित्र:Indian-Air-Force-3.jpg|भारतीय वायुसेना के सेनिक | ||
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13:03, 6 फ़रवरी 2011 का अवतरण
थल सेना, नौसेना, तटरक्षक और वायु सेना सहित भारत की संयुक्त सशस्त्र सेना है। जो विश्व की विशालतम सेनाओं में से एक है। भारत की रक्षा नीति का प्रमुख उद्देश्य यह है कि भारतीय उपमहाद्वीप में उसे बढ़ावा दिया जाए एवं स्थायित्व प्रदान किया जाए तथा देश की रक्षा सेनाओं को पर्याप्त रूप से सुसज्जित किया जाए, ताकि वे किसी भी आक्रमण से देश की रक्षा कर सकें। वर्ष 1946 के पूर्व भारतीय रक्षा का पूरा नियंत्रण अंग्रेज़ों के हाथों में था। उसी वर्ष केंद्र में अंतरिम सरकार में पहली बार एक भारतीय, बलदेव सिंह, देश के रक्षा मंत्री बने, हालांकि कमांडर-इन-चीफ एक अंग्रेज़ ही रहा। 1947 में देश का विभाजन होने पर भारत को 45 रेजीमेंटें मिलीं, जिनमें 2.5 लाख सैनिक थे। शेष रेजीमेंटं पाकिस्तान चली गयीं। गोरखा फौज की 6 रेजीमेंटं (लगभग 25,000 सैनिक) भी भारत को मिलीं। शेष गोरखा सैनिक ब्रिटिश सेना में सम्मिलित हो गये। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन हो गयी। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन भारतीय भूमि से 28 फ़रवरी, 1948 को स्वदेश रवाना हुई। कुछ अंग्रेज़ अफ़सर परामर्शक के रूप में कुछ समय तक भारत में रहे लेकिन स्वतंत्रता के पहले क्षण से ही भारतीय सेना पूर्णत: भारतीयों के हाथों में आ गयी थी। स्वतंत्रता के तुरंत पश्चात भारत सरकार ने भारतीय सेना के ढांचे में कतिपय परिवर्तन किये। थल सेना, वायु सेना एवं नौसेना अपने-अपने मुख्य सेनाध्यक्षों के अधीन आयी। भारतीय रियासतों की सेना को भी देश की सैन्य व्यवस्था में शामिल कर लिया गया। 26 जनवरी, 1950 को देश के गणतंत्र बनने पर भारतीय सेनाओं की संरचनाओं में आवश्यक परिवर्तन किये गये। भारत की रक्षा सेनाओं का सर्वोच्च कमांडर भारत का राष्ट्रपति है, किन्तु देश रक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी मंत्रिमंडल की है। रक्षा से संबंधित सभी महत्वपूर्ण मामलों का फैसला राजनीतिक कार्यों संबंधी मंत्रिमंडल समिति (कैबिनेट कमेटी ऑन पॉलिटिकल अफेयर्स) करती है, जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है। रक्षा मंत्री सेवाओं से संबंधित सभी विषयों के बारे में संसद के समक्ष उत्तरदायी है।
परम्परा व इतिहास
सेना की लंबी परम्परा व इतिहास है। आरंभ में यह केवल थलसेना ही थी। कहा जाता है कि भारत में सेनाओं का नियोजन चौथी शताब्दी ई.पू. से ही प्रचलन में था। मुख्य संघटन पैदल सेना, रथ और हाथी थे। यद्यपि भारत का एक लंबा नौ-इतिहास है, लेकिन भारतीय जलक्षेत्र में पुर्तग़ालियों के आगमन के बाद ही नौसेना विकसित हुई। वायुसेना का गठन प्रथम विश्व युद्ध के दौरान और 1913 में उत्तर प्रदेश में एक सैनिक उड्डयन स्कूल की स्थापना के साथ हुआ। भारतीय सेना का सर्वोच्च नियंत्रण भारत के राष्ट्रपति के पास है। रक्षा मंत्रालय देश की रक्षा से संबंधित सभी मामलों में नीतियाँ बनाने व उन्हें लागू करने के लिए उत्तरदायी है। मंत्रालय का प्राथमिक कार्य सशस्त्र सेनाओं का प्रशासन है। यहाँ संघीय (केंद्रीय) मंत्रिमंडल राष्ट्र की रक्षा के लिए संयुक्त रूप से उत्तरदायी है, वहीं रक्षा मंत्री मंत्रिमंडल की ओर से उत्तरदायित्वों का निर्वहन करता है। प्रत्येक सेना का अपना सेना प्रमुख होता है और तीनों प्रमुख रक्षा की विस्तृत योजना बनाने, तैयारी करने और क्रमशः अपनी सेना के संचालन व प्रशासन के लिए उत्तरदायी होते हैं। नागरिक स्वेच्छा से सेनाओं में शामिल होते हैं और सुप्रशिक्षित, दक्ष पेशेवर अफ़सरों के दल द्वारा इनका नेतृत्व किया जाता है। भारतीय सशस्त्र सेनाओं में घरेलू राजनीति से दूर रहने की परंपरा रही है और ये विश्व भर में शांति सेना के रूप में भी असाधारण रही हैं।
क्रम | प्रक्षेपास्त्र | प्रकार | मारक क्षमता | आयुध वजन क्षमता | प्रथम परीक्षण | लागत | विकास स्थिति |
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1 | अग्नि-1 | सतह से सतह पर मारक(इंटरमीडिएट बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र) | 1200 से 1500 कि.मी. | 1000 कि.ग्रा. | 22मई, 1989 | 8 करोड़ रू. | विकसित एवं तैनात |
2 | अग्नि-2 | सतह से सतह पर मारक(इंटरमीडिएट बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र) | 1500 से 2000 किलोग्राम | 1000 कि.ग्रा. (परम्परागत एवं परमाण्विक) | 11 अप्रॅल, 1999 | 8 करोड़ रू. | विकसित एवं प्रदर्शित |
3 | अग्नि-3 | इंटरमीडिएट बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र | 3000 किलोग्राम | 1500 किलोग्राम | 9 जुलाई, 2006 (असफल), 12 अप्रॅल, 2007 (प्रथम सफल परीक्षण) | निर्माणाधीन | |
4 | पृथ्वी | सतह से सतह पर मारक अल्प दूरी के टैक्टिकल बैटल फील्ड प्रक्षेपास्त्र | 150 से 250 किलोग्राम | 500 किलोग्राम | 25 फ़रवरी, 1989 | 3 करोड़ रू. | विकसित एवं तैनात |
5 | त्रिशूल | सतह से वायु में मारक लो लेवेल क्लीन रिएक्शन अल्प दूरी के प्रक्षेपास्त्र | 500मी. से 9 किलोग्राम | 15 किलोग्राम | 5 जून, 1989 | 45 लाख रू. | विकसित एवं तैनात |
6 | नाग | सतह से सतह पर मारक टैंक भेदी प्रक्षेपास्त्र | 4 किलोग्राम | 10 किलोग्राम | 29 नवम्बर, 1991 | 25 लाख रू. | विकसित एवं तैनात |
7 | आकाश | सतह से वायु में मारक बहुलक्षक प्रक्षेपास्त्र | 25 से 30 किलोग्राम | 55 किलोग्राम | 15 अगस्त, 1990 | 1 करोड़ रू. | विकसित एवं तैनात |
8 | अस्त्र | वायु से वायु में मारक प्रक्षेपास्त्र | 25 से 40 किलोग्राम | 300 किलोग्राम | 9 मई, 2003 | निर्माणाधीन | |
9 | ब्रह्मोस | पोतभेदी सुपर सोनिक क्रूज़ प्रक्षेपास्त्र | 290 किलोग्राम | 12 जून, 2001 | विकसित एवं तैनात | ||
10 | शौर्य | सतह से सतह पर मारक बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र | 600 किलोग्राम | 12 नवम्बर, 2008 | विकासशील एवं परीक्षणाधीन |
भारत में प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम
थल सेना | नौ सेना | वायु सेना |
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फील्ड मार्शल | एडमिरल ऑफ़ फ्लीट | मार्शल ऑफ़ दी एयर फोर्स |
जनरल | एडमिरल | एयर चीफ़ मार्शल |
लेफ्टिनेंट जनरल | वाइस एडमिरल | एयर मार्शल |
मेजर जनरल | रियर एडमिरल | एयर वाइस मार्शल |
ब्रिगेडियर | कोमोडोर | एयर कोमोडोर |
कर्नल | कैप्टन | ग्रुप कैप्टन |
लेफ्टिनेंट कर्नल | कमांडर | विंग कमांडर |
मेजर | लेफ्टिनेंट कमांडर | स्क्वाड्रन लीडर |
कैप्टन | लेफ्टिनेंट | फ्लाइड लेफ्टिनेंट |
लेफ्टिनेंट | सब-लेफ्टिनेंट | फ्लाइंग ऑफिसर |
भारत में प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम का विकास इस प्रकार हुआ-
- 1967 में भारत ने अंतरिक्ष शोध और उपग्रह प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम प्रारम्भ किया और वर्ष 1972 तक रॉकेट रोहिणी-560 का परीक्षण कर लिया गया। रोहिणी-560 की मारक क्षमता लगभग 100 किलो भार के साथ 334 किलोमीटर दूर तक थी।
- 1979 में भारत ने पहली बार उपग्रह प्रक्षेपण यान 'एसएलवी-3' अंतरिक्ष बूस्टर का प्रक्षेपण किया।
- 1980 में 35 किलो भार वाले रोहिणी-1 उपग्रह का सफल प्रक्षेपण किया गया।
- 1983 में भारत के 'रक्षा अनुसंधान और विकास संस्थान' (डी आर डी ओ) ने एकीकृत प्रक्षेपास्त्र विकास कार्यक्रम की घोषणा की जिसमें पाँच प्रक्षेपास्त्र विकसित किए जाने थे-
- पृथ्वी जो सतह से सतह पर मार करने वाला प्रक्षेपास्त्र है (तरल ईंधन वाला बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र)।
- पृथ्वी-1 जिसकी मारक क्षमता डेढ़ सौ किलोमीटर, एक हज़ार किलोग्राम की क्षमता है। यह सेना के लिए है।
- पृथ्वी-2 जिसकी मारक क्षमता ढाई सौ किलोमीटर, पाँच सौ किलोग्राम की क्षमता है। यह वायु सेना के लिए है।
- पृथ्वी-3 जिसकी मारक क्षमता साढ़े तीन सौ किलोमीटर, पाँच सौ किलोग्राम की क्षमता है। यह नौसेना के लिए है।
- अग्नि जो सतह से सतह पर मार करने वाला प्रक्षेपास्त्र है और जिसकी क्षमता डेढ़ हज़ार किलोमीटर है। यह एक हज़ार किलोग्राम भार वाला अस्त्र ले जा सकता है। इस प्रक्षेपास्त्र का पहला चरण एसएलवी-3 के ठोस ईंधन वाले मोटर का और दूसरा चरण तरल ईंधन वाले पृथ्वी का प्रयोग करता है।
- आकाश जो सतह से सतह पर मार करने वाला लंबी दूरी का प्रक्षेपास्त्र है। यह 55 किलोग्राम वजन का अस्त्र ले जा सकता है और अधिकतम 25 किलोमीटर की दूरी तक यह एक साथ पाँच विमानों को निशाना बना सकता है।
- त्रिशूल जो सतह से सतह पर या सतह से हवा में मार करने वाला कम दूरी का प्रक्षेपास्त्र है। इसकी मारक दूरी 50 किलोमीटर है और यह रडार के निर्देशों से कार्य करता है।
- नाग जो टैंक रोधी प्रक्षेपास्त्र है। यह लगभग चार किलोमीटर की क्षमता वाला प्रक्षेपास्त्र है और निर्देशों के लिए संवेदी प्रौद्योगिकी पर बना है।
- 1987 में भारत ने आधुनिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (ए एस एल वी) का परीक्षण प्रारम्भ किया। चार हज़ार किलोमीटर की क्षमता वाले इस प्रक्षेपण की क्षमता डेढ़ सौ किलोग्राम है। इसमें तीन उपग्रह प्रक्षेपण यान रहते हैं।
- 1988 में भारत ने 'पृथ्वी' की परीक्षण उड़ान का परीक्षण किया। भारत ने ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पी एस एल वी) के निर्माण की घोषणा की जिसकी क्षमता लगभग आठ हज़ार किलोमीटर थी। एक हज़ार किलो वजन की क्षमता के इस यान से एक टन का उपग्रह ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया सकता था। यदि इस यान को हथियार प्रणाली की भाँति किया जाए तो यह परमाणु अस्त्र को एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक ले जाने में सक्षम है।
- 1989 में भारत ने अग्नि का परीक्षण किया और नवंबर में नाग का परीक्षण किया।
- 1994 के मध्य तक पृथ्वी-1 का प्रारम्भिक उत्पादन प्रारम्भ हो गया था। भारतीय सेना ने 100 पृथ्वी-1 प्रक्षेपास्त्र लेने का आदेश दिया जिसे उसकी 333 प्रक्षेपास्त्र ग्रुप के साथ तैनात किया जाना था।
- 1996 में भारत ने कहा कि वह 'भू-समकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान' विकसित कर रहा है। भारत की योजना जनवरी माह में रूस की जी एस एल वी के लिए सात क्रायोजेनिक इंजन देने की योजना थी।
- 1998 में भारत में 'भारतीय जनता पार्टी' ने 'पृथ्वी प्रक्षेपास्त्रों' का उत्पादन अधिक करने की योजना के साथ ही मध्यम दूरी के 'अग्नि प्रक्षेपास्त्र' विकसित करने का भी फ़ैसला लिया।
- क्लिंटन प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी ने अमेरीका में कहा कि भारत के पास 'सागरिका' नाम का समुद्र से जुड़ा प्रक्षेपास्त्र है। सागरिका की क्षमता 200 मील की है और वह परमाणु अस्त्र ले जाने में सक्षम है।
- 11 मई भारत ने त्रिशूल का सफल परीक्षण किया है। यह सतह से सतह और सतह से हवा में मारने वाला प्रक्षेपास्त्र है।
रक्षा मंत्रालय
रक्षा मंत्रालय का प्रमुख रक्षा मंत्री है और सबसे बड़ा वित्तीय अधिकारी रक्षा मंत्रालय का वित्तीय सलाहकर होता है। रक्षा मंत्रालय में चार विभाग है-
- रक्षा विभाग
- रक्षा उत्पादन विभाग
- रक्षा आपूर्ति विभाग
- रक्षा विज्ञान एवं अनुसंधान विभाग।
रक्षा मंत्रालय देश की रक्षा करने और सशस्त्र सेनाओं - स्थल सेना, नौ सेना और वायु सेना के साज-सामान जुटाने और उनका प्रशासन चलाने के लिए उत्तरदायी है। रक्षा मंत्रालय भारत की रक्षा सशस्त्र सेनाओं अर्थात थल सेना, नौ सेना और वायु सेना के गठन और उनके प्रशासन, सशस्त्र सेनाओं के लिए अस्त्र-शस्त्र, गोला-बारूद, पोत, विमान, वाहन, उपकरण और साज-सामान की व्यवस्था करने, अभी तक आयात होने वाली मदों को देश के भीतर निर्मित करने की क्षमता स्थापित करने और रक्षा के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिए सीधे उत्तरदायी है। इस मंत्रालय की कुछ अन्य ज़िम्मेदारियाँ हैं- मंत्रालय से संबद्ध असैनिक सेवाओं पर नियंत्रण, कैन्टोनमेंट बनाना, उनके क्षेत्र का निर्धारण करना और रक्षा सेवा कर्मचारियों के लिए आंवास सुविधाओं का विनिमयन करना। भारत की सशस्त्र सेनाओं में तीन मुख्य सेवायें हैं- थल-सेना, नौसेना और वायु सेना। ये तीनों सेवायें एक सेनाध्यक्ष अर्थात क्रमश: स्थल सेनाध्यक्ष, नौ सेनाध्यक्ष और वायु सेनाध्यक्ष के अधीन हैं। ये तीनों सेनाध्यक्ष जनरल या इसके बराबर पद वाले होते हैं। इन तीनों सेनाध्यक्षों की एक सेनाध्यक्ष समिति है। इस समिति की अध्यक्षता यही तीनों सेनाध्यक्ष अपनी वरिष्ठता के आधार पर करते हैं। इस समिति की सहायता के लिए उप-समितियाँ होती हैं जो विशेष समस्याओं जैसे आयोजन, प्रशिक्षण, संचार आदि का काम देखती हैं।
आज भारत की थल सेना विश्व की सबसे बड़ी स्थल सेनाओं में चौथे स्थान पर, वायु सेना पांचवें स्थान पर और नौ सेना सातवें स्थान पर मानी जाती है। सेना के प्रमुख सहायक संगठन हैं-
- प्रादेशिक सेना
- तट रक्षक
- सहायक वायु सेना
- एन. सी. सी.
जिसमें स्थल सेना, नौ सेना और वायु सेना तीनों पार्श्व होते हैं।
भारतीय थल सेना
सेना को अधिकतर थल सेना ही समझा जाता है, यह ठीक भी है क्योंकि रक्षा-पक्ति में थल सेना का ही प्रथम तथा प्रधान स्थान है। इस समय लगभग 13 लाख सैनिक-असैनिक थल सेना में भिन्न-भिन्न पदों पर कार्यरत हैं, जबकि 1948 में सेना में लगभग 2,00,000 सैनिक थे। थल सेना का मुख्यालय नई दिल्ली में है। भारतीय थल सेना के प्रशासनिक एवं सामरिक कार्य संचालन का नियंत्रण थल सेनाध्यक्ष करता है।
थल सेनाध्यक्ष की सहायता के लिए थलसेना के वाइस चीफ, तथा चीफ स्टाफ अफसर होते हैं। इनमें डिप्टी चीफ आफ आर्मी स्टाफ, एडजुटेंट-जनरल, क्वार्टर मास्टर-जनरल, मास्टर-जनरल आफ़ आर्डनेन्स और सेना सचिव तथा इंजीनियर-इन-चीफ सम्मिलित हैं। थल सेना 6 कमानों में संगठित है- (1) पश्चिमी कमान (मुख्यालय: शिमला) (2) पूर्वी कमान (कोलकाता) (3) उत्तरी कमान (उधमपुर) (4) दक्षिणी कमान (पुणे) (5) मध्य कमान (लखनऊ) एवं (6) दक्षिणी-पश्चिमी कमान (जयपुर)। दक्षिण-पश्चिम कमान का गठन 15 अप्रैल, 2005 को किया गया। इसका मुख्यालय जयपुर में स्थापित किया गया है। यह थल सेना की सबसे बड़ी कमान है।[1]
भारतीय नौ सेना
आधुनिक भारतीय नौ सेना की नीव 17वीं शताब्दी में रखी गई थी, जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने एक समुद्री सेना के रूप में ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना की और इस प्रकार 1934 में रॉयल इंडियन नेवी की स्थापना हुई। भारतीय नौ सेना का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है और यह मुख्य नौ सेना अधिकारी – एक एडमिरल के नियंत्रण में होता है। भारतीय नौ सेना 3 क्षेत्रों की कमांडों के तहत तैनात की गई है, जिसमें से प्रत्येक का नियंत्रण एक फ्लैग अधिकारी द्वारा किया जाता है।
- पश्चिमी नौ सेना कमांड का मुख्यालय अरब सागर में मुम्बई में स्थित है।
- दक्षिणी नौ सेना कमांड केरल के कोच्चि (कोचीन) में है तथा यह भी अरब सागर में स्थित है।
- पूर्वी नौ सेना कमांड बंगाल की खाड़ी में आंध्र प्रदेश के विशाखापट्नम में है।[1]
भारतीय वायु सेना
भारतीय वायु सेना की स्थापना 8 अक्टूबर 1932 को की गई और 1 अप्रैल 1954 को एयर मार्शल सुब्रोतो मुखर्जी, भारतीय नौ सेना के एक संस्थापक सदस्य ने प्रथम भारतीय वायु सेना प्रमुख का कार्यभार संभाला। समय बितने के साथ भारतीय वायु सेना ने अपने हवाई जहाजों और उपकरणों में अत्यधिक उन्नयन किए हैं और इस प्रक्रिया के भाग के रूप में इसमें 20 नए प्रकार के हवाई जहाज शामिल किए हैं। 20वीं शताब्दी के अंतिम दशक में भारतीय वायु सेना में महिलाओं को शामिल करने की पहल के लिए संरचना में असाधारण बदलाव किए गए, जिन्हें अल्प सेवा कालीन कमीशन हेतु लिया गया यह ऐसा समय था जब वायु सेना ने अब तक के कुछ अधिक जोखिम पूर्ण कार्य हाथ में लिए हुए थे।[1]
घुड़सवार सेना
भारतीय थलसेना की विभिन्न रेजिमेंटों में 61वीं कैवॅलरी की अनोखी विशिष्टता है कि यह विश्व में एकमात्र अयांत्रिक घुड़सवार सेना है। आधुनिक यंत्रीकृत युद्ध कला से पहले राजाओं व सम्राटों की शक्ति का अंदाज़ा उनकी घुड़सवार सेना लगाया जाता था। मुग़ल शासन के दौरान भारत में प्रत्येक कुलीन का ओहदा उसके पास मौजूद घोड़ों की संख्या से तय होता था।
मुग़ल काल और 1947 में भारत की स्वतंत्रता के समय तक यह स्थिति बदल चुकी थी। जब अंग्रेज़ भारत से गए, तो सैन्य अस्तबलों में भारतीय रजवाड़ों की शाही टुकड़ियों के घोड़े ही बचे थे। अंततः 1951 में राज्य सेनाओं को भारतीय थलसेना में मिला लिया गया, परिणामस्वरूप चार से पाँच घुड़सवार सेना की इकाइयों का निर्माण हुआ। मई 1953 में अलग-अलग इकाइयों को विघटित कर न्यू हॉर्स्ड कैवॅलरी रेजिमेंट नामक रेजिमेंट बनाई गई। जनवरी 1954 में इसका नाम बदलकर 61वीं कैवॅलरी रेजिमेंट रख दिया गया।
इस रेजिमेंट को पोलो खेल परंपरा की विशिष्टता भी हासिल है। इसने भारत को नामी पोलो खिलाड़ी दिए हैं। इस रेजिमेंट के सदस्यों ने चार पोलो और पाँच बार घुड़सवारी के लिए खेल के क्षेत्र में दिए जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार, अर्जुन पुरस्कार जीता है।
वीरता पुरस्कार
- सशस्त्र सैन्य कर्मियों को उनके शौर्य के लिए भारत के राष्ट्रपति द्वारा वीरता पुरस्कार दिए जाते हैं। चार प्रमुख वीरता पुरस्कार हैं। परमवीर चक्र, अशोक चक्र, सर्वोत्तम युद्ध सेवा मेडल और विशिष्ट सेवा मेडल है।
- वीरता पुरस्कारों में शामिल हैं, महावीर चक्र, वीर चक्र, शौर्य चक्र, उत्तम युद्ध सेवा मेडल युद्ध सेवा मेडल, अति विशिष्ट सेवा मेडल, विशिष्ट सेवा मेडल, वायु सेना मेडल और नौसेना मेडल है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
वीथिका
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भारतीय वायुसेना
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भारतीय थलसेना का ध्वज
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भारतीय वायुसेना
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भारतीय वायुसेना के सेनिक