"द्वारकानाथ ठाकुर": अवतरणों में अंतर
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*द्वारकानाथ ठाकुर ने यूनियन बैंक की स्थापना की, जो बंगालियों द्वारा खोला जाने वाला पहला बैंक था। | *द्वारकानाथ ठाकुर ने यूनियन बैंक की स्थापना की, जो बंगालियों द्वारा खोला जाने वाला पहला बैंक था। | ||
* | *आपने तत्कालीन समाज तथा धर्म सुधार के आंदोलनों में प्रमुख रूप से हिस्सा लिया था। | ||
*वे [[राजा राममोहन राय]] द्वारा स्थापित [[ब्रह्म समाज]] के सबसे प्रारम्भिक सदस्यों में से थे। | *वे [[राजा राममोहन राय]] द्वारा स्थापित [[ब्रह्म समाज]] के सबसे प्रारम्भिक सदस्यों में से थे। | ||
* | *द्वारकानाथ जी ने 1843 ई. तक ब्रह्म समाज का नेतृत्व किया, इसके बाद उनके पुत्र [[देवेन्द्रनाथ ठाकुर]] ने इसका नेतृत्व सम्भाल लिया। | ||
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* | *अपने दोनों हाथों से उन्होंने इस तरह पैसा लुटाया कि अंत में वे कर्ज़ में डूब गये। | ||
*उनकी दानशीलता और | *उनकी दानशीलता और उदारता के कारण उन्हें प्रिंस (राजा) पुकारा जाता था। | ||
*1846 ई. में लंदन में उनकी मृत्यु हो गई। | *1846 ई. में लंदन में उनकी मृत्यु हो गई। | ||
05:49, 13 फ़रवरी 2011 का अवतरण
- द्वारकानाथ ठाकुर (1794-1846), कलकत्ता में जोड़ासांकू के प्रसिद्ध ठाकुर (टैगोर) परिवार के संस्थापक थे।
- उन्होंने अंग्रेज़ों के सहयोग से व्यापार करके अपार धन अर्जित किया।
- द्वारकानाथ ठाकुर ने यूनियन बैंक की स्थापना की, जो बंगालियों द्वारा खोला जाने वाला पहला बैंक था।
- आपने तत्कालीन समाज तथा धर्म सुधार के आंदोलनों में प्रमुख रूप से हिस्सा लिया था।
- वे राजा राममोहन राय द्वारा स्थापित ब्रह्म समाज के सबसे प्रारम्भिक सदस्यों में से थे।
- द्वारकानाथ जी ने 1843 ई. तक ब्रह्म समाज का नेतृत्व किया, इसके बाद उनके पुत्र देवेन्द्रनाथ ठाकुर ने इसका नेतृत्व सम्भाल लिया।
- उन्होंने 1842 तथा 1845 ई. में दो बार यूरोप की यात्रा की और महारानी विक्टोरिया से उनके महल में भेंट की।
- अपने दोनों हाथों से उन्होंने इस तरह पैसा लुटाया कि अंत में वे कर्ज़ में डूब गये।
- उनकी दानशीलता और उदारता के कारण उन्हें प्रिंस (राजा) पुकारा जाता था।
- 1846 ई. में लंदन में उनकी मृत्यु हो गई।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
(पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-177